बिजनेसमैन को प्लेन में आ गया था हार्ट अटैक , लड़के ने अपनी सूझ बूझ से उसकी जान बचाई ,उसके बाद जो हुआ
300 फीट की ऊंचाई पर बदली तक़दीर
लखनऊ के एक पुराने और भीड़भाड़ वाले मोहल्ले में, राहुल मिश्रा का परिवार रहता था। उनका घर छोटा था, लेकिन उसमें प्यार और उम्मीदों की कोई कमी नहीं थी। राहुल, अपने माता-पिता का इकलौता बेटा, बचपन से ही होशियार और मेहनती था। उसके पिता अशोक जी ने अपनी पूरी जिंदगी एक छोटी सरकारी नौकरी में गुजार दी, और माँ सरला जी ने घर को संभाला। राहुल की पढ़ाई में हमेशा अव्वल रहा, और उसने लखनऊ के सबसे अच्छे कॉलेज से बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन में गोल्ड मेडल के साथ ग्रेजुएशन किया।
राहुल के माता-पिता उसकी सफलता पर गर्व करते थे। उन्हें लगता था कि उनका बेटा एक दिन बड़ा अफसर बनेगा, और उनकी सारी मुश्किलें दूर कर देगा। मगर किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। कॉलेज खत्म होते ही घर पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा। अशोक जी को एक गंभीर बीमारी ने जकड़ लिया, जिसका इलाज बहुत महंगा था। सारी जमा पूंजी, प्रोविडेंट फंड, और माँ के गहने तक इलाज में खर्च हो गए। घर पर कर्ज़ बढ़ता गया, और साहूकार रोज़ दरवाजे पर आकर तंग करने लगे।
राहुल ने नौकरी की तलाश में लखनऊ से लेकर दिल्ली तक हर जगह इंटरव्यू दिए। हर जगह उसकी तारीफ होती, मगर नौकरी नहीं मिलती। कभी अनुभव की कमी, तो कभी जगह खाली नहीं होने की बात कहकर उसे टाल दिया जाता। धीरे-धीरे राहुल की उम्मीदें टूटने लगीं। उसकी गोल्ड मेडल वाली डिग्री अब उसे कागज का एक बेकार टुकड़ा लगने लगी थी। घर की हालत ऐसी हो गई थी कि कई बार रात को खाना भी ठीक से नहीं मिलता था।
एक रात राहुल ने देखा कि उसकी माँ आंगन में बैठी चुपचाप रो रही है। उस पल उसने फैसला किया कि वह अब और इंतजार नहीं करेगा। उसने अपने दोस्त रोहित से बात की, जो दुबई में मजदूरी करता था। रोहित ने बताया कि वहाँ मजदूरों की बहुत जरूरत है, काम मुश्किल है, मगर महीने के ₹15,000-20,000 मिल जाएंगे। राहुल के लिए यह रकम किसी खजाने से कम नहीं थी। उसने अपने माँ-बाप से झूठ बोला कि उसे दुबई की एक बड़ी कंपनी में सुपरवाइज़र की नौकरी मिल गई है। एजेंट को पैसे देने और वीजा टिकट के लिए घर का बचा खुचा सामान भी बेच दिया।
दिल्ली एयरपोर्ट पर, राहुल के माँ-बाप की आँखों में खुशी के आँसू थे। उन्हें लग रहा था कि उनका बेटा अब उनकी सारी मुश्किलें दूर कर देगा। मगर राहुल जानता था कि वह एक अंधेरे कुएं में छलांग लगा रहा है। उसी दिन, उसी एयरपोर्ट पर देश के सबसे बड़े और अमीर बिजनेसमैन, राजवीर सिंघानिया भी दुबई जा रहे थे। सिंघानिया ग्रुप ऑफ इंडस्ट्रीज के मालिक, जिन्होंने अपनी मेहनत और बेरहम कारोबारी नीतियों से एक छोटा सा कारोबार ग्लोबल एंपायर में बदल दिया था। उनके लिए रिश्ते, भावनाएं और इंसानियत सिर्फ किताबों की बातें थीं। उनकी दुनिया प्रॉफिट, लॉस, डील और डेडलाइन के इर्द-गिर्द घूमती थी।
राजवीर सिंघानिया फर्स्ट क्लास के आलीशान कैबिन में बैठकर अपनी दुबई वाली मीटिंग की तैयारी कर रहे थे, तो राहुल इकोनॉमी क्लास की लाइन में एक पुराने बैग के साथ खड़ा था। दोनों एक ही मंजिल पर जा रहे थे, मगर दोनों की दुनिया एक-दूसरे से कोसों दूर थी।
