पटरी पर मरने जा रही थी लड़की… अजनबी लड़के ने बचाया | फिर जो हुआ, इंसानियत रो पड़ी
उत्तर प्रदेश के कानपुर रेलवे स्टेशन की रात हमेशा भीड़ और शोरगुल से भरी रहती है। कुलियों की आवाज़ें, चाय बेचने वालों की पुकार, ट्रेनों की सीटी और भागते दौड़ते यात्री — यह सब मिलकर जैसे शहर की बेचैन धड़कन बयां करते हैं। लेकिन उसी भीड़ के बीच, प्लेटफ़ॉर्म नंबर तीन के किनारे एक लड़की खड़ी थी। उसका नाम था कविता।
कविता के चेहरे पर थकान की लकीरें थीं। आंखों में आंसुओं का सैलाब था, मगर होंठ सिले हुए थे। वह महीनों से अपने संघर्ष से हार चुकी थी। इंटरव्यू पर इंटरव्यू दिए, लोगों से मदद मांगी, रिश्तेदारों की बातें सुनीं, लेकिन हर जगह सिर्फ रिजेक्शन और ताने मिले। समाज ने जैसे उसके आत्मसम्मान को चीरकर रख दिया था। और अब वह टूट चुकी थी।
उसके मन में सिर्फ एक ही ख्याल गूंज रहा था — “अब और नहीं। अब सब खत्म कर देना चाहिए।”
ट्रेन आने ही वाली थी। पटरियों पर दूर से आती रोशनी उसे अपनी तरफ खींच रही थी। उसने आंसू पोंछे और कदम बढ़ाए। भीड़ में लोग भागदौड़ में लगे रहे, किसी ने ध्यान नहीं दिया।
लेकिन उसी वक्त प्लेटफार्म की दूसरी तरफ खड़ा एक युवक, प्रशांत, सब कुछ देख रहा था।
प्रशांत अच्छे कपड़ों में, हाथ में फाइल लिए खड़ा था। देखने से ही लगता था कि वह संभ्रांत परिवार से है। मगर उसकी आंखों में वह चमक थी जो अक्सर भीड़ में खो जाती है — इंसानियत की चमक।
जैसे ही कविता ने पटरी पर छलांग लगाने के लिए कदम बढ़ाया, प्रशांत ने बिना एक पल सोचे दौड़ लगा दी। लोग हैरान रह गए। ट्रेन सीटी बजाते हुए प्लेटफार्म में दाखिल हो रही थी। बस कुछ ही सेकंड का फासला था। अगर जरा भी देर हो जाती तो कविता हमेशा के लिए उस पटरी में खो जाती। लेकिन प्रशांत ने उसका हाथ कसकर थाम लिया और जोर से अपनी ओर खींच लिया।
कविता उसकी बाहों में गिर पड़ी। उसका शरीर कांप रहा था, आंसू बेकाबू बह रहे थे। पूरे प्लेटफार्म पर सन्नाटा छा गया। भीड़ इकट्ठा हो गई, लोग कानाफूसी करने लगे। लेकिन कविता को अब किसी की परवाह नहीं थी। वह फूट-फूटकर रो रही थी।
प्रशांत ने उसका चेहरा ऊपर उठाया और धीमी आवाज़ में कहा —
“तुम ठीक हो? ऐसा क्यों करने जा रही थी?”
कविता ने उसकी आंखों में देखा। वहां कोई सवाल नहीं था, सिर्फ चिंता और अपनापन था। वह कुछ कहना चाहती थी लेकिन शब्द गले में अटक गए। बस उसकी आंखों से आंसू टपकते रहे।
प्रशांत ने भीड़ से कहा —
“कृपया सब पीछे हट जाइए। इसे सांस लेने दीजिए।”
भीड़ धीरे-धीरे छंट गई। अब प्लेटफार्म के शोर के बीच बस दो लोग थे — कविता और प्रशांत।
प्रशांत उसे पास के एक कोने में ले गया, पानी पिलाया, और शांति से बैठा दिया। फिर बोला —
“जिंदगी इतनी सस्ती नहीं होती कि उसे पटरी पर छोड़ दिया जाए।”
कविता ने उसकी ओर देखा। उसकी आंखें लाल थीं, लेकिन पहली बार उनमें हल्की सी रोशनी झलकी।
धीरे-धीरे बातचीत शुरू हुई। कविता ने टूटी हुई आवाज़ में कहा —
“जब जिंदगी ही बोझ बन जाए तो जीकर क्या करना?”
