सुबह की हलचल और एक साधारण महिला का आगमन

सुबह का समय था। गांव के बाहर बनी सब्जी मंडी में रोज की तरह हलचल शुरू हो चुकी थी। लोग सब्जियां खरीद रहे थे, मोलभाव कर रहे थे, और मजदूर ठेले खींचते नजर आ रहे थे। मगर इस भीड़ में एक साधारण महिला मौजूद थी, जिसकी वहां उपस्थिति किसी को भी असामान्य लगी।

वह महिला साधारण कपड़ों में थी, न कोई सरकारी गाड़ी और न ही कोई सुरक्षा गार्ड। देखने वालों को लगा कि यह कोई बाहर की महिला है। मगर किसी को अंदाजा तक नहीं था कि यह जिले की नई आईपीएस अधिकारी नीता वर्मा हैं।

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ठेले पर बुजुर्ग महिला और इंस्पेक्टर की दादागिरी

आईपीएस नीता वर्मा मंडी में घूमते हुए एक ठेले के पास रुकी। वहां एक बुजुर्ग महिला सब्जियां बेच रही थी। नीता ने हल्की मुस्कान के साथ पूछा, “अम्मा, गोभी क्या भाव दिए हैं?” महिला ने जवाब दिया, “बेटी, आज गोभी 40 रुपये किलो है। आपको कितना चाहिए?”

तभी मोटरसाइकिल की तेज आवाज मंडी में गूंजी। बाइक पर इंस्पेक्टर राजेश शर्मा मंडी में दाखिल हुआ। वह सीधे उसी बुजुर्ग महिला के ठेले पर रुका। महिला के चेहरे पर घबराहट साफ झलक रही थी। उसने सिर झुकाकर धीमे स्वर में कहा, “आज क्या चाहिए आपको, इंस्पेक्टर साहब? जो भी चाहिए, ले लीजिए।”

इंस्पेक्टर ने बिना पैसे दिए गोभी और भिंडी ली और वहां से चला गया। यह सब देखकर नीता वर्मा हैरान रह गई। उन्होंने बुजुर्ग महिला से पूछा, “अम्मा, उस इंस्पेक्टर ने आपको सब्जियों के पैसे क्यों नहीं दिए? और आपने उससे कुछ कहा क्यों नहीं?”

महिला ने दर्द भरे स्वर में कहा, “बेटी, यह इंस्पेक्टर हर दिन ऐसे ही बिना पैसे दिए सब्जियां ले जाता है। जब मैं मना करती हूं तो मुझे धमकाता है। कहता है, ‘तेरा ठेला उठवाकर नाले में फेंक दूंगा।’ मेरे पति विकलांग हैं, और घर चलाने के लिए मुझे मजबूरी में चुप रहना पड़ता है।”

नीता वर्मा का फैसला

नीता यह सुनकर भीतर तक हिल गईं। उन्होंने बुजुर्ग महिला का हाथ थामते हुए कहा, “अम्मा, अब आपको डरने की जरूरत नहीं है। कल जब आप ठेला लगाएंगी, तो मुझे कॉल करना। मैं खुद देखूंगी कि वह पैसे दिए बिना कैसे जाता है। अगर उसने ऐसा किया, तो मैं उसके खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई करूंगी।”

अगली सुबह: नीता का असली रूप

अगली सुबह नीता ने साधारण कपड़े पहनकर बुजुर्ग महिला के ठेले पर बैठने का फैसला किया। कुछ ही देर में इंस्पेक्टर राजेश शर्मा वहां पहुंचा। उसने ठेले पर नीता को देखकर पूछा, “तू कौन है?” नीता ने जवाब दिया, “मैं उनकी बेटी हूं। आज उनकी तबीयत खराब थी, इसलिए मैं ठेले पर बैठी हूं।”

राजेश ने बिना पैसे दिए सब्जियां लीं और जाने लगा। तभी नीता ने सख्त आवाज में कहा, “रुकिए इंस्पेक्टर साहब। आपने सब्जियों के पैसे नहीं दिए।”

राजेश गुस्से में बोला, “मैं तो रोज फ्री में सब्जियां लेता हूं। तू मुझे रोकने वाली कौन है?”

नीता ने दृढ़ स्वर में कहा, “आपको पैसे देने होंगे। यह ठेला हमारी रोजी-रोटी है।”

राजेश का गुस्सा और बढ़ गया। उसने नीता को थप्पड़ मार दिया। लेकिन नीता ने हिम्मत नहीं हारी। उसने कहा, “आपने बहुत बड़ी गलती की है। अब आपको इसका अंजाम भुगतना पड़ेगा।”

पुलिस थाने में न्याय की गूंज

अगले दिन नीता वर्मा अपने असली रूप में पुलिस थाने पहुंचीं। उन्होंने इंस्पेक्टर राजेश शर्मा और एसएओ श्रीकांत को निलंबित कर दिया। उन्होंने सख्त स्वर में कहा, “वर्दी पहनने का मतलब यह नहीं कि आप कानून तोड़ें। कानून से बड़ा कोई नहीं है।”

नतीजा: एक नए बदलाव की शुरुआत

उस दिन के बाद पुलिस थाने में गरीबों के साथ अन्याय बंद हो गया। नीता वर्मा ने साबित कर दिया कि कानून की ताकत वर्दी से कहीं ज्यादा होती है।

यह कहानी हमें सिखाती है कि सही समय पर सही कदम उठाने से अन्याय का अंत संभव है। अगर आपको यह कहानी प्रेरणादायक लगी हो, तो इसे ज्यादा से ज्यादा लोगों तक शेयर करें।