SSP महिला अफ़सर मौत के क़रीब थी, लेकिन क़ैदी ने जो किया उसने डॉक्टरों तक को हैरान कर दिया!
लखनऊ के सरकारी अस्पताल में उस रात जो हुआ, उसने पूरे पुलिस डिपार्टमेंट को झकझोर कर रख दिया।
SSP अंजलि सिंह, जिन्हें एक गैंगवार में गंभीर रूप से घायल अवस्था में लाया गया था, मौत से सिर्फ कुछ इंच दूर थीं। उनके शरीर से खून लगातार बह रहा था, और डॉक्टरों ने साफ़ कहा — “अगर अगले पाँच मिनट में ख़ून न मिला, तो इन्हें बचाना असंभव होगा।”
ख़ून का ग्रुप था AB–negative, जो बेहद दुर्लभ है। पूरी नाइट ड्यूटी में किसी के पास वह ब्लड ग्रुप नहीं मिला। समय बीतता जा रहा था, और मशीनें बीप पर बीप दे रही थीं। तभी अस्पताल के एक कोने से आवाज़ आई —
“मेरा ग्रुप AB–negative है… मैं दे सकता हूँ।”
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यह कहने वाला कोई सिपाही नहीं था, बल्कि कैदी नम्बर 317 — यूसुफ़ कुरैशी था। वही यूसुफ़, जिसे अंजलि ने एक साल पहले ड्रग्स केस में गिरफ्तार किया था। जेल रिकॉर्ड में वह एक कठोर अपराधी के रूप में दर्ज था, लेकिन उस रात उसने जो किया, उसने हर परिभाषा बदल दी।
डॉक्टरों ने पहले इंकार किया — “वो अंडरट्रायल कैदी है, हम रिस्क नहीं ले सकते।”
लेकिन ड्यूटी ऑफिसर ने कहा — “अगर वो ना आता, तो SSP मैम अब तक…”
और यूसुफ़ बिना एक पल गँवाए स्ट्रेचर पर लेट गया।
रात के 2:47 बजे उसका ख़ून सीधे अंजलि के शरीर में चढ़ाया गया। ऑपरेशन चार घंटे चला, और सुबह 6:30 पर जब अंजलि ने धीरे-धीरे आंखें खोलीं, तो सामने वही चेहरा था — यूसुफ़ कुरैशी का, हथकड़ी में बंधा हुआ लेकिन आंखों में सुकून भरा हुआ।

डॉक्टरों ने कहा —
“मैडम, अगर इसने पाँच मिनट देर की होती, तो आप हमारे बीच नहीं होतीं।”
पूरा स्टाफ़ चुप था। जो आदमी कभी ‘क्रिमिनल’ कहलाया, उसी ने आज कानून की रक्षक की जान बचाई थी।
अंजलि को जब होश आया, उन्होंने पूछा — “वो कैदी कहाँ है?”
गार्ड ने कहा — “उसे वापस सेंट्रल जेल भेज दिया गया, लेकिन जाने से पहले उसने सिर्फ इतना कहा — “इंसाफ़ वही है मैडम, जब इंसानियत ज़िंदा रहे।””
उस एक लाइन ने पूरे पुलिस डिपार्टमेंट में हलचल मचा दी।
मीडिया में खबर चली — “SSP की जान बचाने वाले क़ैदी ने इंसानियत की मिसाल दी।”
लोगों ने सोशल मीडिया पर लिखा — “शायद हर अपराधी बुरा नहीं होता, कुछ हालात उसे वैसा बना देते हैं।”
तीन हफ्ते बाद, जब अंजलि पूरी तरह स्वस्थ हुईं, उन्होंने खुद जेल जाकर यूसुफ़ से मुलाकात की। दोनों की आंखों में कोई शब्द नहीं थे, सिर्फ एक सच्ची खामोशी थी। अंजलि ने कहा — “तुम्हारा केस मैं खुद देखूंगी।”
और यूसुफ़ मुस्कराया — “मेरा इंसाफ़ हो गया, मैडम। उस दिन जब आपकी साँस चली, मैंने खुद को भी जिंदा पाया।”
आज भी लखनऊ के सेंट्रल जेल की दीवारों पर यह कहानी गूंजती है —
कि एक ‘अपराधी’ ने इंसानियत से बड़ा अपराध कर दिखाया — “किसी की जान बचाने का।”
💬 “कभी-कभी हीरो वर्दी में नहीं, जेल की यूनिफॉर्म में भी हो सकता है।”
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