सिर्फ कपड़ों से मत आंकिए – रमेश शर्मा की कहानी

दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे का घरेलू टर्मिनल यात्रियों से भरा हुआ था। बिजनेस क्लास लाउंज में एक साधारण से बुजुर्ग व्यक्ति बैठे थे – रमेश शर्मा। वे जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर थे। उनके कपड़े बहुत साधारण – खादी का कुर्ता, सफेद पायजामा, पैरों में साधारण चप्पल। उनके पास कोई महंगी घड़ी नहीं थी, और उनका चमड़े का बैग भी कई साल पुराना था। वे ऐशो-आराम से दूर, गहरी सोच में डूबे थे।

अगले दिन उन्हें देश के नए वित्त मंत्री के रूप में शपथ लेनी थी। यह उनकी आखिरी यात्रा थी एक आम नागरिक की तरह – बिना किसी प्रोटोकॉल या सुरक्षा के।

लाउंज में बैठे बाकी यात्री, जो महंगे सूट और चमकदार कपड़ों में थे, उन्हें तिरस्कार भरी नजरों से देख रहे थे।
“यह गरीब सा आदमी यहां क्या कर रहा है?” – कई की आंखों में यही सवाल था।
लेकिन रमेश शर्मा ने किसी की परवाह नहीं की।

घोषणा हुई –
“मुंबई जाने वाली फ्लाइट BG6X7 के बिजनेस क्लास यात्रियों को गेट नंबर 4 पर जाने का अनुरोध है।”

रमेश शर्मा धीरे-धीरे उठे और लाइन में लगे।
गेट पर ड्यूटी कर रही थी एयर होस्टेस प्रिया – चमकदार यूनिफॉर्म, लाल लिपस्टिक, चेहरे पर घमंड भरी मुस्कान।
उसने सामने खड़े सूट वाले यात्री का स्वागत किया – “वेलकम सर!”

लेकिन जैसे ही रमेश शर्मा की बारी आई, उसकी मुस्कान गायब हो गई।
उसने उन्हें ऊपर से नीचे तक देखा और अपने सहकर्मी से कहा,
“माफ कीजिए अंकल, यह बिजनेस क्लास की लाइन है। इकोनॉमी क्लास उधर है।”

रमेश शर्मा ने शांति से अपनी टिकट आगे बढ़ाई।
प्रिया ने झटके से टिकट ली और देखा – सीट नंबर 2A।
वह बड़बड़ाई – “जरूर कोई गलती है।”
ऊंची आवाज में बोली,
“देखिए, आपको गलतफहमी हो रही है। यह सीट आपकी नहीं हो सकती।”

आसपास के लोग देखने लगे।
रमेश शर्मा बोले, “टिकट तो मेरी ही है।”
अब प्रिया की आवाज और तीखी हो गई –
“आप जैसे लोग दूसरों का कार्ड इस्तेमाल करके टिकट खरीद लेते हैं। कृपया हमारा समय बर्बाद न करें। हट जाइए।”

पीछे से एक यात्री बोला –
“उनके पास तो टिकट है।”
कुछ लोग वीडियो बनाने लगे।
लेकिन प्रिया नहीं रुकी –
“ठीक है, आपके पैसे वापस कर दिए जाएंगे। अब लाइन छोड़ दें।”

रमेश शर्मा नहीं हिले।
उनकी नजरें प्रिया की आंखों से टकरा रही थीं।
“मैं अपनी सीट पर ही बैठूंगा।”

तभी एक जूनियर अटेंडेंट अजय आया।
“क्या हुआ दीदी?”
प्रिया बोली – “देख, यह देहाती सा आदमी जबरदस्ती बिजनेस क्लास में घुसना चाहता है। टिकट नकली है।”
अजय ने टिकट स्कैन किया – हरी बत्ती जली।
“टिकट तो असली है दीदी।”

प्रिया का चेहरा गुस्से से लाल हो गया।
उसने चिल्लाकर कहा,
“इसके चेहरे को देखा है? क्या यह 2A सीट का यात्री लगता है?”

रमेश शर्मा ने गहरी सांस ली –
“मैं अपनी सीट पर ही बैठूंगा।”
उनकी आवाज में ऐसी दृढ़ता थी कि प्रिया एक पल को ठिठक गई।
अनमने ढंग से हट गई, लेकिन जाते-जाते फुसफुसाई –
“देखते हैं तुम कितनी देर उस सीट पर बैठ पाते हो।”