प्लेन ने उड़ान भरी। राहुल खिड़की वाली सीट पर बैठा नीचे छूटते हुए अपने शहर और देश को देख रहा था। उसकी आँखों में आँसू थे। वह सोच रहा था कि क्या वह कभी अपने माँ-बाप के सपनों को पूरा कर पाएगा? क्या वह कभी इज्जत की जिंदगी जी पाएगा? उसका दिल भारी था, भविष्य अनिश्चित था।
इसी बीच, राजवीर सिंघानिया अपने लैपटॉप पर झुके हुए थे। पिछले कई दिनों से उन्हें सीने में हल्का दर्द महसूस हो रहा था, मगर उन्होंने उसे काम के स्ट्रेस का नतीजा समझकर नजरअंदाज कर दिया था। उनके लिए अपनी सेहत से ज्यादा जरूरी उनकी डील थी।
प्लेन को उड़ान भरे करीब दो घंटे हो चुके थे। वह अरब सागर के ऊपर से गुजर रहा था। तभी अचानक फर्स्ट क्लास के कैबिन में हड़कंप मच गया। राजवीर सिंघानिया को अपने सीने में तेज असहनीय दर्द महसूस हुआ। उनका सांस लेना मुश्किल हो गया, माथे पर पसीने की बूंदें छलक आईं और वह अपनी कुर्सी से नीचे गिर गए। एयर होस्टेस भागती हुई आई। उन्होंने तुरंत घोषणा की कि क्या प्लेन में कोई डॉक्टर है? यहाँ एक मेडिकल इमरजेंसी है।
प्लेन में उस वक्त कोई डॉक्टर मौजूद नहीं था। केबिन क्रू ने अपनी तरफ से फर्स्ट एड देने की कोशिश की, मगर राजवीर सिंघानिया की हालत बिगड़ती जा रही थी। उनका चेहरा नीला पड़ने लगा था, नब्ज़ डूब रही थी। पायलट ने पास के एयरपोर्ट पर इमरजेंसी लैंडिंग की इजाजत मांगी, मगर उसमें भी कम से कम 40 मिनट का वक्त था और डॉक्टर जानते थे कि उनके पास 40 सेकंड भी नहीं है।
यह शोरशराबा इकोनॉमिक क्लास तक भी पहुंच गया। जब राहुल ने सुना कि किसी को हार्ट अटैक आया है, तो उसे अपने कॉलेज के दिनों का एनसीसी कैंप याद आया, जहाँ उसने सीपीआर यानी कार्डियोपल्मोनरी रेसिसिटेशन की ट्रेनिंग ली थी। उसने कभी सोचा नहीं था कि उसे इसका इस्तेमाल असल जिंदगी में करना पड़ेगा। एक पल के लिए वह झिझका, मगर फिर उसके अंदर के इंसान ने उसे झोरा। एक जान जा रही थी और शायद वह उसे बचा सकता था।
राहुल अपनी सारी झिझक छोड़कर फर्स्ट क्लास कैबिन की तरफ भागा। वहाँ का माहौल देखकर उसका दिल दहल गया। एक अमीर ताकतवर आदमी मौत और जिंदगी के बीच झूल रहा था। एयर होस्टेस उसे रोकने लगीं, मगर राहुल ने दृढ़ आवाज में कहा, “मैं डॉक्टर नहीं हूँ, मगर मुझे सीपीआर देना आता है। प्लीज मुझे एक मौका दीजिए। हमारे पास वक्त नहीं है।” उसकी आँखों में सच्चाई और अर्जेंसी थी, क्रू मेंबर्स ने उसे रास्ता दे दिया।
राहुल तुरंत राजवीर सिंघानिया के पास घुटनों के बल बैठ गया। उसने उनकी नब्ज़ चेक की, जो लगभग बंद हो चुकी थी। उसने बिना एक पल गवाए सीपीआर देना शुरू कर दिया। वह अपने दोनों हाथों से एक खास लय में उनके सीने को दबा रहा था। यह बहुत थकाने वाला काम था, मगर राहुल अपनी पूरी ताकत और आत्मा से उस काम में जुट गया। वह सिर्फ एक शरीर को नहीं, बल्कि एक जिंदगी को वापस लाने की कोशिश कर रहा था।
