बुज़ुर्ग ने नर्स को जो राज बताया.. उसने उसकी रूह कांप गई – फिर जो हुआ | Heart Touching Story

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बूढ़े मरीज का राज: अनाया की सेवा और इंसानियत की जीत

मुंबई का सबसे व्यस्त सरकारी अस्पताल, जहाँ हर कोने में दर्द, उम्मीद और संघर्ष की कहानियाँ बिखरी रहती थीं। इसी अस्पताल में पिछले छह सालों से सेवा कर रही थी 29 साल की नर्स अनाया वर्मा। पहाड़ी कस्बे में पली-बढ़ी अनाया के लिए नर्सिंग सिर्फ नौकरी नहीं, बल्कि सेवा का जरिया थी। उसका सपना बस इतना था कि माँ की देखभाल करे, छोटे भाई को पढ़ाए और हर मरीज को परिवार की तरह माने।

अनाया की कोमल मुस्कान और नरम स्वभाव ने उसे अस्पताल में सबका चहेता बना दिया था। स्टाफ उसे “दीदी” बुलाता, लेकिन अस्पताल की कठोर व्यवस्था और कुछ सहकर्मियों की बेरुखी कई बार उसके दिल को चोट पहुंचाती थी। उसे सबसे ज्यादा तकलीफ तब होती जब कोई लावारिस, बेनाम मरीज वार्ड में आता। ऐसे मरीजों को अक्सर किसी कोने में डाल दिया जाता, जहाँ उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं होता।

करीब डेढ़ महीने पहले, एक रात पुलिस एक बुजुर्ग आदमी को अस्पताल छोड़ गई। वह रेलवे प्लेटफॉर्म के बेंच पर अचेत मिला था। 72 साल की उम्र, साधारण लेकिन साफ कपड़े, जेब में न कोई पहचान पत्र, न मोबाइल। डॉक्टरों ने बताया कि उन्हें स्ट्रोक आया है और वे गहरे कोमा में हैं। बचने की उम्मीद बेहद कम थी। कागजों में उनका नाम “अननोन पेशेंट, बेड नंबर 17” दर्ज किया गया। बाकी स्टाफ ने औपचारिकता निभाई, लेकिन अनाया ने जब उनके झुर्रियों भरे चेहरे को देखा तो उसे अपने पिता की याद आ गई, जिन्हें उसने बचपन में बीमारी के कारण खो दिया था।

उसने बुजुर्ग को दिल से अपना मान लिया और मन ही मन “अजू बाबा” नाम दे दिया। अगले ही दिन से अनाया ने बाबा की सेवा को अपनी जिम्मेदारी बना लिया। ड्यूटी के बाद भी वह उनके पास बैठती, सफाई करती, कपड़े बदलती, ट्यूब से खाना देती। बाकी नर्सें तंज कसतीं, “क्यों अपना वक्त खराब कर रही हो? ये दो-चार दिन के मेहमान हैं।” अनाया बस मुस्कुरा देती, “कोई नहीं है तभी तो हम हैं। नर्स का काम सिर्फ इंजेक्शन लगाना नहीं, दिल से देखभाल करना भी है।”

वह बाबा से बातें करती, अपने गांव के किस्से सुनाती, माँ का हाल बताती, कभी पुराने गीत गुनगुनाती। उसे लगता शायद उसकी आवाज बाबा के दिल तक पहुँच रही हो। अपनी सैलरी से उनके लिए कंबल, नए कपड़े, घर से बना सूप लाती। एक महीना बीत गया, लेकिन बाबा की हालत में कोई खास सुधार नहीं हुआ। डॉक्टरों ने उम्मीद छोड़ने को कहा, लेकिन अनाया ने हारना सीखा ही नहीं था।

एक रात वह बाबा के पास बैठी थी, उनकी हथेली थामे बोली, “आप जल्दी ठीक हो जाइए बाबा, सब आपका इंतजार कर रहे हैं।” उसी वक्त अस्पताल के बाहर एक विदेशी कार आकर रुकी। उसमें से उतरा 33-34 साल का एक युवक, महंगा सूट पहने, चेहरे पर चिंता की लकीरें—आर्यन कपूर, न्यूयॉर्क का सफल टेक उद्यमी। वह रिसेप्शन पर आया और पिता सुरेश कपूर की फोटो दिखाकर पूछा, “ये मेरे पिता हैं, क्या ये यहाँ भर्ती हैं?” नाम खोजा गया, लेकिन कोई सुराग नहीं मिला।

