जिस लड़के को नौकरी पर रखने से मना किया बुरे समय पर उसने ही कंपनी को बचाया

शाह टेक्सटाइल मिल्स की कहानी – अनाया, आरव और करण

लखनऊ के मशहूर शाह टेक्सटाइल मिल्स के पुराने दफ्तर में, एक बड़े से काठ के कमरे में अनाया अपने डेस्क पर बैठी थी। उसके हाथों में एक पुरानी तस्वीर थी—उसके होने वाले मंगेतर आरव शाह की। तस्वीर में आरव की मुस्कान ऐसी थी, जैसे वह अभी भी अनाया से बात कर रहा हो। लेकिन अनाया की आंखों से आंसू टपक रहे थे। एक साल पहले, एक मूसलाधार बारिश की रात में, आरव का एक कार हादसे में देहांत हो गया था।

शाह मिल्स, जो कभी आरव के नेतृत्व में लखनऊ की शान थी, अब धीरे-धीरे डूब रही थी। अनाया ने मिल की कमान संभाली थी, लेकिन उसका दिल टूट गया था। हर शाम वह आरव की यादों में खो जाती और उसका पसंदीदा गीत “तुम बिन जिया जाए कैसे” पुराने ग्रामोफोन पर बजता रहता।

अनाया 28 साल की एक खूबसूरत और मजबूत इरादों वाली युवती थी, लेकिन आरव के जाने के बाद उसकी जिंदगी में एक खालीपन था, जो हर पल उसे सताता। शाह हवेली में उसके साथ रहते थे: उसकी मौसी, मौसा, नानी, नाना और छोटी बहन रिया। अनाया के माता-पिता बचपन में ही गुजर चुके थे, इसलिए मौसी-मौसा उसके लिए माता-पिता जैसे थे। नानी-नाना हवेली की रौनक थे, और 20 साल की रिया, जो कॉलेज में पढ़ती थी, अनाया की साए की तरह थी। घरवाले उसकी उदासी देखकर चिंतित रहते, पर कोई उसका दुख हल्का नहीं कर पाता।

एक दिन दफ्तर का दरवाजा खुला। एक नौजवान करण अंदर आया। करीब 30 साल का, स्मार्ट, सभ्य, लेकिन उसकी आंखों में एक गहरा राज छिपा था। उसने सादी कुर्ता-पजामा पहना था, हाथ में एक पत्रसूची थी। “जी मैं करण हूं। मुझे आपकी मिल में काम चाहिए,” उसने सीधे कहा।

अनाया ने तस्वीर डेस्क पर रख दी और उसकी ओर देखा, “तुम्हारी योग्यता क्या है?” उसने थकी आवाज में पूछा। करण ने अपनी पत्र सूची आगे बढ़ाई, “मैंने वाणिज्य में पढ़ाई की है और पिछले 5 सालों से दो बड़ी मिल्स में प्रबंधक रहा हूं। व्यापार और प्रबंधन में महारत है।” अनाया ने पत्र सूची देखी, प्रभावित हुई, लेकिन दिल से तैयार नहीं थी। “माफ कीजिए, अभी कोई खाली जगह नहीं है,” उसने कहा।

करण निराश नहीं हुआ, “अनाया जी, मुझे एक मौका दीजिए। मैं जानता हूं शाह मिल्स की हालत। आरव जी के जाने के बाद यह मुश्किल में है। लेकिन मैं इसे फिर से उड़ान दे सकता हूं।” आरव का नाम सुनते ही अनाया की आंखें नम हो गईं, “तुम्हें कैसे पता?” करण ने मुस्कुरा कर कहा, “मैंने खोज की है। शाह मिल्स का नाम लखनऊ में गूंजता था।”

मिल वाकई संकट में थी। कर्मचारी जा रहे थे, मुनाफा घट रहा था। शायद एक नया प्रबंधक मदद कर सकता था। “ठीक है, कल से काम शुरू करो। प्रबंधक की जगह पर,” उसने कहा। करण की आंखें चमक उठीं, “शुक्रिया जी, आप निराश नहीं होंगी।”

अनाया फिर तस्वीर की ओर देखने लगी। उसे नहीं पता था कि यह फैसला उसकी जिंदगी बदल देगा।

