कहानी: “छोटा सा हाथ, बड़ी बदलती तकदीर”
प्रस्तावना
मेरठ के बाहरी इलाके में बसी एक छोटी-सी बस्ती की गलियों में, हर शाम की तरह आज भी वही पुराना शोर था। बच्चों की किलकारियां, औरतों की आपसी बातें, कहीं-कहीं से आती सब्जी वालों की आवाजें। इसी बस्ती में रहती थी प्रिया—एक गरीब, अनाथ, मेहनती और बेहद संवेदनशील लड़की, जिसे मोहल्ले के लोग अक्सर तिरस्कार की नजर से देखते थे।
प्रिया का जीवन बचपन से ही संघर्षों से भरा था। माता-पिता की एक दुर्घटना में मृत्यु के बाद, वह अकेली रह गई। कोई रिश्तेदार नहीं, कोई सहारा नहीं। उसे जीने के लिए छोटी उम्र से ही काम करना पड़ा—कभी ढाबे में, कभी घरों में। मोहल्ले के लोग उसे बोझ समझते, ताने मारते, लेकिन प्रिया ने कभी अपनी अच्छाई नहीं छोड़ी।
एक असहाय भिखारी
गर्मियों की एक दोपहर, जब प्रिया ढाबे से लौट रही थी, उसने देखा कि सड़क के किनारे एक बूढ़ा भिखारी बैठा है। उसके कपड़े फटे हुए थे, बाल और दाढ़ी सफेद, चेहरा धूप से झुलसा हुआ। लोग उसे देखकर मुंह फेर लेते, दुकानदार उसे भगा देते, लेकिन प्रिया के मन में उसके लिए दया जागी।
वह ढाबे से थोड़ा बचा हुआ खाना लेकर आई और बूढ़े भिखारी के सामने रख दिया। “बाबा, यह खा लीजिए,” उसने कहा। आसपास के लोग फुसफुसाने लगे, “देखो, यह लड़की भी अब भिखारियों की तरह हो गई है।” लेकिन प्रिया ने किसी की परवाह नहीं की। वह जानती थी कि भूख क्या होती है, अपमान कैसा लगता है।
भिखारी ने उसकी ओर देखा, उसकी आंखों में आभार और आश्चर्य दोनों थे। “बेटी, भगवान तुम्हारा भला करे,” उसने कांपती आवाज़ में कहा। प्रिया मुस्कुराई और बिना कुछ कहे चली गई।
तिरस्कार और अफवाहें
अगले दिन जब प्रिया ढाबे पहुंची, तो ढाबे की मालकिन ने गुस्से से कहा, “अब से तुम्हें यहां काम करने की जरूरत नहीं है। हमारे ग्राहक तुम जैसी लड़की को पसंद नहीं करते, जो भिखारियों की मदद करे।” प्रिया स्तब्ध रह गई, लेकिन उसने कोई सवाल नहीं किया। वह जानती थी कि गरीब के पास सवाल करने का हक नहीं होता।
बस्ती में अफवाहें फैल गईं—”प्रिया का कोई चाल है, वह बूढ़े आदमी से पैसे लेना चाहती है,” “कौन जानता है, वह भिखारी असली भी है या नहीं।” कुछ ने तो यहां तक कह दिया कि वह भीख मांगना सीख रही है। प्रिया चुप रही, उसने किसी को सफाई नहीं दी।
रहस्यमयी बदलाव
कुछ दिन बाद, वह बूढ़ा भिखारी अचानक गायब हो गया। प्रिया ने उसे ढूंढने की कोशिश की, लेकिन कोई सुराग नहीं मिला। इसी बीच, उसकी हालत और खराब हो गई। काम नहीं, पैसा नहीं, खाने के लाले। लेकिन उसने हार नहीं मानी, छोटी-मोटी मजदूरी कर किसी तरह गुजारा करती रही।
एक शाम, जब वह थकी-हारी अपने कमरे में बैठी थी, अचानक दरवाजे पर दस्तक हुई। बाहर वही बूढ़ा भिखारी खड़ा था, लेकिन इस बार उसके कपड़े साफ थे, चाल में आत्मविश्वास था। प्रिया हैरान रह गई।
“बेटी, क्या मैं अंदर आ सकता हूं?” भिखारी ने पूछा।
“जी, बाबा,” प्रिया ने संकोच से कहा।
वह अंदर आया, और बोला, “मैं कोई साधारण भिखारी नहीं हूं। मेरा नाम शिवकुमार शर्मा है। कभी इस शहर का बड़ा व्यापारी था, लेकिन एक हादसे में सब कुछ खो दिया। मैंने अपना असली रूप छुपा लिया ताकि देख सकूं कि इस दुनिया में सच्ची इंसानियत बाकी है या नहीं।”
प्रिया अवाक थी। “लेकिन आपने मेरी मदद क्यों मांगी?”