तभी एक वार्ड बॉय ने फोटो देखकर कहा, “ये तो हमारे बेड नंबर 17 वाले लावारिस मरीज हैं।” आर्यन का दिल बैठ गया। वह भागकर वार्ड पहुँचा, जहाँ मशीनों से घिरे कमजोर, बेसुध अपने पिता को देखकर उसकी आँखों में आँसू आ गए। गुस्से में वह डॉक्टर पर चिल्लाने ही वाला था कि उसकी नजर अनाया पर पड़ी, जो बाबा का सिर ठीक कर रही थी, गीले कपड़े से चेहरा पोंछ रही थी और धीमे से कह रही थी, “देखिए बाबा, आज सूरज की धूप लग रही है, आँखें खोलिए ना…”

आर्यन के गुस्से की जगह कृतज्ञता ने ले ली। वार्ड बॉय ने बताया, “अगर आपके पिता आज जिंदा हैं तो सिर्फ इस दीदी की वजह से।” आर्यन ने अनाया के पास जाकर हाथ जोड़कर कहा, “मैं आर्यन कपूर हूं, ये मेरे पिता हैं। आपने जो किया उसका एहसान मैं कैसे चुकाऊँ?” अनाया ने विनम्रता से कहा, “एहसान मत कहिए साहब, ये तो मेरा फर्ज था।”

आर्यन को पहली बार लगा कि इस महिला की इंसानियत उसके साम्राज्य से कहीं बड़ी है। उसने तुरंत सबसे अच्छे अस्पताल में ट्रांसफर की कोशिश की, लेकिन अनाया ने डॉक्टर की अनुमति के बिना मना कर दिया। आर्यन ने महसूस किया कि वह सिर्फ नर्स नहीं, एक सच्ची योद्धा है। कुछ दिनों में बाबा को प्राइवेट अस्पताल ले जाया गया। जाते वक्त आर्यन ने चेक देना चाहा, लेकिन अनाया ने विनम्रता से ठुकरा दिया, “मैंने जो किया पैसों के लिए नहीं किया।”

आर्यन ने तय किया कि वह अनाया के लिए कुछ ऐसा करेगा जो जिंदगी भर का सम्मान होगा। बाबा के इलाज के दौरान आर्यन अक्सर सरकारी अस्पताल आता, अनाया की सेवा देखता। उसने पाया कि अनाया हर मरीज के लिए वैसी ही समर्पित थी—चाहे वह कोई गरीब रिक्शेवाला हो या घायल बच्चा। एक दिन देखा कि अनाया ड्यूटी के बाद एक बुजुर्ग महिला को व्हीलचेयर पर बाहर ले जा रही थी, जो पास की झुग्गी में रहती थी और जिसे वह हफ्ते में दो बार मुफ्त दवा देने जाती थी।

कुछ हफ्तों में बाबा पूरी तरह होश में आ गए। पहली बार आँखें खोलते ही बोले, “तुम मेरी बेटी हो।” अनाया की आँखें भर आईं, “अगर आप चाहें तो हाँ…” बाबा ने उसका हाथ पकड़ा। अगले दिन बाबा को डिस्चार्ज कर दिया गया। मीडिया में खबर आई, “लावारिस बुजुर्ग निकले बिजनेस टाइकून, एक नर्स की सेवा ने बचाई जान।” कई चैनल इंटरव्यू लेने आए, लेकिन अनाया ने मना कर दिया।

आर्यन जानता था, उसने अनाया को अभी तक असली धन्यवाद नहीं दिया। एक हफ्ते बाद अस्पताल के डीन को बुलाकर सबके सामने घोषणा की, “मैं अपने पिता के नाम पर इस शहर में एक सुपर स्पेशलिटी चैरिटेबल अस्पताल बनवाऊंगा, जहाँ हर गरीब और लावारिस मरीज का मुफ्त इलाज होगा, और उसकी हेड एडमिनिस्ट्रेटर होंगी अनाया वर्मा।” पूरा वार्ड तालियों से गूंज उठा। अनाया के हाथ काँप रहे थे, “मैं तो बस साधारण नर्स हूँ…” लेकिन बाबा बोले, “अब तुम मेरी बेटी हो, यह जिम्मेदारी तुम्हारी है।”

कुछ महीनों में सुरेश कपूर चैरिटेबल हॉस्पिटल की इमारत खड़ी हो गई। आर्यन ने अनाया को लंदन में हॉस्पिटल मैनेजमेंट का कोर्स कराया। लेकिन इस बदलाव से कुछ लोग नाराज थे—पुराने कर्मचारी और वे लोग जिनके गैरकानूनी धंधे अस्पताल के आसपास चलते थे। अनाया को धमकी भरे नोट मिलने लगे, “तुम्हारी भलाई तुम्हें महंगी पड़ेगी…”। एक रात लौटते वक्त मोटरसाइकिल सवार ने फुसफुसाया, “अपने लिए प्रार्थना करना शुरू कर दे…” लेकिन अनाया ने डरना नहीं सीखा था।