शाम को शाह हवेली लौटकर अनाया ने सबको बताया। मौसी ने कहा, “बेटी, अच्छा किया। मिल को ऐसे लोगों की जरूरत है।” नानी ने आशीर्वाद दिया, “भगवान करे सब ठीक हो जाए।” रिया उत्साहित थी, “दी, नया प्रबंधक कैसा है? कोई नवाबी ठाठ वाला?” अनाया ने हंसकर बात टाल दी, लेकिन करण का चेहरा उसके दिमाग में घूम रहा था।

अगले दिन करण दफ्तर आया। उसने काम संभाला, नई योजनाएं बनाई, कर्मचारियों से बात की, पुराने ग्राहकों से संपर्क किया। मिल में एक नई ऊर्जा आ रही थी। एक दिन करण हवेली आया, “अनाया जी, एक नई योजना पर विचार करना है।” घर पर ही बैठक रखी गई। मौसा ने करण से बात की, उसे पसंद किया, “बेटा, तुम जैसे नौजवान चाहिए हमें।” करण जल्दी ही परिवार का हिस्सा बन गया। लेकिन अनाया को करण की आंखों में कुछ अजीब लगता था, जैसे वह कोई राज छिपा रहा हो।

एक शाम दोनों हवेली के बगीचे में चाय पी रहे थे। “आरव जी के बारे में बताइए,” करण ने पूछा। अनाया की आंखें भर आईं, “वो मेरी जिंदगी थे। एक साल पहले मोटर गाड़ी के हादसे में चले गए।” करण का चेहरा पीला पड़ गया, लेकिन उसने खुद को संभाला, “माफ कीजिए जी।” अनाया ने जवाब दिया, “अब यह मिल ही मेरी जिंदगी है।” करण ने वादा किया, “मैं इसे फिर से चमका दूंगा।”

धीरे-धीरे शाह मिल्स संवरने लगी। नए ग्राहक आए, मुनाफा बढ़ा। करण का जादू चल रहा था, लेकिन उसका राज अभी छिपा था। वह शाह मिल्स में इसलिए आया था, ताकि अनाया की मदद करके अपने अंदर के बोझ को हल्का कर सके। एक साल पहले का वह हादसा उसे हर रात सताता था। लेकिन वह सच अभी किसी को नहीं बता सकता था।

एक दिन अनाया को दफ्तर में एक तस्वीर मिली। आरव और करण, दोनों मुस्कुराते हुए, 1973 की तारीख के साथ। “लखनऊ दोस्ती का एक यादगार दिन” तस्वीर के पीछे लिखा था। अनाया का दिल जोर-जोर से धड़कने लगा। आरव ने कभी करण का जिक्र क्यों नहीं किया? और करण, जो एक साल पहले ही शाह मिल्स में प्रबंधक बना, उसने यह बात क्यों छिपाई?

अनाया ने तस्वीर को डेस्क की दराज में बंद किया, लेकिन उसका मन बार-बार उस तस्वीर की ओर लौट रहा था। क्या करण कुछ छिपा रहा है?

दफ्तर में करण अपने काम में मशगूल था। उसने एक नई व्यापारिक योजना बनाई थी। एक विदेशी ग्राहक के साथ बड़ा सौदा। कर्मचारी उसकी तारीफ कर रहे थे, “करण साहब, आपने तो मिल को नई जान दे दी।” अनाया ने दूर से देखा। करण की मुस्कान में आत्मविश्वास था, लेकिन उसकी आंखों में वही उदासी थी जो अनाया को अजीब लगती थी।

शाम को करण शाह हवेली आया, “अनाया जी, विदेशी सौदे के कागजात दिखाने आया हूं।” रिया ने चहकते हुए पूछा, “भैया, आज क्या लाए हो? कोई नई कहानी?” करण ने हंसकर लखनऊ की नवाबों के जमाने की एक कहानी सुनाई। जिसमें दो दोस्तों की दोस्ती एक गलतफहमी की वजह से टूट गई थी। अनाया ने ध्यान से सुना, कहानी सुनकर उसे तस्वीर फिर याद आई, “करण, तुम 1973 में लखनऊ में थे?” उसने सहजता से पूछा।

करण ने पल भर रुककर जवाब दिया, “हां, कुछ समय के लिए, कॉलेज के बाद यहां कुछ काम था।” अनाया का शक गहरा गया, लेकिन उसने चुप रहना बेहतर समझा।

