जिसे गरीब कहकर घर से निकाला – आज उसी के ऑफिस में नौकरी माँगने पहुँची!
दोस्तों, क्या हुआ जब एक लड़का एक लड़की देखने उसके घर जाता है, लेकिन लड़की उसे यह कहकर भगा देती है कि “तुझ जैसे भिखारी की औकात मुझसे शादी करने की नहीं है”? इसके बाद जब लड़का अपने असली रूप में आया तो फिर ऐसा हुआ जिसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी।
परिवार की कहानी
यह कहानी एक ऐसे परिवार की है जिसमें माता-पिता के साथ-साथ एक जवान लड़का था, जिसका नाम विवेक था। विवेक अब शादी लायक हो चुका था। उसके मां-बाप हमेशा उससे कहते, “बेटे, अब तुम जवान हो गए हो। हमें तुम्हारे लिए लड़की की तलाश करनी चाहिए।” विवेक मुस्कुराकर कहता, “पिताजी, मैं शादी तो जरूर करूंगा लेकिन ऐसी लड़की से जो सीधी हो, सच्ची हो और गरीब घर की हो, जो हमसे प्यार करे हमारी दौलत से नहीं।”
इस सोच के साथ उन्होंने लड़की की तलाश शुरू कर दी। काफी ढूंढने के बाद उन्हें एक ऐसा परिवार मिला जो गरीब था। उस परिवार में एक सुंदर लड़की थी, जवान और शादी लायक, जिसका नाम पूजा था। दोनों परिवारों में आपस में शादी की बात हुई।
पहली मुलाकात
जब लड़की देखने का समय आया, तो विवेक ने मन ही मन एक फैसला किया। उसने सोचा, “अगर मैं अपने असली रूप में लड़की देखने जाऊंगा तो कोई भी लड़की मुझसे शादी के लिए तैयार हो जाएगी। लेकिन मैं चाहता हूं कि जो भी लड़की मुझसे जुड़े, वह मेरी दौलत से नहीं, मेरी सच्चाई से जुड़े।”
यह सोचकर उसने बेहद साधारण और सिंपल कपड़े पहने। एक आम आदमी बनकर अपने माता-पिता के साथ लड़की वालों के घर पहुंचा। वह चाहता था कि लड़की वालों को भनक तक ना लगे कि वह कितना बड़ा आदमी है।
पूजा का दृष्टिकोण
उधर, पूजा छत पर बैठी चाय पी रही थी। उसकी मां नीचे से बार-बार आवाज लगा रही थी, “पूजा, नीचे आ! कुछ लोग आए हैं लड़के वाले।” पूजा ने कहा, “अरे मां, तुमने बताया ही नहीं कि कोई रिश्ता देखने आ रहा है।” मां बोली, “तू देख तो सही।” पूजा बिना मन के नीचे उतरी।
उसका मन हमेशा से किसी स्मार्ट सूट बूट वाले, ऊंची गाड़ी से उतरने वाले लड़के की कल्पना करता था। लेकिन जैसे ही पूजा ने कमरे में कदम रखा, उसका चेहरा एकदम उतर गया। सामने एक लड़का बैठा था, जिसका नाम विवेक बताया गया। पुराने कपड़े, घिसी चप्पलें, बाल बिखरे हुए और हाथ में पसीने की एक रेखा सी।
उसे देखकर पूजा को गुस्सा आ गया। वह धीरे से अपनी मां के कान में बोली, “यह क्या है मां? भिखारी लग रहा है। मैं इससे शादी नहीं करूंगी।” बातचीत शुरू हुई। विवेक बेहद शांत स्वभाव से बात कर रहा था, लेकिन पूजा और उसके पिता पहले से ही मन बना चुके थे।
विवेक की कोशिशें
