कामवाली बाई ने मालकिन की फेंकी हुई पुरानी मूर्ति को साफ़ किया, जब मूर्ति के अंदर से निकला राज़ तो
मूर्ति की अमानत
क्या आपने कभी सोचा है कि जिन चीज़ों को हम बेकार समझकर फेंक देते हैं, उनमें किसी की पूरी ज़िंदगी, रिश्तों और रहस्यों की परतें छुपी हो सकती हैं? कभी-कभी टूटे सामान के साथ जुड़ी यादें वक़्त का सच भी उगल देती हैं—ठीक ऐसे ही, जैसे वसंत विहार की एक आलीशान कोठी में हुआ।
वसंत विहार: दो दुनिया, दो औरतें
दिल्ली के सबसे अच्छे इलाकों में से एक, वसंत विहार की सड़कों पर जब सुबह की सुनहरी किरणें वहां की शानदार कोठियों के कांच से टकरातीं, तो अमीरी अपने पूरे शबाब पर होती। इन्हीं कोठियों में थी कोठी नंबर 7—खन्ना विला। इसकी मालकिन थीं श्रीमती अंजलि खन्ना, पचास करोड़ की संपत्ति, शोहरत, स्टेटस… सब कुछ था, सिवाय सुकून या अपनेपन के। पति राजेश्वर खन्ना का हादसे में तीन साल पहले निधन हो गया था। तब से अंजलि और भी सख्त, खामोश और अकेली सी हो गई थीं।
दूसरी ओर, शहर के एक दूसरे किनारे की तंग गलियों में, बारिश और सीलन वाले एक छोटे से दो कमरे के घर में रहती थी शांति—एक कामवाली, विधवा, जिसने अपने जीवन का हर दिन संघर्ष में जिया था। उसका सब कुछ उसका बेटा राहुल था। पति के गुजरने के बाद शांति ने घर-घर जाकर बर्तन मांजना, सफाई करना शुरू किया ताकि बेटे की पढ़ाई न रूके—क्योंकि राहुल होनहार था, उसकी आँखों में सपने थे, मां की आंखों का तारा था।
टूटते सपने और बढ़ती उम्मीदें
हाल के कुछ महीने शांति के लिए चिन्ता से भरे थे। राहुल को ब्लैकबोर्ड पर कुछ दिखता नहीं था, कई डॉक्टरों ने बताया था कि ऑपरेशन जरूरी है, वरना हमेशा के लिए रोशनी जा सकती है। खर्च? शांति के लिए मानो पहाड़ टूट गया हो—इतने पैसे इकट्ठा करना उसके लिए असंभव था। वह रात-रात भर भगवान से बेटे की सलामती की दुआ मांगती।
विरासत की धूल में दबा सच
दिवाली की सफाई के दिन, खन्ना विला में पुराना कबाड़ बाहर निकालने की ज़िम्मेदारी शांति और अन्य काम वालों को मिली। स्टोर रूम की धूल जमी चीजों के बीच एक कपड़े में बंधी, पुरानी मिट्टी की मूर्ति निकली। साधारण, एक जगह से टूटी। अंजलि ने देखते ही मूर्ति को गुस्से से फेंक देने को कहा—”यह मनहूस मूर्ति अब यहां ना हो, फेंक दो बाहर!”
शांति का दिल कचोट गया। “मैडम, यह गणपति बप्पा की मूर्ति है, इसे फेंकना पाप है।” पर अंजलि ने सख्ती से कहा, “फेंक दो!” शांति चुपचाप मूर्ति उठाकर बाहर कबाड़ में रख आई। पर न जाने क्यों, घर जाने से पहले दोबारा मूर्ति की ओर देखा और उसे अपने थैले में छुपाकर घर ले आई, इस फैसले के साथ—इसे अपने घर के मंदिर में रखेगी।
मूर्ति की परतें खुलीं, उगला राज
रात को खाना खिला शांति मूर्ति साफ करने लगी। जैसे-जैसे उसने कपड़ा पोंछा, वैसे-वैसे मूर्ति का असली रूप सामने आया। नीचे के हिस्से में उसे हलचल सा महसूस हुआ। हल्के दबाव से आसन खुल गया और अंदर से एक मखमली कपड़े में बंधी पोटली निकली। कांपते हाथों से शांति ने पोटली खोली—अंदर एक पीला मुड़ा कागज और एक सोने की अंगूठी थी जिसमें ‘R’ अंकित था। शांति पढ़ी-लिखी नहीं थी, उसने राहुल को बुलाया।
राहुल ने जैसे-तैसे पढ़ना शुरू किया—वह चिट्ठी थी अंजलि की मां स्व. शारदा खन्ना की, 20 साल पुरानी थी। उसमें लिखा था कि उसका बेटा ‘रोहन’ जिंदा है, कार हादसे में नहीं मरा। पति राजेश्वर ने चूंकि उन्हें नापसंद किया, इसलिए शहर से धमकाकर, झूठी खबर(मृत्यु की) फैलवाई, और अपनी जायदाद का वारिस बनने से रोक दिया। मां ने मूर्ति में अंगूठी(रोहन की) छिपाकर, संदेश लिखा—”एक दिन सच बाहर आएगा, मेरी बेटी अंजलि को यह बताना।”
शांति और राहुल स्तब्ध रह गए! ऐसा गहरा राज, ऐसा क्रूर अन्याय!
