लड़के ने मदद के लिए लड़की का हाथ थामा, लड़की ने गलत समझा लिया.. फिर जो हुआ

सच्ची मुलाकात: आदित्य और राधा की कहानी
शुरुआत
जिंदगी में कुछ मुलाकातें ऐसी होती हैं जो बिना आहट के आती हैं, मगर अपना निशान गहरा छोड़ जाती हैं।
आदित्य दिल्ली में एक सॉफ्टवेयर कंपनी का सीनियर मैनेजर था, जो अपनी बहन की शादी में शामिल होने मायापुर आया था। तीन दिन की रस्में निपटा कर वह वापस लौटने वाला था, लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था।
शादी खत्म होने के बाद आदित्य ने सोचा कि घर जाने से पहले मायापुर के मशहूर मंदिर के दर्शन कर लेता हूं।
सुबह जल्दी निकल पड़ा। मंदिर की भीड़, धक्कामुक्की, घंटियों की आवाज और भक्तों की आस्था—सब अलग ही अनुभव था।
प्रसाद लेकर जैसे ही बाहर निकला, उसका फोन गिर गया। स्क्रीन चकनाचूर हो गई।
“अरे यार!”—वो बुदबुदाया।
पास खड़ी एक लड़की ने मुड़कर देखा। चेहरे पर तंज भरी मुस्कान लिए बोली—”भगवान के घर से निकले और पहला शब्द ‘यार’? वाह!”
आदित्य थोड़ा हैरान हुआ। लड़की खूबसूरत थी, साड़ी में लिपटी, माथे पर बड़ी सी बिंदी, पर आंखों में अजीब सा घमंड।
“माफ़ी चाहता हूं, लेकिन यह तो…”
“कुछ नहीं समझना। आजकल के लड़के बस दिखावे के लिए मंदिर आते हैं। असली आस्था कहां है?”
वो बोली और चल दी।
आदित्य सन्न रह गया। इतनी बदतमीजी! मगर कुछ कह नहीं सका।
स्टेशन पर मुलाकात
शाम को जब वह रेलवे स्टेशन पहुंचा, टिकट काउंटर पर भारी भीड़ थी। उसकी ट्रेन दो घंटे में थी और टिकट अभी तक नहीं मिला था। परेशान होकर वह वेटिंग रूम में बैठ गया।
तभी उसने देखा वही लड़की!
मगर इस बार जींस और टॉप में, सिर पर कैप लगाए, एक बड़े से बैग के साथ।
वह भी उसे देख चुकी थी और नजरें फेर लीं।
आदित्य ने सोचा—चलो अच्छा है, दूर ही रहे।
तभी अनाउंसमेंट हुई—दिल्ली जाने वाली सभी ट्रेनें अगले आठ घंटे के लिए रद्द कर दी गई हैं। तकनीकी खराबी के कारण।
आदित्य का दिमाग चकरा गया। अब क्या करें? होटल इतनी रात को?
उसने चारों तरफ देखा। बहुत से यात्री वही फर्श पर बैठने की तैयारी कर रहे थे।
तभी उसकी नजर फिर उस लड़की पर पड़ी। वो अपने बैग पर सिर रखकर लेटने की कोशिश कर रही थी, पर बार-बार उठ जाती थी।
आदित्य पास गया और बोला—”सुनिए, क्या है?”