पूजा ने जानबूझकर रूखा व्यवहार किया। उसने विवेक से पूछा, “तुम करते क्या हो?” विवेक मुस्कुराया और बोला, “मैं बिजनेस करता हूं।” पूजा ने ताना मारते हुए कहा, “किस तरह का बिजनेस, भीख मांगने का?” कमरे में एक सेकंड का सन्नाटा छा गया। विवेक की मां ने पूजा की तरफ देखा, मानो कुछ कहना चाहती हो, लेकिन उन्होंने चुप्पी साध ली।
विवेक के पिता ने कहा, “बेटा, सीधा साधा है। ज्यादा दिखावा नहीं करता।” पूजा की मां ने भी कहा, “लड़का तो सच्चा लगता है, लेकिन पूजा ने साफ कह दिया, मुझे ऐसा लड़का नहीं चाहिए जो ढंग से कपड़े पहनना भी ना जानता हो।”
रिश्ता खारिज
विवेक और उसके माता-पिता मुस्कुराते हुए उठे और कहने लगे, “कोई बात नहीं, हम समझ सकते हैं।” रिश्ता वहीं खारिज कर दिया गया। विवेक के पापा ने जाते हुए धीरे से कहा, “आजकल के लड़के दिखावा नहीं करते तो लड़कियां उन्हें नकार देती हैं।” विवेक पलटा और सिर्फ एक लाइन बोला, “अच्छे कपड़े पहनने से आदमी बड़ा नहीं बनता। सोच से बनता है।”
पूजा ने हंसते हुए कहा, “बड़े-बड़े डायलॉग मारने से कोई अंबानी नहीं बन जाता।” और वही बात उस दिन दीवारों पर टकराई और किस्मत ने उसका मतलब समझाने की कसम खा ली।
नया सफर
कुछ हफ्तों बाद पूजा का सिलेक्शन शहर की एक बड़ी कंपनी में हो गया। ट्रेनिंग के लिए उसे दिल्ली भेजा गया। पूजा बहुत खुश थी। दिल्ली में पूजा की जिंदगी जैसे एकदम बदल गई थी। ऑफिस की चमचमाती बिल्डिंग, कॉर्पोरेट कल्चर और स्मार्ट लोगों से भरा माहौल, यह सब उसे एक नए सपने में जीने जैसा लग रहा था।
सुबह वह फॉर्मल कपड़े पहनकर मेट्रो से ऑफिस जाती। दिनभर प्रोजेक्ट्स में उलझी रहती और शाम को अपने रूममेट्स के साथ डिनर करती। उसकी दुनिया अब गांव के उन लोगों से काफी दूर हो चुकी थी, जिन्हें वह कभी अपना कहा करती थी।
बिजनेस समिट
ऑफिस में 3 महीने बाद एक ग्रैंड इवेंट हुआ। एक बड़ा बिजनेस समिट जिसमें देश भर की नामी कंपनियों के मालिक आने वाले थे। पूजा की टीम को उस समिट की पूरी तैयारी का जिम्मा मिला था। पूजा एक्साइटेड थी। खासकर इसलिए क्योंकि उसने सुना था कि वीएस ग्रुप का फाउंडर खुद इस बार स्पेशल गेस्ट के रूप में आने वाला है।
वीएस ग्रुप इंडिया की टॉप पांच एफएमसीजी कंपनियों में से एक है। पूजा को उस ग्रुप के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी लेकिन उसने नाम सुना था। टीम लीडर ने कहा, “पूजा, मिस्टर विवेक सिंह की एंट्री पर तुम्हें ही रिसीव करना है। ठीक 10:30 बजे। वह बहुत डाउन टू अर्थ इंसान है। कोई दिखावा नहीं करते लेकिन बहुत इंटेलिजेंट है और करोड़ों की कंपनी चला रहे हैं।”
विवेक की एंट्री