मिनट गुजरते जा रहे थे। हर गुजरता पल एक घंटे जैसा लग रहा था। प्लेन में पूरी तरह सन्नाटा छा गया था। हर कोई सांस रोके उस लड़के को देख रहा था, जो एक अजनबी की जान बचाने के लिए अपनी पूरी जान लगा रहा था। करीब 10 मिनट की लगातार मशक्कत के बाद एक चमत्कार हुआ। राजवीर सिंघानिया के शरीर में हल्की सी हरकत हुई, उन्होंने लंबी गहरी सांस ली। उनकी आँखें खुलीं। पूरे प्लेन में तालियों की गड़गड़ाहट गूंज उठी। एयर होस्टेस की आँखों में खुशी के आँसू थे। राहुल पसीने से तर-बतर हाफता हुआ वहीं जमीन पर बैठ गया। उसे लगा जैसे उसने अपनी जिंदगी की सबसे बड़ी लड़ाई जीत ली हो।
प्लेन ने दुबई में इमरजेंसी लैंडिंग की। एयरपोर्ट पर पहले से ही एंबुलेंस और मेडिकल टीम तैयार थी। राजवीर सिंघानिया को तुरंत शहर के सबसे अच्छे अस्पताल ले जाया गया। उस आपाधापी में किसी ने राहुल पर ध्यान नहीं दिया। जब सब कुछ शांत हुआ, तो राहुल चुपचाप उठकर इमीग्रेशन की लाइन में जाकर खड़ा हो गया। उसने कोई श्रेय लेने की कोशिश नहीं की। उसने सिर्फ अपना फर्ज निभाया था और अब वह अपनी मजबूरी की मंजिल की तरफ बढ़ रहा था।
अस्पताल में डॉक्टरों ने बताया कि राजवीर सिंघानिया को बहुत बड़ा हार्ट अटैक आया था। अगर उन्हें समय पर सीपीआर ना मिला होता, तो उनका बचना नामुमकिन था। उस लड़के ने सचमुच उनकी जान बचाई थी। दो दिन बाद जब राजवीर सिंघानिया को होश आया और उन्हें पूरी बात पता चली, तो वह हैरान रह गए। वे जो हमेशा मानते थे कि पैसा ही भगवान है, आज एक ऐसे लड़के की वजह से जिंदा थे जिसे वे जानते तक नहीं थे। उन्हें अपने ऊपर शर्मिंदगी महसूस हुई। उन्हें याद आया कि कैसे वे अपनी सेहत को नजरअंदाज करके सिर्फ एक डील के पीछे भाग रहे थे। मौत को इतने करीब से देखने के बाद उन्हें जिंदगी की कीमत समझ में आई थी।
उनके मन में सिर्फ एक ही बात थी—वो लड़का कौन था? वो फरिश्ता कौन था जिसने उन्हें दूसरी जिंदगी दी? वे उससे मिलना चाहते थे, उसका शुक्रिया अदा करना चाहते थे। उन्होंने एयरलाइन कंपनी से संपर्क किया, लड़के का नाम और सीट नंबर पूछा। कंपनी ने रिकॉर्ड्स चेक किए और बताया, लड़के का नाम राहुल मिश्रा था।
सिंघानिया ने अपने दुबई ऑफिस के सबसे बड़े मैनेजर को बुलाया और उसे सिर्फ एक काम दिया—मुझे यह लड़का चाहिए। राहुल मिश्रा कहीं भी हो, उसे ढूंढकर मेरे सामने लाओ। यह एक मुश्किल काम था। दुबई में लाखों भारतीय मजदूर काम करते हैं। उनमें से किसी एक राहुल मिश्रा को ढूंढना समंदर में से एक मोती खोजने जैसा था। सिंघानिया की टीम ने अपनी पूरी ताकत लगा दी। उन्होंने लेबर कैंपों, कंस्ट्रक्शन साइट्स पर हर जगह राहुल की तस्वीर दिखाकर पूछताछ की।
इधर राहुल की जिंदगी एक नरक बन चुकी थी। वह दुबई की चिलचिलाती धूप में एक बड़ी कंस्ट्रक्शन साइट पर पत्थर तोड़ने का काम कर रहा था। उसका शरीर हर रोज टूटता था, मगर वह अपने घर पैसे भेजने के लिए यह सब सह रहा था। वह अक्सर उस प्लेन वाली घटना को याद करता। सोचता, वह अमीर आदमी अब कैसा होगा? क्या वह जिंदा भी होगा? मगर फिर वह अपनी हकीकत की दुनिया में वापस आ जाता।
एक हफ्ता बीत गया। सिंघानिया की टीम को राहुल का कोई सुराग नहीं मिला। राजवीर सिंघानिया की बेचैनी बढ़ती जा रही थी। उन्हें लग रहा था कि शायद वे अपने जीवनदाता से कभी नहीं मिल पाएंगे। आखिरकार एक दिन एक छोटा सा सुराग मिला। एक लेबर कैंप के सुपरवाइज़र ने राहुल की तस्वीर पहचान ली। “हाँ, यह लड़का हमारे ही कैंप में रहता है, नया आया है लखनऊ से।”
