लड़के ने अमीर महिला को बचाया, लेकिन महिला को होश आते ही उसने पुलिस बुला ली

इंसानियत की कीमत

दिल्ली की भीड़भाड़ भरी सड़क पर दोपहर का वक्त था। ट्रैफिक का शोर, हॉर्न की आवाजें, और गर्म धूप हर तरफ बेचैनी सी फैली थी। इसी बीच एक सफेद मर्सिडीज कार तेज रफ्तार में फ्लाईओवर पर चढ़ी और अचानक ब्रेक लगने से नियंत्रण खो बैठी। कार बेकाबू होकर साइड रेलिंग से टकराई और जोरदार आवाज के साथ एक तरफ पलट गई। लोग रुक गए। कुछ मोबाइल निकालकर वीडियो बनाने लगे। पर किसी ने आगे बढ़कर मदद नहीं की।

उसी समय सामने की चाय की टपरी पर खड़ा एक युवा लड़का, नाम आर्यन, उम्र करीब 24 साल, साधारण कपड़ों में फटे बैग के साथ सड़क किनारे चाय पी रहा था। वो कुछ सेकंड तक हक्काबक्का देखता रहा। फिर बिना कुछ सोचे भागकर कार की तरफ दौड़ पड़ा। कार का शीशा टूटा हुआ था। धुआं उठ रहा था। अंदर एक महिला बेहोश पड़ी थी। उम्र लगभग 30-32 साल, महंगे कपड़े, हीरे की अंगूठी और माथे पर चोट से खून बह रहा था।

आर्यन ने हाथों से कांच के टुकड़े हटाए और दरवाजा खोलने की कोशिश की। भीड़ बस तमाशा देख रही थी। कोई वीडियो बना रहा था, कोई हंस रहा था। आर्यन चिल्लाया, “भाई कोई मदद करो, एंबुलेंस बुलाओ!” पर किसी ने नहीं सुनी। उसने पूरी ताकत लगाकर दरवाजा तोड़ा। महिला को धीरे से बाहर निकाला और सड़क किनारे घास पर लिटाया। अपनी पुरानी शर्ट फाड़कर उसके सिर पर पट्टी बांधी। महिला की सांसें धीमी थी। आर्यन ने पास के पानी के ठेले से बोतल उठाई और धीरे से पानी उसके होठों पर लगाया।

कुछ पल बाद महिला की आंखें झपकी। आवाज धीमी निकली, “मैं… मैं कहां हूं?”
आर्यन ने कहा, “आपकी कार का एक्सीडेंट हुआ था मैम। अब सब ठीक है। आप आराम करें। मैंने एंबुलेंस बुला ली है।”
वो सिर उठाने की कोशिश करने लगी, लेकिन दर्द से कराह उठी। आर्यन ने उसका सिर सहारा दिया और बोला, “कृपया हिलिए मत। चोट लगी है।”

इतने में एंबुलेंस का सायरन सुनाई दिया। दो मेडिकल स्टाफ उतरे। महिला को स्ट्रेचर पर रखकर एंबुलेंस में ले गए। आर्यन भी साथ चला गया। उसे छोड़ने तक चैन नहीं था। एंबुलेंस में बैठी नर्स ने पूछा, “तुम रिश्तेदार हो क्या इनके?”
आर्यन ने सिर हिलाया, “नहीं। बस मदद कर रहा था।”
नर्स मुस्कुराई, “आजकल ऐसा कौन करता है बेटा? भगवान भला करे तेरा।”
आर्यन ने कुछ नहीं कहा। बस चुपचाप उनके साथ अस्पताल पहुंचा।

अस्पताल में महिला को इमरजेंसी वार्ड में ले जाया गया। डॉक्टर ने आर्यन से पूछा, “कौन है मरीज का साथ वाला?”
आर्यन ने कहा, “मैं तो बस सड़क पर था। मैंने इन्हें बचाया। बाकी मुझे कुछ नहीं पता।”
डॉक्टर ने सिर हिलाया, “ठीक है। नाम बताओ अपना। रिपोर्ट में लिखना होगा।”
“आर्यन मेहरा।” उसने धीरे से कहा। फिर वो बाहर बेंच पर बैठ गया। चेहरा थका हुआ। कपड़ों पर खून और धूल के निशान।

