गरीब लड़के के पास ऑटो के किराए के पैसे नही थे , 15 साल बाद उसने ऐसे …

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The poor boy did not have money for auto fare, after 15 years he did  this... #hearttouchingstory - YouTube

सुबह के 8:00 बजे थे। दिल्ली का व्यस्त रेलवे स्टेशन, सर्दी की ठंडी हवा और बाहर ऑटो वालों की लंबी कतार। स्टेशन पर रोज की तरह जीवन की दौड़ चल रही थी। लेकिन उस दिन की सुबह हरिराम के लिए कुछ खास थी, जिसका उसे खुद भी अंदाजा नहीं था। हरिराम अधेड़ उम्र का एक साधारण ऑटो वाला था, जो हमेशा स्टेशन के बाहर अपनी ऑटो लेकर बैठता था। चेहरे पर झुर्रियां, आंखों में सच्चाई और होठों पर मुस्कान। जिंदगी ने उसे बहुत कुछ सिखा दिया था। उसका नियम था, चाहे सवारी मिले या ना मिले, वह रोज वहीं खड़ा रहता। कभी-कभी एक-दो सवारी मिल जातीं, कभी पूरा दिन खाली जाता। लेकिन हार मानना उसकी फितरत में नहीं था।

उस दिन स्टेशन की भीड़ में से एक दुबला-पतला लड़का निकला। उम्र करीब 16-17 साल। पीठ पर फटा सा बैग, हाथ में छोटा सा थैला और आंखों में चिंता की लकीरें। वह इधर-उधर देखता रहा। फिर हिचकिचाते हुए हरिराम के पास आया। “चाचा, एम्स जाना है लेकिन पैसे नहीं हैं मेरे पास। अगर आप छोड़ दें तो मैं आपका बहुत आभारी रहूंगा।” लड़के की आवाज कांप रही थी।

हरिराम ने लड़के को गौर से देखा। चेहरा थका हुआ। पैरों में टूटी चप्पल, लेकिन आंखों में सच्चाई थी। हरिराम मुस्कुराया। “आ जाओ बेटा, कहां जाना है एम्स में? खुद का इलाज कराना है या किसी रिश्तेदार का?” लड़के की आंखें भर आईं। “चाचा, एडमिशन टेस्ट देने आया हूं। नीट का एग्जाम है। होटल में रुकने के पैसे नहीं थे। स्टेशन पर रात काटी। अब एम्स से जाना है। वहां परीक्षाएं मेरी।”

हरिराम कुछ क्षण के लिए चुप रहा। फिर ऑटो स्टार्ट किया। “बैठ जा बेटा। आज तुझे तेरे सपने तक पहुंचाना मेरा काम है।” रास्ते में हरिराम ने उससे उसका नाम पूछा। लड़के ने बताया, “मेरा नाम सूरज है। बिहार के छोटे से गांव से आया हूं। पापा मजदूरी करते हैं। घर में पांच भाई-बहन हैं। पढ़ाई के लिए बहुत संघर्ष किया है। यह परीक्षा ही मेरी जिंदगी का सबसे बड़ा मौका है।”

हरिराम ध्यान से सुनता रहा। एम्स पहुंचते ही सूरज बोला, “चाचा, पैसे नहीं हैं मेरे पास लेकिन वादा करता हूं। अगर एक दिन कुछ बना तो आपको ढूंढकर शुक्रिया जरूर अदा करूंगा।” हरिराम हंसते हुए बोला, “बेटा, कुछ मांगना हो तो मेरे लिए दुआ मांगना। मैं पढ़ा-लिखा नहीं हूं, लेकिन तेरे जैसे सपने देखने वाले बच्चों की आंखों में मुझे ईश्वर दिखता है। जा, पूरे मन से परीक्षा दे। बाकी ऊपर वाला देखेगा।”