पूजा ने नाम सुना “विवेक सिंह”। दिल एक पल को थमा और पूजा सोच में पड़ गई। “क्या यही वही नाम है? नहीं। इतने कॉमन नाम होते हैं। यह कोई और होगा।” अगले दिन पूजा सुबह-सुबह तैयार होकर सबमिट वेन्यू पहुंच गई। चारों तरफ सिक्योरिटी, मीडिया, बैनर, ग्लैमर और अंदर मंच पर एक बड़ी सी स्क्रीन लगी थी।
“वेलकम मिस्टर विवेक सिंह,” घड़ी ने 10:30 बजे का समय दिखाया और तभी बाहर से एक काले रंग की Mercedes बेंजेस आकर रुकी। गाड़ी से उतरा एक शख्स ग्रे कलर का सिल्क सूट, गले में हल्का स्कार्फ, बाल करीने से बने हुए और चेहरा।
विवेक का असली रूप
पूजा के पैरों तले जमीन खिसक गई। वह वहीं था। वह फटे हाल कपड़ों वाला रिश्ता वही विवेक। पूजा की आंखें फटी रह गईं। उसे खुद पर यकीन नहीं हो रहा था। जिस लड़के को उसने कभी भिखारी कहा था, जो शांत होकर बिना एक भी शब्द कहे लौट गया था, आज वही करोड़ों की कंपनी का मालिक बनकर सामने खड़ा था।
विवेक ने जैसे पूजा को देखा, आंखों में एक हल्की मुस्कान आई। ना ताना, ना गुस्सा, ना घमंड। बस वही पुराना ठहराव। पूजा ने खुद को संभालते हुए धीरे से कहा, “वेलकम सर। वी आर हनर्ड टू हैव यू।” विवेक ने बस सिर हिलाया और कहा, “थैंक यू।” और अंदर चला गया।
विवेक का भाषण
पूरे दिन पूजा का ध्यान किसी काम में नहीं लग रहा था। स्टेज पर विवेक का भाषण चल रहा था। वह अपनी जर्नी बता रहा था। कैसे उसने गरीबी से शुरुआत की। कैसे उसने एक छोटी सी दुकान से बड़ा ब्रांड खड़ा किया। कैसे उसने तय किया कि जो लोग जिंदगी में सबसे कमजोर दिखते हैं, उन्हीं में सबसे ज्यादा ताकत होती है।
पूजा की आंखें शर्म से झुक गईं। वह सोच रही थी, “उस दिन मैंने इन्हें ठुकराया था क्योंकि इन्होंने अच्छे कपड़े नहीं पहने थे। लेकिन असल में मेरी सोच गंदी थी। वह गरीब नहीं था, मैं थी।”
माफी की कोशिश
शाम को जब इवेंट खत्म हुआ, पूजा हिम्मत करके विवेक के पास गई। बहुत धीमे स्वर में बोली, “सर, क्या आप मुझे पहचानते हैं?” विवेक ने मुस्कुराकर कहा, “लोग बदल जाते हैं। कपड़े बदल जाते हैं। लेकिन चेहरे और यादें नहीं बदलते, पूजा जी।” इतना कहकर वह मुड़ा और अपनी गाड़ी में बैठ गया।
पूजा वहीं खड़ी रह गई और उसके कानों में सिर्फ एक लाइन गूंज रही थी, “अच्छे कपड़े पहनने से आदमी बड़ा नहीं बनता। सोच से बनता है।”
आत्मावलोकन
पूजा उस शाम कुछ भी सोचने की हालत में नहीं थी। ऑफिस से लौटकर सीधा अपने कमरे में गई। दरवाजा बंद किया और चुपचाप बेड पर बैठ गई। पूरे दिन की एक-एक बात उसके दिमाग में घूम रही थी। विवेक की एंट्री, उसका सूट बूट वाला लुक, उसका भाषण और सबसे ज्यादा उसकी वह मुस्कान जिसमें कोई शिकायत नहीं थी। बस एक शांति थी जैसे कोई तपस्वी अपनी तपस्या पूरी करके लौटा हो।
विवेक की यादें
पूजा के दिमाग में वही पल बार-बार आ रहा था जब उसने उसका मजाक उड़ाया था। “हम भिखारियों से रिश्ता नहीं करते।” उस वक्त उसका चेहरा नहीं देखा था उसने। लेकिन आज देखा और अब समझ में आया कि विवेक ने उस दिन कुछ कहा क्यों नहीं।
