एक भिखारी को विधायक का खोया हुआ आईफोन मिला, जब वह उसे लौटाने गया, तो उसका अपमान किया गया, फिर विधायक ने…

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देवा की ईमानदारी और एक नेता का हृदय परिवर्तन

शहर के चमचमाते गलियारों से कुछ ही दूरी पर, एक ऐसी झुग्गी बस्ती थी जिसे लोग शांति नगर कहते थे। यह बस्ती न केवल गरीबी की गहरी परतों में डूबी हुई थी, बल्कि वहां रहने वाले लोगों की जिंदगी भी संघर्ष और निराशा से भरी थी। इस बस्ती में एक अपाहिज भिखारी रहता था, जिसका नाम था देवा। उसकी उम्र पचास के पार थी, और जीवन ने उसे कई कड़वे अनुभव दिए थे। कभी वह एक हुनरमंद बढ़ई था, पर एक हादसे ने उसकी जिंदगी बदल दी। एक निर्माण स्थल पर लोहे की एक भारी रोड उसके पैर पर गिर गई, जिससे उसका एक पैर कट गया। मालिक ने मुआवजे के नाम पर उसे महज ₹1000 देकर छोड़ दिया। उसकी पत्नी भी बीमार थी और कुछ साल पहले ही चल बसी थी। अब वह अकेला, अपाहिज, और मजबूर था, रोज भीख मांगकर अपना गुजारा करता।

वहीं, शहर की चमचमाती दुनिया में विधायक अविनाश सिंह का नाम एक बड़ा राजनीतिक और सामाजिक प्रतीक था। सफेद कड़क साड़ी किया हुआ कुर्ता-पायजामा, गले में पार्टी के रंग का रेशमी गमछा, और चेहरे पर एक स्थायी मुस्कान जो हर फोटो और पोस्टर में एक जैसी ही दिखती थी। उनके दिन बड़े उद्योगपतियों के साथ ब्रेकफास्ट मीटिंग से शुरू होते और रातें राजनीतिक समीकरणों को सुलझाने में गुजरती थीं। भाषणों में वे गरीबों, मजदूरों और किसानों के हक की बात करते, और उनकी गरीबी हटाने की हुंकार पर हजारों लोग तालियां बजाते। पर सच तो यह था कि अविनाश सिंह ने असली गरीबी को शायद कभी अपनी कार की बंद शीशों से बाहर निकलकर नहीं देखा था।

एक दिन आगामी चुनावों के मद्देनजर, अविनाश सिंह अपने विधानसभा क्षेत्र की सबसे बड़ी और पिछड़ी झुग्गी बस्ती शांति नगर में एक नए कम्युनिटी हॉल का उद्घाटन करने आए। चारों तरफ “अविनाश सिंह जिंदाबाद” के नारे गूंज रहे थे। मीडिया के कैमरे उनकी हर मुस्कान को कैद कर रहे थे। मंच पर चढ़कर उन्होंने एक जोरदार और भावुक भाषण दिया। उन्होंने शांति नगर के लोगों को पक्के मकान, साफ पानी, और बच्चों के लिए स्कूल का वादा किया। लोग तालियां बजाते रहे। भाषण खत्म होने के बाद, जब वह अपनी एयर कंडीशन गाड़ी की ओर बढ़े, तो समर्थकों और मीडिया की भारी भीड़ ने उन्हें घेर लिया। इसी धक्कामुक्की में उनकी महंगी सिल्क की जैकेट की जेब से उनका लेटेस्ट iPhone नीचे कीचड़ में गिर गया। उन्हें इसका एहसास भी नहीं हुआ।

यह फोन महंगा ही नहीं था, बल्कि उनकी दुनिया था। इसमें उनके सारे निजी और राजनीतिक संपर्क, गोपनीय रणनीतियां और बहुत कुछ था। जब उन्होंने गाड़ी में बैठकर अपनी जेब टटोली, तो फोन गायब था। उनका दिल एक पल के लिए जैसे थम गया। उन्होंने सुरक्षा गार्डों को फोन ढूँढने का आदेश दिया, लेकिन हजारों की भीड़ में एक छोटा सा फोन ढूँढना समंदर में सुई खोजने जैसा था। अविनाश सिंह का चेहरा चिंता और गुस्से से लाल हो गया। वह अपने पीए पर चिल्लाते हुए घर लौट आए।

रैली का शोर थमा और भीड़ छंट गई, तब देवा अपनी जगह पर वापस आया। वह थका हुआ, अपनी बैसाखी के सहारे लंगड़ाता हुआ अपनी झोपड़ी की ओर जा रहा था। तभी उसकी नजर सड़क के किनारे कीचड़ में पड़े एक चमकदार वस्तु पर पड़ी। वह झुककर उसे उठाया। यह एक नया फोन था। देवा ने अपने फटे कुर्ते से फोन को पोंछा और स्क्रीन चालू की। स्क्रीन पर एक सुंदर महिला और एक छोटे बच्चे की तस्वीर उभरी—शायद फोन के मालिक का परिवार।

देवा का दिल डर और लालच के बीच कांप उठा। उसने सुना था कि ऐसे फोन महंगे बिकते हैं। अगर वह इसे बेच दे तो कम से कम साल भर तक भीख नहीं मांगनी पड़ेगी। वह अपनी झोपड़ी की टपकती छत ठीक करवा सकता था, और शायद नकली टांग भी लगवा सकता था जिससे वह फिर से काम कर सके। लेकिन रात को जब वह लेटा, तो उसे नींद नहीं आई। उसने फोन की स्क्रीन जलाई और उस हंसते-खेलते परिवार की तस्वीर देखी। उसे अपने बीवी और बच्चों की याद आ गई जिन्हें वह कभी अच्छी जिंदगी नहीं दे पाया था। उसने सोचा, “जिसका भी यह फोन है, वह कितना परेशान होगा। उसके भी बच्चे होंगे, परिवार होगा।”

