10वीं फेल अनाया की जिद: तीन महीने में करोड़पति की कंपनी बदल दी

मुंबई का बांद्रा कुरला कॉम्प्लेक्स, जहां आसमान को छूती कांच और स्टील की इमारतें शहर की रफ्तार और आकांक्षा का आईना हैं, वहीं शर्मा टावर्स भी खड़ा है। देश की सबसे पुरानी और बड़ी उपभोक्ता वस्तु बनाने वाली कंपनी शर्मा इंडस्ट्रीज का मुख्यालय। नमक, तेल, साबुन, टूथपेस्ट, बिस्किट—हर घर में इस्तेमाल होने वाली चीजें यहीं बनती हैं। इसके मालिक हैं 62 वर्षीय उद्योगपति अरविंद शर्मा, जिन्होंने अपने पिता के छोटे कारोबार को बहुराष्ट्रीय कंपनी में बदल दिया। उनके लिए बिजनेस पूजा है, और पूजा के नियम हैं अनुशासन, परफेक्शन और क्वालिफिकेशन। उनकी कंपनी में चपरासी से लेकर डायरेक्टर तक हर किसी को डिग्री और अनुभव के आधार पर ही चुना जाता है।

लेकिन बीते कुछ सालों से कंपनी की नींव में दरारें आ चुकी थीं। प्रोडक्ट्स बाजार में टिक नहीं पा रहे थे, मुनाफा घट रहा था, कर्मचारी अपनी चमक खो चुके थे। बोर्ड रूम की मीटिंग्स में महंगे सूट पहने मैनेजर्स मुश्किल अंग्रेजी बोलते, लेकिन असली समस्याओं से अनजान थे। फैक्ट्री और बाजार की हकीकत कोई नहीं देखता था। अरविंद शर्मा थक चुके थे, उन्हें अपनी कंपनी में वो पुराना जोश नहीं दिखता था।

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इसी शहर के दूसरे छोर पर डोमबिवली की भीड़भाड़ वाली कॉलोनी में 23 वर्षीय अनाया रहती थी, जिसके नाम के आगे 10वीं फेल का ठप्पा लगा था। पढ़ाई में कभी अच्छी नहीं रही, लेकिन उसकी आंखें तेज थीं और दिमाग मशीन की तरह चलता था। उसके पिता का देहांत हो चुका था, घर की जिम्मेदारी उसकी मां और उस पर थी। मां स्टेशन के पास चाय की दुकान चलाती थी, अनाया दिन भर वहां हाथ बंटाती थी। चाय बनाने और कप धोने के बीच उसका ध्यान अक्सर बगल में बने शर्मा इंडस्ट्रीज की फैक्ट्री पर रहता था। वहां से निकलते ट्रक, उदास कर्मचारी, गार्ड की लापरवाही, मैनेजरों का घमंड—सब कुछ उसकी नजर में कैद हो जाता था।

एक दिन मां को सीने में तेज दर्द उठा। डॉक्टर ने बताया, दिल का ऑपरेशन करना पड़ेगा, खर्च लाखों रुपए। चाय की दुकान से दो वक्त की रोटी तो चल सकती थी, लेकिन इतना बड़ा खर्च नामुमकिन था। उस रात अनाया ने करवटें बदल-बदल कर नींद खो दी। तभी उसके दिमाग में पागलपन भरा ख्याल आया—वह खुद सीधे अरविंद शर्मा से मिलेगी और नौकरी मांगेगी। लेकिन भीख नहीं, अपनी काबिलियत दिखाकर।

