सड़क किनारे फूल बेच रही लड़की और महिला अरबपति की पोती निकलीं…
दोपहर का वक्त था। विक्रम राजवंश सिंह रेलवे स्टेशन के पास से गुजर रहे थे। लेकिन जाम लगा होने की बजाय विक्रम को अपनी गाड़ी थोड़ी देर के लिए सिग्नल पर रोकनी पड़ी। ड्राइवर ने खिड़की नीचे की ताकि हवा आ सके। तभी अचानक विक्रम की नजर एक औरत और एक छोटी बच्ची पर पड़ी। उन्हें देख उनकी आंखें फटी रह गईं। क्योंकि उन्हें पता था कि उनका बेटा आर्यन, बहू अनन्या और पोती आर्या विदेश में हैं। लेकिन यह नजारा देख उनके पैरों तले जमीन खिसक गई।
विक्रम जल्दी से अपनी बहू के पास गए और बोले, “यह क्या हाल बना लिया तुमने? आर्यन कहां है? वो तो तुम्हें विदेश ले गया था। है ना?” अनन्या हंस पड़ी। पर वह हंसी किसी दर्द की आवाज थी। “विदेश हां ले गया था। इस स्टेशन तक।”
अनन्या का अतीत
आखिर क्यों एक राजघराने की बहू होते हुए भी अनन्या को सड़क पर भीख मांगनी पड़ी? और क्यों अनन्या के पति ने उसे इस स्टेशन पर छोड़ दिया था? यह सब जानने के लिए हमें अनन्या के अतीत में जाना होगा।
अनन्या का जन्म एक छोटे से शहर में हुआ था। उसके पिता मोहन चौहान एक ईमानदार और सादे स्वभाव के व्यक्ति थे। उन्होंने अपनी बेटी को हमेशा यह सिखाया था कि इज्जत कभी किसी के पैसों से नहीं, अपने कर्मों से बनती है। शायद यही वजह थी कि जब अनन्या बड़ी हुई तो उसके संस्कार किसी राजघराने की लड़की से कम नहीं थे।
दूसरी तरफ, इस शहर का सबसे बड़ा नाम था विक्रम राजवंश सिंह। एक ऐसा इंसान जो अपनी मेहनत से अरबों की कंपनी का मालिक बना था। उसके पास सब कुछ था – दौलत, नाम, इज्जत। लेकिन एक चीज की कमी थी – अपनापन। विक्रम के पास एक ही बेटा था, आर्यन, जो विदेश से एमबीए करके लौटा था। वह स्मार्ट, स्टाइलिश था और हर लड़की का ख्वाब। लेकिन उसमें एक चीज की कमी थी – संस्कार।
विक्रम हमेशा सोचता था कि कोई ऐसी लड़की हो जो उसके बेटे की जिंदगी में स्थिरता लाए, जो इस घर को संभाल सके और इस खानदान के संस्कारों को आगे बढ़ा सके। तभी एक दिन उसे अपने पुराने दोस्त मोहन चौहान की याद आई। वह तुरंत अपने दोस्त मोहन के घर गए।
शादी की शुरुआत
दोनों एक दूसरे से मिलकर काफी खुश हुए। बातचीत के दौरान जब विक्रम की नजर अनन्या पर पड़ी, तो वह बस मुस्कुरा दिया। विक्रम ने मोहन से कहा, “मोहन, मेरी एक ख्वाहिश है कि तेरी बेटी अनन्या मेरे घर की बहू बने।” यह सुनकर मोहन चौंकते हुए बोला, “विक्रम, हम छोटे लोग हैं। तुम्हारे जैसे बड़े घर में मेरी बेटी कैसे?” विक्रम ने बात काट दी। “छोटा कोई नहीं होता मोहन, और बड़ा होना सिर्फ पैसों से नहीं, दिल से होता है।”
सिया उस वक्त कमरे के बाहर थी, लेकिन उसने सब सुन लिया था। उसके दिल में डर भी था और आदर भी। उसने अपने पिता से कहा, “पापा, अगर आपको लगता है कि यही सही है तो मैं तैयार हूं।” और फिर पूरे शहर में वह शादी हुई। ऐसी शादी जिसे लोग सालों तक याद करते रहे। विक्रम राजवंश ने अपनी बहू का स्वागत रानी की तरह किया। अनन्या के सिर पर लाल दुपट्टा था और आंखों में अनजान सफर का साया।
शादी के बाद का जीवन
शादी के बाद कुछ महीने बेहद खुशनुमा थे। विक्रम अनन्या को अपनी बेटी की तरह मानता था। घर के नौकर उससे इज्जत से बात करते थे और पूरे राजवंत हाउस में पहली बार किसी के कदमों से सुकून की खुशबू आई थी। लेकिन कहते हैं ना, जिंदगी इतनी आसान नहीं होती। अनन्या की जिंदगी भी कुछ ऐसे ही थी।
आर्यन के चेहरे पर हमेशा मुस्कान रहती थी, लेकिन उस मुस्कान के पीछे एक अजीब सा खालीपन था। वह अनन्या से बातें करता, मगर मन से कभी उसने अनन्या को नहीं अपनाया था। धीरे-धीरे वो अनन्या पर गुस्सा करने लगा। कभी कहता, “अनन्या, तुम्हें थोड़ा स्टाइलिश होना चाहिए। यह सादगी अब पुरानी हो गई है।” कभी ताना मारता, “तुम्हारा यह देसी तरीका मुझसे नहीं झेलता। मैं शहर के लोगों जैसा हूं, तुम गांव की हो।”
अनन्या हर बात को हंसी में टाल देती। वह सोचती, शायद वक्त के साथ सब ठीक हो जाएगा। पर वक्त ठीक नहीं हुआ, बल्कि और भी बेरहम हो गया। अनन्या हर रोज मंदिर में दीप जलाती, अपने पति की सलामती की दुआ मांगती और उसी वक्त आर्यन ऑफिस के नाम पर किसी और की बाहों में होता। उसे अनन्या की सादगी में अब बोरियत महसूस होती थी। वह अनन्या को पत्नी नहीं, एक जिम्मेदारी समझने लगा था।
आर्या का जन्म
इसी तरह अनन्या की शादी को एक साल गुजर गया। इस बीच अनन्या ने एक बेटी को जन्म दिया। एक नन्ही सी परी, आर्या। उसके जन्म ने विक्रम के घर में खुशियां भर दीं। दादा ने मिठाई बांटी, पूरे स्टाफ को इनाम दिया, लेकिन आर्यन बस खड़ा रहा, बिना किसी भाव के। वो बच्ची उसकी आंखों में बैठी नहीं, बस एक अजनबी थी।
रात को जब अनन्या ने पूछा, “आर्यन, देखो ना कितनी प्यारी है हमारी बेटी।” आर्यन ने ठंडे लहजे में कहा, “मेरे पास अभी टाइम नहीं है इन सबके लिए।” वह लहजा अनन्या के दिल में तीर की तरह उतर गया। वह जानती थी कि कुछ बदल गया है।
कमरे के अंधेरे में अनन्या अपनी बच्ची को सीने से लगाकर रोती थी। उसकी गोद में आर्या होती पर आंखों में सवाल। क्या हर लड़की का नसीब ऐसा ही होता है? वह नहीं जानती थी कि आने वाले दिनों में उसकी यह सादगी, उसकी यह मासूमियत ही उसे सड़क पर ला देगी।
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