जोया की जंग: इंसाफ की जीत
उत्तर प्रदेश के एक छोटे से शहर की सुबह हमेशा एक खास सुकून के साथ जागती थी। मस्जिद की अजान की आवाज गलियों में गूंजती, लोग अपने दरवाजे खोलकर दिन की शुरुआत करते। पुराने अंदाज के घर, तंग गलियां, रेहड़ी वाले—सब उस शहर की पहचान थे। इन्हीं गलियों में एक पुराना मोहल्ला था, जहां किताबों की खुशबू बिखरी रहती थी। वहीं जोया का घर था।
सत्रह बरस की जोया मोहल्ले की रोशनी समझी जाती थी। उसकी आंखों में बड़े ख्वाब थे। वह चाहती थी कि एक दिन शहर की सबसे बड़ी यूनिवर्सिटी में पढ़कर अपने वालिदैन का नाम रोशन करे। उसका पिता पुरानी किताबों की छोटी सी दुकान चलाता था। अक्सर जोया से कहता, “बेटी, मेरा ख्वाब है कि तुझे वहां देखूं जहां इल्म बांटा जाता है, ना कि सिर्फ बेचा जाता है।” मां घरेलू औरत थी, जो बेटी के लिए हर वक्त अल्लाह से दुआ करती।
उस सुबह कुछ अलग था। जोया के दिल में अजीब सा जोश और खौफ इकट्ठा हो रहा था। कल ही उसके बड़े भाई ने उसे बाइक चलाना सिखाया था। मोहल्ले के अंदर चक्कर लगवाकर भाई ने कहा था, “देखो जोया, बाइक चलाना आसान है, बस क्लच और ब्रेक का ख्याल रखना।” मगर आज जोया के दिल में और ही ख्याल था। स्कूल के लिए देर से उठी थी। डर रही थी कि उस्ताद सजा ना दें। उसके ज़हन में एक ही हल आया—भाई की मोटरबाइक पर स्कूल जाना।
गैरेज में बाइक चमक रही थी। काला रंग, पतली बॉडी, नया सा इंजन। जोया के कदम ठहर गए। दिल की धड़कन तेज हो गई। उसने खुद को समझाया—यह सिर्फ दस मिनट का रास्ता है। स्कूल पहुंचते ही सब ठीक हो जाएगा। उसने दुपट्टा मजबूती से लपेटा, हाथ कांप रहे थे, मगर इरादा पक्का था। जैसे ही उसने स्टार्ट बटन दबाया, इंजन ने जोरदार आवाज निकाली। वह आवाज उसे और डराने लगी, मगर उसने खामोशी से खुद को संभाला।
मोहल्ले की गली से बाइक निकालते हुए उसे लगा जैसे सबकी निगाहें उस पर हैं। कुछ औरतें दरवाजे से झांक कर कह रही थी, “यह जोया है ना? आज बाइक पर है।” मगर जोया ने नजरें झुका लीं। वो जानती थी कि यह कदम उसकी आजादी की छोटी सी झलक है।
शहर के दूसरे कोने से एक और कहानी आगे बढ़ रही थी। पुलिस थाने से एक जीप निकल रही थी। ड्राइवर सब इंस्पेक्टर देवेश शर्मा था। देवेश के नाम से इलाके के मुसलमान सहम जाते थे। वह अक्सर छापों में सख्त रवैया अपनाता, छोटे झगड़ों को बड़ा बना देता और सब पर अपनी ताकत जताता। लोग कहते थे कि देवेश के लहजे में हमेशा नफरत की काट छुपी रहती है।
उस सुबह भी वह जीप चलाते हुए फोन पर ऊंची आवाज में बात कर रहा था। हाथ में सिगरेट, आंखों में गुरूर और चेहरे पर वही पुराना तकुर। किसी को खबर न थी कि यही जीप और जोया की बाइक चंद मिनटों बाद ऐसे टकराएंगे कि पूरे शहर की फजा बदल जाएगी।
