कहानी: ज़ैनब का खुफिया मिशन

दोपहर की तेज धूप में बाजार की गलियों में हलचल थी। सड़क के किनारे धुआं उगलती कढ़ाहियों से पकोड़ों और समोसों की खुशबू फैल रही थी। दूसरी ओर, जलेबी की मिठास भरी महक लोगों को अपनी ओर खींचती थी। रिक्शों के हॉर्न, ठेले वालों की ललकारती आवाजें और ग्राहकों के भाव-ताव ने माहौल को शोरगुल का जंगल बना दिया था।

इस भीड़ में एक छोटी सी पकोड़ों की रेहड़ी सबकी निगाहों में आम थी। लेकिन हकीकत यह थी कि उस रेहड़ी के पीछे खड़ी लड़की, ज़ैनब, की जिंदगी में एक गहरा राज छिपा हुआ था। उसने हल्के नीले रंग का दुपट्टा ओढ़ रखा था, जो धूप में चमक रहा था। उसके नरम चेहरे पर थकान की झलक थी, लेकिन आंखें बार-बार इर्द-गिर्द घूमती थीं, जैसे किसी पोशीदा खतरे को भांपने की कोशिश कर रही हों।

एक खुफिया मिशन

ज़ैनब दरअसल एक खुफिया मिशन पर तैनात इंडियन आर्मी की सर्जेंट थी। उसे कई दिनों से भेस बदलकर यहां तैनात किया गया था। उसका मिशन था बाजार में सक्रिय एक खुफिया ड्रग नेटवर्क को बेनकाब करना। रिपोर्टों के मुताबिक, कुछ स्थानीय गुंडे सामाजिक संगठन और चंदा मुहिम के नाम पर दुकानदारों से पैसे बटोरते थे। लेकिन असली खेल इससे कहीं ज्यादा खतरनाक था। यही गिरोह शहर भर में नशे की फरोख्त का इंतजाम कर रहा था। पुलिस उनके साथ मिली हुई थी और आम लोग उनके खौफ में खामोश रहते थे।

ज़ैनब का ठेला महज एक ढाल था। कढ़ाई के नीचे एक छोटा सा खुफिया कैमरा था, जो हर गुजरती शक्ल को रिकॉर्ड कर रहा था। चाट मसाले के डिब्बे में एक छोटा सा ऑडियो रिकॉर्डर छुपा हुआ था, जो हर आवाज को कंट्रोल रूम तक पहुंचा रहा था। ज़ैनब जानती थी कि अगर उसकी असलियत जाहिर हो गई, तो मिशन नाकाम हो जाएगा और उसकी जान भी खतरे में पड़ जाएगी।

गिरोह की पहचान

जैसे ही ज़ैनब ने पकोड़े पलटे, उसकी नजरें गिरोह पर थीं, जो बाजार के कोने में खड़ा था। वही चेहरे थे जिनकी रिपोर्ट मिली थी। मालाओं में लिपटे, पेशानियों पर लाल निशान लगाए और बदन पर संगठन की जैकेटें पहने हुए। वे बार-बार लोगों से बात करते और फिर गायब हो जाते। ज़ैनब ने उन पर नजर रखी, लेकिन अपने हाथों को मशरूफ जाहिर करती रही। उसके जेहन में बार-बार एक ही बात गूंज रही थी। यह सिर्फ गुंडे नहीं हैं; यह पूरे जाल का धागा हैं।

अचानक संकट

बाजार के शोर के बीच अचानक एक दुकानदार ने ज़ैनब से कहा, “बेटी, पकोड़े देना।” ज़ैनब ने मुस्कुराकर प्लेट आगे बढ़ाई, लेकिन दिल की धड़कन तेज थी। वह जानती थी कि सामने के गिरोह में से एक शख्स उसकी तरफ देख रहा था। ज़ैनब ने फौरन अपने दुपट्टे को आगे खींच लिया। एक लम्हे के लिए उसकी आंखें उस शख्स से मिलीं, और फिर वह झुककर पैसे गिनने लगी। अंदर ही अंदर उसने अपने आसाब को काबू में रखने की कोशिश की।

उसके कानों में इयर पीस से एक मध्यम आवाज आई, “सर्जेंट, अलर्ट रहो। कंट्रोल रूम में सब कुछ साफ नजर आ रहा है। हदफ करीब है।” यह सुनकर उसके जिस्म में एक सनसनी दौड़ गई। उसने गहरा सांस लिया और खुद को एक आम रेहड़ी वाली के रूप में मजीद छुपा लिया। लेकिन दिल की गहराइयों में वह जानती थी कि अगले चंद लम्हे ही इस मिशन के असल आगाज होंगे।