अगले दिन ऑफिस में काम तो था लेकिन पूजा का मन नहीं था। उसने बार-बार एचआर से पूछा, “सर, क्या मिस्टर विवेक सिंह का कोई और सेशन है?” एचआर ने जवाब दिया, “नहीं पूजा। वह तो बहुत बिजी हैं। उनका अगला प्रोजेक्ट यूएस में है। इंडिया में बस कुछ दिन के लिए आए थे।”
साहसिक कदम
पूजा के हाथ से जैसे वक्त फिसलता जा रहा था। एक अधूरी माफी, एक ना बोला गया पछतावा। सब कुछ उसके सीने में ढक रहा था। अचानक पूजा ने एक साहसिक कदम उठाया। वह सीधे वीएस ग्रुप के हेड ऑफिस गई। रिसेप्शन पर पहुंचकर बोली, “मैं मिस्टर विवेक सिंह से मिलना चाहती हूं।”
रिसेप्शनिस्ट ने कहा, “क्या अपॉइंटमेंट है आपके पास?” पूजा ने जवाब दिया, “नहीं। लेकिन मैं उन्हें पहले से जानती हूं। प्लीज, सिर्फ एक बार मिलने दीजिए।” कई बार समझाने के बाद पूजा को इंतजार करने को कहा गया। लगभग 1 घंटे बाद एक पर्सनल असिस्टेंट आया और बोला, “आपका नाम पूजा है।”
विवेक से मुलाकात
पूजा ने सिर हिलाया। पीए ने कहा, “सर ने मिलने के लिए कहा है। आइए।” पूजा के कदम कांप रहे थे। एक तरफ वह डर रही थी कि विवेक उसे माफ नहीं करेगा। दूसरी तरफ उसे खुद से नफरत हो रही थी। ऑफिस की 22वीं मंजिल पर बने एक ग्लास केबिन में वह पहुंची और सामने था वही विवेक।
अबकी बार उसकी 22वीं मंजिल पर वही काम करता है। सर ने मिलने के लिए कहा है। आंखों में हल्की सी सख्ती थी। विवेक बोला, “बैठो पूजा।” पूजा ने धीमे से कहा, “माफ करना विवेक। आज मैं आपसे सिर्फ एक माफी मांगने आई हूं। उस दिन जो कुछ कहा, वह मेरी सोच की गंदगी थी। मैंने आपको इंसान नहीं समझा। आपको नीचा दिखाया। मैं गलत थी।”

विवेक की प्रतिक्रिया
विवेक कुछ देर चुप रहा। फिर बोला, “तुम्हें पता है पूजा? मैं उस दिन फटे कपड़े पहनकर जानबूझकर गया था। मैं असल में देखना चाहता था कि कौन लोग मेरे असली रूप को अपनाते हैं और कौन दिखावे को। मेरे परिवार ने बहुत गरीबी देखी है। लेकिन मेरी मां हमेशा कहती थी, ‘बेटा, अमीरी कपड़ों से नहीं सोच से होती है।’ मैं तुम्हें परख रहा था और तुम फेल हो गई थी।”
पूजा की आंखों से आंसू बह निकले। वह कुछ कह नहीं पाई। विवेक बोला, “मुझे तुम्हारी माफी से फर्क नहीं पड़ता पूजा क्योंकि मेरी जिंदगी अब वहां नहीं है। लेकिन हां, तुम्हारी एक सीख बाकी लड़कियों के लिए मिसाल बन सकती है। इसीलिए मैं चाहता हूं तुम अपने ऑफिस में जाकर एक सेशन लो। ‘डोंट जज बाय क्लोथ्स।’ अपने एक्सपीरियंस से दूसरों को सिखाओ कि इंसान के कपड़े नहीं किरदार देखा करो।”
नया सबक