जोया अपनी बाइक पर धीरे-धीरे बढ़ रही थी। दिल में डर और तजस्सुस दोनों थे। हर मोड़ पर सोचती कि शायद रुक जाऊं, मगर अपने ख्वाब को याद करके आगे बढ़ जाती। दूसरी तरफ देवेश अपनी ताकत के नशे में चूर था। दोनों के रास्ते जैसे तकदीर ने आपस में मिला दिए थे। यह कहानी अभी शुरू ही हुई थी, मगर आने वाले लम्हे सब कुछ हिला देने वाले थे।
जोया ने बाइक मोहल्ले की तंग गलियों से बाहर निकाली। सुबह की रोशनी पूरी तरह फैली नहीं थी। दुकानों के शटर धीरे-धीरे उठ रहे थे, दूध वाले बाल्टियां लिए जा रहे थे, सब्जी वाले रेहड़ियां सजा रहे थे। मोहल्ले के लोग हैरानी से जोया को देख रहे थे। सब जानते थे कि यह पहली बार हुआ है कि एक मुसलमान लड़की बाइक पर स्कूल जा रही है। कुछ औरतें कह रही थीं, “कितनी हिम्मत वाली है यह लड़की।” मगर कुछ ने नाखुशी से कहा, “आजकल की लड़कियां भी हद से बढ़ गई हैं।”
जोया ने यह आवाजें सुनी मगर दिल में कहा, “मुझे सिर्फ पढ़ना है, किसी को जवाब देना नहीं।” बाइक के इंजन की गड़गड़ाहट ने उसकी धड़कन और तेज कर दी। वह हर थोड़े फासले पर क्लच दबाकर ब्रेक लगाती और फिर स्टार्ट करती। हाथों की पकड़ हैंडल पर इतनी सख्त थी कि उंगलियां सफेद पड़ गई थीं। जब मस्जिद के सामने से गुजरी, तो एक बुजुर्ग इमाम साहब ने उसे देखकर सर हिलाया और दुआई लहजे में कहा, “अल्लाह खैर करे बेटी।”
गली से निकलते ही वह मुख्य सड़क पर आ गई। यहां मंजर बिल्कुल अलग था—शोर, हॉर्न, भागती गाड़ियां और दौड़ते लोग। जोया को लगा जैसे वह किसी तूफान के बीच खड़ी है। एक तरफ बसों की कतार, दूसरी तरफ रिक्शे तेजी से गुजर रहे थे। उसने बाइक को बाई तरफ रखा और सोचा कि स्कूल तक यही रास्ता है। अगर धीरे-धीरे चलती रही तो सब ठीक हो जाएगा।
उसी वक्त शहर के दूसरे किनारे पर इंस्पेक्टर देवेश शर्मा अपनी जीप तेज रफ्तार से चला रहा था। उसकी वर्दी दुरुस्त मगर बटन खुले हुए। आंखों में रात की शराब की लालिमा और होठों पर तंज भरी मुस्कान। फोन पर किसी से ऊंची आवाज में झगड़ रहा था—”हां, मुझे परवाह नहीं कि किसकी सिफारिश है। जो भी इनके साथ है, सीधा लॉकअप में डाल दूंगा।” वह स्टीयरिंग एक हाथ से पकड़े, दूसरे हाथ से सिगरेट का कश खींच रहा था। देवेश को आदत थी कि अपनी ताकत का इजहार सड़क पर भी करता।
जैसे ही जोया ने बाइक थोड़ी रफ्तार पकड़ी, अचानक पीछे से एक गाड़ी के हॉर्न की तेज आवाज गूंजी। वह चौंक गई और रिफ्लेक्स के तौर पर ब्रेक दबा दिया। बाइक लड़खड़ाई मगर उसने संभाल लिया। सामने ही एक छोटा मोड़ था। उसी मोड़ से देवेश की जीप पूरी रफ्तार के साथ मुड़ी। लाल बत्ती जल रही थी मगर सायरन बंद था। वह किसी जल्दबाजी में लेन बदलते हुए सीधा जोया के सामने आ गया।