सूरज की आंखों में आंसू थे, लेकिन मन में उम्मीद की लौ जल चुकी थी। वह धीरे-धीरे एम्स के गेट की ओर बढ़ गया। समय बीतता गया। दिन महीनों में बदले, महीने सालों में हरिराम की उम्र बढ़ने लगी थी, कमर झुकने लगी थी। रोज ऑटो चलाना अब आसान नहीं रह गया था।

एक दिन शहर की भीड़भाड़ वाली सड़क पर अचानक एक ट्रक ने हरिराम की ऑटो को टक्कर मार दी। ऑटो पलट गई, चीख-पुकार मच गई। लोग दौड़ कर आए। किसी ने 108 नंबर पर कॉल किया, किसी ने पानी के छींटे मारे, लेकिन हरिराम बेसूद पड़ा था। उसका चेहरा खून से लथपथ था, शरीर की कई हड्डियां टूट चुकी थीं।

तीन दिन बीत गए। दिल्ली के एम्स अस्पताल में आईसीयू के एक कोने में ऑक्सीजन मास्क लगाए हरिराम बेसुद पड़ा था। मशीनें उसकी सांसों की निगरानी कर रही थीं। तीसरे दिन की रात को उसकी उंगलियां थोड़ी सी हिली। चौथे दिन सुबह-सुबह आईसीयू की नर्स ने देखा कि हरिराम की पलकें कांप रही थीं। वह धीरे से उसके पास आई। “सुनिए, आप सुन पा रहे हैं मुझे?” हरिराम की पलकें खुली। धुंधली रोशनी में उसने छत को देखा। फिर इधर-उधर उसकी आंखों में कोई सवाल नहीं था। बस एक दर्द था। ऐसा दर्द जिसे शब्दों में बांधा नहीं जा सकता।

नर्स ने उसके माथे पर हाथ रखा। मुस्कुराई। “शुक्र है, आप होश में आ गए। डॉक्टर साहब ने कहा है, जब आप जागें तो उन्हें बुला लें। वो आपसे मिलना चाहते हैं।” हरिराम ने कुछ बोलना चाहा लेकिन होठ कांपे और हल्की सी गह निकल गई। पूरा शरीर जैसे टूट चुका था। उसने बड़ी मुश्किल से अपनी निगाह बाई ओर मोड़ी, जहां खिड़की के बाहर पेड़ के पत्ते हिल रहे थे। उन्हें देखकर हरिराम की आंखें भीग गईं। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि वह अब भी जिंदा है। उसके होंठ हिले, “मैं मर तो नहीं गया?”

नर्स ने मुस्कुराकर उसका हाथ दबाया। “नहीं, अभी किस्मत ने आपको रोका है। आप बच गए हैं। यह कम नहीं है। अब बस आपको धीरे-धीरे ठीक होना है।” और इतना कहकर नर्स कमरे से बाहर चली गई। हरिराम की आंखें छत पर टिकी रही। उसकी जिंदगी का एक नया अध्याय वहीं से शुरू हुआ।

कुछ ही मिनट बाद दरवाजा खुला। एक नौजवान डॉक्टर भीतर आया। सफेद कोट, गले में स्टेथोस्कोप, चेहरे पर आत्मविश्वास। डॉक्टर ने धीरे से कहा, “चाचा जी,” हरिराम ने उसकी तरफ देखा और ठिसक गया। वही आंखें, वही मुस्कान, वही आत्मा। डॉक्टर ने कुर्सी खींची। हरिराम का हाथ थामा और कहा, “मैं सूरज हूं। आपने 15 साल पहले स्टेशन से एम्स छोड़ा था बिना पैसे लिए। याद आया?”