उसने फैसला किया कि वह यह फोन जरूर लौटाएगा। पर कैसे? उसे पता नहीं था कि यह किसका है। तभी उसे याद आया कि रैली एमएलए साहब की थी। उसने पास के चाय के ठेले पर लगे टीवी पर खबर देखी थी। अगले दिन देवा अपनी बैसाखी के सहारे लंगड़ाता हुआ कई किलोमीटर पैदल चलकर अविनाश सिंह के आलीशान ऑफिस पहुंचा। पर उसे अंदर घुसने नहीं दिया गया। गेट पर खड़े गार्ड ने उसे भिखारी समझकर धक्का दे दिया। देवा की आंखों में आंसू आ गए। वह निराश होकर फुटपाथ पर बैठ गया।

शाम को जब अविनाश सिंह की गाड़ी ऑफिस से निकली, तो देवा ने हिम्मत जुटाई और गाड़ी के आगे आ गया। ड्राइवर ने जोर से ब्रेक लगाए। अविनाश सिंह ने गुस्से में शीशा नीचे किया। “अरे, यह तो वही भिखारी है। तुम्हें क्या चाहिए?” देवा ने कांपते हाथों से फोन निकाला और कहा, “साहब, यह आपका फोन है। मुझे कल रैली वाली जगह पर मिला था।”

अविनाश सिंह की आंखों में अविश्वास और हैरानी थी। उन्होंने फोन लिया और देखा कि वह सही सलामत था। उन्हें यकीन नहीं हो रहा था कि यह भिखारी, जो शायद दिन में ₹100 भी नहीं कमा पाता होगा, इतना ईमानदार है। उन्होंने अपनी जेब से ₹5000 निकाले और देवा को दिए। “यह लो, तुम्हारा इनाम है। बहुत ईमानदारी दिखाई। अब जाओ।”

देवा ने चुपचाप पैसे लिए, साहब को सलाम किया और अपनी झुग्गी की ओर चल दिया। अविनाश सिंह को राहत तो मिली, लेकिन उनके दिल में एक कांटा चुभ गया। वह उस भिखारी के स्वाभिमान और उसकी आंखों की सच्चाई को भूल नहीं पा रहे थे। उस रात उन्हें नींद नहीं आई। बार-बार देवा का चेहरा, उसका लंगड़ाता शरीर और उसकी ईमानदारी याद आ रही थी।

अगली सुबह अविनाश सिंह बिना किसी तामझाम के अकेले अपनी गाड़ी लेकर शांति नगर की ओर निकले। उनकी महंगी गाड़ी जब उन तंग, कीचड़ भरी गलियों में घुसी, तो बच्चे और लोग कौतूहल से देखने लगे। गाड़ी आगे नहीं बढ़ सकी। वह उतरे। उनके महंगे जूतों पर कीचड़ लग गया, पर उन्हें परवाह नहीं थी। उन्होंने लोगों से पूछकर देवा की झोपड़ी का पता लगाया।

जब वे झोपड़ी के पास पहुंचे, जो प्लास्टिक की पन्नियों और बांस के टुकड़ों से बनी थी, अंदर से बच्चों की हंसी और बूढ़ी औरत की आशीर्वाद की आवाज़ें आ रही थीं। उन्होंने फटे बोरे को हटाकर अंदर झांका। अंदर देवा अकेला नहीं था। उसके साथ झुग्गी के 101 भूखे अनाथ बच्चे और कुछ बेसहारा बूढ़ी महिलाएं थीं। देवा जलेबियां और समोसे सबको बांट रहा था। हंसते हुए कह रहा था, “खाओ, आज सब लोग पेट भर के खाओ। ऊपर वाले ने दावत भेजी है।”

यह निस्वार्थता अविनाश सिंह के दिल में गहरी छाप छोड़ गई। वह रोते हुए झोपड़ी के अंदर गए। सब लोग डर गए, लेकिन जब एमएलए साहब ने देवा को गले लगाया, तो सबका दिल भर आया। अविनाश सिंह ने कहा, “देवा, तुमने मुझे इंसानियत का सबसे बड़ा सबक पढ़ाया है। मैं तुमसे और शांति नगर के सभी लोगों से माफी मांगता हूं कि मैं तुम्हारी इस नर्क जैसी जिंदगी से अनजान था।”

उन्होंने तुरंत नगर निगम और अधिकारियों को फोन किया। अगले घंटे में शांति नगर में पक्के मकानों का निर्माण शुरू हुआ। हर घर में साफ पानी और बिजली के कनेक्शन लगे। बच्चों के लिए स्कूल और अस्पताल खोले गए। देवा को पूरे इलाके का विकास प्रमुख बना दिया गया। उसे अब भीख मांगना नहीं पड़ता। सरकार उसे तनख्वाह और सम्मान देती है। उसकी नकली टांग का इंतजाम भी किया गया।

देवा की यह कहानी हमें सिखाती है कि सच्ची ताकत और अमीरी पैसे या पद में नहीं, बल्कि इंसान के चरित्र और नियत में होती है। जब एक ताकतवर इंसान अपनी आंखों से पर्दा हटाकर सच्चाई देखता है, तो वह हजारों की जिंदगी में बदलाव ला सकता है।