वो झल्लाई हुई बोली—”मैंने पास में एक होटल देखा था। शायद वहां रूम मिल जाए। अकेले यहां रात बिताना ठीक नहीं।”
“मुझे आपकी सलाह नहीं चाहिए। मैं खुद संभाल लूंगी।” उसने काटते हुए कहा।
आदित्य ने कंधे उचका दिए और वापस अपनी जगह पर आ गया।
पर मन में कहीं बेचैनी थी।
रात का इंतजार
दो घंटे बाद, जब आधी रात हो चुकी थी, उसने देखा—वो लड़की अभी भी जाग रही थी।
बार-बार अपने फोन की स्क्रीन देख रही थी, फिर इधर-उधर घबराई नजरों से देखती।
आदित्य उठा और फिर पास गया—”देखिए, मैं जानता हूं आपको मेरी बात पसंद नहीं, पर यहां सुरक्षित नहीं है। चलिए, मैं आपको होटल तक छोड़ देता हूं।”
लड़की ने उसे घोरा। फिर धीरे से बोली—”तुम्हें क्या लगता है? मैं तुम्हारे साथ चली जाऊंगी? मुझे नहीं पता तुम कौन हो।”
“मेरा नाम आदित्य है, दिल्ली से हूं। यहां अपनी बहन की शादी में आया था,” उसने शांति से कहा।
“मैं सिर्फ मदद करना चाह रहा हूं, कोई गलत इरादा नहीं है।”
वो चुप रही। फिर झिझकते हुए बोली—”राधा, मेरा नाम राधा है। चलिए।”
आदित्य ने हाथ बढ़ाया बैग उठाने के लिए।
राधा ने अपना बैग खुद उठाया और बोली—”ठीक है, चलते हैं। पर यह मत सोचना कि मैं कमजोर हूं। बस हालात खराब हैं।”
होटल की रात
दोनों बाहर निकले। बारिश हो रही थी, सड़कें सूनी थीं। किसी तरह एक ऑटो मिला, होटल तक पहुंचे।
रिसेप्शनिस्ट ने कहा—”सॉरी सर, सिर्फ एक ही रूम बचा है।”
राधा तुरंत पलटी—”देखा, मैंने कहा था ना!”
“अरे रुकिए,” आदित्य ने रिसेप्शनिस्ट से कहा—”वो रूम इन्हें दे दीजिए, मैं लॉबी में रुक जाऊंगा।”
राधा आवाज रह गई। उसके चेहरे पर पहली बार कोमलता आई।
“तुम… तुम लॉबी में क्यों?” वो धीरे से बोली।
“क्योंकि आप लड़की हैं और मुझे नींद भी कम आती है।” आदित्य मुस्कुराया।
राधा ने कुछ नहीं कहा। चाबी ली और अपने कमरे में चली गई।
पर जाते-जाते एक बार पीछे मुड़कर देखा।
आदित्य लॉबी की कुर्सी पर बैठने लगा था।
सुबह की मुलाकात
सुबह जब राधा नीचे आई, आदित्य अभी भी वही था।
आंखें लाल, पर चेहरे पर वही मुस्कान।
“तुम… तुम रात भर यहीं रहे?” राधा ने हैरानी से पूछा।
“हां, कोई बात नहीं। आप आराम से सोईं।”
राधा का गला भर आया। उसने अपनी जेब से कुछ पैसे निकाले—”यह लो, होटल के पैसे।”
“नहीं, रहने दीजिए।” आदित्य ने मना कर दिया।
“क्यों? मुझे कोई एहसान नहीं चाहिए।”
राधा की आवाज में फिर वही सख्ती आ गई।
“यह एहसान नहीं है, इंसानियत है।”
आदित्य ने कहा और चल दिया।
राधा वहीं खड़ी रह गई और उस पल उसे पहली बार लगा—शायद उसने किसी को गलत समझा था।
विदाई
स्टेशन पर ट्रेनों की घोषणा फिर शुरू हो गई थी।
राधा और आदित्य अलग-अलग प्लेटफार्म पर खड़े थे।
राधा की ट्रेन कोलकाता जा रही थी और आदित्य की दिल्ली।
दोनों ने एक-दूसरे को देखा नहीं, पर दोनों के मन में एक अजीब सा खालीपन था।
दिल्ली और कोलकाता की दूरियां
आदित्य दिल्ली पहुंचा तो घर वालों ने खूब सवाल किए।
इतनी देर कैसे हो गई? फोन भी टूट गया। मां परेशान थी।
“बस मां, कुछ नहीं। ट्रेन लेट थी।” उसने बात टाल दी।
पर रात को जब बिस्तर पर लेटा तो राधा का चेहरा सामने आ गया।
वो सख्त लहजा, वो भरी आंखें जब उसने होटल के पैसे देने चाहे थे।
क्यों इतनी कठोर थी वो? क्या तकलीफ थी उसे?
दूसरी तरफ कोलकाता में राधा अपने छोटे से फ्लैट में अकेली बैठी थी।
उसके मन में पहली बार किसी के लिए शुक्रगुजारी का भाव था।
पर साथ ही डर भी—”नहीं, मैं किसी पर निर्भर नहीं हो सकती। मुझे खुद मजबूत रहना होगा।” उसने खुद से कहा।
बढ़ती बेचैनी
पांच दिन बीत गए।
आदित्य ऑफिस में काम कर रहा था, पर मन कहीं और भटकता रहता।
दोस्त ने पूछा—”यार, तू आजकल कहां खोया रहता है?”
