रेलवे टीटी बनी पत्नी… स्टेशन पर चाय बेचते मिले तलाकशुदा पति को देखकर रो पड़ी, फिर जो हुआ
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रेलवे टीटी बनी पत्नी और स्टेशन पर चाय बेचते मिले तलाकशुदा पति — एक अधूरी कहानी का नया अध्याय
जीवन में कभी-कभी किस्मत ऐसे मोड़ ले आती है, जहां पुरानी यादें, अधूरी कहानियां और टूटे रिश्ते अचानक सामने आ जाते हैं। ऐसी ही एक कहानी है सविता और रोहन की, जिनकी ज़िंदगी में कई उतार-चढ़ाव आए, लेकिन एक रेलवे स्टेशन पर उनकी मुलाकात ने उनकी जिंदगी की धड़कन फिर से जोड़ दी।
अधूरी शुरुआत और टूटता रिश्ता
सविता और रोहन की शादी हुई थी, लेकिन उनकी जिंदगी में खुशियों के बजाय संघर्ष और मतभेद ज्यादा थे। रोहन एक छोटे से दूध की डेयरी चलाता था, जबकि सविता पढ़ाई में आगे बढ़ना चाहती थी। लेकिन रोहन के घमंड और सोच ने उनकी राहें जुदा कर दीं। उसने सविता की पढ़ाई पर हमेशा रोक लगाई, उसे सपनों से दूर रखा। धीरे-धीरे उनके बीच दरारें बढ़ने लगीं और अंततः तलाक हो गया।
रोहन का कारोबार भी ठीक नहीं चल पाया। डेयरी में मिलावट पकड़ी गई, उस पर छापा पड़ा और वह जेल भी गया। जेल से बाहर आने के बाद उसकी जिंदगी बिखर चुकी थी। अब वह रेलवे स्टेशन पर चाय बेचता था। वहीं दूसरी ओर, सविता ने हार नहीं मानी। उसने अपनी पढ़ाई पूरी की और रेलवे में टीटी (टिकट परीक्षक) बन गई।
रेलवे स्टेशन पर अनजानी मुलाकात
एक दिन छत्तीसगढ़ के बिलासपुर रेलवे स्टेशन के वेटिंग रूम में सविता अपनी पहली ड्यूटी के लिए बैठी थी। वह घबराई हुई थी, लेकिन दिल में हौसला था। तभी एक युवक चाय का कप लेकर वेटिंग रूम में आया। सविता की नजर उस पर पड़ी और वह स्तब्ध रह गई। वह युवक कोई और नहीं, बल्कि उसका तलाकशुदा पति रोहन था।
दोनों की आंखें मिलीं, और एक खामोश सन्नाटा छा गया। वर्षों की दूरियां एक पल में मिट गईं, और उनके दिलों में पुरानी यादें उमड़ने लगीं। रोहन, जो कभी अपनी पत्नी के सपनों को कुचलता था, आज चाय बेच रहा था। वहीं सविता, जिसे उसने पढ़ाई से रोका था, रेलवे की अफसर बन चुकी थी।
टूटे रिश्ते की मरहम लगाने की कोशिश
रोहन ने हकलाते हुए कहा, “मैंने सोचा कोई अवसर होगा। मैं तो बस चाय देने आया था।” सविता ने मुस्कुराते हुए कहा, “अफसर तो मैं ही हूं और चाय भी मैंने ही मंगवाई है।”
रोहन ने अपनी जिंदगी की सच्चाई बताई कि कैसे उसका घमंड उसे सब कुछ खोने पर मजबूर कर गया। उसने कहा, “डेयरी में मिलावट पकड़ी गई, जेल चला गया। अब यही चाय की दुकान चलाता हूं। यही मेरी दुनिया है।”
सविता की आंखें भर आईं, लेकिन उसने कहा, “तुमने कभी सोचा भी नहीं था कि मैं पढ़ाई पूरी कर लूंगी और रेलवे की टीटी बन जाऊंगी।”
रोहन ने माफी मांगी, “मुझे माफ कर दो। मैंने तुम्हारे सपनों को रोकने की बहुत कोशिश की थी।”
सविता ने कहा, “मैं आगे नहीं निकली। मैं वहीं थी जहां तुमने मुझे छोड़ दिया था। बस तुमने मुड़कर नहीं देखा।”
नया सवेरा, नया रिश्ता
उनकी बातचीत ने उनके दिलों के पुराने जख्मों पर मरहम लगाया। रोहन ने स्वीकार किया कि उसने कभी सविता को समझा ही नहीं। उसे लगा था कि पैसे ही सब कुछ हैं, लेकिन अब वह जान गया था कि असली ताकत सविता के अंदर थी।
सविता ने प्यार से कहा, “शायद अगर तुमने मेरा साथ दिया होता तो हम आज भी साथ होते।”
रोहन ने पूछा, “क्या बहुत देर हो चुकी है? क्या अब सब कुछ वापस नहीं आ सकता?”