अगली सुबह साधारण कपड़े पहनकर शर्मा टावर्स के गेट पर पहुंच गई। गार्ड ने मजाक उड़ाया, “शर्मा साहब से मिलना है? अपॉइंटमेंट है?” जब अनाया ने नहीं कहा, तो उसे धकेलने की कोशिश की। लेकिन वह वहीं डटी रही। पूरे दिन खड़ी रही। फिर अगले दिन, फिर उसके अगले दिन। एक हफ्ता गुजर गया। धूप, बारिश, भूख, प्यास सब सहती रही। उसकी जिद सिक्योरिटी हेड तक पहुंची, फिर शर्मा के पर्सनल सेक्रेटरी तक। अरविंद शर्मा ने सुनकर आदेश दिया—उसे अंदर बुलाओ।

अनाया आलीशान कैबिन में दाखिल हुई। शर्मा ने घमंड भरी आवाज में पूछा, “क्या चाहती हो?” अनाया ने सीधा कहा, “मुझे आपकी कंपनी में नौकरी चाहिए।” शर्मा ठहाका मारकर हंस पड़े, “कौन सी डिग्री है तुम्हारे पास?” अनाया ने बिना झिझके जवाब दिया, “मैं दसवीं फेल हूं।” शर्मा का गुस्सा सातवें आसमान पर, “दसवीं फेल और नौकरी मांग रही हो?” लेकिन अनाया अपनी जगह से हिली नहीं। उसने दृढ़ स्वर में कहा, “मुझे सिर्फ 3 महीने का वक्त दीजिए। अगर मैंने आपकी कंपनी का नक्शा नहीं बदल दिया, तो आप मुझे जेल भिजवा दीजिए।”

शर्मा हक्का-बक्का रह गए। ऐसा दुस्साहस भरा प्रस्ताव कभी नहीं सुना था। उन्होंने तीखे अंदाज में पूछा, “तुम्हें ऐसा क्यों लगता है कि तुम वो कर सकती हो, जो मेरे लाखों की तनख्वाह वाले मैनेजर्स नहीं कर पा रहे?” अनाया ने आत्मविश्वास के साथ कहा, “क्योंकि आपके मैनेजर्स कंपनी को ऊपर से देखते हैं, मैं नीचे से। मैं जानती हूं गेट नंबर तीन से रोज हजारों लीटर डीजल चोरी होता है, साबुन के गोदाम में लाखों की बर्बादी होती है, राजा बिस्किट इसलिए नहीं बिक रहा क्योंकि प्रतियोगी कम दाम में बेहतर क्वालिटी बेच रहे हैं।”

शर्मा हैरान रह गए। वही बातें थी जो उन तक कभी नहीं पहुंची थीं। उन्होंने गहरी सांस ली, “ठीक है, तुम्हें 3 महीने का वक्त देता हूं। कोई पद नहीं मिलेगा, कोई कैबिन नहीं मिलेगा। तुम सिर्फ एक ऑब्जर्वर होगी। लेकिन अगर कुछ नहीं बदला, तो सच में जेल भिजवा दूंगा।”

अनाया ने मजदूरों के बीच बैठना शुरू किया, उनकी तकलीफें सुनी, मशीनों की मरम्मत करवाई, चोरी रोकने के लिए गार्डों की ड्यूटी बदली, मार्केट में जाकर दुकानदारों से बात की। कंपनी ने दाम घटाकर नया पैकेट लॉन्च किया—नया राजा। बिक्री दोगुनी हो गई। फैक्ट्री में मजदूरों की आंखों में उम्मीद लौट आई। बोर्ड मीटिंग में अफसरों ने पहली बार आम लोगों की सच्चाई सुनी।

तीन महीने बाद, शर्मा ने मंच पर खड़े होकर कहा, “आज इस लड़की ने साबित कर दिया कि असली डिग्री मेहनत और ईमानदारी है।” अनाया को कंपनी का स्पेशल एडवाइजर घोषित किया गया। उसकी मां का ऑपरेशन भी कंपनी ने करवा दिया। आज वही लड़की, जो गेट पर खड़ी थी, कंपनी की सबसे ऊपरी मंजिल पर खड़ी है—आंखों में वही चमक, लेकिन अब अकेली नहीं, पूरी कंपनी उसके साथ है।

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