बूढ़ी मां को अकेली ट्रैन में बिठाकर छोड़ कर भाग गया बेटा, अगले दिन जो हुआ जानकार उसके होश उड़ गए

“मां का प्यार और बेटे की भूल”

भाग 1: गांव की ममता और संघर्ष

कहानी शुरू होती है एक छोटे से गांव से, जहां दुर्गा देवी अपने इकलौते बेटे राकेश के साथ रहती थीं। दुर्गा देवी एक विधवा थीं, जिनके पति गांव के स्कूल में मास्टर थे। उनके पास धन-दौलत नहीं थी, लेकिन प्यार, सम्मान और रिश्तों की गर्माहट थी। पति के जाने के बाद दुर्गा देवी ने अपनी सारी जिंदगी अपने बेटे राकेश को समर्पित कर दी। सिलाई करके, पेंशन के पैसों से, उन्होंने राकेश को अच्छे स्कूल में पढ़ाया। राकेश शुरू से ही होशियार था, उसकी आंखों में बड़े-बड़े सपने थे। वह चाहता था कि एक दिन बड़ा आदमी बने और अपनी मां के सारे दुख दूर कर दे।

दुर्गा देवी ने बेटे के लिए हर कुर्बानी दी। जब राकेश को शहर में इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने का मौका मिला, तो उन्होंने अपने पति की आखिरी निशानी, पुश्तैनी घर भी बेच दिया। उन्हें लगा, घर तो फिर बन जाएगा, लेकिन बेटे का भविष्य नहीं बना तो जिंदगी भर पछताना पड़ेगा। राकेश को शहर भेजा, और खुद किराए के छोटे से कमरे में रहने लगीं।

भाग 2: राकेश की सफलता और नई दुनिया

राकेश ने मां की उम्मीदों को टूटने नहीं दिया। कड़ी मेहनत की, इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की और दिल्ली की एक बड़ी मल्टीनेशनल कंपनी में नौकरी मिल गई। दुर्गा देवी को लगा, अब उनके सारे दुख खत्म हो गए हैं। राकेश ने मां को दिल्ली बुला लिया। दुर्गा देवी बहुत खुश थीं, उन्होंने अपनी बहू के साथ रहने के सपने देखे।

दिल्ली में राकेश की मुलाकात प्रिया से हुई। प्रिया भी उसी कंपनी में काम करती थी, पढ़ी-लिखी, महत्वाकांक्षी और आधुनिक सोच वाली लड़की। उसे महंगे कपड़े, गाड़ियां, फाइव स्टार होटल पसंद थे। राकेश ने प्रिया से शादी की, दुर्गा देवी बहुत खुश थीं। उन्हें लगा, उनकी बहू अच्छी और सुलझी हुई है।

भाग 3: बदलती सोच और मां का अकेलापन

शादी के बाद राकेश और प्रिया ने शानदार जिंदगी शुरू की। बड़ा फ्लैट, महंगी गाड़ी, आलीशान पार्टियां। दुर्गा देवी को यह सब पसंद नहीं था। उन्हें साधारण जीवन, पूजा-पाठ, धार्मिक किताबें और गांव की बातें पसंद थीं। प्रिया को यह सब बिल्कुल पसंद नहीं था। उसे लगता था कि दुर्गा देवी उनके मॉडर्न लाइफस्टाइल में रुकावट हैं।

धीरे-धीरे प्रिया ने राकेश के मन में मां के प्रति जहर घोलना शुरू कर दिया। “राकेश, तुम्हारी मां के पुराने विचार और स्वास्थ्य समस्याएं हमारी आजादी छीन रही हैं। हम खुलकर जी नहीं पा रहे।” राकेश को भी लगने लगा कि मां अब बोझ हैं।

एक रात प्रिया ने सुझाव दिया, “क्यों न मां को उनके गांव वापस भेज दें? वहां उनके दोस्त हैं, उनका मन लगेगा, और हम अपनी जिंदगी खुलकर जी सकेंगे।” राकेश को यह बात पसंद आई। अगले दिन उसने मां को मनाना शुरू किया, “गांव में तुम्हारा मन लगेगा, मौसम अच्छा है, दोस्त मिल जाएंगे।”

दुर्गा देवी बेटे की चाल नहीं समझ पाईं, खुशी-खुशी गांव जाने को तैयार हो गईं। उन्हें लगा, बेटा उनकी भलाई के लिए सोच रहा है।

भाग 4: ट्रेन का सफर और धोखा

राकेश मां को दिल्ली रेलवे स्टेशन लेकर गया। उनके लिए टिकट खरीदा, ट्रेन में बिठाया और वादा किया कि हर महीने मिलने आएगा। दुर्गा देवी खुशी के आंसुओं के साथ बेटे को दुआएं देती रहीं। ट्रेन चलने लगी, राकेश ने प्रिया को फोन किया, “मां चली गई, अब कोई रुकावट नहीं।” प्रिया खुश हुई।