पूजा सिर झुका कर बोली, “मैं करूंगी। और आपसे एक वादा करती हूं। अब किसी को उसके बाहर से नहीं, उसके अंदर से देखूंगी।” विवेक ने मुस्कुराकर कहा, “अब तुमने सच में अमीरी की शुरुआत की है।” पूजा ऑफिस से बाहर निकली तो उसकी आंखें नम थीं लेकिन दिल हल्का था।
वह जानती थी कि उसने एक ऐसा सबक सीखा है जो उसे जिंदगी भर याद रहेगा। ऑफिस में उसने एक खास सेशन रखा। “कभी किसी को कपड़ों से जज मत करना।” पूजा ने माइक उठाया और अपनी कहानी सुनाई। उसने एक-एक बात बिना शर्म के साझा की।
प्रेरणा का संदेश
“मैंने एक लड़के को सिर्फ उसके कपड़ों से जज किया। उसे भिखारी तक कह दिया और बाद में पता चला कि वही करोड़ों का मालिक था। वह मेरी जिंदगी की सबसे बड़ी भूल थी और मैं चाहती हूं आप सब उससे कुछ सीखें। कभी किसी को छोटा मत समझो क्योंकि असली इंसानियत बाहर नहीं, भीतर होती है।”
उसके बोल खत्म होते ही तालियों की गूंज से हॉल भर गया। पूजा पहली बार खुद पर गर्व महसूस कर रही थी। ना अपनी डिग्री पर, ना अपने कपड़ों पर, सिर्फ अपने बदले हुए दिल पर। लेकिन किस्मत को अभी और कुछ दिखाना था।
वार्षिक चैरिटी गाला
एक हफ्ते बाद पूजा को वीएस ग्रुप से एक खास इनविटेशन आया। वार्षिक चैरिटी गाला के लिए इस मीटिंग में सिर्फ खास लोग बुलाए जाते थे। बिजनेस वर्ल्ड के बड़े नाम, सोशल वर्कर्स और कुछ चुनिंदा मीडिया लोग। पूजा पहले थोड़ा हिचकी लेकिन फिर सोचा, “अब मैं डर कर नहीं भागूंगी। अगर विवेक से फिर मुलाकात हुई तो उसे आंख में आंख डालकर देख पाऊंगी।”
मीटिंग शाम को एक आलीशान होटल में थी। चारों तरफ रोशनी, मीडिया, फ्लैश, रेड कारपेट। पूजा जैसे-जैसे भीतर बढ़ी, उसकी धड़कनें तेज होती जा रही थीं। उसकी नजर सामने स्टेज पर गई और वहां खड़ा था विवेक। लेकिन इस बार अकेला नहीं था। उसके बगल में एक लड़की खड़ी थी।
विवेक का नया रिश्ता
शालीन, खूबसूरत, गहरे नीले लहंगे में सजी। कुछ मीडिया वाले उन्हें साथ में देखकर कह रहे थे, “सर, क्या यह आपकी मंगेतर है?” विवेक ने मुस्कुराकर कहा, “हां, अगले महीने हमारी सगाई है।” पूजा की रफ्तार एकदम धीमी हो गई। एक अजीब सा खालीपन दिल में छा गया।
उसने खुद से सवाल किया, “क्यों दर्द हो रहा है पूजा? तूने तो उसे गरीब समझकर ठुकरा दिया था ना।” और फिर उसने खुद को झटका। “नहीं पूजा, यह हक अब मेरा नहीं है। मैंने जो बोया था वही काट रही हूं।” विवेक ने पूजा को देखा। कुछ पल के लिए दोनों की नजरें मिलीं। कोई संवाद नहीं हुआ लेकिन एक मौन में बहुत कुछ कहा गया।
विवेक का भाषण
मीटिंग के आखिर में विवेक स्टेज पर आया। उसने अपने भाषण में कुछ ऐसा कहा जिसने पूजा के सीने में हलचल मचा दी। “कभी-कभी जिंदगी हमें ऐसे लोगों से मिलवाती है जो हमारे घाव बनते हैं और वही घाव हमें सबसे मजबूत भी बनाते हैं। आज मैं यहां हूं क्योंकि किसी ने मुझे ठुकराया था और आज मैं खुश हूं।”
