मुस्लिम दोस्त की कार बेचकर बना DM. फिर 7 साल बाद उसी के घर पहुंचा तो..
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“दोस्ती की सच्चाई: रफीक और विकास की अनकही दास्तान”
बिहार के एक छोटे से शहर की धूल भरी गलियों में बचपन से ही दो लड़कों की दोस्ती की कहानी शुरू हुई थी। एक था विकास, एक गरीब किसान का बेटा, और दूसरा था रफीक, एक जमींदार परिवार का इकलौता बेटा। दोनों अलग-अलग धर्मों से थे, पर उनकी दोस्ती ने उन सारी दीवारों को तोड़ दिया जो समाज ने उनके बीच खड़ी कर दी थीं।
रफीक के पिता एक बड़े जमींदार और व्यवसायी थे। उनका नाम पूरे इलाके में सम्मान के साथ लिया जाता था। उनके पास बड़ी ज़मीनें थीं और वे घर बनाने का काम भी करते थे। इस वजह से रफीक बचपन से ही अच्छे कपड़े पहनता और स्कूल में सबका सम्मान पाता। वहीं विकास का परिवार गरीबी में जूझ रहा था। उसके पिता कर्ज में डूबे हुए थे, फिर भी वे अपने बच्चों की पढ़ाई के लिए जी-जान से मेहनत करते थे। विकास का सपना था कि वह बड़ा डीएम बने और अपने जैसे गरीबों की मदद करे।
दोनों बचपन से ही साथ पढ़ते और खेलते थे। उनकी दोस्ती इतनी गहरी थी कि अमीरी-गरीबी और धर्म की दीवारें भी उनके बीच नहीं आ सकीं। जब विकास के पिता के पास स्कूल की फीस भरने के पैसे नहीं थे, तब रफीक के पिता ने बिना किसी झिझक के विकास की फीस भी भर दी। यह एहसान विकास और उसके परिवार के लिए जीवनभर का ऋण बन गया।
जैसे-जैसे वे बड़े हुए, विकास ने दिल्ली के एक बड़े कॉलेज में दाखिला लेना चाहा। पर गरीबी की वजह से उसके माता-पिता इसे संभव नहीं कर पाए। रफीक ने अपने पिता से कहा कि वह विकास के साथ ही पढ़ाई करेगा। पिता ने माना, लेकिन विकास अहसान नहीं लेना चाहता था। तभी रफीक के पिता ने एक एनजीओ के संस्थापक से संपर्क किया, जो आर्थिक तंगी के कारण पढ़ाई नहीं कर पाने वाले छात्रों की मदद करता था। विकास की अच्छी मार्कशीट देखकर उसे स्कॉलरशिप मिल गई और वह दिल्ली के एक प्रतिष्ठित कॉलेज में दाखिला लेने में सफल रहा।
दिल्ली में दोनों एक ही हॉस्टल में रहते थे। पर विकास के मन में एक बड़ा सपना था – यूपीएससी की तैयारी कर डीएम बनना। इसके लिए उसे एक अच्छे कोचिंग संस्थान में दाखिला लेना था, जो महंगा था। विकास के पास पैसे नहीं थे। रफीक ने यह बात समझते हुए अपने पिता की एक महंगी कार बेच दी और उस पैसे से विकास को कोचिंग में दाखिला दिलाया। यह त्याग विकास के लिए जिंदगी भर का एहसान बन गया।
विकास ने कठिन परिश्रम किया और यूपीएससी की परीक्षा में देश में उच्च रैंक हासिल की। वह डीएम बन गया और राजस्थान के एक छोटे शहर का कलेक्टर नियुक्त हुआ। उसके माता-पिता बेहद खुश थे। दूसरी ओर, रफीक ने अपने पिता का व्यवसाय संभाला, लेकिन अनुभव की कमी और कई समस्याओं के कारण वह असफल रहा। उसके पिता का देहांत हो गया, और रफीक गरीबी में डूब गया।
सालों तक विकास अपनी नौकरी में व्यस्त रहा। उसे अपने गांव आने का मौका नहीं मिला। लोग सोचने लगे कि डीएम बनने के बाद वह बदल गया है। पर असलियत कुछ और थी। विकास के दिल में अपने दोस्त की चिंता थी। सात साल बाद जब वह छुट्टी लेकर अपने गांव आया, तो उसने रफीक के घर का हाल जाना। वह घर बिक चुका था और रफीक एक छोटे से किराए के मकान में रहता था। रफीक और उसके परिवार की हालत बेहद खराब थी।
विकास ने रफीक से पूछा, “तुम मुझे यह सब क्यों नहीं बताए? क्या तुमने मुझे भूल दिया?”
रफीक ने कहा, “नहीं दोस्त, जब तुम व्यस्त थे तो हम भी अपनी तकलीफ छुपाते रहे। हमें लगा तुम हमें भूल चुके हो।”
विकास ने कहा, “अब मैं तुम्हें कभी अकेला नहीं छोड़ूंगा।”
वह अपने पिछले सात साल की बचत लेकर आया था, जो उसने हर महीने जमा की थी। उसने रफीक को 20 लाख रुपये दिए और बाकी पैसे भी भेजे। रफीक ने शुरुआत में पैसे लेने से मना किया, पर मजबूरी में स्वीकार किया। धीरे-धीरे उनकी जिंदगी सुधरी।
विकास ने रफीक को सरकारी कार्यालय में एक पद दिलवाया, जहां वह कागजी काम संभालता था। तनख्वाह कम थी, पर रफीक की जिंदगी में उम्मीद की किरण आई।
यह कहानी दोस्ती, त्याग और इंसानियत की जीत है। रफीक ने अपनी कार बेचकर विकास का सपना पूरा किया, और विकास ने अपने पद का उपयोग कर रफीक की जिंदगी बदली। यह साबित करता है कि सच्ची दोस्ती और मानवता धर्म से ऊपर होती है।
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