हेमा मालिनी क्यो अधूरे अंतिम संस्कार को छोड़कर आ गई बाहर ? Hema Malini Was Treated Very Unfairly
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हेमा मालिनी क्यों अधूरे अंतिम संस्कार को छोड़कर आ गई बाहर?
परिचय
24 नवंबर 2025 का दिन भारतीय सिनेमा के लिए एक दुखद दिन था, जब धर्मेंद्र, बॉलीवुड के सबसे बड़े सितारों में से एक, इस दुनिया को छोड़ गए। उनके निधन ने न केवल उनके परिवार को बल्कि पूरे देश को शोक में डुबो दिया। यह दिन न केवल एक अभिनेता की विदाई का दिन था, बल्कि यह रिश्तों, दूरी, और अधूरेपन का भी एक गहरा आईना था। इस लेख में हम जानेंगे कि कैसे हेमा मालिनी को इस कठिन समय में अपने स्थान और अधिकार से वंचित रखा गया और क्यों उन्होंने अंतिम संस्कार को अधूरा छोड़कर बाहर आना उचित समझा।
धर्मेंद्र का निधन
धर्मेंद्र का निधन एक ऐसी घटना थी जिसने पूरे देश को हिला कर रख दिया। 89 साल की उम्र में, उन्होंने चुपचाप इस दुनिया को अलविदा कहा, पीछे छोड़ते हुए एक ऐसा परिवार जिसमें प्यार और दूरी दोनों मौजूद थे। जैसे ही उनकी मृत्यु की खबर फैली, जूहू के बंगले के बाहर सन्नाटा पसर गया। यह वही घर था जो कभी हंसी और शूटिंगों से गूंजता था, लेकिन उस दिन सिर्फ एक अंतिम सांस की यादों में खोया हुआ था।
अंतिम संस्कार की तैयारी
धर्मेंद्र के निधन की पुष्टि होते ही चारों ओर अफरातफरी मच गई। फैंस, पत्रकार, और फिल्म इंडस्ट्री के लोग सब एक साथ उमड़ पड़े। लेकिन हैरानी की बात यह थी कि इतनी जल्दी उनके अंतिम संस्कार की तैयारियां शुरू हुईं। सुबह की पहली खबर आई और दोपहर तक विदाई हो गई। इतने बड़े अभिनेता का अंतिम दर्शन भी मुश्किल से कुछ ही लोगों को नसीब हुआ, जैसे कोई चाह नहीं थी कि यह विदाई सार्वजनिक बने।
हेमा मालिनी की उपस्थिति
इस दौरान, सभी की निगाहें एक और जगह टिकी थीं—क्या हेमा मालिनी वहां आएंगी? जब वह सफेद साड़ी में ईशा देओल के साथ पहुंची, तो माहौल में तनाव फैल गया। पुलिस को भीड़ रोकनी पड़ी क्योंकि हर कोई बस एक झलक देखना चाहता था उस महिला की जिसने धर्मेंद्र से 45 साल पहले जीवन जोड़ा था। लेकिन समाज के हिसाब से उसे कभी पूरा हक नहीं मिला।
हेमा मालिनी का चेहरा उस दर्द को छुपा रहा था जो शब्दों से बयान नहीं हो सकता। वह शांत और संयमित थीं, लेकिन उनकी आंखों में गहरा दर्द झलक रहा था। वह उस जगह पर कुछ ही पल रुकीं और चुपचाप लौट गईं। लोग सवाल करने लगे कि क्यों इतनी जल्दी चली गईं? क्या उन्हें वहां ठहरना मुश्किल लग रहा था या फिर उन्होंने खुद दूरी बनाए रखी ताकि माहौल और तनाव न बढ़े?

