सम्मान बनाम अहंकार – एक जवान और दारोगा की कहानी

मुंबई के एक छोटे से गांव की दोपहर थी। गर्मी इतनी थी कि पेड़ों के पत्ते भी थक चुके थे। गांव के चौक पर लोग चाय की दुकान पर गप्पें मार रहे थे, बच्चे धूल में खेल रहे थे। इसी बीच दूर से एक वर्दीधारी जवान अर्जुन सिंह दिखाई देता है – हाल ही में सीमावर्ती इलाके से छुट्टी पर घर लौटा। उसकी आंखों में बहादुरी की चमक थी, लेकिन मन में अपने गांव की मिट्टी का सुकून।

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गांव वाले अर्जुन का बहुत सम्मान करते थे। बच्चे उसके पीछे दौड़ते, औरतें उसकी बहादुरी की बातें करतीं। लेकिन उसी दिन गांव में दारोगा श्यामलाल अपनी पुलिस जीप से उतरता है। उसका रुतबा, उसकी आवाज और उसका अहंकार पूरे गांव में मशहूर था।

जैसे ही दारोगा की नजर अर्जुन पर पड़ती है, वह उसे रोकता है। अर्जुन विनम्रता से जवाब देता है – “छुट्टी पर आया हूं, घर जा रहा हूं साहब।” लेकिन दारोगा को अर्जुन की आत्मविश्वास अच्छा नहीं लगता। वह तानों पर उतर आता है, और अचानक पूरे गांव के सामने अर्जुन को लात मार देता है।

भीड़ सन्न रह जाती है। अर्जुन लड़खड़ाता है, लेकिन गिरता नहीं। उसके चेहरे पर दर्द से ज्यादा अपमान की आग थी। लेकिन वह पलट कर जवाब नहीं देता। सिर्फ इतना कहता है – “अगर मैं आम आदमी होता, तो शायद इस लात का जवाब देता। लेकिन मैं सैनिक हूं। मेरी वर्दी मुझे सिखाती है कि धैर्य रखो। असली ताकत किसी को नीचा दिखाने में नहीं, दिल जीतने में है।”

गांव के बुजुर्ग और बच्चे सब देख रहे थे। अर्जुन की मां दूर से आंसू पोंछ रही थी। गांव में गुस्से की लहर दौड़ गई। बुजुर्ग आगे आए – “यह जवान हमारी नींद की रखवाली करता है, सरहद पर गोली खाता है ताकि हम चैन से जी सकें। तूने इसे लात मार दी?”

दारोगा का अहंकार अब टूटने लगा था। अर्जुन ने भीड़ को शांत किया – “गुस्से को मत बढ़ने दीजिए। अगर हम एक दूसरे से ही लड़ने लगेंगे, तो हमारी ताकत खत्म हो जाएगी।” उसकी बात गांव वालों के दिल में उतर गई। दारोगा की आंखों में पश्चाताप था। उसने पूरे गांव के सामने सिर झुकाकर अर्जुन से माफी मांगी – “मुझसे गलती हुई है।”

भीड़ ने जयकार की – “जय हो हमारे फौजी की!” अर्जुन के धैर्य और इंसानियत की जीत हो गई। बच्चे दौड़कर उसके पास आए – “भैया, आप सच में हीरो हो।”

अर्जुन की मां ने गर्व से उसका सिर चूमा – “आज तूने साबित कर दिया कि तू सिर्फ मेरा नहीं, पूरे गांव का बेटा है।”

अर्जुन ने सबको संबोधित किया – “पुलिस हो या फौज, दोनों देश की रक्षा के लिए हैं। असली ताकत हथियार में नहीं, इंसानियत और एकता में है। हमें एक दूसरे का सम्मान करना चाहिए।”

सूरज ढलने लगा था। गांव का चौक जो कुछ देर पहले तनाव से भरा था, अब एकता और सम्मान से गूंज रहा था। दारोगा और अर्जुन साथ-साथ खड़े थे। अर्जुन की मुस्कुराहट और दारोगा का झुका सिर – ये तस्वीरें पूरे गांव की यादों में हमेशा के लिए अंकित हो गईं।

दोस्तों, देश का कोई भी अधिकारी हो, अगर आर्मी वाला छुट्टी पर आए तो उसका दिल से स्वागत कीजिए। पुलिस और आर्मी दोनों देश के रक्षक हैं, दोनों का सम्मान कीजिए।
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