अगले ही पल राजवीर सिंघानिया की चमचमाती रॉल्स रॉयस उस स्थूल भरे, गंदे लेबर कैंप के बाहर आकर रुकी। राजवीर सिंघानिया जो कभी ऐसे इलाकों की तरफ देखना भी पसंद नहीं करते थे, आज खुद चलकर वहाँ आए थे। जब मैनेजर ने राहुल को बताया कि कोई बड़ा साहब उससे मिलने आया है, तो राहुल डर गया। उसे लगा, शायद उसने कोई गलती कर दी है और अब उसे नौकरी से निकाल दिया जाएगा। वह डरता-डरता अपने पसीने और धूल से सने हुए कपड़ों में उस शानदार गाड़ी के पास पहुँचा।
गाड़ी का शीशा नीचे उतरा। अंदर जो शख्स बैठा था, उसे देखकर राहुल के होश उड़ गए। वह वही आदमी था जिसकी जान उसने प्लेन में बचाई थी। राजवीर सिंघानिया भी राहुल को देखकर हैरान रह गए। “यह लड़का इतना पढ़ा लिखा, इतना होशियार दिखने वाला यहाँ मजदूरी कर रहा है?” राजवीर गाड़ी से बाहर निकले। उन्होंने राहुल को ऊपर से नीचे तक देखा। उनकी आँखों में एक अजीब सी पीड़ा और गहरा सम्मान था। वे कुछ बोल पाते, उससे पहले ही उनकी आँखों से आँसू छलक पड़े। वे आगे बढ़े और राहुल को कसकर अपने गले से लगा लिया। “मैं तुम्हें कहाँ-कहाँ नहीं ढूंढता रहा बेटे!”
राहुल हक्का-बक्का सा खड़ा था। उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था। राजवीर सिंघानिया राहुल को अपने साथ अपने आलीशान होटल ले गए। उन्होंने उसे अपने पास बिठाया और उसकी पूरी कहानी सुनी। जब उन्होंने राहुल की काबिलियत, उसकी मजबूरी और उसके परिवार के बलिदान के बारे में सुना, तो उनका दिल भर आया। उन्हें एहसास हुआ कि यह लड़का सिर्फ जीवनदाता ही नहीं, बल्कि एक ऐसा हीरा है जिसे दुनिया ने धूल में फेंक दिया था।
उन्होंने उसी वक्त एक फैसला किया। उन्होंने राहुल से कहा, “बेटा, तुम्हारी जगह यहाँ इन रेगिस्तानों में पत्थर तोड़ने की नहीं है। तुम्हारी जगह मेरे साथ है इंडिया में।” उन्होंने तुरंत राहुल के एजेंट को फोन करके उसका कॉन्ट्रैक्ट कैंसिल करवाया, सारा हिसाब किताब किया और अगले ही दिन की फ्लाइट से राहुल को अपने साथ अपने प्राइवेट जेट में बिठाकर वापस भारत ले आए।
जब राहुल वापस अपने घर लखनऊ पहुँचा, तो उसके माँ-बाप उसे देखकर हैरान रह गए। और जब राजवीर सिंघानिया जैसी बड़ी हस्ती खुद उनके घर आई, तो उन्हें अपनी आँखों पर यकीन नहीं हुआ। राजवीर सिंघानिया ने हाथ जोड़कर राहुल के माता-पिता से कहा, “मैं आपकी अमानत आपको वापस लौटाने आया हूँ। आपके बेटे ने मुझे एक नई जिंदगी दी है। आज से यह सिर्फ आपका नहीं, मेरा भी बेटा है। और इसकी सारी जिम्मेदारियाँ आज से मेरी हैं।”
उन्होंने अशोक जी के इलाज के लिए देश के सबसे बड़े डॉक्टरों का इंतजाम कर दिया। उनका सारा कर्ज चुका दिया और राहुल के सामने एक ऐसा प्रस्ताव रखा जिसने राहुल के होश उड़ा दिए। “बेटा, मैं जानता हूँ कि तुम बहुत काबिल हो। मैं चाहता हूँ कि तुम मेरी कंपनी ज्वाइन करो। मैं तुम्हें कोई छोटी-मोटी नौकरी नहीं, बल्कि अपनी मुंबई की सबसे बड़ी ब्रांच का जनरल मैनेजर बनाना चाहता हूँ।”
राहुल ने कांपती आवाज में कहा, “लेकिन सर, मेरे पास तो कोई अनुभव नहीं है। मैं इतनी बड़ी जिम्मेदारी कैसे निभाऊँ?”