करीब आधे घंटे बाद डॉक्टर बाहर आया और बोला, “रोगी अब होश में है। हालत स्थिर है।”
आर्यन ने राहत की सांस ली। वो उठकर जाने लगा लेकिन तभी डॉक्टर ने उसे बुलाया, “रुको, वो तुम्हें बुला रही हैं।”
आर्यन ने झिझकते हुए कमरे में झांका। महिला की आंखें खुली थी। चेहरा पीला लेकिन आंखों में तेज।
वो धीरे से बोली, “तुम… तुम ही थे ना जो मुझे कार से निकाले?”
आर्यन ने कहा, “जी मैम, बस पास में था इसलिए…”
महिला कुछ पल तक उसे देखती रही। फिर उसने अपनी नजरें फेर ली और अचानक बोली, “नर्स, इस आदमी को बाहर निकालो।”
आर्यन ठिटक गया, “जी?”
महिला ने गुस्से में कहा, “इसने मेरे गहने चुराए हैं। मैंने अपनी डायमंड ब्रेसलेट पहनी थी। अब गायब है।”
कमरे में सन्नाटा छा गया। आर्यन की आंखें फैल गई। “मैम, मैंने कुछ नहीं लिया। मैं तो आपकी मदद कर रहा था।”
महिला चिल्लाई, “सिक्योरिटी को बुलाओ और पुलिस को भी।”
आर्यन के पैर जैसे जमीन में चढ़ गए। वो पीछे हट गया। चेहरा हैरानी से पीला पड़ गया।

बाहर सिक्योरिटी गार्ड अंदर भागे। डॉक्टर और नर्स भी घबरा गए। भीतर से महिला की आवाज आई, “इसने मेरी जान बचाई नहीं, मेरे साथ धोखा किया है।”
आर्यन के होंठ कांप रहे थे, “भगवान के लिए, मैंने कुछ नहीं किया।”
लेकिन किसी ने नहीं सुना। एक पल में दो कांस्टेबल अंदर आ गए। और जब उन्होंने आर्यन का हाथ पकड़ कर कहा “चलो थाने”, तब उसका गला सूख गया। भीड़ जुटने लगी। किसी ने कहा, “अरे यही था जो उसे बचा रहा था।”
दूसरा बोला, “लगता है चोरी का प्लान था।”
आर्यन के लिए सब धुंधला हो गया। जिस औरत को उसने मौत से निकाला वही अब उसे चोर कह रही थी। उसके मन में बस एक सवाल गूंज रहा था, “क्या सच में अच्छे काम की कोई कीमत नहीं?”

अस्पताल के बाहर नीली बत्ती चमक रही थी। लोगों की भीड़ अब और बढ़ गई थी। पुलिस ने आर्यन को गाड़ी में बैठाया और उसे थाने ले गई। आर्यन की आंखें लाल थी, थकान से नहीं बल्कि अन्याय के दर्द से। जिस महिला को उसने मरते-मरते बचाया था, वही अब उसे चोर कह रही थी।

थाने पहुंचते ही दरोगा सिंह ने मेज पर हाथ मारा, “नाम?”
“आर्यन मेहरा।”
“पता?”
“मॉडल टाउन के पास किराए पर रहता हूं। काम ढूंढ रहा हूं।”
दरोगा ने एक लंबी सांस ली, “मतलब बेरोजगार?”
आर्यन ने सिर हिलाया, “हां, लेकिन मैं चोरी नहीं करता साहब।”
दरोगा हंस पड़ा, “भाई, ऐसे तो सभी कहते हैं। कोई चोर खुद को चोर थोड़ी कहेगा।”
आर्यन कुछ नहीं बोला। उसके हाथों में अभी भी कांच के टुकड़ों के निशान थे। लेकिन किसी को फर्क नहीं पड़ा।

करीब आधे घंटे बाद एक गाड़ी थाने में आकर रुकी। दरवाजा खुला और वही महिला उतरी। साफ सुथरे कपड़े, गले में पट्टी, हाथ में महंगा मोबाइल। उसके साथ दो पुलिस अधिकारी और एक ड्राइवर थे।
“यही है वो लड़का?” दरोगा ने पूछा।
महिला ने ठंडी नजर से आर्यन को देखा और बोली, “हां, इसी ने मेरी कार से मुझे निकाला और जब मैं बेहोश थी, तभी मेरा ब्रेसलेट गायब हुआ।”
दरोगा ने कहा, “मैडम, आप चिंता मत कीजिए। अगर इसने लिया है तो अभी निकलवाते हैं।”
आर्यन ने धीरे से कहा, “सर, मैंने कुछ नहीं किया। अगर चाहे तो तलाशी ले लीजिए।”
दरोगा ने इशारा किया। एक सिपाही ने आर्यन की जेबें, बैग और कपड़े तक टटोले, पर कुछ नहीं मिला।
महिला ने आंखें तरेरी, “इसने कहीं फेंक दिया होगा।”
दरोगा बोला, “मैडम, आप आश्वस्त रहें, हम पता लगा लेंगे। सीसीटीवी फुटेज निकलवा रहे हैं।”
आर्यन को लॉकअप के बाहर की कुर्सी पर बैठा दिया गया। वो सिर झुकाए बैठा रहा। सोचता, “क्या मैं सच में गलत था? अगर मैं भी सबकी तरह तमाशा देखता तो शायद आज घर पर होता।”

