बाउंसर इतनी तेज थी कि हेलमेट उड़ गया.. और अंदर छुपा था खतरनाक राज – फिर जो हुआ!

हेलमेट का राज: एक परिवार, एक झूठ और एक सच
प्रस्तावना
बिलासपुर का गांधीनगर इलाका, जहाँ हर शाम बच्चों की किलकारियाँ गूंजती थीं। यहाँ की गलियाँ तंग थीं लेकिन सपनों की कोई सीमा नहीं थी। बच्चों की टोली में सबसे होनहार था रोहन – 14 साल का, तेज आँखों वाला, क्रिकेट का दीवाना। हर शाम स्कूल से लौटते ही बैट थाम लेता, दोस्तों के साथ मैदान में पहुँच जाता। उसके पिता राजेश वर्मा एक छोटी सी किराने की दुकान चलाते थे, माँ कविता घर संभालती थीं। परिवार के हालात ठीक-ठाक थे, लेकिन रोहन के सपने ऊँचे थे। वह हमेशा माँ से कहता, “माँ, एक दिन मैं भारत के लिए खेलूँगा, तुम्हें बड़े से घर में बिठाऊँगा।” कविता उसकी आँखों में चमकते सपनों को देखकर मुस्कुरा देती, लेकिन उसके दिल में एक अजीब सी बेचैनी हमेशा रहती थी। कभी-कभी उसके चेहरे पर डर भी झलकता था, जो वह छुपा लेती थी।
पहला मोड़: मैदान में हादसा
मार्च की हल्की गर्मी थी। शाम के पाँच बजे गांधीनगर का मैदान बच्चों से भर गया था। रोहन अपने सबसे करीबी दोस्त अंशुल और विवेक के साथ आया था। तीनों एक ही क्लास में पढ़ते थे और तीनों का सपना था – क्रिकेटर बनना। आज मैच था गांधीनगर बनाम नेहरू कॉलोनी। रोहन को बल्लेबाजी के लिए चुना गया। उसने अपना पुराना हेलमेट पहना, जो उसके बड़े भाई आर्यन का था। आर्यन, जो अब इस दुनिया में नहीं था। तीन साल पहले एक एक्सीडेंट में उसकी मौत हो गई थी। तब से रोहन उसी हेलमेट को पहनकर खेलता था, कहता था – “इससे भैया की याद आती है, हिम्मत मिलती है।”
मैच शुरू हुआ। नेहरू कॉलोनी की टीम की तरफ से सोनू गेंदबाजी कर रहा था – 17 साल का लंबा लड़का, तेज गेंदबाजी के लिए मशहूर। पहली गेंद पर रोहन ने चौका लगाया, दूसरी गेंद पर तालियाँ गूंज उठीं। रोहन फॉर्म में था, उसकी हर शॉट परफेक्ट थी। कविता घर की छत से मैच देख रही थी, उसका दिल तेजी से धड़क रहा था। उसे महसूस हो रहा था – आज कुछ होने वाला है।
तीसरी गेंद, सोनू ने बाउंसर डाली। गेंद सीधा रोहन के सिर की तरफ आई। रोहन ने हुक शॉट खेलने की कोशिश की, लेकिन गेंद उसके बैट से चूक गई और जोरदार आवाज के साथ उसके हेलमेट से टकराई। रोहन लड़खड़ा कर जमीन पर गिर गया, हेलमेट दूर जा गिरा। मैदान में सन्नाटा छा गया। बच्चे दौड़कर रोहन के पास पहुँचे। उसके सिर से हल्की सी खून की धार बह रही थी। अंशुल चिल्लाया – “किसी को बुलाओ जल्दी!” विवेक दौड़कर रोहन के घर की तरफ भागा।
इसी बीच टिंकू ने हेलमेट उठाया। जैसे ही उसने हेलमेट को पलटा, उसके अंदर से एक मुड़ा हुआ कागज नीचे गिरा। टिंकू ने वह कागज उठाया, पढ़ने लगा। उसकी आँखें फैल गईं, हाथ काँपने लगे। उसने जल्दी से कागज अपनी जेब में डाल लिया, लेकिन अंशुल ने देख लिया। अंशुल ने टिंकू का हाथ पकड़ा – “क्या है ये? दिखा!” टिंकू ने मना किया, लेकिन अंशुल ने जबरदस्ती उसकी जेब से कागज निकाल लिया। और जब उसने पढ़ा, उसके होश उड़ गए। उसके हाथ से वह कागज छूट गया।
इसी समय कविता और राजेश मैदान में पहुँचे। कविता रोहन की तरफ दौड़ी, राजेश की नजर उस कागज पर पड़ी। उसने झुककर उसे उठाया, पढ़ा और उसका चेहरा सफेद हो गया। कविता ने पूछा – “क्या हुआ? क्या है वो?” राजेश ने बिना कुछ कहे वह कागज कविता की तरफ बढ़ा दिया। कविता ने काँपते हाथों से कागज लिया, पढ़ा और जोरदार चीख उसके मुँह से निकली – “नहीं! यह झूठ है!” वह जमीन पर बैठ गई, रोने लगी। रोहन ने दर्द भरी आवाज में पूछा – “माँ, क्या हुआ? क्या लिखा है उसमें?” लेकिन कविता कुछ नहीं बोल पाई।