राजवीर बोले, “मुझे अनुभव नहीं, ईमानदारी और काबिलियत चाहिए। और वह तुम में कूट-कूट कर भरी है। जिस लड़के ने 300 फीट की ऊँचाई पर बिना किसी साधन के एक मरते हुए आदमी की जान बचाने का फैसला ले लिया, वह जिंदगी की किसी भी चुनौती का सामना कर सकता है। मुझे तुम पर पूरा भरोसा है।”
उस दिन उस छोटे से घर में खुशी के आँसुओं की बरसात हो रही थी। राहुल को लग रहा था जैसे वह कोई सपना देख रहा हो। राहुल मुंबई आ गया। उसने सिंघानिया ग्रुप ऑफ इंडस्ट्रीज के जनरल मैनेजर का पदभार संभाला। शुरुआत में कंपनी के बड़े-बड़े, विदेशी यूनिवर्सिटी से पढ़े अधिकारियों ने उसे स्वीकार नहीं किया। उन्होंने उसका मजाक उड़ाया। “एक मामूली लड़का, जिसे सिर्फ मालिक की जान बचाने की वजह से इतनी बड़ी कुर्सी मिल गई।”
मगर राहुल ने अपनी मेहनत, लगन और अनोखी सोच से जल्दी सबको गलत साबित कर दिया। उसने कंपनी में ऐसे बदलाव किए, ऐसे नए आइडियाज लागू किए जिनके बारे में किसी ने सोचा भी नहीं था। वह सिर्फ एयर कंडीशंड कैबिन में बैठकर फैसले नहीं लेता था, बल्कि फैक्ट्री के मजदूरों के साथ बैठकर उनकी समस्याएं सुनता था। उसने कुछ ही सालों में कंपनी का मुनाफा दोगुना कर दिया।
राजवीर सिंघानिया भी बदल चुके थे। वे अब सिर्फ एक बेरहम बिजनेसमैन नहीं, बल्कि एक संवेदनशील और नेकदिल इंसान बन गए थे। वे अपना ज्यादातर समय समाज सेवा में लगाने लगे। उन्होंने राहुल को सिर्फ अपना मैनेजर ही नहीं, बल्कि अपना बेटा, अपना वारिस मान लिया था। वे अक्सर लोगों से कहते थे, “मैंने अपनी जिंदगी में हजारों डील की हैं। लेकिन सबसे मुनाफे का सौदा उस दिन हुआ था जब मैंने अपनी जिंदगी के बदले में एक हीरा खरीदा था।”
राहुल अब अपने माता-पिता के साथ एक अच्छे घर में रहता था। उसके पिता का इलाज हो गया, माँ खुश थी। राहुल अपने गाँव के बच्चों को पढ़ाने के लिए एक फाउंडेशन भी चलाने लगा। उसने अपने जैसे गरीब और जरूरतमंद युवाओं के लिए स्कॉलरशिप शुरू की, ताकि किसी को मजबूरी में अपना देश न छोड़ना पड़े।
सीख और संदेश:
यह कहानी हमें सिखाती है कि नेकी का एक छोटा सा काम भी कभी व्यर्थ नहीं जाता। राहुल ने बिना किसी स्वार्थ के एक जान बचाई और उस एक नेकी ने उसकी पूरी जिंदगी बदल दी। यह कहानी हमें यह भी याद दिलाती है कि इंसान की असली पहचान उसकी डिग्री या नौकरी से नहीं, बल्कि उसके चरित्र और इंसानियत से होती है। राजवीर सिंघानिया ने राहुल की डिग्री नहीं, बल्कि उसकी सूझबूझ और नेकदिल को पहचाना और उसे वह मौका दिया जिसका वह हकदार था।
हर इंसान के जीवन में कठिनाइयाँ आती हैं, लेकिन हिम्मत, मेहनत और इंसानियत के बल पर हर अंधेरा दूर किया जा सकता है।
राहुल की कहानी इस बात का प्रमाण है कि कभी-कभी एक छोटा सा कदम, एक छोटी सी नेकी, आपकी पूरी तकदीर बदल सकती है।
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