अफसर बेटी और उसके पिता की प्रेरणादायक कहानी
उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गांव सूरज भोजपुर में राम प्रसाद नामक एक गरीब मजदूर अपनी पत्नी दिनरा और बेटी सुमन के साथ रहता था। उसकी दुनिया बहुत छोटी थी, लेकिन सपने बहुत बड़े। राम प्रसाद का सबसे बड़ा सपना था कि उसकी बेटी सुमन पढ़-लिखकर अफसर बने और समाज में उसका नाम रोशन करे। दिनरा भी हमेशा यही कहती, “हमारी बिटिया पढ़ेगी, लिखेगी और हमारा नाम ऊँचा करेगी।”
संघर्ष की शुरुआत
गरीबी इतनी थी कि कई बार घर में खाने तक के लाले पड़ जाते। राम प्रसाद भट्टे पर ईंट ढोता, खेतों में मजदूरी करता, कभी-कभी छोटे-मोटे काम पकड़ लेता। लेकिन उसने कभी सुमन की पढ़ाई रुकने नहीं दी। सुमन भी पढ़ाई में बहुत तेज थी। उसने दसवीं और बारहवीं अच्छे अंकों से पास की। मां-बाप का सीना गर्व से चौड़ा हो गया।
लेकिन किस्मत ने अचानक बड़ा झटका दिया। सुमन की मां गंभीर बीमारी के चलते कुछ ही महीनों में दुनिया छोड़ गई। जाते-जाते उसने पति से कहा, “बेटी की पढ़ाई कभी मत रोकना। उसे अफसर बनाना ही मेरी आखिरी इच्छा है।” उस दिन के बाद राम प्रसाद की जिंदगी बदल गई। उसने ठान लिया कि चाहे कितनी भी मुसीबतें आएं, बेटी को अफसर बनाए बिना चैन से नहीं बैठेगा।
सपनों की उड़ान
सुमन ने भी मां की आखिरी इच्छा को अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया। कॉलेज में दाखिला लिया तो खर्च और बढ़ गया। गांव वाले ताने मारते, “लड़की है, ज्यादा पढ़ाई लिखाई कराके क्या करोगे? शादी कर दो।” लेकिन राम प्रसाद चुपचाप सब सुनता और मुस्कुरा कर कहता, “मेरी बेटी अफसर बनेगी।”
कॉलेज में सुमन को पता चला कि यूपीएससी जैसी परीक्षाएं पास करने से बड़ा अधिकारी बना जा सकता है। उसका मन वही अटक गया। लेकिन दिल्ली जाकर तैयारी करनी थी और इसके लिए लाखों रुपए चाहिए थे। यहीं से उसकी जिंदगी की सबसे बड़ी मुश्किल शुरू हुई। सुमन कई दिन तक चुपचाप रही, कॉलेज जाना बंद कर दिया।
पिता ने जब देखा तो पूछा, “बिटिया, क्या हुआ?” सुमन ने रोते हुए कहा, “दिल्ली जाने के लिए लाखों रुपए चाहिए। आप कहां से लाओगे इतने पैसे?” राम प्रसाद ने बेटी का चेहरा ऊपर उठाया और कहा, “तू चिंता मत कर। तेरा सपना मेरा सपना है। पैसे का इंतजाम मैं करूंगा।”
त्याग की मिसाल
राम प्रसाद के पास जायदाद कुछ थी नहीं। बस एक घर था। उसी को बेचने का फैसला कर लिया। गांव के साहूकार से बात की और शर्त रखी कि जब तक बेटी दिल्ली नहीं जाती, तब तक किराएदार बनकर उसी घर में रहेंगे। सौदा तय हुआ। घर बिक गया, लेकिन पिता ने हिम्मत नहीं हारी। जो रकम मिली उसमें से कुछ महीनों का किराया दिया, बाकी रकम बेटी के नाम बैंक खाते में जमा करा दी।
सुमन दिल्ली पहुंची। वहां छोटी सी जगह में रहकर पढ़ाई शुरू की। पहली बार परीक्षा दी, लेकिन प्रीलिम्स भी पास नहीं हुआ। सहेलियां वापिस लौट गईं, लेकिन सुमन ने हार नहीं मानी। उसने खुद से कहा, “मैं पापा से वादा करके आई हूं। अफसर बने बिना वापस नहीं जाऊंगी।” दूसरी बार और मेहनत की, लेकिन फिर असफलता मिली। तीसरी बार उसने पूरी जान लगा दी। इस बार उसकी मेहनत रंग लाई। प्रीलिम्स पास हुआ, मेंस में अच्छे अंक आए और इंटरव्यू का बुलावा आया।
सफलता की ऊँचाई
इंटरव्यू में उसने अपने संघर्ष की पूरी कहानी बताई। जब रिजल्ट आया, मोबाइल की स्क्रीन पर अपना नाम देखकर उसकी आंखें भर आईं। सुमन अफसर बन गई थी। उसने पापा को फोन किया और रोते हुए कहा, “पिताजी, आपका सपना पूरा हो गया। अब मैं अफसर हूं।”