“कुछ नहीं भाई।” आदित्य ने टाल दिया।
शाम को घर लौटा तो याद आया—राधा ने होटल में अपना नंबर नहीं दिया था।
कोई संपर्क नहीं था। एक अजीब सी बेचैनी महसूस हुई।
उधर कोलकाता में राधा अपने ऑफिस में थी।
वो एक प्राइवेट फर्म में अकाउंटेंट की नौकरी करती थी।
काम का दबाव, अकेलेपन का बोझ और ऊपर से बॉस की सख्ती—सब कुछ मिलकर उसे तोड़ रहा था।
“राधा, यह फाइल गलत है। तुम्हारा ध्यान कहां रहता है?”
बॉस ने डांटा।
राधा चुपचाप सुनती रही।
उसकी आदत थी सब कुछ अंदर दबा लेने की।
बचपन से ही सामाजिक दबाव, लड़कियों को कमजोर समझे जाने वाले समाज में रहने के कारण उसने सीखा था कि भावनाएं दिखाना कमजोरी है।
इसलिए वह हमेशा कठोर बनी रहती थी।
शाम को जब वह घर लौटी तो उसका सिर दर्द से फट रहा था।
फ्रिज से पानी की बोतल निकाली और सोफे पर बैठ गई।
तभी उसे आदित्य की याद आई—”काश मैंने उससे नंबर मांग लिया होता।”
मन में ख्याल आया और फिर झिड़क दी खुद को—”क्या बेकार की बातें सोच रही हूं।”
फिर से मिलना
दो हफ्ते और बीते।
आदित्य को अचानक कंपनी की तरफ से कोलकाता जाने का मौका मिला—एक क्लाइंट मीटिंग थी।
जब उसे यह खबर मिली तो दिल धक से रह गया।
कोलकाता… वही तो राधा रहती है।
पर फिर सोचा—इतने बड़े शहर में उससे मिलना कैसे संभव है? कोई पता नहीं, कोई नंबर नहीं।
कोलकाता पहुंचकर आदित्य ने मीटिंग निपटाई।
शाम को होटल में बैठा था तो मन किया कि बाहर घूमा आए।
पार्क स्ट्रीट निकला। चहल-पहल थी, रोशनी थी, पर मन में वही सूनापन।
एक कैफे के बाहर से गुजर रहा था।
तभी अंदर एक लड़की दिखी।
दिल की धड़कन तेज हो गई—राधा! वही साड़ी, वही बाल।
वह किसी से बात कर रही थी।
आदित्य रुक गया।
अंदर जाओ या नहीं?
वो सोच ही रहा था कि राधा ने बाहर देखा और उसकी नजर आदित्य पर पड़ी।
दोनों की आंखें मिलीं।
राधा का चेहरा सफेद पड़ गया।
वो तुरंत उठी और बाहर आई।
“तुम… तुम यहां?” उसकी आवाज में हैरानी थी।
“हां, ऑफिस का काम था,” आदित्य ने कहा।
“तुम कैसे हो?”
राधा ने नजरें झुका ली—”मैं ठीक हूं।”
“झूठ मत बोलो। तुम्हारी आंखें बता रही हैं कि तुम ठीक नहीं हो।”
आदित्य ने धीरे से कहा।
राधा की आंखों में आंसू आ गए। उसने मुंह फेर लिया।
“राधा, प्लीज मुझे बताओ, क्या तकलीफ है?”
राधा ने एक गहरी सांस ली—”आदित्य, तुम नहीं समझोगे। मेरी जिंदगी बहुत उलझी हुई है। मैं ऐसे ही हालातों में पली-बढ़ी हूं। कभी किसी का साया नहीं मिला। इसलिए मैंने सीखा कि खुद पर निर्भर रहूं, किसी से उम्मीद नहीं रखूं।”
“तो इसका मतलब यह नहीं कि तुम सबको दूर धकेलती रहो।”
“मैं दूर नहीं धकेलती, मैं… सिर्फ डरती हूं। अगर किसी के करीब गई और फिर वह छोड़ गया तो?”