पूजा की आंखों से आंसू बह निकले। रात को घर लौटते हुए पूजा ने आसमान की तरफ देखा। चांद बिल्कुल साफ था। लेकिन उसके दिल में मैल था। फिर भी वह जानती थी वह अब भी अमीर है। वह अमीरी जो पैसों की नहीं, पछतावे और बदलाव वाली है।
नई शुरुआत
हर सुबह जब पूजा काम के लिए निकलती, वह विवेक की तस्वीरें अखबारों में, वेबसाइट्स पर या बिजनेस चैनलों पर देखती। उसकी कंपनी हर दिन नई ऊंचाइयों पर जा रही थी। और हर बार जब वह किसी तस्वीर में विवेक को अपनी मंगेतर के साथ देखती, तो उसके होठ मुस्कुराने की कोशिश करते लेकिन आंखें नम हो जातीं।
वह जानती थी उसने उसे खो दिया और वह हक से नहीं, अपने घमंड के कारण खोया था। एक दिन पूजा अपने ऑफिस में काम कर रही थी। तभी एक मेल आया, “आपको एक बहुत बड़े इंटरव्यू के लिए इनवाइट किया गया है। प्लीज कंफर्म अटेंडेंस। विषय था, ‘डोंट जज एक लाइफ बाय इसकी कवर।’”
आत्म-विश्लेषण
पूजा को यकीन नहीं हुआ। यह वही मंच था जहां उसे कभी देखने का सपना था और आज उसकी अपनी गलती ही उसकी सबसे बड़ी ताकत बन गई थी। उसने बिना देर किए हां कर दी। इंटरव्यू के दिन पूजा का भाषण पूरे सोशल मीडिया पर वायरल हो गया।
वह कह रही थी, “मैंने एक इंसान को उसके लिबास से जज किया और वह इंसान निकला मेरे पूरे जीवन का सबसे बड़ा आईना। अब जब मैं दूसरों को देखती हूं तो उनकी आंखें पढ़ती हूं, ना कि उनके कपड़े।” पूरा हॉल तालियों से गूंज उठा।
विवेक की उपस्थिति
उसी भीड़ में एक शख्स भी बैठा था। नीले सूट में चुपचाप ध्यान से सुनता हुआ, वह था विवेक। स्पीच खत्म होने के बाद पूजा नीचे आई। लोगों की भीड़ थी। ऑटोग्राफ्स, इंटरव्यू। लेकिन पूजा की नजर बार-बार इधर-उधर उसे ढूंढ रही थी।
पुनर्मिलन
तभी एक कोना पकड़े। सबसे पीछे खड़ा शख्स मुस्कुराता हुआ नजर आया। विवेक। वह धीरे-धीरे पूजा के पास आया। पूजा थम गई। दिल की धड़कनें तेज हो गईं। विवेक ने धीरे से कहा, “स्पीच अच्छी थी।” इस बार शब्दों में घमंड नहीं था। सच था।
पूजा बोली, “सच हमेशा देर से आता है। लेकिन जब आता है तो पूरी जिंदगी बदल देता है।” कुछ पल की चुप्पी के बाद विवेक ने कहा, “क्या चल रहा है तुम्हारी जिंदगी में?” पूजा मुस्कुरा कर बोली, “अब हर सुबह खुद से मिलने जाती हूं और हर रात खुद को थोड़ा और माफ कर देती हूं।”
विवेक का राज़
विवेक ने सिर झुकाया फिर बोला, “तुमसे एक बात छिपाई थी। मेरी सगाई टूट गई थी।” पूजा चौकी, “क्यों?” विवेक बोला, “जिससे सगाई की थी, उसे मेरी सादगी पसंद नहीं थी। उसे सिर्फ मेरा नाम और पैसा चाहिए था। उसने मुझे इंसान की तरह नहीं, बिजनेस की तरह ट्रीट किया। फिर सोचा इंसान की तलाश करनी चाहिए जो मुझे मेरे फटे हाल कपड़ों में भी समझ पाए।”
