महिला ने अनजान घायल बुजुर्ग की मदद की तो नौकरी खो दी… अगले दिन जो मिला उसने
नेहा की कहानी: इंसानियत का इनाम
शाम के लगभग 7:00 बज रहे थे। मुंबई की सड़कों पर ट्रैफिक का शोर, गाड़ियों की रोशनी और बारिश की हल्की बूंदें हवा में घुली हुई थीं। ऑफिस से निकलते हुए नेहा जल्दी में थी। उसे घर पहुंचकर अपनी बेटी आराध्या के स्कूल प्रोजेक्ट में मदद करनी थी। हाथ में छाता, कंधे पर बैग और चेहरे पर थकान—लेकिन उस थकान में भी एक सुकून था। दिन भर की मेहनत की कीमत मिलती थी महीने की सैलरी में। नेहा एक प्राइवेट फाइनेंस कंपनी में कस्टमर रिलेशन एग्जीक्यूटिव थी। काम का दबाव बहुत था, लेकिन वही नौकरी उसके और उसकी 10 साल की बेटी के लिए जिंदगी की डोर थी।
उस दिन बारिश अचानक तेज हो गई। लोग बस शेल्टर के नीचे भागकर खड़े हो गए। नेहा ने अपने बैग से फोन निकाला कि कैब बुला ले। तभी सड़क किनारे कुछ उसकी नजर में आया। एक बुजुर्ग आदमी सड़क के किनारे गिरा पड़ा था। सिर से खून बह रहा था। कपड़े भीगे हुए थे और पास से गाड़ियां निकल रही थीं लेकिन कोई रुक नहीं रहा था। नेहा ने पल भर सोचा—रुकूं या निकल जाऊं? ऑफिस में पहले ही देर हो गई थी और कल फाइनल रिपोर्ट मीटिंग थी। लेकिन अगले ही पल उसका दिल बोल उठा—अगर मेरे पापा होते वहां तो क्या मैं ऐसे ही गुजर जाती? वो भागकर बुजुर्ग के पास पहुंची।
“बाबा सुनिए, अब ठीक है,” नेहा बोली। बुजुर्ग की आवाज बहुत धीमी थी—”बेटी, सांस नहीं ले पा रहा…” नेहा ने तुरंत सड़क पर हाथ हिलाकर एक ऑटो रोका। लेकिन ड्राइवर झिझका, “मैडम, यह मर गया तो पुलिस चक्कर होगा, मुझे मत फंसाइए।” नेहा ने अपने बैग से नोट निकालकर कहा, “बस अस्पताल तक चलिए, बाकी जिम्मेदारी मेरी।”
ऑटो जैसे-तैसे चला। रास्ते में नेहा ने बुजुर्ग का सिर अपनी गोद में रखा हुआ था। बारिश और ट्रैफिक दोनों बढ़ते जा रहे थे। लेकिन उसके चेहरे पर सिर्फ एक बात थी—इसे बचाना है। वह सिटी जनरल हॉस्पिटल पहुंची। रिसेप्शन पर बोली, “इस बुजुर्ग का एक्सीडेंट हुआ है, तुरंत इलाज कीजिए।” क्लर्क ने बिना देखे कहा, “पहले एडमिशन फॉर्म और एडवांस पेमेंट।” नेहा घबरा गई। “मेरे पास अभी कैश नहीं है, कार्ड है। आप इलाज शुरू कीजिए, मैं भर दूंगी।” लेकिन कोई सुनने को तैयार नहीं। गुस्से और डर के बीच नेहा ने अपना कार्ड टेबल पर पटक दिया—”कट लीजिए जितना लेना है, पर इनका इलाज शुरू करिए।”