राधा की आवाज कांप गई।
आदित्य ने एक कदम आगे बढ़ाया—”मैं वादा नहीं कर सकता कि जिंदगी आसान होगी, पर इतना वादा करता हूं कि मैं तुम्हें अकेला नहीं छोड़ूंगा।”
राधा ने उसकी आंखों में देखा। उन आंखों में सच्चाई थी, कोई दिखावा नहीं।
“मुझे… मुझे वक्त चाहिए,” वो बोली।
“ले लो, मैं यहीं हूं,” आदित्य मुस्कुराया।
राधा ने अपना नंबर दिया और चली गई।
आदित्य वहीं खड़ा रहा। उसे लगा जैसे जिंदगी में एक नया दरवाजा खुल गया हो।
नई शुरुआत
अगले दिन आदित्य को दिल्ली लौटना था।
पर जाने से पहले उसने राधा को मैसेज किया—”मैं जा रहा हूं, पर तुमसे बात होती रहेगी। टेक केयर।”
राधा ने जवाब दिया—”थैंक यू।”
दिल्ली लौटकर आदित्य रोज राधा से बात करने लगा—कभी फोन पर, कभी मैसेज पर।
धीरे-धीरे राधा का कठोर मुखौटा पिघलने लगा।
वो हंसने लगी, अपनी छोटी-छोटी बातें शेयर करने लगी।
एक रात आदित्य ने पूछा—”राधा, क्या तुम कभी मुझसे मिलोगी फिर?”
राधा चुप रही। फिर बोली—”शायद जब दिल तैयार हो जाए।”
“मैं इंतजार करूंगा,” आदित्य ने कहा।
और इंतजार शुरू हो गया।
एक ऐसा इंतजार जो दर्द भी था और उम्मीद भी।
दो महीने बीत चुके थे।
आदित्य और राधा की बातचीत अब रोज की आदत बन गई थी।
सुबह का पहला मैसेज और रात का आखिरी फोन।
धीरे-धीरे राधा ने अपने दिल की दीवारें गिरानी शुरू कर दी थीं।
संकट का समय
एक शाम राधा ने फोन किया। आवाज में घबराहट थी।
“आदित्य, मुझे तुमसे कुछ कहना है।”
“हां, बोलो। क्या हुआ?”
“मैं… मैं कल अस्पताल गई थी। कुछ दिनों से तबीयत ठीक नहीं थी। डॉक्टर ने कुछ टेस्ट करवाए हैं।”
राधा की आवाज कांप रही थी।
आदित्य का दिल बैठ गया—”क्या हुआ है? सब ठीक तो है ना?”
“पता नहीं। रिपोर्ट अभी नहीं आई। पर मुझे डर लग रहा है।”
“राधा, घबराओ मत। कुछ नहीं होगा। मैं हूं ना।” आदित्य ने हिम्मत बंधाई।
तीन दिन बाद रिपोर्ट आई।
राधा ने रोते हुए फोन किया—”आदित्य, मुझे ब्लड कैंसर है। शुरुआती स्टेज है, पर…”
आदित्य का हाथ कांप गया।
“राधा, रुको, मैं आ रहा हूं। अभी आ रहा हूं।”
उसने ऑफिस से छुट्टी ली और उसी रात कोलकाता की फ्लाइट पकड़ ली।
साथ की ताकत
सुबह जब राधा के फ्लैट पहुंचा, तो दरवाजा खुला मिला।
अंदर राधा फर्श पर बैठी रो रही थी।
आदित्य ने उसे गले लगा लिया—”राधा, सब ठीक हो जाएगा। मैं हूं ना तुम्हारे साथ।”
राधा ने उसकी शर्ट को कसकर पकड़ लिया—”मैं नहीं चाहती थी कि तुम्हें परेशानी हो। इसलिए मैं दूर रहती थी। मुझे पता था मेरी किस्मत में सिर्फ दुख लिखे हैं।”
“बकवास मत करो। हम मिलकर इससे लड़ेंगे।”
आदित्य ने उसके आंसू पोंछे।
अगले दिन से आदित्य ने राधा का पूरा ख्याल रखना शुरू कर दिया।
डॉक्टर से मिला, इलाज की पूरी जानकारी ली।
उसने अपनी नौकरी से लंबी छुट्टी ले ली और कोलकाता में ही रुक गया।
राधा की कीमोथेरेपी शुरू हुई। बाल झड़ने लगे।