जोया के दिल की धड़कन रुक सी गई। एक पल के लिए वक्त थम गया। उसने ब्रेक दबाने की कोशिश की मगर टायर सड़क पर चीख उठे और बाइक फिसल गई। एक खौफनाक धमाके के साथ जीप ने बाइक को टक्कर मारी। जोया का जिस्म हवा में उछला और जोर से जमीन पर गिरा। उसका दुपट्टा एक तरफ जा गिरा। किताबों से भरा बस्ता दूर जाकर खुल गया और कॉपियां सड़क पर बिखर गईं।
लोगों ने मंजर देखा तो घबरा गए। दुकानों से भागते हुए कई लोग मौके पर पहुंचे। किसी ने चीख कर कहा, “अरे यह तो जोया है!” एक औरत ने दुपट्टा उठाकर उसके चेहरे पर डाला। जोया बेहोश पड़ी थी। माथे से खून बह रहा था और हाथ छिल चुके थे। उधर देवेश ने गाड़ी रोकी। मगर चेहरे पर परेशानी के बजाय गुस्सा साफ झलक रहा था। उसने खिड़की से झांक कर कहा, “हटो सब रास्ता दो। सरकारी गाड़ी है।”
लोग हैरानी से एक दूसरे को देखने लगे। किसी ने कहा, “यह बच्ची खून में डूबी है और यह साहब आगे निकलने की बात कर रहे हैं।” कुछ नौजवान जीप के आगे आकर खड़े हो गए। उनमें आरिफ भी था, जो जोया का हम जमात था। वह गुस्से में चिल्लाया, “शर्म नहीं आती? बच्ची को कुचल कर भागना चाहते हो?” देवेश की आंखें लाल हो गईं। उसने पिस्तौल निकाली और हवा में फायर किया। धमाके ने सबको हिला दिया। औरतें पीछे हट गईं, बच्चे रोने लगे, मर्द साकित हो गए। मगर अब लोग डरने के बजाय भड़क उठे। एक नौजवान ने पिस्तौल झटक कर जमीन पर गिरा दी। भीड़ गरजी, “इसे पकड़ो!”
भीड़ ने देवेश को दबोच लिया। उसकी वर्दी का कॉलर फट गया। उसका घमंड टूट गया। वह चीखा, “तुम नहीं जानते मैं कौन हूं!” मगर अब यह अल्फाज बेईमानी थे। उसी दौरान एक बुजुर्ग आगे बढ़े और बोले, “रुक जाओ सब। पहले लड़की को अस्पताल पहुंचाओ।” लोग पीछे हटे और एंबुलेंस का नंबर मिलाया। जोया की मां खबर सुनते ही दौड़ी आई। बेटी को खून में लथपथ देख कर चीखी, “मेरी बच्ची, मेरी जोया!” लोग आह भर उठे। औरतें दिलासा देने लगीं।
जनरल रहमान के घर खबर पहुंची। वह आंगन में सफेद कुर्ता पायजामा और शाल ओढ़े बैठे थे। साथी ने दौड़ते हुए कहा, “साहब, जोया को एक पुलिस अफसर ने जीप से कुचल दिया है।” जनरल लम्हा भर को साकित हुए, आंखों में दर्द उभरा। फिर फौरन खड़े हो गए। गाड़ी तैयार करो। उनकी दहाड़ पर मुहाफिज दौड़ पड़े। कार निकाली गई। जनरल बैठे और कहा, “पूरे शहर को सुनने दो। सायरन ऑन करो।”
हादसे की जगह शोर थम गया। लोग कहने लगे, “अब इंसाफ होगा।” देवेश जर्द पड़ गया। भीड़ कई गुना बढ़ चुकी थी। जनरल रहमान पहुंचे। उनकी मौजूदगी ने माहौल बदल दिया। शोर कम हो गया। सबकी निगाहें उन पर जम गईं। उन्होंने पहले जमीन पर खून के धब्बे देखे, फिर सीधा देवेश को देखा, जो पसीने से तरबतर जमीन पर बैठा था। “यह तुम्हारी ड्यूटी है? आवाम की हिफाजत या उनकी जान लेना?” जनरल की आवाज गूंजी। भीड़ ने नारा बुलंद किया, “इंसाफ चाहिए!”