डॉक्टर दौड़ते हुए आए, बुजुर्ग को स्ट्रेचर पर ले जाया गया। नेहा वहीं बैठ गई—भीगी हुई, थकी हुई, पर राहत की सांस के साथ। करीब आधे घंटे बाद डॉक्टर बाहर आए। “टाइम पर लाई वरना जान नहीं बचती। अब कौन है इनके?” नेहा ने सिर हिलाया, “कोई नहीं, बस रास्ते में दिखे थे।” डॉक्टर मुस्कुराए, “फिर भी आपने जो किया, बहुत कम लोग करते हैं।” नेहा ने बस इतना कहा, “हर किसी में थोड़ी इंसानियत बची रहनी चाहिए।”
रात के 9:00 बज चुके थे। फोन में 10 मिस्ड कॉल्स। ऑफिस की मैनेजर श्वेता का नंबर था। नेहा ने फोन उठाया—”मैम, सॉरी, एक इमरजेंसी थी।” श्वेता की आवाज तेज थी—”नेहा, तुम्हें पता है आज क्लोजिंग रिपोर्ट थी, क्लाइंट वेट कर रहा था और तुम बिना बताए निकल गई। कंपनी में यह बर्दाश्त नहीं होता। कल एचआर से बात करना।” नेहा कुछ कह नहीं पाई। वह चुपचाप बेंच पर बैठी रही। बारिश अब रुक चुकी थी, लेकिन उसकी आंखों में आंसू नहीं, बस एक गहरी चुप्पी थी। क्या सही किया या गलती?
अगले दिन सुबह जब वह ऑफिस पहुंची तो एचआर ने ठंडे स्वर में कहा, “नेहा, तुमने कंपनी पॉलिसी तोड़ी है। बिना इजाजत ऑफिस छोड़ना डिसिप्लिनरी एक्शन में आता है। तुम्हें टर्मिनेट किया जा रहा है।” नेहा के हाथ कांप गए। उसने बस इतना कहा, “सर, मैंने किसी की जान बचाई थी।” एचआर ने सिर उठाए बिना जवाब दिया—”हम यहां जान नहीं, टारगेट बचाते हैं।” नेहा के पास शब्द नहीं थे। उसने चुपचाप अपना आईडी कार्ड टेबल पर रखा और निकल गई। बाहर आकर उसने आसमान की ओर देखा। धूप हल्की थी, लेकिन दिल में अंधेरा। उसने अपने आप से कहा, “शायद इंसानियत की कोई वैल्यू अब नहीं बची।”
वो बस स्टॉप की तरफ चली ही थी कि उसका फोन बजा। अनजान नंबर था। वह झिझकी, फिर उठाया—”हेलो?”
उधर से आवाज आई—”क्या आप नेहा बोल रही हैं? मैं राजवीर मेहता बोल रहा हूं। कल रात आपने एक बुजुर्ग की जान बचाई थी ना?” नेहा का दिल धड़क उठा—”जी, पर आप कौन?”
आवाज मुस्कुराई—”वो बुजुर्ग मेरे पिता हैं।” फोन पर कुछ क्षण की खामोशी थी। नेहा के मन में सवालों की बाढ़ थी। “आप कह रहे हैं कि वह आपके पिता हैं, लेकिन उनका नाम क्या है?”
