दिव्या की कहानी – किस्मत का खेल
दिव्या ने अपने छोटे बैग को कंधे पर रखा और मुंबई एयरपोर्ट की चमकदार फर्श पर कदम रखा। आज उसकी ज़िंदगी का सबसे बड़ा दिन था। रात को अचानक फोन आया था – मां की तबीयत बहुत खराब है। दिव्या ने बिना देर किए दिल्ली के लिए टिकट बुक किया और सुबह-सवेरे एयरपोर्ट पहुंच गई। उसके चेहरे पर चिंता और थकान साफ़ झलक रही थी। उसके मन में बस एक ही बात थी – किसी भी तरह जल्दी मां के पास पहुंच जाए।
वह चेक-इन काउंटर से बोर्डिंग पास लेकर सिक्योरिटी चेक की तरफ बढ़ी। भीड़ थी, लोग भाग रहे थे, लेकिन दिव्या के लिए वक्त जैसे थम गया था। वह अपनी सीट पर जाकर चुपचाप बैठ गई। इकॉनमी क्लास की बीच वाली सीट थी। बगल में बुजुर्ग दंपती और खिड़की पर एक युवा लड़की थी। दिव्या ने आंखें बंद कर लीं, मां की यादों में खो गई। बचपन, मां का प्यार, उनका खाना, ममता – सब याद आ रहा था। उसकी आंखों में आंसू आ गए।
तभी एयर होस्टेस ने पानी पूछा। दिव्या ने एक घूंट लिया और बाहर देखने लगी। बोर्डिंग पूरी हो रही थी। तभी अचानक विमान में हलचल हुई। बिजनेस क्लास की तरफ कुछ आवाजें आईं, लेकिन दिव्या को फर्क नहीं पड़ा। उसका ध्यान सिर्फ दिल्ली पहुंचने पर था।
कुछ देर बाद एक एयर होस्टेस घबराई हुई इकॉनमी क्लास में आई। उसने दिव्या से पूछा, “मैडम, क्या आपका नाम दिव्या है?” दिव्या चौंक गई। “जी, हां।” “प्लीज, मुझे फॉलो कीजिए।” दिव्या डर गई, कहीं मां को कुछ हो गया तो नहीं? वह एयर होस्टेस के पीछे-पीछे बिजनेस क्लास में गई। वहां एक शख्स कुर्सी पर बैठा था, चेहरा सख्त था। एयर होस्टेस ने कहा, “यही है दिव्या।”
वह आदमी उठा, दिव्या को देखा। उसकी आंखों में गुस्सा था। दिव्या ने पहचान लिया – यह तो विनोद है, उसका पूर्व पति! वही इंसान जिसने कुछ साल पहले उसे अपमानित करके घर से निकाल दिया था। अब वह एयरलाइन का मालिक बन चुका था। विनोद ने जानबूझकर दिव्या को नीचा दिखाने की ठान ली थी।
विनोद ने एयर होस्टेस से कहा, “यह औरत मेरी पूर्व पत्नी है, मैं इसे अपनी फ्लाइट में नहीं चाहता।” एयर होस्टेस असमंजस में थी। “सर, यह इकॉनमी क्लास में बैठी है।” “मुझे फर्क नहीं पड़ता,” विनोद ने ऊंची आवाज में कहा, “इसकी औकात नहीं है यहां बैठने की।”
दिव्या के आंसू बह निकले। उसने विनोद से विनती की, “मेरी मां मर रही है, मुझे उनके पास जाना है।” विनोद ने तिरस्कार भरी नजरों से देखा, “तुम्हारी कहानी सुनने का वक्त नहीं है। तलाक के बाद तुमने मुझे कोर्ट में घसीटा था, आज मैं तुम्हें सबक सिखाऊंगा।”
विमान का कैप्टन भी आ गया। विनोद ने अपनी बात दोहराई। कैप्टन ने मजबूरी जताई, “मैडम, मुझे अफसोस है, लेकिन आपको फ्लाइट से उतरना होगा।” दिव्या टूट गई। उसे उसकी सीट से उठाया गया, बाकी यात्री सब देख रहे थे, लेकिन कोई कुछ नहीं बोला।
दिव्या को एयरपोर्ट की बेंच पर बैठा दिया गया। उसने अपने भाई को फोन किया, “भैया, मैं नहीं आ पाऊंगी, विनोद ने सब कुछ बर्बाद कर दिया।” भाई की आवाज टूट गई, “दीदी, मां तुम्हारा नाम ले रही है, बस एक बार देखना चाहती है।” दिव्या ने रोते हुए कहा, “मैं कोशिश करूंगी, अगली फ्लाइट पकड़ने की।” लेकिन वक्त नहीं था।
तभी भाई का फिर फोन आया – “दीदी, मां अब नहीं रही।” दिव्या की दुनिया उजड़ गई। वह फूट-फूटकर रोने लगी। अचानक उसे सांस लेने में तकलीफ हुई, बेहोश हो गई। मेडिकल टीम आई, उसे अस्पताल ले जाया गया।
उधर, विनोद शर्मा अपनी बिजनेस क्लास सीट पर संतुष्ट बैठा था। उसे लगा, आज उसकी जीत हो गई है। लेकिन तभी विमान में टर्बुलेंस शुरू हुआ। इंजन में आग लग गई, कैप्टन ने कंट्रोल खो दिया। विमान जमीन से टकराया, आग की लपटें उठीं – विनोद समेत सभी यात्री मारे गए।
अगली सुबह दिव्या अस्पताल में होश में आई। भाई ने बताया, “दीदी, मां ने आखिरी सांस में तुम्हारा नाम लिया और माफ कर दिया।” टीवी पर खबर आई – मुंबई से दिल्ली जा रही फ्लाइट क्रैश हो गई, सभी यात्री मारे गए, जिसमें विनोद शर्मा भी था।
दिव्या समझ गई, जो उसे सबसे बड़ा दुख लग रहा था, वही उसकी जान बचा गया। विनोद ने जो सजा देनी चाही थी, वही उसकी मौत का कारण बन गई। दिव्या ने मां की तस्वीर देखी, “मां, मैं जिऊंगी आपके लिए।”
ज़िंदगी चलती रही। दर्द कम होता गया, लेकिन वह सबक हमेशा याद रहा – भगवान जो करते हैं, सोच-समझकर करते हैं। कभी-कभी जो हमें सबसे बड़ा दुख लगता है, वही हमारी सबसे बड़ी रक्षा बन जाता है।
**सीख:**
जो दूसरों को तकलीफ पहुंचाते हैं, किस्मत उन्हें कभी माफ नहीं करती। भगवान पर भरोसा रखिए, उनकी योजना में हमारी भलाई है।
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