बैंक की नायिका : 10 साल की प्रियंका की कहानी

एक दिन शहर के सबसे बड़े बैंक में अचानक सिस्टम ठप पड़ गया। करोड़ों रुपए का लेन-देन रुक गया। ग्राहक परेशान, अधिकारी घबराए और विशेषज्ञ तक हार मान चुके थे। ऐसे संकट में एक सफाई कर्मी राजेश की 10 साल की बेटी प्रियंका ने कुछ ऐसा कर दिखाया, जिसने सबको हैरान कर दिया।

दोपहर थी, गर्मी अपने चरम पर थी। सरकारी स्कूल में छुट्टी जल्दी हो गई थी। राजेश अपनी बेटी प्रियंका को लेने स्कूल पहुंचा। प्रियंका खुशी से दौड़कर पापा से लिपट गई। राजेश बोला, “बेटी, आज तुम्हें मेरे साथ बैंक चलना होगा। बस एक घंटा रहना है, फिर हम घर जाएंगे।” प्रियंका ने सहमति दी और दोनों बैंक पहुंचे।

बैंक में अफरातफरी थी। कंप्यूटर सिस्टम बार-बार फेल हो रहा था। “सर्वर रिस्पॉन्ड नहीं कर रहा, कृपया पुनः प्रयास करें” — यही संदेश हर स्क्रीन पर आ रहा था। किसान, व्यापारी, छात्र—सब परेशान थे। बैंक मैनेजर श्रीनिवास बार-बार कर्मचारियों को समझा रहे थे, “IT टीम को बुलाया है, धैर्य रखें।” लेकिन कोई मानने को तैयार नहीं था।

राजेश सफाई करने लगा, प्रियंका एक कोने में बैठी सब देख रही थी। उसने पापा से पूछा, “क्या कंप्यूटर खराब हो गया?” राजेश ने कहा, “हाँ बेटी, अब विशेषज्ञ ही ठीक करेंगे।” प्रियंका बोली, “पापा, मैं देखूं तो शायद ठीक कर सकूं।” राजेश ने मना किया, “यह बड़े लोगों का काम है।”

आधे घंटे बाद IT विशेषज्ञ लैपटॉप लेकर पहुंचे। उन्होंने कई कोशिशें कीं—कोड टाइप किया, सिस्टम रिस्टार्ट किया, लेकिन समस्या जस की तस रही। फिर पता चला, सिस्टम हैक हो गया है। पैसे अपने आप दूसरी जगह ट्रांसफर हो रहे हैं। बैंक मैनेजर की हालत खराब हो गई। विशेषज्ञ बोले, “मेरे पास इसे रोकने का कोई तरीका नहीं है।”

अब प्रियंका ने हिम्मत दिखाई। वह मैनेजर के पास गई, “अंकल, मुझे एक बार कोशिश करने दें।” पहले तो मैनेजर ने मना किया, लेकिन जब हालात बिगड़ गए, उन्होंने विनती की, “बेटी, अब तुम्हीं देखो।” पूरा स्टाफ और ग्राहक हैरान थे—एक बैंक मैनेजर 10 साल की लड़की से मदद मांग रहा था।

प्रियंका कंप्यूटर के सामने बैठी। कीबोर्ड पर उसकी उंगलियां चलने लगीं। स्क्रीन पर कोड, कमांड, विंडो खुलती-बंद होती रहीं। उसने सबसे पहले सर्वर प्रोग्राम खोला, लॉक फाइल्स चेक कीं, और जल्दी ही समस्या की जड़ पकड़ ली—बैंक सिस्टम में बैकडोर प्रोग्राम इंस्टॉल था, जिससे पैसे ट्रांसफर हो रहे थे।

प्रियंका ने सभी एंटीवायरस टूल्स, फायरवॉल और नेटवर्क प्रोटोकॉल खोल दिए। उसने वायरस का स्रोत ढूंढा, हैकर की लोकेशन ट्रेस की—दिल्ली! अब प्रियंका ने हैकर के सर्वर में घुसकर ऑटोमेटिक ट्रांसफर प्रोसेस रोक दिया और जो पैसा जा चुका था, उसे बैंक अकाउंट में वापस रिफंड करा दिया।

कुछ ही मिनटों में सारे सिस्टम ठीक हो गए, बैंक फिर से चालू हो गया। मैनेजर ने प्रियंका के सामने सिर झुका दिया, “बेटी, तुमने हमारी बर्बादी से बचा लिया। अब मैं पुलिस को लोकेशन भेजता हूँ।” पुलिस ने छापा मारा और हैकर को पकड़ लिया।

बैंक हॉल में राहत की लहर दौड़ गई। ग्राहक बोले, “वाह, इस लड़की ने तो चमत्कार कर दिया।” विशेषज्ञ बोले, “ऐसी स्किल्स तो प्रोफेशनल हैकर में भी कम देखने को मिलती हैं।” प्रियंका के पापा की आँखें गर्व से भर आईं, “यह मेरी बेटी नहीं, मेरी शान है।”

लोग तालियाँ बजाने लगे, वीडियो बनाने लगे, फोटो सोशल मीडिया पर डालने लगे। बैंक हॉल गर्व और प्रेरणा से भर गया। इस कहानी का सार यही है—कभी उम्र को प्रतिभा की कसौटी मत समझिए। प्रियंका ने साबित किया कि असली ताकत जिज्ञासा, लगन और सीखने की इच्छा में होती है।

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