शांत, विनम्र आवाज आई—”डॉ दयानंद मेहता। कल आप उन्हें सिटी जनरल हॉस्पिटल लेकर गई थीं। अगर आप ना होतीं तो वह अब जिंदा नहीं होते।”
नेहा चुप रह गई। वह वही बुजुर्ग थे जिनका सिर उसकी गोद में था, जिनका खून उसके हाथों पर लगा था। राजवीर ने आगे कहा, “मैं रात भर हॉस्पिटल में था। डॉक्टरों ने बताया कि कोई अजनबी महिला उन्हें अस्पताल छोड़कर चली गई। सीसीटीवी फुटेज से हमने आपका चेहरा देखा। आपका नंबर हमें हॉस्पिटल की कार्ड रसीद से मिला।”
नेहा का गला सूख गया। उसने धीमे स्वर में कहा, “मुझे नहीं पता था कि वह कौन हैं। बस लगा कि उन्हें छोड़ना गलत होगा।”
राजवीर की आवाज गहरी हो गई—”आपने जो किया वो सिर्फ इंसानियत नहीं, एक चमत्कार था। पापा की सर्जरी सफल रही। उन्होंने होश में आते ही सिर्फ एक ही बात कही—जिस बेटी ने मुझे सड़क से उठाया उसे एक बार मिलवाओ।”
नेहा के होठ कांप गए, उसकी आंखों में आंसू भर आए। यह वही आंसू थे जो कल रात उसके अपमान पर नहीं निकले थे, लेकिन आज किसी अजनबी की शुक्रगुजारी पर छलक पड़े।
राजवीर ने कहा, “क्या आप आज दोपहर हॉस्पिटल आ सकती हैं? पापा आपसे मिलना चाहते हैं।”
नेहा ने तुरंत मना नहीं किया, बस बोली, “ठीक है, मैं आ जाऊंगी।” फोन कट गया। वह कुछ देर उसी जगह खड़ी रही, फिर धीरे-धीरे स्टेशन की बेंच पर बैठ गई। कल तक जिनके लिए नौकरी सब कुछ थी, आज लगता है, शायद कुछ और बड़ा मतलब था उस पल का।
दोपहर होते-होते वह हॉस्पिटल पहुंची। रिसेप्शन पर उसका नाम लिखा हुआ था—”एक्सपेक्टेड गेस्ट मिस नेहा”। स्टाफ ने आदरपूर्वक उसे वार्ड तक पहुंचाया। कमरे के अंदर वही बुजुर्ग लेटे हुए थे, चेहरा अब थोड़ा स्थिर, मुस्कुराते हुए। पास में खड़ा था एक लंबा, सुथरा आदमी—राजवीर मेहता, लगभग 35 साल का, सूट में शांत और गंभीर।
जैसे ही नेहा ने कमरे में कदम रखा, डॉ दयानंद ने आंखें खोली। उनके चेहरे पर ऐसी खुशी थी मानो कोई खोया हुआ अपना मिल गया हो। “आओ बेटी,” उन्होंने कमजोर हाथ उठाया। नेहा झट से पास गई, हाथ थाम लिया—”कैसी तबीयत है आपकी?”
डॉ दयानंद बोले, “अब तो अच्छी है, क्योंकि वह बेटी सामने है जिसकी वजह से सांसे चल रही हैं। तुमने मुझे नया जीवन दिया है।” नेहा कुछ कह नहीं पाई, उसके गालों पर आंसू की धार उतर आई।
राजवीर आगे बढ़ा और बोला, “नेहा जी, मैं आपका जितना शुक्रिया करूं कम है। पापा शहर के जानेमाने न्यूरोलॉजिस्ट हैं। वे अकेले कार चला रहे थे, अचानक ब्लड प्रेशर गिरा और एक्सीडेंट हो गया। किसी ने नहीं रोका, बस आप रुक गईं।”
नेहा ने कहा, “मुझे तो लगा कोई मदद नहीं करेगा तो शायद वह वहीं मर जाएंगे। बस दिल ने कहा रुक जाओ।”
राजवीर ने मुस्कुराकर कहा, “दिल ही सबसे बड़ा भगवान होता है।”
कुछ देर तक कमरे में खामोशी रही। फिर डॉ दयानंद ने कहा, “बेटी, राजवीर को कल ही मैंने कहा था—इस लड़की से मिलो और अगर हो सके तो उसकी जिंदगी में थोड़ा उजाला भर दो।”
नेहा ने झट से कहा, “नहीं बाबा, मैंने कुछ भी उम्मीद से नहीं किया था। मैंने बस वह किया जो सही लगा।”
राजवीर मुस्कुराया, “फिर भी सही करने वालों को कोई ना कोई भगवान भेज ही देता है।”
बात खत्म होते ही बाहर से एक नर्स आई और धीरे से बोली, “सर, आपकी गाड़ी के लोग इंतजार कर रहे हैं।”
राजवीर ने कहा, “नेहा जी, अगर आप फ्री हो तो कल मुझसे ऑफिस में मिलिएगा। पता मैं मैसेज कर दूंगा। बस एक बात, पापा आपको कुछ देना चाहते हैं और मैं कुछ कहना चाहता हूं।”
नेहा ने हैरानी से पूछा, “कुछ देना चाहते हैं?”