श्मशान घाट का माहौल
श्मशान घाट के भीतर माहौल और भी भारी था। सनी देओल और बॉबी देओल अपने पिता की चिता के पास खड़े थे। उनकी आंखों में वह पीड़ा थी जो शायद कभी गदर के तारा सिंह की आंखों में भी नहीं दिखी थी। वहीं कुछ दूरी पर हेमा मालिनी और उनकी बेटियां खामोशी से खड़ी थीं। यह दूरी केवल कुछ कदमों की नहीं थी, बल्कि दशकों की थी।
प्रकाश कौर, धर्मेंद्र की पहली पत्नी, भी वहां थीं। उन्होंने अपने पति की दूसरी शादी चुपचाप सह ली थी और अपने बच्चों को कभी नफरत से नहीं भरा। उस दिन प्रकाश कौर की हालत टूट चुकी थी, लेकिन उन्होंने फिर भी सबके सामने अपनी मजबूती बनाए रखी। सनी देओल लगातार अपनी मां के पास थे, जो चार दशक तक अपने पति को किसी और के साथ बढ़ते हुए देख रही थीं।
विदाई का पल
जब पंडित ने रस्में शुरू कीं, सनी देओल ने आगे बढ़कर मुखाग्नि दी। उस पल बाहर खड़ी हेमा मालिनी का चेहरा कुछ कह नहीं रहा था, लेकिन उनकी आंखें बोल रही थीं। यह विदाई थी जिसमें हक भी अधूरा था और अपनापन भी।
अमिताभ बच्चन, सलमान खान, जावेद अख्तर, अनुपम खेर जैसे कई बड़े सितारे वहां मौजूद थे, लेकिन कोई भी परिवार के भीतर के उस ठंडेपन को नहीं तोड़ पाया। सब ने देखा कि हेमा मालिनी के लिए किसी के पास शब्द नहीं थे। बस झुकी नजरें और चुप्पी थी। यह वही चुप्पी थी जो वर्षों से दोनों परिवारों के बीच चली आ रही थी।
हेमा का बाहर आना
हेमा मालिनी कुछ देर बाद वहां से निकल गईं। वह भीड़ से बचने लगीं, चेहरे पर सफेद दुपट्टा, आंखों में नमी और लबों पर सन्नाटा। फैंस ने उन्हें रोकने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने बस हल्की सी झलक दी और चली गईं। ऐसा लगा जैसे वह सिर्फ एक औपचारिकता निभा रही हों, लेकिन अंदर कोई तूफान था।
लोगों ने सोशल मीडिया पर सवाल उठाने शुरू किए। क्या उन्हें वहां सम्मान मिला? क्या 45 साल की साझेदारी का यह अंत वाकई इतना अधूरा होना चाहिए था? बहुतों को यह भी लगा कि धर्मेंद्र को वह राजकीय सम्मान नहीं मिला जिसके वह हकदार थे।
धर्मेंद्र की विरासत
धर्मेंद्र की वसीयत और जायदाद की चर्चा अब हर जगह है। करीब हजार करोड़ की संपत्ति, दो परिवार और दशकों पुराने रिश्ते। सब सोच रहे हैं अब आगे क्या होगा? क्या अब सनी देओल मुखिया बनकर सबको साथ लाने की कोशिश करेंगे या दूरियां और बढ़ेंगी?
बहुतों को लगता है कि धर्मेंद्र की असली विरासत उनका स्टारडम नहीं बल्कि वह भावनात्मक संघर्ष है जो उन्होंने झेला। एक तरफ उनका पहला घर, जहां परंपरा और जिम्मेदारी थी। दूसरी तरफ वह प्रेम जो अधूरा रहा लेकिन सच्चा था।
हेमा मालिनी ने अपनी तरफ से हमेशा दूरी बनाकर भी एक सम्मान बनाए रखा। उन्होंने कभी हक नहीं छीना। बस जगह की उम्मीद की। 45 साल तक उन्होंने वही किया। चुप रहकर निभाया। यहां तक कि अपने पति की विदाई में भी उन्होंने वही मार्ग चुना।
निष्कर्ष
धर्मेंद्र का जीवन एक सफर था—प्यार, संघर्ष और अपूर्णता का। उन्होंने सिनेमा को दर्जनों क्लासिक फिल्में दीं, लेकिन असल जिंदगी में अपने रिश्तों का समाधान शायद कभी नहीं ढूंढ पाए। अब जब वह नहीं रहे, तो उनकी अनुपस्थिति ने सबके बीच की खामोशी को और भी गहरा कर दिया है। शायद अब वक्त ही बताएगा कि क्या यह परिवार फिर एक होगा।
धर्मेंद्र का सपना हमेशा सच्चा था—अपने प्यारों को जोड़कर रखना। लेकिन उनकी विदाई ने बता दिया कि कुछ अधूरेपन जीवन का हिस्सा बन जाते हैं। धर्मेंद्र चले गए, लेकिन अपने पीछे जो विरासत छोड़ गए वह सिर्फ फिल्मों की नहीं, इंसानियत और रिश्तों की भी है।
उनकी विदाई ने एक अधूरी दास्तान का विराम दिया। धर्मेंद्र सिर्फ एक अभिनेता नहीं थे, वह एक युग थे जो चला गया, लेकिन जिसकी गूंज अब भी जूहू से लेकर पंजाब के खेतों तक सुनाई देती है।
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