उसी रात अनाया सो नहीं पाई। वह आरव की पुरानी डायरी पढ़ रही थी। एक पन्ने पर लिखा था—”मुझे अपने दोस्त पर शक हो रहा है। उसने मुझसे कुछ छिपाया है।” अनाया का दिल बैठ गया। क्या वह दोस्त करण था? उसने नानी से पूछा, “नानी, आरव ने कभी किसी दोस्त का जिक्र किया था?” नानी ने सोचकर कहा, “हां, बेटी, एक बार एक कॉलेज के दोस्त का नाम लिया था, लेकिन ज्यादा कुछ नहीं बताया, कहता था वह अब मेरे लिए मायने नहीं रखता।”

अनाया ने तस्वीर को फिर देखा। उसने फैसला किया कि वह करण से सच पूछेगी।

अगले दिन दफ्तर में करण एक मीटिंग की तैयारी कर रहा था। अनाया ने उसे अकेले में बुलाया, “करण, यह तस्वीर कहां की है?” उसने तस्वीर दिखाई। करण का चेहरा पल भर के लिए पीला पड़ गया, लेकिन उसने खुद को संभाला, “यह पुरानी बात है। अनाया जी, मैं और आरव कॉलेज में दोस्त थे।” अनाया ने गुस्से में पूछा, “तो तुमने मुझे पहले क्यों नहीं बताया? तुम यहां क्यों आए?”

करण ने नजरें झुका कर कहा, “मैं नहीं चाहता था कि आप दुखी हो। आरव मेरे लिए भी बहुत मायने रखता था।” अनाया का गुस्सा और बढ़ गया, “तुम कुछ छिपा रहे हो करण। मुझे सच बताओ।” करण चुप रहा। तभी एक कर्मचारी ने आकर मीटिंग के लिए बुला लिया और बात अधूरी रह गई।

कंपनी में करण का जादू चल रहा था। नया सौदा पक्का हो गया। अखबारों में शाह मिल्स की वापसी की खबरें छपीं—”शाह मिल्स फिर से उड़ान भर रही है।” एक हेडलाइन थी। अनाया को गर्व था, लेकिन उसका शक कम नहीं हुआ।

एक शाम वह और करण एक व्यापारिक मेले में गए। मेला लखनऊ की रौनक से भरा था—रंग-बिरंगे स्टॉल, रेशमी साड़ियां, ठुमरी की धुनें। करण ने अनाया को एक रेशमी दुपट्टा गिफ्ट किया, “यह आपको शोभा देगा।” अनाया ने दुपट्टा लिया, उसकी आंखों में गर्माहट आई। लेकिन तभी एक पुराने दोस्त ने करण को पुकारा, “अरे करण, उस रात के बाद तुम कहां गायब हो गए?” अनाया ने सुना और पूछा, “कौन सी रात?” करण ने हंसकर बात टाल दी, “बस पुरानी बातें।”

घर लौटकर अनाया ने रिया से बात की, “रिया, मुझे लगता है करण कुछ छिपा रहा है। वह आरव को जानता था लेकिन बताता नहीं।” रिया ने हल्के से कहा, “दी, वह इतना अच्छा इंसान है, शायद तुम गलत सोच रही हो।” लेकिन अनाया ने फैसला किया कि वह सच जानकर रहेगी।

उसने मौसा को बताया, जो रिटायर्ड पुलिस अफसर थे, “मौसा, क्या आप आरव के हादसे की फाइल देख सकते हैं?” मौसा ने कहा, “बेटी, मैं कोशिश करता हूं।” मौसा ने अपने पुराने संपर्कों से फाइल निकलवाई। उसमें एक गवाह का बयान था—एक कार चालक जिसका नाम नहीं लिखा था। लेकिन गाड़ी का नंबर करण की पुरानी गाड़ी से मिलता-जुलता था।

अनाया सदमे में थी। क्या करण उस हादसे में था? उसने सोचा, लेकिन यकीन नहीं हुआ। करण भी अंदर ही अंदर टूट रहा था। वह हर रात उस हादसे को याद करता—बारिश की रात, तेज गाड़ी, सामने से आती आरव की गाड़ी, टक्कर के बाद सब खत्म। पुलिस ने इसे हादसा माना, लेकिन करण का दिल उसे दोषी ठहराता था। वह शाह मिल्स में इसलिए आया था, ताकि अनाया की मदद करके अपने गुनाह का बोझ हल्का कर सके। लेकिन अब सच सामने आने की कगार पर था।