बाजार का माहौल

धूप तेज थी। बाजार का शोर कानों को बहरा कर रहा था। लेकिन ज़ैनब की तवज्जो सिर्फ एक बात पर मरकुज थी: सच्चाई को बेनकाब करना, चाहे जान चली जाए। बाजार में लोग खरीदारी में मग्न थे। बच्चे आइसक्रीम वालों के गर्द शोर मचा रहे थे, जबकि औरतें जेवरात के स्टॉल पर झुमकों और चूड़ियों को देख रही थीं। आम लोगों के लिए यह बस एक रोजमर्रा की गहमागहमी थी, मगर ज़ैनब के लिए यह शोर एक पर्दा था, जिसके पीछे खतरा छुपा बैठा था।

गिरोह की गतिविधियाँ

ज़ैनब ने कड़ाही में डुबकियां लगते पकोड़ों को पलटा और निगाहें आहिस्तगी से सामने की जानिब दौड़ाई। वहां वही लोग नुमाया हुए जिनकी तलाश में वह कई दिनों से थी। तीन उजड़ से नौजवान, बदन पर काले और जर्द रंग की जैकेटें जिन पर एक स्थानीय संगठन का नाम छपा हुआ था। उनके गलों में मालाएं थीं और कलाइयों पर सुरख धागे बंधे हुए थे। वे चलते हुए गौरूर से कदम उठा रहे थे जैसे यह बाजार उनकी जागीर हो।

पहला टकराव

एक नौजवान जिसकी गर्दन पर बड़ा सा नाग का टैटू बना हुआ था, सीधा एक दुकान के अंदर गया। चंद लम्हों बाद वह ब्लैक प्लास्टिक का बैग उठाए बाहर निकला और दूसरे साथी को दिया। ज़ैनब ने अपनी पलकों को झपकाए बिना यह मंजर कैमरे में महफूज़ कर लिया। कंट्रोल रूम को इत्तला मिल गई है। उसने दिल ही दिल में सोचा, “अब देखना है यह किस-किस से मिलते हैं।”

इतने में वह तीनों नौजवान उसके ठेले के करीब आ खड़े हुए। उनके कदमों की धमक जैसे उसके दिल पर हथौड़े बरसा रही थी। एक ने जोर से हुंकारा भरा और ठेले पर हाथ मारकर बोला, “ए सुन, यह इलाका किसका है? जानती है ना? यहां कारोबार करना है तो चंदा देना पड़ेगा।” उसकी आवाज इतनी बुलंद थी कि आसपास के लोग चौंक गए। ग्राहक जो अभी तक पकोड़े लेने को खड़े थे, पीछे हट गए।

ज़ैनब की हिम्मत

ज़ैनब ने दिल को काबू में रखते हुए निगाहें झुकाई और डरी सहमी औरत का किरदार अदा किया। लरजती आवाज में बोली, “भाई, मैं तो बस पकोड़े बेचती हूं। यह सब बच्चों के पेट के लिए है।” उसके लहजे की मासूमियत ने उसे बेबस जाहिर किया। मगर उसका हाथ हल्के से मसाले के डिब्बे के पीछे छिपे बटन पर गया जो कंट्रोल रूम को सिग्नल भेज सकता था।

एक नौजवान हंसा, “बच्चों के लिए हमारे भी बड़े हैं जिनका पेट भरना है। जल्दी पैसा निकाल।” तीसरे ने तंज किया, “यह दुपट्टे वाली मासूम लगती है, लेकिन लगता है जेब भरी है। चलो, देखें असल में कौन है।” वह आगे बढ़ा और दुपट्टे की तरफ हाथ बढ़ाया। ज़ैनब के आसाब तन गए। इर्द-गिर्द लोग खामोश खड़े थे। कोई हिम्मत ना कर सका।

निर्णायक पल

ज़ैनब ने सोचा, “अगर यह लम्हा गया तो ना मिशन बचेगा, ना इज्जत।” गुंडे का हाथ करीब आया तो दिल की धड़कन तेज हुई। फजा में खौफ छा गया। फैसला कुन लम्हा था। या तो ताकत दिखानी थी या दुपट्टा खुल जाना था। दिमाग में एक ही जुमला गूंजा, “अगर अब हिम्मत ना दिखाई तो सब खत्म।”