रमेश शर्मा बिना जवाब दिए केबिन में चले गए।
2A सीट पर बैठ गए।
प्रिया केबिन में आई, उन्हें तीखी नजरों से देखा, लेकिन पानी सर्व करते वक्त उन्हें जानबूझकर नजरअंदाज कर दिया।
बगल वाले यात्री को कॉफी दी, लेकिन रमेश शर्मा की बारी आई तो चेहरा सख्त था –
“क्या चाहिए आपको?”
“बस थोड़ा पानी।” – उन्होंने शांति से कहा।
प्रिया ने पानी की बोतल ऐसे फेंकी जैसे मजबूरी में दे रही हो।

रमेश शर्मा ने शांत भाव से पानी पिया।
उनके बगल में बैठे अशोक मेहता – एक मशहूर उद्योगपति – सब देख रहे थे।
रमेश शर्मा की शांति, गंभीरता और गरिमा कपड़ों से छुप नहीं रही थी।

जब प्रिया गर्म तौलिया देने आई, तब भी रमेश शर्मा को नजरअंदाज कर गई।
अब यात्रियों में खुसफुसाहट शुरू हो गई –
“यह एयर होस्टेस उस आदमी के साथ ऐसा व्यवहार क्यों कर रही है?”

विमान मुंबई पहुंचा। उतरने की तैयारी होने लगी।
प्रिया आखिरी बार उनके पास आई –
“आप जैसे गंदे लोग इस फ्लाइट में चढ़कर पूरे केबिन का माहौल खराब कर देते हैं।”

रमेश शर्मा ने उसकी ओर देखा, लेकिन कुछ नहीं बोले।
उनकी खामोशी प्रिया के अहंकार को और भड़का रही थी।

अब अशोक मेहता खड़े हुए –
“बस बहुत हो गया। आपने सारी हदें पार कर दीं। आपने ना सिर्फ एयरलाइन बल्कि हम सभी यात्रियों का अपमान किया है।”

बाकी यात्री भी समर्थन में बोलने लगे।
प्रिया शर्मिंदगी और अपमान से लाल हो गई।

तभी विमान का दरवाजा खुला।
रनवे पर कई सरकारी गाड़ियां, कैबिनेट डिवीजन के अधिकारी, पुलिस और पत्रकारों की भीड़ थी।
लाल कालीन विमान की सीढ़ियों तक बिछा था।

यात्रियों को हैरानी हुई –
“कोई मंत्री या वीआईपी आया है क्या?”

अजय दौड़कर प्रिया के पास आया –
“दीदी, यह देखो।”
फोन पर ब्रेकिंग न्यूज़ –
“देश के नए वित्त मंत्री रमेश शर्मा कल शपथ लेंगे।”
तस्वीर – सीट 2A पर बैठे वही व्यक्ति।

प्रिया के हाथ से फोन गिरते-गिरते बचा।
उसका पूरा संसार हिल गया।
वह तेजी से रमेश शर्मा की ओर भागी –
“सर, रुकिए प्लीज!”
वे रुके।
प्रिया टूटी आवाज में बोली –
“सर, मैं वाकई माफी मांगती हूं। मैं आपको पहचान नहीं पाई।”

रमेश शर्मा ने उसकी ओर देखा।
आंखों में नफरत या बदले की आग नहीं – बस गहरी उदासी और करुणा थी।
शांत स्वर में बोले –
“वह सम्मान जो हर नागरिक को बराबर मिलना चाहिए, उसे अब आप मुझे मंत्री जानने के बाद देना चाहती हैं?
सम्मान तो धन या सत्ता के लिए नहीं, इंसान के लिए होता है बेटी।”

प्रिया के सीने में यह शब्द तीर की तरह चुभ गए।
वह कुछ नहीं बोल पाई।

रमेश शर्मा विमान से उतरे –
चारों ओर कैमरों की फ्लैश, अधिकारियों का स्वागत, फूलों की बारिश।
गाड़ी में बैठने से पहले उन्होंने एक बार विमान की ओर देखा।
अंदर यात्री खिड़कियों से देख रहे थे – कई की आंखों में शर्मिंदगी और पछतावे के आंसू थे।

वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गए।
एयरलाइंस पर निंदा की बौछार हुई।
प्रिया को नौकरी से निकाल दिया गया, एयरलाइंस ने देश से माफी मांगी।

रमेश शर्मा ने शपथ ग्रहण समारोह में कहा –
“मैंने उसे माफ कर दिया। सजा देकर किसी को नहीं बदला जा सकता। उम्मीद है यह घटना हम सभी को एक बड़ा सबक देगी कि इंसान को उसके कपड़ों और चेहरे से जज करना कितना गलत है।”

इस घटना ने पूरे देश में बदलाव ला दिया।
सर्विस सेक्टर के कर्मचारी साधारण दिखने वाले लोगों को भी सम्मान देना सीख गए – क्योंकि उन्हें पता चल गया था कि उनके सामने खड़ा साधारण सा इंसान भी शायद कोई रमेश शर्मा हो सकता है, जो देश के लिए चुपके से काम कर रहा हो।