एक दिन अनाया ने करण को हवेली बुलाया, “करण, मुझे सच बताओ। तुम आरव को कैसे जानते थे? और उस हादसे से तुम्हारा क्या लेना-देना है?” करण की आंखें नम हो गईं, “अनाया जी, मैं और आरव दोस्त थे। लेकिन कॉलेज के बाद हमारी राहें अलग हो गईं। मैं उससे मिलना चाहता था, लेकिन वह रुक गया।” अनाया चीखी, “बस करण, मुझे पूरा सच चाहिए।” करण ने कहा, “मुझे वक्त दीजिए, मैं सब बता दूंगा।” वह हवेली से चला गया और अनाया रोते हुए रह गई।

क्लिफहैंगर:
उसी रात अनाया को आरव का एक पुराना खत मिलता है, जो उसने हादसे से पहले लिखा था। खत में लिखा है—”अनाया, अगर मुझे कुछ हो जाए तो मेरे दोस्त को माफ कर देना। उसका कोई कसूर नहीं था।” ये शब्द उसके दिमाग में गूंज रहे थे। लेकिन वह दोस्त कौन था? क्या करण? और अगर हां, तो आरव उसे माफ करने को क्यों कह रहा था?

अनाया की आंखों में आंसू थे, लेकिन गुस्सा भी था। करण ने उससे सच छिपाया था। वह शाह मिल्स में क्यों आया? क्या सिर्फ नौकरी के लिए या इसके पीछे कोई और राज था? अनाया ने फैसला किया कि वह करण से आखिरी बार सच पूछेगी और अब कोई बहाना नहीं चलेगा।

दूसरे दिन शाह मिल्स के दफ्तर में उत्सव जैसा माहौल था। करण का विदेशी सौदा पक्का हो गया था और कर्मचारी जश्न मना रहे थे। अखबारों में हेडलाइन थी—”शाह मिल्स की शानदार वापसी, नया प्रबंधक करण लाया चमत्कार।” लेकिन अनाया का मन उदास था। उसने करण को अपने कक्ष में बुलाया, “करण, मुझे सच बताओ। तुम और आरव कैसे दोस्त थे, और उस खत में आरव ने किसे माफ करने को कहा?”

करण की आंखें झुक गईं, “अनाया जी, मैं और आरव कॉलेज में दोस्त थे, लेकिन एक गलतफहमी की वजह से हमारी दोस्ती टूट गई। मैं बस इतना ही कह सकता हूं।” अनाया ने गुस्से में कहा, “बस करण, तुम कुछ छिपा रहे हो। मुझे लगता है तुम आरव के हादसे से जुड़े हो।” करण ने नजरें उठाई, लेकिन फिर चुप रहा, “मुझे वक्त दीजिए,” उसने धीरे से कहा और बाहर चला गया।

अनाया का धैर्य टूट रहा था। उसने मौसा को सब बताया। मौसा ने कहा, “बेटी, मैंने फाइल देखी। उस हादसे में दूसरी गाड़ी का चालक एक गवाह था, लेकिन उसका नाम नहीं लिखा। गाड़ी का नंबर करण की पुरानी गाड़ी से मिलता है।” अनाया सदमे में थी, “तो क्या करण?” उसने अधूरी बात छोड़ दी।

मौसा ने कहा, “हमें और सबूत चाहिए। मैं अपने पुराने दोस्त से बात करता हूं।” अनाया ने रिया से भी बात की। रिया ने कहा, “दी, करण भैया इतने अच्छे हैं। वह ऐसा क्यों करेंगे? शायद यह इत्तेफाक है।” लेकिन अनाया का दिल मानने को तैयार नहीं था।

उसी शाम शाह हवेली में छोटी सी महफिल थी। नानी ने पुराना ग्रामोफोन चलाया और “तुम बिन जिया जाए कैसे” की धुन गूंजने लगी। करण भी वहां था। उसने नानी के साथ पुरानी लखनऊ की बातें की, रिया के साथ हंसी-मजाक किया। लेकिन अनाया की नजरें उस पर टिकी थीं। वह सोच रही थी, “यह आदमी इतना अच्छा कैसे हो सकता है, अगर वह सच छिपा रहा है?”