सविता ने आंसू पोंछते हुए कहा, “मैंने भी तुम्हें नफरत करने की कोशिश की, लेकिन दिल ने कभी इजाजत नहीं दी।”
रोहन ने हिम्मत जुटाकर पूछा, “क्या हम फिर से एक साथ नहीं रह सकते?”
सविता ने मुस्कुराते हुए कहा, “मैं आज भी तुम्हारी ही हूं। अगर तुम सच में बदल गए हो तो मैं हर कदम तुम्हारे साथ चलने को तैयार हूं।”
संघर्ष और सफलता की नई कहानी
रोहन ने वादा किया कि वह अपनी पढ़ाई पूरी करेगा और खुद को साबित करेगा। सविता ने उसे प्रोत्साहित किया और कहा कि जिंदगी दोबारा मौका सबको नहीं देती, इसे गंवाना मत।
रोहन ने मेहनत शुरू की। उसने चाय की दुकान के साथ पढ़ाई भी शुरू कर दी। उसने रेलवे की परीक्षा देने का फैसला किया। दोस्तों ने उसका मजाक उड़ाया, लेकिन वह हार नहीं माना।
सविता ने भी उसे लगातार हिम्मत दी, “जब इंसान खुद से जीतने लगे तो पूरी दुनिया उसके आगे झुक जाती है।”
परीक्षा का दिन और उम्मीदों की जीत
परीक्षा के दिन रोहन चाय की दुकान पर काम कर रहा था। उसकी आंखों में उम्मीद थी। सविता उसकी ट्रेन से गुजर रही थी। दोनों की मुलाकात हुई और सविता ने उसका रिजल्ट देखा।
रोहन का नाम चयन सूची में था। वह रेलवे गार्ड बन चुका था। उसकी आंखों से आंसू बह निकले। सविता ने कहा, “तुमने सिर्फ परीक्षा नहीं पास की, तुमने खुद को बदल कर दिखा दिया। यही असली जीत है।”
नया जीवन, नया सफर
रोहन और सविता ने मिलकर चाय की दुकान बंद कर दी। रोहन ने रेलवे में नौकरी ज्वाइन की और पढ़ाई जारी रखी। सविता भी अपने काम में लगी रही। दोनों अब हर पल एक-दूसरे के साथ थे।
कुछ दिनों बाद उन्होंने एक छोटे से मंदिर में फिर से सात फेरे लिए। इस बार कोई शोर-शराबा नहीं था, बस सच्चा प्यार और एक-दूसरे के सपनों का साथ था।
सविता ने रोहन के बैग में एक किताब रखी और कहा, “कभी मत भूलना, यही किताबें और मेहनत तुम्हें यहां तक लाईं हैं।”
रोहन ने मुस्कुराते हुए कहा, “अब मैं कभी रुकूंगा नहीं, जब तक तुम्हारी उम्मीदों से आगे नहीं निकल जाऊं।”
परिवार की खुशियां और भविष्य की दिशा
रोहन के माता-पिता की आंखों में खुशी के आंसू थे। मां ने कहा, “तुम खाली हाथ गए थे, लेकिन अब खुद को जीत कर लौटे हो।”
सविता ने कहा, “आज से यह घर हमारा है। अब कोई दूरी नहीं रहेगी।”
रोहन और सविता ने मिलकर अपनी जिंदगी को नया मुकाम दिया। वे जानते थे कि मतभेद हो सकते हैं लेकिन प्यार और समझदारी से हर रिश्ता जुड़ सकता है।
सीख और संदेश
यह कहानी हमें सिखाती है कि जिंदगी में कभी भी घमंड नहीं करना चाहिए। पैसा, रुतबा और शोहरत सब वक्त के साथ बदल जाते हैं, लेकिन मेहनत, प्यार और दिल की सच्चाई सबसे बड़ी पूंजी होती है।
कभी किसी के सपनों के रास्ते में मत आना क्योंकि वही सपने कभी तुम्हारा सहारा भी बन सकते हैं। अधूरी कहानियां भी कभी-कभी नए अध्याय लिख सकती हैं अगर हम दिल से मौका दें।
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