तभी एक आवाज आई, “भाई, एक गिलास पानी दो।”
पास के सिपाही ने बोतल उसकी तरफ बढ़ाई। आर्यन ने घूंट लिया, “धन्यवाद।”
सिपाही ने धीरे से कहा, “तूने सही काम किया लेकिन दुनिया ऐसे ही है बेटा। यहां सच्चाई की कीमत देर से मिलती है।”

थोड़ी देर में दरवाजे पर एक और पुलिस अफसर आया।
इंस्पेक्टर ठाकुर, उम्र लगभग 45, चेहरे पर सख्ती, लेकिन आंखों में समझदारी।
“क्या चल रहा है यहां?”
दरोगा बोला, “सर, एक अमीर महिला का कहना है कि यह लड़का उसकी ज्वेलरी लेकर भागना चाहता था। हमने जांच शुरू कर दी है।”
ठाकुर ने आर्यन को देखा, “तुमने मदद की थी है ना?”
“हां सर।”
“और गहना तुमने नहीं लिया?”
“कसम से नहीं सर। मैंने तो सिर्फ उसकी जान बचाई थी।”
ठाकुर कुछ देर तक उसे देखते रहे। फिर बोले, “सीसीटीवी दिखाओ।”
5 मिनट बाद अस्पताल के बाहर लगे कैमरे की फुटेज कंप्यूटर पर चली।

वीडियो में साफ दिखा, आर्यन सड़क पर भागता हुआ आता है। कार का दरवाजा तोड़कर महिला को निकालता है और उसे गोद में उठाकर सड़क किनारे रखता है। वो अपने रुमाल से खून रोकता है। लोग हंसते हुए मोबाइल चला रहे हैं। आर्यन की हर हरकत सच्ची थी।
ठाकुर ने स्क्रीन की तरफ झुककर कहा, “अब बताओ इसमें चोरी कहां दिख रही है?”
दरोगा और बाकी सिपाही चुप। महिला का चेहरा सख्त हो गया।
“लेकिन मेरा ब्रेसलेट तो गायब है।”
ठाकुर बोले, “मैडम, वो शायद हादसे के वक्त कहीं गिर गया हो। हम कार से भी जांच करवाएंगे।”
आर्यन ने सिर उठाया, “सर, मैं उसी जगह ले चल सकता हूं जहां एक्सीडेंट हुआ था।”

ठाकुर ने इशारा किया, “चलो।”
सभी उस फ्लाईओवर की तरफ रवाना हुए जहां कुछ घंटे पहले आर्यन ने जान दांव पर लगाई थी। सड़क अब खाली थी। सूरज ढल रहा था। हवा में शाम की ठंडक घुल चुकी थी।
आर्यन धीरे-धीरे मलबे के पास पहुंचा। घास के झुरमुट में झुक कर कुछ देखा। फिर उसने हाथ आगे बढ़ाया। उसकी हथेली में वही हीरे का ब्रेसलेट चमक रहा था। धूल में सना हुआ लेकिन सलामत।
महिला ने हैरान होकर देखा। उसके चेहरे का रंग उड़ गया।
आर्यन ने उसे धीरे से बढ़ाते हुए कहा, “यह रहा आपका ब्रेसलेट मैम। शायद कार पलटने के समय गिर गया होगा।”

कुछ पल तक सन्नाटा रहा।
फिर इंस्पेक्टर ठाकुर बोले, “कभी-कभी असली चोरी गहनों की नहीं, सोच की होती है।”
महिला की आंखें भर आई। उसके होंठ कांपने लगे।
“मैंने… मैं तुम्हें चोर कहा जबकि तुम…”
आर्यन ने कहा, “कोई बात नहीं मैम, अब सब ठीक है।”
पर उसकी आवाज में वह सर्द मुस्कान थी जो किसी टूटे दिल से निकलती है।