राजेश ने रोहन को गोद में उठाया – “अस्पताल चलना है बेटा, चलो।” लेकिन रोहन की नजर उस कागज पर थी – जिसने उसकी जिंदगी हमेशा के लिए बदल दी थी।
अस्पताल और पहली रात का सच
अस्पताल में डॉक्टर ने रोहन के सिर पर टांके लगाए – “चोट गहरी है, लेकिन खतरे की बात नहीं। आराम करना होगा।” लेकिन राजेश और कविता की हालत देखकर डॉक्टर ने पूछा – “आप लोग ठीक तो हैं? कोई और परेशानी है क्या?” राजेश ने सिर हिलाया – “नहीं डॉक्टर साहब, बस थोड़ा घबरा गए थे।”
रात को घर लौटे, रोहन को बिस्तर पर लिटाया। राजेश और कविता अपने कमरे में गए, दरवाजा बंद किया। राजेश ने उस कागज को फिर से खोला। वह एक हाथ से लिखा हुआ खत था – सोनाली का। उसमें लिखा था:
“अगर तुम यह पढ़ रहे हो तो शायद वक्त आ गया है सच जानने का। रोहन तुम्हारा बेटा नहीं है। वह आर्यन का बेटा है। और मेरा – मैं सोनाली, जो तीन साल पहले इस दुनिया से चली गई। आर्यन की मौत के बाद मैंने भी जीना छोड़ दिया। लेकिन रोहन को छोड़कर नहीं जा सकती थी। इसलिए मैंने यह राज कविता को बता दिया था और उसने वादा किया था कि वह रोहन को अपने बेटे की तरह पालेगी और उसने निभाया। लेकिन सच कब तक छिपता? एक दिन रोहन को पता चलना ही था। मैं चाहती हूँ कि जब वह बड़ा हो तब उसे यह बात बताई जाए कि उसके असली माँ-बाप कौन थे और कितना प्यार करते थे उससे। यह खत मैंने आर्यन के हेलमेट में छिपा कर रखा है क्योंकि मुझे पता था कि एक दिन रोहन इसे पहनेगा और तब सच बाहर आएगा। माफ करना कविता, माफ करना राजेश। लेकिन सच को छिपाना सही नहीं। रोहन को अपने असली माता-पिता के बारे में जानने का हक है।”
राजेश का हाथ काँप रहा था, कविता रो रही थी। उसने कहा – “मैं नहीं चाहती थी कि यह सच कभी बाहर आए। मैं नहीं चाहती थी कि रोहन को पता चले। मैंने उसे अपने बेटे से ज्यादा प्यार किया है।” राजेश ने कविता को गले लगा लिया – “मैं जानता हूँ, लेकिन अब क्या करें? रोहन ने देख लिया वह कागज, कल वह पूछेगा और हमें बताना होगा।”
दोनों रात भर सो नहीं पाए। सुबह हुई, रोहन उठा। उसका सिर दर्द कर रहा था, लेकिन आँखों में सवाल थे। वह रसोई में गया, जहाँ कविता चाय बना रही थी। “माँ, वो कागज में क्या लिखा था?” कविता का हाथ रुक गया, कप उसके हाथ से छूट गया और फर्श पर गिरकर टूट गया।
“माँ, बताओ ना, क्या लिखा था?” कविता ने पलट कर रोहन को देखा, उसकी आँखों में आँसू थे। “बेटा, वो… वो कुछ नहीं था, पुरानी बात थी।”
“नहीं माँ, मैं तुम्हारी आँखों में झूठ देख सकता हूँ। कल तुम और पापा जिस तरह रो रहे थे, वो कोई छोटी बात नहीं थी। मुझे सच जानना है।”
तभी राजेश वहाँ आए। उन्होंने गहरी साँस ली – “ठीक है, रोहन। तुम्हें सच जानना है तो सुनो। लेकिन जो भी सुनोगे, उसके बाद हमसे नफरत मत करना। हम तुम्हें प्यार करते हैं। बहुत प्यार करते हैं।”
अतीत का सच
राजेश ने वह कागज रोहन के हाथ में थमा दिया – “पढ़ लो, और फिर हम तुम्हें सब बताएंगे।” रोहन ने काँपते हाथों से कागज खोला, पढ़ा। उसके हाथ से वह कागज छूट गया। उसकी आँखें फैल गईं, मुँह से आवाज नहीं निकली। उसने कविता को देखा, फिर राजेश को, और धीरे से पूछा – “क्या… क्या यह सच है?”