देवेश हकलाते हुए बोला, “सर, यह एक हादसा था।” मगर झूठ साफ नजर आ रहा था। जनरल आगे बढ़े, उसका गिरेबान पकड़ा। “हादसा वह होता है जब गलती मानी जाए, ना कि जब वर्दी के गुरूर में खून बहाया जाए और भागने की कोशिश की जाए।” पुलिस ने देवेश को गिरफ्तार किया। भीड़ ने नारे लगाए। जनरल की मौजूदगी ने सबको यकीन दिलाया—यह वाकया दब नहीं सकेगा।
अस्पताल में जोया को स्ट्रेचर पर डाला गया। खून लिबास पर जमा था। सांसें मध्यम थी। मां बिलखती साथ दौड़ रही थी, “मेरी बच्ची को कुछ ना हो।” डॉक्टर्स ने तसल्ली दी और इमरजेंसी बंद कर दी। रिपोर्ट में बताया गया कि सर पर गहरी चोट है, मगर दिमागी शिराएं सलामत हैं। पसलियों में दरारें और कंधे पर शदीद जख्म है। जोया कम से कम दो दिन तक बेहोश रह सकती है।
अस्पताल के बाहर माहौल सोगवार था। हादसे की वीडियो वायरल हो चुकी थी। लोग लिख रहे थे—”यह पुलिस नहीं, दहशत है। अगर जनरल रहमान ना आते तो केस दब जाता।” शाम तक चौराहों पर एहतेजाज शुरू हो गए। मर्द, औरतें, बच्चे प्ले कार्ड उठाए निकल आए। “जोया के लिए इंसाफ!” नारे गूंजे।
अदालत में पेशी हुई। जज साहब ने तमाम शवाहिद, वीडियो क्लिप्स, गवाहों के बयानात और मेडिकल रिपोर्ट्स का जायजा लिया। अदालत इस नतीजे पर पहुंची—मुलजिम सब इंस्पेक्टर देवेश शर्मा ने अपनी सरकारी हैसियत और ताकत का गलत इस्तेमाल किया। उसने एक कमसिन तालिबा को कुचला, जख्मी हालत में छोड़ने की कोशिश की और आवाम को डराने के लिए गैर कानूनी तौर पर असलहा इस्तेमाल किया। अदालत ने देवेश को दस साल कड़ी सजा सुनाई।
अदालत के बाहर और अंदर नारे बुलंद हो गए। “इंसाफ जिंदाबाद, जुल्म हारा, इंसाफ जीता!” जोया की मां के आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे, मगर अब उनमें दर्द के साथ सुकून भी था। जनरल रहमान ने खामोशी से आंखें बंद करके सर झुका दिया। उनके चेहरे पर जब्त के बावजूद एक इत्मीनान का साया था।
जोया को जब खबर मिली कि अदालत ने फैसला सुना दिया है, उसकी आंखों में आंसू आ गए। उसने मां का हाथ पकड़ कर कहा, “अम्मी, मेरा खून जाया नहीं गया।” मां ने बेटी के माथे को चूमा और कहा, “नहीं बेटी, तूने पूरे शहर को जगा दिया है।”
शहर की गलियों में रात गए तक खुशी की लहरें दौड़ती रहीं। बच्चों ने हाथों में छोटे प्ले कार्ड्स उठाए थे। औरतें गले लग रही थीं। यह सिर्फ एक अदालत का फैसला नहीं था, यह पूरे समाज के लिए नई सुबह की खबर थी।
कुछ हफ्तों बाद जब जोया पहली बार स्कूल पहुंची, तो पूरे स्कूल के तलबा खड़े होकर उसका इस्तकबाल करने लगे। सबने तालियां बजाई और कहा, “यह वही लड़की है जिसने जुल्म को हरा दिया।” उस लम्हे जोया ने महसूस किया कि उसकी जद्दोजहद ने सिर्फ उसे ही नहीं, बल्कि पूरे शहर को बदल दिया है।
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