करण ने अनाया की उदासी देखी और पास आया, “अनाया जी, आप ठीक हैं?” उसने पूछा। अनाया ने ठंडी आवाज में कहा, “मैं ठीक हूं करण, लेकिन तुम नहीं। तुम कुछ छिपा रहे हो।” करण ने कुछ कहना चाहा, लेकिन रिया ने उसे बुला लिया और बात फिर अधूरी रह गई।

कुछ दिन बाद अनाया और करण एक व्यापारिक यात्रा पर बनारस गए। वहां गंगा के किनारे अनाया ने करण से फिर पूछा, “करण, तुम मुझे सच क्यों नहीं बताते? मैं तुम पर भरोसा करना चाहती हूं, लेकिन तुम मुझे मौका नहीं दे रहे।” करण की आंखें नम हो गईं, “अनाया जी, मैं आपका भरोसा नहीं तोड़ना चाहता, लेकिन कुछ बातें ऐसी हैं जो कहना आसान नहीं।” अनाया ने गुस्से और दुख के साथ कहा, “तो मैं खुद सच ढूंढूंगी।” करण चुप रहा, लेकिन उसका दिल भारी था।

लौटने पर मौसा ने अनाया को एक पुरानी पुलिस रिपोर्ट दी। उसमें लिखा था कि हादसे की रात दूसरी गाड़ी का चालक एक नौजवान था, जो बाद में गायब हो गया। गाड़ी का नंबर करण की पुरानी गाड़ी से मिलता था।

अनाया ने करण को हवेली बुलाया, “करण, यह सच है?” उसने रिपोर्ट दिखाई। करण का चेहरा सफेद पड़ गया। वह टूट गया, “हां अनाया जी, मैं उस गाड़ी को चला रहा था।” अनाया चीख पड़ी, “तुमने आरव को मारा, तुमने मेरी जिंदगी बर्बाद कर दी!” करण रोते हुए बोला, “यह हादसा था, बारिश थी, मैं तेजी से चला रहा था, मैंने नहीं चाहा था कि ऐसा हो। मैं शाह मिल्स में इसलिए आया, ताकि आपके दुख को कम कर सकूं। मैं हर दिन अपने गुनाह का बोझ ढोता हूं।”

अनाया रोते हुए कमरे में चली गई। हवेली में सन्नाटा छा गया। रिया ने करण को गले लगाया, “भैया, आपने गलती की, लेकिन आप अच्छे इंसान हैं।” नानी ने कहा, “बेटा, सच बोलने की हिम्मत कम लोगों में होती है।” मौसा बोले, “पुलिस ने इसे हादसा माना था, लेकिन अनाया का दुख अब और गहरा हो गया।”

करण ने कहा, “मैं जा रहा हूं। मैं अनाया का सामना नहीं कर सकता।” लेकिन अनाया ने आरव का खत फिर पढ़ा, “मेरे दोस्त को माफ कर देना।” उसे याद आया कि आरव हमेशा माफी और प्यार की बात करता था।

अगले दिन उसने करण को बुलाया, “करण, मैं तुम्हें माफ करती हूं, लेकिन यह आसान नहीं होगा।” करण की आंखें भर आईं, “अनाया जी, मैं आपका दुख कम करने की कोशिश करता रहूंगा।”

धीरे-धीरे अनाया और करण ने मिलकर शाह मिल्स को और ऊंचा उठाया। उनके बीच एक नई दोस्ती शुरू हुई, जो शायद प्यार में बदल सकती थी। हवेली में फिर से हंसी गूंजी, और अनाया ने आरव की यादों को दिल में संजोकर नई शुरुआत की।

एक साल बाद शाह मिल्स लखनऊ की सबसे बड़ी मिल बन गई। अनाया और करण की दोस्ती प्यार में बदल गई। हवेली में एक छोटी सी शादी हुई, और ग्रामोफोन पर फिर वही गीत बजा—”तुम बिन जिया जाए कैसे?” लेकिन इस बार अनाया की आंखों में आंसू नहीं, मुस्कान थी।

तो दोस्तों, यह थी शाह मिल्स की कहानी। अगर आपको कहानी अच्छी लगी हो, तो कृपया शेयर करें। आपकी प्रतिक्रिया हमारे लिए प्रेरणा है।