ईमानदारी की सबसे बड़ी परीक्षा

दिल्ली के लुटियन ज़ोन में राठौर मेंशन एक राजमहल की तरह खड़ा था। यहाँ के मालिक राजवीर सिंह राठौर, एक अरबपति थे जिनका विश्वास था कि दुनिया में हर इंसान बिकाऊ है। उनके लिए रिश्ते सिर्फ धोखा थे और गरीब लोग पैसे के लिए किसी भी हद तक गिर सकते हैं। दूसरी ओर यमुना पार की एक बस्ती में पार्वती नाम की एक विधवा रहती थी। पार्वती बेहद गरीब थी, लेकिन उसकी सबसे बड़ी दौलत उसकी ईमानदारी थी। वह घर-घर जाकर सफाई का काम करती थी और अपने सात साल के बेटे गोलू के लिए जीती थी।

एक दिन पार्वती की नौकरी छूट गई और किसी ने उसे राठौर मेंशन में काम करने की सलाह दी। पार्वती वहाँ गई, और उसकी ईमानदारी देखकर मिसेज डिसूजा ने उसे सफाई के काम पर रख लिया। कुछ ही दिनों में पार्वती सबसे भरोसेमंद कर्मचारी बन गई। राजवीर ने उसकी ईमानदारी को परखने का फैसला किया। उन्होंने अपनी तिजोरी, जिसमें लाखों रुपये और सोना था, जानबूझकर खुला छोड़ दिया और पार्वती को स्टडी रूम की सफाई का जिम्मा दे दिया।

पहले दिन पार्वती ने तिजोरी को खुला देखा, लेकिन उसने उसे छुआ तक नहीं। अगले कुछ दिन भी यही सिलसिला चलता रहा। फिर एक दिन पार्वती को पता चला कि उसका बेटा गोलू सीढ़ियों से गिर गया है और उसकी जान बचाने के लिए लाखों रुपये की जरूरत है। पार्वती बेहद परेशान थी, लेकिन फिर भी उसने तिजोरी से पैसे उठाने का विचार त्याग दिया। उसने अपने पति की बातें याद कीं—“ईमानदारी सबसे बड़ी दौलत है।” उसने ठान लिया कि चाहे कुछ भी हो जाए, वह चोरी नहीं करेगी।

अरबपति ने अपनी गरीब नौकरानी को आजमाने के लिए तिजोरी खुली छोड़ दी, फिर उसने जो किया वो आप यकीन नहीं

राजवीर, जो गुप्त कमरे से यह सब देख रहा था, उसकी ईमानदारी देखकर दंग रह गया। सातवें दिन पार्वती ने अपना मंगलसूत्र बेचने का फैसला किया ताकि अपने बेटे का इलाज करवा सके। परीक्षा पूरी हो चुकी थी। राजवीर ने पार्वती को अपने स्टडी रूम में बुलाया, माफी मांगी और उसकी ईमानदारी के आगे सिर झुका दिया। उसने गोलू के इलाज का पूरा इंतजाम किया और पार्वती को हवेली में रहने के लिए आमंत्रित किया।

धीरे-धीरे राजवीर और पार्वती के बीच भरोसा और अपनापन बढ़ गया। राजवीर ने पार्वती से शादी का प्रस्ताव रखा, और पार्वती ने अपने बेटे के भविष्य के लिए हामी भर दी। उनकी शादी सादगी से मंदिर में हुई, जिसमें सिर्फ हवेली के नौकर और गोलू थे। राजवीर अब सिर्फ एक अमीर बिजनेसमैन नहीं, बल्कि एक खुशमिजाज और दयालु इंसान बन गया। पार्वती अब राठौर मेंशन की मालकिन थी और राजवीर की सच्ची हमसफ़र।