ट्रेन में दुर्गा देवी खिड़की से बाहर देख रही थीं, गांव की यादें ताजा थीं। तभी टीटी आया, टिकट चेक किया। टिकट राकेश के नाम पर था, वह गलत ट्रेन में थीं। टीटी ने उन्हें अगले स्टेशन पर उतार दिया। रात का समय था, स्टेशन सुनसान था। दुर्गा देवी बेंच पर बैठकर रोने लगीं, पति की याद आई, भूख लगी, लेकिन खाने को कुछ नहीं था।

भाग 5: आनंद की मदद और नया जीवन

सुबह हुई, स्टेशन पर हलचल बढ़ी। उसी समय एक अमीर, सुलझा हुआ आदमी आनंद स्टेशन पर उतरा। उसने दुर्गा देवी की आंखों में बेबसी देखी, पास जाकर पूछा, “माता जी, आप यहां अकेली क्यों?” दुर्गा देवी ने पूरी कहानी सुनाई—कैसे बेटे ने धोखा दिया। आनंद को बहुत दुख हुआ।

आनंद ने दुर्गा देवी को अपने घर ले गया। उसका घर बहुत बड़ा था, परिवार अच्छा था। आनंद की पत्नी और बच्चे दुर्गा देवी का बहुत ख्याल रखने लगे। दुर्गा देवी को लगा जैसे वह फिर से अपने परिवार में लौट आई हैं। आनंद उन्हें अपनी मां जैसा सम्मान देने लगा।

कुछ दिन बाद आनंद ने दुर्गा देवी से पूछा, “क्या मैं आपके बेटे से मिल सकता हूं?” दुर्गा देवी ने मना किया, लेकिन आनंद ने पता लगा लिया कि राकेश उसकी ही कंपनी में काम करता है। आनंद कंपनी का मालिक था। उसे यह जानकर दुख हुआ कि उसकी कंपनी का कर्मचारी अपनी मां को बेसहारा छोड़ गया।

भाग 6: बेटे का पछतावा और मां की ममता

आनंद ने राकेश को ऑफिस बुलाया। राकेश घबराया हुआ था। आनंद बोले, “तुम्हारी मां मेरे घर पर हैं। क्या तुम्हें नहीं लगता कि तुम्हें अपनी मां के पास जाना चाहिए?” राकेश के होश उड़ गए। आनंद ने कहा, “जिस मां ने तुम्हें जन्म दिया, पाला, पढ़ाया, क्या तुम्हें उसकी सेवा नहीं करनी चाहिए?”

राकेश को अपनी गलती का एहसास हुआ। वह फूट-फूटकर रोने लगा। आनंद ने एक शर्त रखी—“अगर तुम्हारी मां तुम्हें माफ कर देती हैं, तो नौकरी पर वापस आ सकते हो। अगर नहीं, तो कंपनी से बाहर जाना पड़ेगा।”

राकेश भागा-भागा आनंद के घर गया। मां के पैरों पर गिरकर माफी मांगी, “मां, मुझे माफ कर दो। बहुत बड़ी गलती हो गई।” दुर्गा देवी का दिल पिघल गया। उन्होंने बेटे को गले लगा लिया, रोने लगीं। राकेश ने वादा किया कि अब कभी उन्हें छोड़कर नहीं जाएगा, सेवा करेगा, खुश रखेगा।

भाग 7: परिवार की वापसी और नई शुरुआत

अगले दिन राकेश आनंद के पास गया, “सर, मां ने मुझे माफ कर दिया।” आनंद मुस्कुराए, “अब नौकरी पर वापस आ जाओ।” राकेश और प्रिया ने मां की सेवा शुरू की। प्रिया को भी अपनी गलती का एहसास हुआ, उसने भी माफी मांगी। दुर्गा देवी ने बहू को भी माफ कर दिया।

अब सब मिलकर खुशहाल जिंदगी जीने लगे। मां का प्यार, बेटे की सेवा, बहू की समझदारी—परिवार फिर से एक हो गया।

भाग 8: कहानी की सीख

यह कहानी हमें सिखाती है कि माता-पिता हमारे लिए सबसे अनमोल होते हैं। हमें उनकी सेवा करनी चाहिए, उन्हें खुश रखना चाहिए, कभी बेसहारा नहीं छोड़ना चाहिए। दौलत, चमक-धमक, आधुनिकता—सब बाद में हैं, सबसे पहले है मां-बाप का प्यार और सम्मान।

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धन्यवाद!