राजवीर ने हल्की मुस्कान दी, “हां, पर वह क्या है, यह कल बताऊंगा।”
नेहा के मन में एक साथ डर, जिज्ञासा और उम्मीद थी। वो सिर हिलाकर बाहर चली गई। उसकी चाल धीमी थी, लेकिन आंखों में एक नया उजाला था। शायद कल फिर जिंदगी कोई जवाब देने वाली थी।
उस रात नेहा छत पर बैठी थी। आसमान में बादल छाए थे, पर दिल के अंदर हल्की रोशनी थी। उसने सोचा—कभी-कभी जिन रास्तों पर हम नौकरी, सफलता और नाम के पीछे भागते हैं, वहीं कोई मोड़ ऐसा आता है जो हमें इंसान बना देता है।
फोन पर मैसेज आया—”एड्रेस: मेहता कॉर्पोरेट ग्रुप, 10 am टुमारो।”
नेहा ने स्क्रीन को देखा, हल्की मुस्कान दी—”शायद अब वक्त ने मेरी सच्चाई देखने का फैसला किया है।”
अगली सुबह मुंबई की हवा कुछ अलग थी। हल्की धूप, हवा में नमी और दिल में अनजानी बेचैनी। नेहा ने आईने में खुद को देखा—साधारण नीली सूती सलवार कमीज, गले में दुपट्टा, बाल सधे हुए। वह चाह रही थी कि आज की मुलाकात किसी सपने जैसी ना निकले। क्या पता बस औपचारिक धन्यवाद ही हो। पर मन के किसी कोने में हल्की उम्मीद थी—शायद जिंदगी कुछ लौटाने आई है जो कल छीन गया था।
वह 10:00 बजे मेहता कॉरपोरेट ग्रुप के भव्य ऑफिस पहुंची। सामने शीशे की बिल्डिंग, गार्ड की सलामी और रिसेप्शन पर लिखा—”वेलकम मिस नेहा।” नेहा ठिठक गई—क्या वाकई यह सब मेरे लिए? रिसेप्शनिस्ट ने मुस्कुराकर कहा, “मैम, सर आपका इंतजार कर रहे हैं। कृपया कॉन्फ्रेंस रूम में चलिए।”
नेहा के कदम भारी थे, लेकिन दिल तेज धड़क रहा था। कमरे में दाखिल होते ही उसने राजवीर मेहता को देखा—सूट-बूट में आत्मविश्वास से भरे, पर आंखों में आज भी वही विनम्रता थी जो कल थी। उन्होंने खड़े होकर कहा, “आइए नेहा जी, मैं आपका बहुत इंतजार कर रहा था।”
नेहा ने झिझकते हुए कहा, “मैं बस मिलने आई थी। कल आपने कहा था कि कुछ बात करनी है।”
राजवीर मुस्कुराए, “हां। और वह बात बहुत छोटी भी है और बहुत बड़ी भी।” उन्होंने पास की कुर्सी की ओर इशारा किया, “बैठिए।”
कुछ सेकंड की खामोशी रही। फिर उन्होंने धीरे-धीरे कहा, “कल जिस इंसान की आपने जान बचाई, वह सिर्फ मेरे पिता नहीं हैं—वो इस कंपनी के फाउंडर और चेयरमैन हैं।”
नेहा की आंखें फैल गईं—”क्या?”