वो आईने में खुद को देखकर रोने लगती—”मैं कितनी बदसूरत लग रही हूं।”
आदित्य ने उसका चेहरा अपने हाथों में लिया—”तुम मेरे लिए सबसे खूबसूरत हो, हमेशा रहोगी।”
एक दिन राधा ने कहा—”आदित्य, तुम क्यों मेरे लिए इतना कर रहे हो? तुम्हारी अपनी जिंदगी है, अपना करियर है।”
“क्योंकि तुम मेरी जिंदगी हो। बाकी सब बाद में देख लूंगा।”
आदित्य ने मुस्कुराते हुए कहा।
राधा की आंखें भर आईं। पहली बार उसे लगा कि प्यार सिर्फ कहानियों में नहीं, हकीकत में भी होता है।
पुनर्जीवन
चार महीने का इलाज चला।
आदित्य ने अपनी सारी जमा पूंजी राधा के इलाज में लगा दी।
उसके मां-बाप को भी सच बता दिया।
“बेटा, उसे घर ले आओ। हम सब मिलकर उसकी देखभाल करेंगे,” मां ने कहा।
राधा को जब यह पता चला तो वह फूट-फूट कर रोने लगी—”मैंने जिंदगी भर किसी को अपना नहीं माना। आज पता चला कि परिवार क्या होता है।”
धीरे-धीरे राधा ठीक होने लगी।
डॉक्टर ने बताया कि कैंसर काबू में आ गया है। अब सिर्फ नियमित जांच करवानी होगी।
राधा ने आदित्य से कहा—”तुमने मेरी जान बचाई। अब मैं तुम्हें कभी नहीं छोड़ूंगी।”
आदित्य ने उसका हाथ पकड़ा—”और मैं तुम्हें कभी अकेला नहीं छोड़ूंगा।”
छह महीने बाद दोनों ने शादी कर ली।
छोटी सी शादी, पर दिल से भरी हुई।
राधा अब आदित्य के परिवार का हिस्सा बन चुकी थी।
अंतिम शब्द
एक शाम जब दोनों छत पर बैठे थे, राधा ने कहा—”आदित्य, मुझे माफ करना। मैंने शुरुआत में तुम्हारे साथ बहुत बुरा व्यवहार किया था।”
“राधा, वो तुम्हारे दर्द का नतीजा था। मैं समझता हूं। तुमने खुद को बचाने के लिए कठोर बनना सीखा था।”
राधा ने आदित्य के कंधे पर सिर रख दिया—”तुमने मुझे जीना सिखाया, प्यार करना सिखाया, भरोसा करना सिखाया और तुमने मुझे सच्चे प्यार का मतलब समझाया।”
आदित्य ने उसके बालों में हाथ फेरा।
एक दिन राधा ने पूछा—”क्या तुम्हें कभी पछतावा हुआ? इतना कुछ खोने के बाद?”
आदित्य मुस्कुराया—”पछतावा? मैंने तो सब कुछ पाया। राधा, तुम्हें पाया, प्यार पाया, जिंदगी का असली मतलब पाया।”
राधा ने उसे गले लगा लिया।
दोनों की आंखों में खुशी के आंसू थे।
सीख
सच्ची मोहब्बत हर मुश्किल का सामना कर सकती है।
कभी-कभी अनजान मुलाकातें जिंदगी बदल देती हैं।
कुछ लोग उतने कठोर नहीं होते, जितना वे दिखाते हैं।
उसका कारण है उनके आसपास के लोग, समाज का दबाव, जो उन्हें कमजोर समझता है, अकेला समझता है।
बस इसी कारण इंसान ही इंसान से दूरी बनाए रखते हैं, ताकि कोई उन्हें जज ना कर सके, कोई उनका शोषण ना कर सके।
जिंदगी जीना कितना आसान हो जाता, अगर हमारे आसपास के लोग हमें हमारी शारीरिक बनावट और हालात से नहीं, बल्कि दिल से जज करते।
आपको क्या लगता है, आदित्य का निर्णय सही था या गलत?
कमेंट करके जरूर बताएं।
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धन्यवाद।
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