बाजार लम्हा भर को साकित हो गया। लोग नजरें चुरा रहे थे। ज़ैनब के चेहरे पर बेबसी, मगर आंखों में बिजली थी। उसने दिल में कहा, “अब वक्त आ गया है।” जैसे ही गुंडे ने दुपट्टे को छुआ, ज़ैनब ने अचानक उसकी कलाई पकड़ ली और पूरी कौत से बाजू मोड़ दिया। वह चीख कर जमीन पर जा गिरा। लोग दंग रह गए। दुबली औरत अचानक शेरनी बन गई थी।

संघर्ष की शुरुआत

दूसरा गुंडा गुस्से में मुक्का मारने बढ़ा। ज़ैनब ने झुकाई दी और ठेले के नीचे से फोल्डिंग रोड निकालकर उसके घुटने पर मारा। हड्डी टूटने की आवाज गूंजी और वह चीखता हुआ गिर पड़ा। तीसरा गुंडा हक्का-बक्का फिर छुरी निकाली। “अब दिखाऊंगा असल ताकत,” उसने कहा। लोग पीछे हट गए। कुछ नौजवान मोबाइल कैमरे उन्हें करके वीडियो बनाने लगे।

ज़ैनब ने रोड घुमाकर छुरी वाले के बाजू पर मारी। छुरी गिरी और खून बहने लगा। उसने रड उसके गले पर रखकर दहाड़ा, “बस एक कदम आगे बढ़ाया तो सांस मुश्किल हो जाएगा।” उसकी दबंग आवाज से बाजार खामोश हो गया। सिर्फ जख्मियों की कराहें बाकी रह गईं। सब हैरान थे कि आम रेहड़ी वाली तीन गुंडों को तन्हा शिकस्त दे रही थी।

सच्चाई का सामना

ज़ैनब ने परवाह ना की। उसने जख्मी गुंडे को कॉलर से पकड़ कर कैमरे के सामने किया। “बता, तुम्हारे पीछे कौन है?” वह हाफता और गालियां देता रहा, मगर कुछ ना बोला। ज़ैनब गर्जी, “बोल या ना बोल, तुम्हारा चेहरा और हरकतें रिकॉर्ड हो चुकी हैं। छुप नहीं सकते।” यह कहकर उसने उसे जमीन पर फेंक दिया।

बाकी जख्मी तड़पते रहे, मगर ज़ैनब ने वक्त झाए या ना किया। वो जानती थी यह सब एक बड़े नेटवर्क के इशारे पर हैं। आज की लड़ाई इब्तदा है। असल जंग अभी बाकी है। बाजार के लोग पहली बार गैर मामूली हिम्मत के गवाह बने। उनकी आंखों में हैरत और अकीदत के मिलेजुले जज्बात थे।

खतरा बढ़ता है

लेकिन ज़ैनब के दिल में खौफ भी था। यह सब मंजर वायरल हो जाएगा। कहीं मेरा भेष ना खुल जाए। अब ज्यादा मोहतात रहना होगा। उसके हाथ में रड खून आलूद था, लेकिन दिल में अज्म की रोशनी और बढ़ गई। तीनों गुंडे जमीन पर कराह रहे थे। कोई बाजू सहला रहा था। कोई घुटने पर कपड़ा बांध रहा था।

लोग दंब खुद थे। यही गुंडे बाजार पर राज करते थे। उनकी आमद पर सब नजरें झुका लेते थे। मगर आज एक दुबली पतली लड़की ने उन्हें जमीन पर दे मारा। लोग यकीन नहीं कर पा रहे थे जो उनकी आंखों के सामने हुआ। ज़ैनब रॉड मजबूती से थामे खड़ी थी। दुपट्टे के नीचे से आंखों की बिजलियां चमक रही थीं।

अंतिम निर्णय

लम्हा भर पहले बस पकोड़े बेचने वाली औरत अब शेरनी की तरह पूरे हुजूम पर छा गई थी। लोगों में सरगोशियां होने लगीं। “यह औरत आम नहीं लगती। जरूर फौज या पुलिस से जुड़ी होगी। क्या यह भेष बदल कर आई है?” ज़ैनब ने इन बातों पर तवज्जो ना दी। वह जानती थी कि अगर राज खुल गया तो मिशन खतरे में पड़ जाएगा।