प्रशांत ने उसे ध्यान से सुना। उसने कोमल स्वर में कहा —
“तुम्हें पता है, तुम कैसी लग रही हो? जैसे कोई पेड़ तूफान में झुक तो गया है लेकिन टूटा नहीं है। सच कहूं, मुझे लगता है तुम्हारे अंदर बहुत ताकत है। बस तुम्हें खुद पर भरोसा करना होगा।”
कविता उसकी बात सुनकर फूट-फूटकर रो पड़ी। फिर धीरे-धीरे उसने अपनी कहानी सुनाई।
वह एक छोटे से गांव की थी। मां-बाप ने खेतों में काम करके उसे पढ़ाया। बचपन से सपना था कि एक अच्छी नौकरी कर परिवार का बोझ हल्का करे। उसने पढ़ाई में मेहनत की, अच्छे अंक भी लाए। मगर हर बार जब नौकरी के इंटरव्यू में गई, लोग उसके पहनावे और बोली का मज़ाक उड़ाते।
“किसी को मेरी मेहनत नहीं दिखती। सबको बस कमी दिखती है। धीरे-धीरे मैं टूटती चली गई। आज लगा सब खत्म कर दूं। कम से कम मां-बाप को और ताने नहीं सुनने पड़ेंगे।”
उसकी बातें सुनकर प्रशांत का दिल भर आया। उसने कहा —
“कविता, सबसे बड़ी गलती जो तुम कर रही हो, वह यह है कि तुम अपनी कीमत उन लोगों की नजरों से तय कर रही हो जिन्होंने कभी तुम्हें पहचाना ही नहीं। जिंदगी की असली कद्र मेहनत और सच्चाई से होती है। और मुझे यकीन है, यह दोनों बातें तुममें हैं।”
यह सुनकर कविता पहली बार हल्के से मुस्कुराई।
प्रशांत ने अपनी जेब से एक कार्ड निकाला और कहा —
“यह मेरी कंपनी का पता है। मैं एक छोटा सा स्टार्टअप चला रहा हूं। हमें ऐसे लोग चाहिए जिनमें मेहनत और ईमानदारी हो। कल सुबह आना, तुम्हारी नई शुरुआत वहीं से होगी।”
कविता हैरान रह गई। एक अजनबी उस पर इतना भरोसा क्यों कर रहा था? मगर प्रशांत की आंखों में सच्चाई थी।
अगली सुबह, कविता उस कंपनी में पहुंची। दिल डर से धड़क रहा था। मगर वहां सचमुच उसके लिए दरवाजे खुले थे। प्रशांत ने मुस्कुराकर उसका स्वागत किया और कहा —
“लायकत डिग्री या कपड़ों से नहीं, मेहनत और नियत से तय होती है। आज से तुम मेरी टीम का हिस्सा हो।”
धीरे-धीरे कविता ने काम सीखा। शुरुआत में सहकर्मी हंसे, ताने दिए। मगर उसने हार नहीं मानी। दिन-रात मेहनत की। कुछ महीनों में वही लड़की, जिसे सब नाकाबिल कहते थे, कंपनी की सबसे भरोसेमंद कर्मचारी बन गई।
मां-बाप को जब पहली बार उसने अपनी सैलरी भेजी, तो उनकी आंखों से आंसू बह निकले।
समाज अब भी सवाल उठाता रहा। लोग कहते — “प्रशांत करोड़पति है, और यह लड़की गांव की… ये रिश्ता कैसे चलेगा?” लेकिन प्रशांत ने सबके सामने साफ कहा —
“मैंने दुनिया में बहुत दिखावे देखे हैं। लेकिन कविता जैसी सच्चाई कहीं नहीं देखी। मैं उससे शादी करूंगा क्योंकि मुझे जिंदगी में दिखावा नहीं, सच्चाई चाहिए।”
उसकी बातें सुनकर सब चुप हो गए।
और इसी तरह, कानपुर रेलवे स्टेशन की वह रात, जब कविता अपनी जिंदगी खत्म करने आई थी, उसकी जिंदगी का नया मोड़ बन गई।
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