नए रिश्ते की शुरुआत
पूजा की आंखें भर आईं। कुछ बोल नहीं पाई। वो शाम पूजा के लिए किसी जादू से कम नहीं थी। दिल सालों बाद फिर से धड़कने की हिम्मत कर रहा था। उसने जिंदगी में बहुत कुछ खोया था। लेकिन आज उसे लगा कि शायद उसने खुद को पा लिया है और शायद विवेक को भी।
कुछ हफ्तों बाद विवेक ने पूजा को कॉल किया। “कल मेरी एक स्पीच है लखनऊ में युद्ध समिट में। क्या आओगी साथ?” पूजा ने बिना सोचे हां कर दी। सफर के दौरान दोनों के बीच बातचीत हुई। लेकिन इस बार दिखावे की नहीं। डर की नहीं। बस दो दिलों की।
अंत में
विवेक ने बताया कि कैसे उसने अपने संघर्ष के दिनों में पूजा का चेहरा कभी नहीं भुलाया। “तुमने मुझे ठुकराया था। हां। पर तुम्हारे शब्दों ने मुझे जिंदगी का सबसे बड़ा सबक दिया, खुद को साबित करने का। और आज मैं जो भी हूं, सिर्फ तुम्हारी वजह से।”
पूजा की आंखें भर आईं। “काश मैं वक्त को लौटा पाती। तो तुम्हें उस वक्त वैसे देख पाती जैसे आज देख रही हूं।” विवेक मुस्कुराया। “अब देख लिया ना? बस अब आगे बढ़ते हैं।”
सरकारी मंत्री और मंच पर विवेक सिंह आज का यूथ आइकॉन। लेकिन इस बार उसके साथ मंच पर एक और नाम था, पूजा वर्मा। विवेक ने माइक उठाया और कहा, “हम आज उस दौर में जी रहे हैं जहां लोग दिखावे से इंसान की कीमत आंकते हैं। एक लड़की ने मुझे ठुकराया और फिर वही मेरे अंदर की आग बंद गई। आज वही लड़की यहां है। और मैं कहना चाहता हूं, कभी-कभी जो लोग तुम्हें तोड़ते हैं, वही तुम्हें सबसे मजबूत बनाते हैं। और कभी-कभी जिनसे तुम सबसे ज्यादा नफरत करते हो, वही लोग तुम्हें सबसे ज्यादा समझने लगते हैं।”
हॉल तालियों से गूंज उठा। पूजा ने माइक संभाला। उसकी आवाज कांप रही थी। लेकिन उसमें सच्चाई थी। “मैंने एक इंसान को सिर्फ उसके कपड़ों से जज किया। मैंने उसकी खामोशी को कमजोरी समझा और उसकी सादगी को गरीबी। लेकिन आज मैं उसी इंसान के साथ खड़ी हूं जो असल में अमीर था। दिल से, सोच से और इंसानियत से।”
पूरे हॉल में सन्नाटा था। लोग भावुक थे और कई आंखें नम थीं। सेशन के बाद मीडिया वाले पूजा और विवेक से पूछने लगे, “क्या आप दोनों फिर साथ हैं?” विवेक मुस्कुराया। पूजा की ओर देखा और बोला, “हम साथ हैं एक नई शुरुआत के साथ। इस बार रिश्ता कपड़ों से नहीं, दिलों से जुड़ा है।”
निष्कर्ष
दोस्तों, आप सब कहां से हैं और आपको यह कहानी कैसी लगी, हमें कमेंट करके जरूर बताएं। हम प्रार्थना करते हैं कि आप और आपका परिवार हमेशा खुश और सुरक्षित रहें। अगर आपके पास भी कोई दिलचस्प कहानी है, तो उसे हमारे साथ और सभी के साथ कमेंट्स में साझा करना ना भूलें। हमें आपके जवाब का इंतजार रहेगा।
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