जख्मी गुंडा दांत पीसते हुए बोला, “हम इतनी आसानी से नहीं हारेंगे। हमारा पूरा संगठन तुझे ढूंढ निकालेगा।” ज़ैनब ने उसकी आंखों के करीब झुकी। “तुम्हारा चेहरा कैमरे में कैद है। चाहे जितना शोर मचा लो, सच अब नहीं छुपेगा।” यह कहकर उसने उसे जमीन पर दे मारा।

पुलिस का आगमन

दुकानदारों ने पहली बार सुकून का सांस लिया। मगर खौफ की दीवार अभी कायम थी। एक औरत ने दबे लहजे में कहा, “बेटी, जा, यह लोग तेरे पीछे आएंगे।” ज़ैनब ने नजर ना हटाई। जख्मी ने ईंट उठानी चाही तो उसने रड उसके हाथ पर मारी। ईंट टूट कर गिर गई। आवाज सुनकर लोग कांप गए।

कुछ नौजवान वीडियो मजीद करीब से बनाने लगे। उसी वक्त दूर से पुलिस का सायरन सुनाई दिया। यही वह लम्हा था जिससे वह डरती थी। पुलिस अक्सर इन्हीं गुंडों के साथ मिली होती थी। ज़ैनब का दिल जोर-जोर से धड़कने लगा। अब फैसला करना था: रुकना या गायब होना।

अंतिम संघर्ष

वह जानती थी कि असल सुराग इन गुंडों के पीछे के बड़े लोगों तक पहुंचना है। अगर आज बेनकाब हो गई तो सब खत्म हो जाएगा। उसने जख्मियों, सहमी भीड़ और करीब आते सायरन को देखा। तीनों गुंडे तड़प रहे थे। लोग चुपचाप खड़े थे। हर कोई सोच रहा था कि आखिर यह लड़की कौन है?

ज़ैनब पसीने में तर, मगर आंखों में आग लिए खड़ी थी। वह जानती थी कि लम्हे का फैसला ही मिशन को कामयाब या नाकाम करेगा। दबंग गुंडा कराते हुए उठा और गरजा, “यह बाजार तेरे लिए कैदखाना बन जाएगा। हमारा संगठन तुझे खत्म करेगा।” ज़ैनब ने सरद लहजे में कहा, “हां, मैं ही हूं। और यह आखिरी बार है कि तुम्हारा जहर इस शहर में फैला।”

मिशन की सफलता

उसी लम्हे एक फौजी ने पीछे से फायर किया। साहब का हाथ जख्मी हुआ और उसकी बंदूक नीचे गिर गई। बाकी गुंडे भी गिरफ्तार कर लिए गए। हॉल में धूल, चीखें और भागदौड़ का शोर फैल गया। ज़ैनब ने सुकून का सांस लिया। उसने बैग से हार्ड डिस्क निकाली और कमांडर के हवाले करते हुए कहा, “यह सब कुछ रिकॉर्ड हो चुका है। अब कोई इंकार नहीं कर सकेगा।”

कमांडर ने सर हिलाया और एहतराम से बोला, “तुमने आज पूरे शहर को बचा लिया।” ज़ैनब ने आईने के टूटे टुकड़े में अपनी सूरत देखी। पसीने में शरबोर चेहरे पर थकान जरूर थी, मगर आंखों में वही अज्म चमक रहा था। उसने दिल ही दिल में कहा, “यह मिशन खत्म हुआ, मगर मेरा सफर अभी जारी है। जहां भी यह जहर छुपेगा, वहां मेरा नकाब पहुंचेगा।”

अंत

रात की तारीकी में गोदाम के बाहर पुलिस की गाड़ियों और फौजी ट्रकों की कतार खड़ी थी। गुंडे हथकड़ियों में जकड़े जा रहे थे। लोग दूर से यह सब देख रहे थे और एक दूसरे से सरगोशियां कर रहे थे। “वह औरत कौन थी? किसने इतनी हिम्मत दिखाई?” मगर कोई इस सवाल का जवाब ना दे सका। ज़ैनब फिर भीड़ में गायब हो गई। एक नया रूप अपनाने के लिए तैयार।

उसने जान लिया था कि यह सिर्फ शुरुआत थी। असली चुनौती अभी बाकी थी। ज़ैनब ने अपने मिशन को सफलतापूर्वक पूरा किया, लेकिन उसकी नजरें अब नए लक्ष्यों पर थीं। हर जगह, हर कोने में, जहां भी बुराई का जाल फैला था, वहां उसका मिशन जारी रहेगा।