राम प्रसाद की आंखों से भी आंसू बह निकले। खुशी के मारे सुमन रात भर सो नहीं सकी। दूसरे ही दिन उसने अपने गांव की ट्रेन पकड़ी। स्टेशन पर पहुंची तो भीड़ थी। अचानक उसकी नजर सीढ़ियों के कोने पर पड़ी। वहां एक बूढ़ा आदमी भीख मांग रहा था। सुमन ने ध्यान से देखा, वह उसके अपने पिता राम प्रसाद थे।
भावनाओं का ज्वार
सुमन दौड़कर उनके पास पहुंची और बोली, “पिताजी, यह हालत कैसे?” राम प्रसाद ने बताया, “जब तू दिल्ली गई थी, मैंने अपना घर बेच दिया था। कुछ समय किराएदार बनकर रहा, लेकिन काम करते वक्त पैर टूट गया। मजदूरी बंद हो गई, किराया नहीं दे पाया तो घर से निकाल दिया गया। कोई सहारा नहीं था। भूख लगी तो स्टेशन आ गया। बस एक आसरा था कि मेरी बेटी अफसर बनेगी।”
सुमन ने पिता के आंसू पोंछे और बोली, “अब आपको एक दिन भी अकेले नहीं रहना होगा। अब आपकी जिंदगी मैं संभालूंगी।” उसने पिता को गांव पहुंचाया, पुराने मकान मालिक का बकाया चुकाया, अस्थाई ठिकाना बनाया। एक ईमानदार युवक को पिता की सेवा के लिए रखा और हर महीने पैसे भेजने लगी। धीरे-धीरे राम प्रसाद का स्वास्थ्य सुधरने लगा।
समाज की सोच में बदलाव
दो साल की ट्रेनिंग के बाद सुमन की पहली पोस्टिंग कलेक्टर के पद पर हुई। सरकारी आवास मिला, गाड़ी मिली, स्टाफ मिला, लेकिन सबसे बड़ी खुशी थी कि अब वह अपने पिताजी को अपने साथ रख सकती थी। वह सरकारी गाड़ी लेकर गांव पहुंची। पिता को साथ लाकर अपने आवास में खास कमरा सजाया।
गांव में एक बड़ा सामाजिक कार्यक्रम हुआ। सुमन ने मंच से कहा, “आज मैं जो कुछ हूं, अपने पिताजी की वजह से हूं। उन्होंने मेरे लिए अपना घर तक बेच दिया, ताने सहते रहे, लेकिन मेरी पढ़ाई कभी नहीं रोकी। जब मैं असफल हुई, उन्होंने मुझे संभाला। अगर मैं आज कलेक्टर हूं, तो यह कुर्सी मेरे पिताजी के त्याग का इनाम है।”
यह सुनकर गांव वालों की आंखों में आंसू आ गए। वही लोग जो पहले कहते थे कि लड़की को इतना पढ़ाकर क्या होगा, आज खड़े होकर ताली बजा रहे थे। कई औरतें रो पड़ीं और बोलीं, “आज हमारी बेटियों को भी उम्मीद मिल गई है।”
नई प्रेरणा, नया अभियान
सुमन ने अपने जिले में “बेटी पढ़ाओ, इज्जत बचाओ” अभियान शुरू किया। उसने कहा, “गरीबी बेटियों की पढ़ाई रोकने का बहाना नहीं होनी चाहिए। मैं जीते-जी यह सुनिश्चित करूंगी कि कोई भी बेटी अपने सपनों से वंचित न रहे।” उसके फैसले से हजारों लड़कियों की पढ़ाई आगे बढ़ी।
समय बीतता गया। सुमन की शादी की बात चली। लेकिन उसने हर जगह एक ही शर्त रखी, “मेरे पिता हमेशा मेरे साथ रहेंगे।” आखिरकार एक ईमानदार अधिकारी ने उसका प्रस्ताव स्वीकार किया। शादी सादगी और इज्जत से हुई। सुमन ने कहा, “पापा, मेरा हर घर तभी घर होगा जब उसमें आप रहेंगे।”
अंत में संदेश
राम प्रसाद अब बूढ़े हो चुके थे, लेकिन जब भी लोगों से मिलते, बस यही कहते, “मैं गरीब जरूर हूं, लेकिन अमीर हूं क्योंकि मेरी दौलत मेरी बेटी है।” दोस्तों, बेटियां बोझ नहीं बल्कि भगवान का दिया हुआ भरोसा होती हैं। उनके सपनों को पंख दीजिए, उनकी मेहनत पर विश्वास कीजिए और देखिए कैसे वे आपके नाम को आसमान तक पहुंचा देती हैं।
अगर आपके सामने भी हालात वैसे ही हों जैसे राम प्रसाद के सामने थे, तो क्या आप भी अपनी आखिरी पूंजी बेटी की पढ़ाई में लगा पाएंगे? आपके शब्द किसी और पिता के लिए हिम्मत बन सकते हैं, किसी और बेटी के लिए सपनों का सहारा बन सकते हैं।
जय हिंद, जय भारत।
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