सच का सामना
अगली सुबह शांति हिम्मत जुटाकर अंजलि के सामने वह मूर्ति, चिट्ठी और अंगूठी लेकर पहुँची। अंजलि बेहद नाराज़ हुई, “मैंने कहा था फेंक दो!” शांति ने हाथ जोड़कर आग्रह किया, “एक बार चिट्ठी पढ़ लीजिए, यह आपकी मां का संदेश है!”
अंजलि ने पढ़ना शुरू किया—और जैसे-जैसे पढ़ती गईं, उनका चेहरा सफेद, आँखें नम, हाथ काँपते गए। चिट्ठी पढ़कर वह जमीन पर बैठ गई, सिसक-सिसक कर रोने लगी। “मेरे पापा…मेरे भाई…हाय मैं क्या थी, कितनी अकेली थी!”
शांति ने उन्हें सहारा दिया, अंजलि ने उसे गले लगा रोते हुए कहा, “तुमने मेरी जिंदगी का सबसे बड़ा सच मुझे दिया है।”
कठिनाई से खुशहाली
अंजलि उसी दिन से बदल गई। उसने ज़िंदगी का असली दर्द और दूसरों के दुख को महसूस किया। उसने तुरंत शांति के बेटे राहुल का इलाज कराया। दिल्ली के सबसे अच्छे हॉस्पिटल में ऑपरेशन, सारे पैसे का इंतजाम—अब राहुल की आंखें स्वस्थ थीं।
वहीं, अंजलि ने देशभर में जासूस लगवाए, आखिरकार महीनों बाद ज्ञात हुआ—रोहन उत्तराखंड के एक गाँव में, अपनी पहचान बदलकर, अपने पुराने प्रेम(ड्राइवर की बेटी) के साथ, एक खुशहाल जीवन बसर कर रहा है। अंजलि खुद गाँव पहुंची, भाई से मिली—20 वर्षों के ग़लतफहमी और दर्द के आँसू बहते रहे।
भाई-बहन दिल्ली लौटे—अंजलि ने जायदाद का हिस्सा रोहन को दिया, रोहन-भाभी अब परिवार का हिस्सा बन गए।
नई शुरुआत: औरत से घर की सदस्य तक
एक दिन बड़ी पूजा के दौरान अंजलि ने सबके सामने कहा, “आज हमारा परिवार पूरा हुआ, तो केवल शांति की वजह से। अगर वह न होती, यह राज और हम सब कभी नहीं मिल पाते। आज से शांति इस घर की नौकरानी नहीं, बल्कि सदस्य है, मेरी भाभी समान।”
शांति और राहुल के नाम फिक्स्ड डिपॉजिट, राहुल की पढ़ाई की पूरी जिम्मेदारी—अब गरीबी, दुःख शांति की ज़िंदगी से मिट चले थे।
और वह मूर्ति? जो कभी नफरत से फेंक दी गई थी, अब घर के मंदिर में सबसे ऊँचे, सबसे पवित्र स्थान पर रखी गई। क्योंकि उसने रिश्तों को जोड़ने, सच उजागर करने का काम किया।
कहानी की सीख
शांति की यह कहानी बताती है कि छोटे-छोटे अच्छे कर्म, इंसानियत, ईमानदारी—कभी बेकार नहीं जाते। एक टूटी मूर्ति, एक दुखी स्त्री, एक घायल रिश्ता—सबने मिलकर चमत्कार कर दिया। जब आप किसी की मदद करते हैं, तो ब्रह्मांड भी आपके लिए एक खुशकिस्मती का रास्ता खोल देता है।
अगर इस कहानी ने आपके मन को छुआ हो, तो इसे अपने मित्रों, परिवार और सभी के साथ साझा कीजिए—ताकि अमानत, ईमानदारी, नेकी और रिश्तों का यह खूबसूरत संदेश ज्यादा से ज्यादा दिलों तक पहुंचे।
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