हरिराम की आंखें डबडबा गईं। वह कुछ बोल नहीं पाया। बस उसका गला भर आया। सूरज ने कहा, “चाचा जी, आपने उस दिन मेरा रास्ता नहीं, मेरी जिंदगी बदली थी। अगर आप ना होते तो शायद मैं परीक्षा ही ना दे पाता। आज मैं डॉक्टर हूं सिर्फ आपकी वजह से। और आज किस्मत देखिए, मुझे ही आपका इलाज करने का मौका मिला है।”

हरिराम रो पड़ा। आंखों से आंसू बह निकले। उसने सूरज का हाथ पकड़ लिया। “बेटा, तूने मेरी बुजुर्गी को सार्थक कर दिया। अब अगर जिंदगी ने सांस छोड़ा भी तो कोई मलाल नहीं।” सूरज ने कहा, “नहीं चाचा जी, जब तक मैं हूं, आप ठीक होकर अपनी ऑटो पर फिर से बैठोगे। इस बार सिर्फ चलाने नहीं, मैं आपके लिए नया ऑटो खरीदूंगा और आप मेरे साथ रहेंगे।”

अगले कई हफ्तों तक सूरज ने हरिराम का इलाज किया। हर रिपोर्ट, हर टेस्ट, हर दवा की निगरानी वह खुद करता था। अस्पताल का पूरा स्टाफ जान गया था कि डॉक्टर सूरज के लिए यह केस सिर्फ एक मरीज का नहीं बल्कि एक कर्ज का सवाल था। एक ऐसा कर्ज जिसे वह दिल से चुका रहा था।

तीन महीने बाद हरिराम पूरी तरह ठीक होकर अस्पताल से बाहर आया। उसी दिन सूरज ने उसे एक नई चमचमाती ऑटो की चाबी दी और कहा, “यह उस सवारी की कीमत है चाचा जो आपने 15 साल पहले बिना पैसे लिए दी थी।” हरिराम ने सूरज को गले से लगा लिया। दोनों की आंखों में आंसू थे।

कभी-कभी जिंदगी एक छोटी सी भलाई को इतने सुंदर रूप में लौटाती है कि इंसान को यकीन नहीं होता। यह वही दुनिया है जहां उसने तकलीफें झेली थीं। दोस्तों, यह कहानी सिर्फ कर्म की नहीं, यह कहानी है इंसानियत, उम्मीद और उस विश्वास की जो एक अनपढ़ ऑटो वाले ने एक अनजान लड़के पर किया था। और वह लड़का एक दिन उसकी जिंदगी की सबसे बड़ी उम्मीद बन बैठा।

हरिराम और सूरज की दोस्ती ने यह साबित कर दिया कि जब हम एक-दूसरे की मदद करते हैं, तो हम केवल एक व्यक्ति की मदद नहीं करते, बल्कि एक पूरे परिवार और समाज को मजबूत बनाते हैं। हरिराम ने अपने जीवन में जो किया, वह केवल एक ऑटो वाला होने के नाते नहीं, बल्कि एक इंसान होने के नाते किया।

सूरज ने भी हरिराम को यह दिखाया कि एक बार जब आप किसी की मदद करते हैं, तो वह मदद लौटकर आपके पास आती है। यह एक चक्र है, जिसे हम सभी को समझना चाहिए।

हरिराम और सूरज की कहानी ने इस बात को साबित किया कि जीवन में कभी-कभी हमें अपनी सीमाओं को पार करना पड़ता है। सूरज ने हरिराम को केवल एक नई ऑटो नहीं दी, बल्कि एक नई जिंदगी दी।

उनकी कहानी यह भी बताती है कि हमें कभी भी किसी की मदद करने से पीछे नहीं हटना चाहिए, चाहे वह कितना भी साधारण क्यों न हो। हरिराम ने सूरज के लिए जो किया, वह केवल एक ऑटो चलाने वाले के नाते नहीं, बल्कि एक अच्छे इंसान के नाते किया।

दोस्तों, यह कहानी हमें यह सिखाती है कि हमें हमेशा दूसरों की मदद करनी चाहिए। कभी-कभी एक छोटी सी मदद किसी की जिंदगी को बदल सकती है। इसलिए, अगर आपको यह कहानी दिल से छू गई हो, तो इसे शेयर करें। अपनी राय हमें बताएं और ऐसी ही इंसानियत से जुड़ी कहानियों के लिए हमारे चैनल सुनो कहानी समझो जिंदगी को सब्सक्राइब करना ना भूलें।