फ्लाईओवर पर हवा ठंडी हो चली थी। सूरज डूब रहा था और सड़क पर हल्की लाइटें जल उठी थी।
आर्यन की हथेली में अब भी वही हीरे का ब्रेसलेट था। धूल से सना हुआ लेकिन चमकता हुआ।
महिला कुछ देर तक उसे देखती रही। फिर उसके कदम लड़खड़ा गए। अगर इंस्पेक्टर ठाकुर ने तुरंत हाथ ना पकड़ा होता तो वह वहीं गिर जाती।
वो कांपती आवाज में बोली, “मैं… मैं बहुत शर्मिंदा हूं।”
आर्यन ने शांत स्वर में कहा, “कोई बात नहीं मैम। गलती हर किसी से हो जाती है।”

लेकिन अंदर कहीं उसके शब्दों में थकान और दर्द दोनों झलक रहे थे।
महिला ने ब्रेसलेट हाथ में लिया और बोली, “तुम्हारा नाम क्या है?”
“आर्यन मेहरा।”
महिला ने सिर झुका कर दोहराया, “आर्यन मेहरा…”
यह नाम सुनते ही वह जैसे कुछ सोच में पड़ गई। उसने धीरे से पूछा,
“तुम मॉडर्न पब्लिक स्कूल में पढ़े थे क्या दसवीं में?”
आर्यन ने चौंक कर देखा, “हां। लेकिन आप कैसे जानती हैं?”
महिला की आंखें भर आई, “क्योंकि उस वक्त मैं वहां टीचर थी। तुम्हारा नाम याद है मुझे। वही लड़का जो हर समारोह में मदद करता था। हर किसी को थैंक यू कहता था।”
आर्यन स्तब्ध रह गया, “आप मिस कविता?”
महिला ने सिर हिलाया, “हां, मैं ही हूं। शायद इसीलिए तुम्हारे चेहरे में कुछ जाना पहचाना लगा। पर मैंने पहचानने में देर कर दी।”

अब माहौल बदल चुका था। वह अमीर और घमंडी महिला अब पश्चाताप से भरी कविता मैम थी और वह बेरोजगार साधारण लड़का अब उसका वही पुराना छात्र था जिसने हमेशा इंसानियत की मिसाल दी थी।
इंस्पेक्टर ठाकुर कुछ दूरी पर खड़े थे। उनके चेहरे पर हल्की मुस्कान थी जैसे जिंदगी ने फिर से किसी को सबक सिखाया हो।

कविता धीरे से बोली, “आर्यन, तुम्हारे पापा क्या करते थे?”
आर्यन ने आंखें झुका ली, “नहीं रहे। कोविड के समय चले गए। मैं तब कॉलेज में था। घर की जिम्मेदारी मुझ पर आ गई, इसलिए पढ़ाई अधूरी छोड़ दी। अब छोटे-मोटे काम करके गुजारा कर रहा हूं।”
कविता की आंखें नम हो गई, “मुझे याद है, तुम्हारे पापा स्कूल के गेट पर सिक्योरिटी गार्ड थे ना?”
आर्यन ने सिर हिलाया, “हां, वही थे। आपने ही तो कहा था, तुम्हारे पापा ईमानदारी की मिसाल हैं।”
कविता अब रो पड़ी, “और आज मैंने उसी ईमानदारी की औलाद को चोर कह दिया।”
आर्यन ने धीरे से कहा, “मैम, समय सबको बदल देता है। मैंने मदद इसलिए नहीं की कि आप अमीर हैं बल्कि इसलिए कि आप इंसान हैं। मुझे नहीं पता था कि अमीरों की जान बचाने का भी कोई दाम पूछता है।”
कविता ने उसके हाथ पकड़ लिए, “नहीं आर्यन, मुझे माफ कर दो। मेरे पास सब कुछ है। पैसा, नाम, शोहरत…”

सीख:
कभी-कभी इंसानियत की कीमत बहुत देर से समझ आती है।
शहर की भीड़ में, कैमरों की चमक में, सोशल मीडिया की वायरलियत में…
आर्यन जैसे लोग गुम हो जाते हैं, जिनकी अच्छाई को अक्सर शक की नजर से देखा जाता है।
पर सच्चाई हमेशा चमकती है—चाहे धूल में सना ही क्यों ना हो।
आज कविता को अपने गहनों से ज्यादा एक पुराने छात्र की ईमानदारी की कीमत समझ आई थी।
और आर्यन को जिंदगी का नया सबक—
अच्छे काम की कीमत भले देर से मिले, पर मिलती जरूर है।

समाप्त।