फिर एक रात अस्पताल से लौटते वक्त दो नकाबपोशों ने उसे अगवा कर लिया। उसे एक सुनसान गोदाम में ले जाया गया। वहाँ एक आदमी बोला, “या तो डायरेक्टर पद से इस्तीफा दे दो, या फिर…” अनाया ने दृढ़ता से कहा, “अगर आप सोचते हैं कि मैं डर जाऊंगी, तो आपको इंसानियत की ताकत का अंदाजा नहीं है।” दो दिन कैद में रही, लेकिन हिम्मत नहीं हारी। तीसरे दिन पुलिस ने छापा मारकर उसे छुड़ाया। पता चला, यह वही गैंग था जो लावारिस मरीजों के नाम पर सरकारी फंड लूटता था।

अस्पताल का उद्घाटन भव्य तरीके से हुआ। बाबा ने रिबन काटने की कैंची अनाया को दी, “यह तुम्हारा सपना है बेटा, इसे तुम ही शुरू करो…”। मीडिया, शहर के लोग और सैकड़ों गरीब मरीज मौजूद थे। अब यह अस्पताल सिर्फ इलाज का नहीं, इंसानियत का किला बन गया था।

लेकिन खतरे अभी खत्म नहीं हुए थे। एक दिन अस्पताल के आईसीयू में अचानक बिजली चली गई, बैकअप भी बंद कर दिया गया। अनाया ने मैन्युअल बैग पंप से मरीजों की जान बचाई। जांच में पता चला, यह किसी की साजिश थी। आर्यन को धमकी भरा कॉल आया, “अस्पताल बंद कर दो…”। बाबा को भी धमकी मिली, “अगर बेटी जिंदा रही तो तुम्हारा नाम मिटा देंगे…”। लेकिन अनाया ने हार नहीं मानी, “अगर मैं पीछे हट गई, तो यह अस्पताल अपने मकसद से पहले ही हार जाएगा।”

अनाया ने शहर की झुग्गियों में मुफ्त हेल्थ कैंप शुरू किए। एक दिन हेल्थ कैंप में एक लड़का दौड़ता हुआ आया, “दीदी, कोई आपको बुला रहा है…” जैसे ही अनाया पीछे वाली गली में पहुँची, उसे अगवा कर लिया गया। इस बार आर्यन ने पीछा किया, पुलिस को लोकेशन भेजी। फैक्ट्री में अनाया को कुर्सी से बाँधा गया था। सामने डॉक्टर राघव मल्होत्रा था, जिसने सरकारी फंड और दवाओं का धंधा चलाया था। “तुम्हारे जैसे लोगों ने मेरा साम्राज्य बर्बाद किया, अब देखना तुम्हारी लाश अखबार में छपेगी…” तभी आर्यन ने हमला किया, पुलिस ने छापा मारा और राघव को गिरफ्तार कर लिया गया।

बाबा बोले, “बेटी, आज तुमने सिर्फ अपनी नहीं, इस अस्पताल की आत्मा बचाई है।” अस्पताल अब इंसानियत की मिसाल बन गया। एक साल बाद अस्पताल की सालगिरह पर बाबा ने कहा, “जब मेरी जान मुश्किल में थी, एक अनजान लड़की ने मुझे अपना मान लिया। आज वह हजारों का परिवार संभाल रही है—वह मेरी बेटी है।” अनाया ने कहा, “यह अस्पताल मेरा नहीं, हम सबका है। अगर आप में से कोई भी लावारिस को देखे, तो उसे अपना मानिए। इंसानियत का सबसे बड़ा इनाम खुद इंसानियत है।”

तालियों की गूंज में आर्यन ने कहा, “तुम्हारे बिना यह सब कभी मुमकिन नहीं था।” अनाया मुस्कुराई, “यह सब हमारे बाबा की वजह से है।” आसमान में हल्की बारिश शुरू हो गई थी—जैसे ऊपर वाला भी इस सफर को आशीर्वाद दे रहा हो। अस्पताल के बोर्ड पर लिखा था, “जहाँ इंसानियत जिंदा है।” और उस दिन के बाद किसी ने अनाया को साधारण नर्स नहीं कहा—वह उम्मीद का दूसरा नाम बन गई थी।

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