श्री शर्मा मुस्कुराए, “मैंने बहुत लोगों से मदद मांगी, बेटी। लेकिन किसी ने नहीं सुनी। तुम अकेली थी जिसने बिना स्वार्थ के, बिना डरे, मुझे खाना दिया।”
नया मोड़
“मैं चाहता हूं कि तुम मेरे साथ चलो,” श्री शर्मा ने कहा। प्रिया घबराई, “कहां?” “मेरे घर।” उसने संकोच किया, लेकिन श्री शर्मा की आंखों में सच्चाई थी।
वे एक आलीशान घर पहुंचे, जहां नौकर-चाकर, बड़ी-बड़ी गाड़ियां थीं। प्रिया को विश्वास नहीं हो रहा था कि यह वही आदमी है जिसे कल तक सब भिखारी समझते थे।
“मैं तुम्हें पढ़ाना चाहता हूं, तुम्हें एक नया जीवन देना चाहता हूं,” श्री शर्मा ने कहा। “तुम्हारी अच्छाई ने मेरी आंखें खोल दीं। मैं चाहता हूं कि तुम मेरी बेटी बनो।”
प्रिया की आंखों में आंसू आ गए। उसने सिर झुका लिया, “मैं इस लायक नहीं हूं।”
“लायकता दिल से होती है, बेटी। और तुम्हारा दिल सबसे बड़ा है,” श्री शर्मा ने प्यार से कहा।
संघर्ष और सफलता
श्री शर्मा ने प्रिया को अच्छी शिक्षा दिलाई। उसने मेहनत की, पढ़ाई की, और जल्द ही कॉलेज में टॉप किया। समाज के ताने, पुराने दोस्तों की ईर्ष्या, सब कुछ झेलते हुए भी उसने कभी हार नहीं मानी।
धीरे-धीरे, प्रिया ने श्री शर्मा के बिजनेस में हाथ बंटाना शुरू किया। उसकी ईमानदारी और मेहनत से कंपनी फिर से तरक्की करने लगी। पुराने कर्मचारी, जो कभी उसे तिरस्कार से देखते थे, अब उसकी इज्जत करने लगे।
एक दिन, श्री शर्मा ने प्रिया को कंपनी की जिम्मेदारी सौंप दी। “अब यह सब तुम्हारा है, बेटी। तुमने साबित कर दिया कि गरीबी और तिरस्कार कभी किसी की काबिलियत नहीं छीन सकते।”
समाज की सोच में बदलाव
प्रिया की सफलता की खबर अखबारों में छपी। वही मोहल्ला, वही लोग, जो कभी उसे तिरस्कार से देखते थे, अब उसके घर आकर बधाई देने लगे। कुछ ने माफी मांगी, कुछ ने अपनी बेटियों को प्रिया जैसा बनने के लिए प्रेरित किया।
प्रिया ने अपने पुराने मोहल्ले में एक स्कूल खोला, जहां गरीब बच्चों को मुफ्त शिक्षा और खाना मिलता था। उसने अपने अनुभव से सीखा था कि एक छोटी सी मदद किसी की पूरी जिंदगी बदल सकती है।
अंतिम संदेश
एक दिन, एक पत्रकार ने प्रिया से पूछा, “आपकी सबसे बड़ी प्रेरणा क्या थी?”
प्रिया ने मुस्कुराकर कहा, “मेरी प्रेरणा थी वह दिन, जब मैंने एक असहाय व्यक्ति को बिना किसी स्वार्थ के मदद की थी। अगर उस दिन मैंने डर या तिरस्कार की परवाह की होती, तो शायद आज मैं यहां नहीं होती।”
“इंसानियत कभी छोटी नहीं होती, और अच्छाई का फल जरूर मिलता है।”
सीख
यह कहानी हमें सिखाती है कि समाज चाहे जितना भी तिरस्कार करे, अगर दिल में सच्चाई और दया हो तो किस्मत भी बदल सकती है। एक छोटा सा अच्छा काम आपकी पूरी जिंदगी बदल सकता है। इसलिए, कभी भी अपनी अच्छाई को मत खोइए—क्योंकि वही आपकी सबसे बड़ी ताकत है।
अगर आपको यह कहानी अच्छी लगी हो, तो अपने विचार जरूर साझा करें। क्या आपने भी कभी किसी की मदद की है जिसने आपकी जिंदगी बदल दी हो?
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