राजवीर ने सिर हिलाया—”हां। और उन्होंने कल ही एक निर्णय लिया है। जो भी महिला उनके जीवन की रक्षक बनी, वह अब मेहता कॉरपोरेट ग्रुप की नई एंप्लई वेलफेयर हेड होगी।”
नेहा को लगा जैसे किसी ने बिजली गिरा दी हो। वह कुछ बोल नहीं पाई, उसके होंठ सूख गए। “मैं… मैं तो बस मदद कर रही थी। मुझे कोई इनाम नहीं चाहिए,” उसने धीरे से कहा।
राजवीर ने मुस्कुराकर कहा, “यही तो आपको योग्य बनाता है, जिनके दिल में लालच नहीं होता, वही सबसे योग्य होते हैं।”
नेहा की आंखों से आंसू निकल पड़े, “लेकिन सर, मेरी पिछली नौकरी चली गई है, वह भी उसी दिन…”
राजवीर ने शांत स्वर में कहा, “शायद इसलिए ताकि आप यहां तक पहुंच सकें। कभी-कभी भगवान हमसे कुछ छीनता है ताकि हमें हमारा हक दे सके।”
उसी वक्त दरवाजा खुला, अंदर डॉ दयानंद मेहता व्हीलचेयर पर आए, चेहरे पर वही मुस्कान।
उन्होंने कहा, “बेटी, मैंने जिंदगी में सैकड़ों सर्जरी की हैं, लेकिन पहली बार किसी ने मेरी जान बचाई और वह भी बिना सवाल पूछे। अब मेरा काम है तुम्हें वह लौटाना जो दुनिया ने तुमसे छीना।”
नेहा उनके पैर छूने झुकी, पर उन्होंने तुरंत उसका हाथ पकड़ लिया—”बेटी, सम्मान पैरों में नहीं, कर्मों में होता है और तूने अपना सम्मान खुद कमाया है।”
इस तरह नेहा की इंसानियत का इनाम उसे मिला—एक नई पहचान, नई नौकरी, और सबसे बड़ी बात—अपने कर्मों पर गर्व करने का हौसला।
कभी-कभी जिंदगी हमें ऐसे मोड़ पर लाकर खड़ा कर देती है जहां हम सोचते हैं कि सब खत्म हो गया, लेकिन वही मोड़ नई शुरुआत का रास्ता बन जाता है। नेहा की कहानी यही सिखाती है—इंसानियत कभी बेकार नहीं जाती। उसकी कीमत देर-सवेर जरूर मिलती है।
News
Zubeen Garg Death Mystery में Assam Police से Shekhar Jyoti Goswami ने खोले राज
Zubeen Garg Death Mystery में Assam Police से Shekhar Jyoti Goswami ने खोले राज Mystery Surrounds the Death of Jubin…
I Love Mohammad Sticker पर Bike Challan काटा, UP Police Constable पर एक्शन | Baghpat
I Love Mohammad Sticker पर Bike Challan काटा, UP Police Constable पर एक्शन | Baghpat ontroversy Over “I Love Mohammad”…
Lawrence Bishnoi Gang : Canada में 3 जगहों पर ताबड़तोड़ फायरिंग, Lawrence Gang का निकला कनेक्शन
Lawrence Bishnoi Gang : Canada में 3 जगहों पर ताबड़तोड़ फायरिंग, Lawrence Gang का निकला कनेक्शन Lawrence Bishnoi Gang Claims…
Bihar Assembly Election 2025: Mukesh Sahni Claims Deputy CM Post
Bihar Assembly Election 2025: Mukesh Sahni Claims Deputy CM Post Political activity is heating up ahead of the Bihar Assembly…
Bihar Election 2025: BJP से चुनाव लड़ने के सवाल पर Aaj Tak से क्या बोलीं Maithili Thakur?
Bihar Election 2025: BJP से चुनाव लड़ने के सवाल पर Aaj Tak से क्या बोलीं Maithili Thakur? Bihar Election Dates…
Maithili Thakur EXCLUSIVE | कहां से लड़ेंगी चुनाव? मैथिली ठाकुर का जवाब सुनिए | Bihar Elections
Maithili Thakur EXCLUSIVE | कहां से लड़ेंगी चुनाव? मैथिली ठाकुर का जवाब सुनिए | Bihar Elections Maithili Thakur Set to…
End of content
No more pages to load