कविता आगे बढ़ी, रोहन के कंधे पर हाथ रखा। लेकिन रोहन ने झटके से उसका हाथ हटा दिया – “नहीं, मुझे मत छुओ। तुमने मुझसे झूठ बोला। 14 साल से झूठ। मैं तुम्हारा बेटा ही नहीं हूँ। तो फिर तुमने मुझे क्यों पाला? दया थी तुम्हें मुझ पर?”
राजेश ने रोहन को पकड़ा – “बेटा, ऐसा नहीं है। हमने तुम्हें दया से नहीं, प्यार से पाला है। तुम हमारे दिल के टुकड़े हो।”
रोहन रोने लगा – “अगर प्यार करते थे, तो सच क्यों नहीं बताया? मेरे भाई आर्यन… वो मेरे भाई नहीं थे, वो मेरे पापा थे। और सोनाली आंटी – वो मेरी माँ थी। मेरी असली माँ। और मैं कभी उनसे मिल भी नहीं पाया। यह जानकर भी नहीं कि वह मेरी माँ थी।”
कविता फूट-फूट कर रोने लगी – “माफ कर दे बेटा। मैं नहीं चाहती थी कि तुम्हें इस दर्द से गुजरना पड़े। मैं सोचती थी कि तुम्हें कभी पता ही नहीं चलेगा और तुम खुश रहोगे। लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था।”
रोहन ने आँखों के आँसू पोंछे – “मुझे सब कुछ जानना है। शुरू से लेकर अंत तक, मेरे माँ-बाप के बारे में। कैसे हुआ यह सब? कैसे मैं तुम्हारे पास आया? सब कुछ।”
राजेश ने कविता की तरफ देखा, फिर रोहन को बैठने का इशारा किया – “ठीक है बेटा, सुनो।”
सोनाली और आर्यन की कहानी
“आर्यन और सोनाली की शादी सात साल पहले हुई थी। प्रेम विवाह था। सोनाली मध्यमवर्गीय परिवार से थी, बहुत सुंदर और दिल की बहुत अच्छी। आर्यन उसे बेहद प्यार करता था। शादी के दो साल बाद तुम्हारा जन्म हुआ। हम सब बहुत खुश थे। लेकिन सोनाली की तबीयत डिलीवरी के बाद ठीक नहीं रही। डॉक्टरों ने कहा कि उसे दिल की बीमारी है। गंभीर है। इलाज चल रहा था। लेकिन तुम्हारी देखभाल के लिए वह घर पर ही रहती थी। आर्यन मेहनत करता था, दिन-रात काम करता था। सोनाली के इलाज के लिए और तुम्हारी परवरिश के लिए हम भी मदद करते थे। कविता सोनाली की देखभाल करती थी और तुम्हारी भी। तुम तब सिर्फ छह महीने के थे।
एक दिन आर्यन को एक जरूरी काम से रायपुर जाना था। सोनाली ने कहा कि वह घर पर ठीक है, कविता साथ में है। आर्यन चला गया। लेकिन उस रात सोनाली की तबीयत अचानक बिगड़ गई। हमने एंबुलेंस बुलाई, अस्पताल ले गए। लेकिन रास्ते में ही उसने अपनी जान दे दी।”
कविता की आँखों से आँसू बह रहे थे। उसने आगे बोलना शुरू किया – “उस रात सोनाली ने अपनी आखिरी साँसों में मेरा हाथ पकड़ा था और कहा था – ‘कविता, मेरे रोहन को संभाल लेना। उसे माँ की जरूरत होगी। तुम ही हो जो उसे वह प्यार दे सकती हो।’ मैंने वादा किया था, रोते हुए वादा किया था कि मैं तुम्हें अपने बेटे की तरह पालूँगी।”
“जब आर्यन को खबर मिली, वह टूट गया। बिल्कुल टूट गया। वह रोता रहा। दिन-रात तुम्हें देखता और रोने लगता। कहता – ‘सोनाली तुम्हारे लिए इस दुनिया में रही और अब तुम हो, लेकिन वह नहीं।’ छह महीने बाद आर्यन को एक नौकरी का ऑफर मिला पुणे में। अच्छा पैसा था। उसने सोचा कि वहाँ जाकर काम करेगा, तुम्हारी पढ़ाई के लिए पैसा जोड़ेगा। लेकिन तुम्हें वह हमारे पास छोड़ गया। कहा – ‘मैं खुद को संभाल नहीं पा रहा, तुम्हें कैसे पालूँगा? तुम यहीं रहो, कविता के पास। वह तुम्हारी माँ बन जाएगी और मैं दूर से तुम्हारी देखभाल करूंगा।’ हमने मान लिया, तुम हमारे पास रहने लगे। हमने तुम्हें अपना बेटा बना लिया। सबको बताया कि यह हमारा दूसरा बेटा है। आर्यन महीने में एक बार आता था, तुमसे मिलता था। लेकिन तुम्हें कभी नहीं बताया कि वह तुम्हारा पापा है। हम सोचते थे कि जब तुम बड़े हो जाओगे तब बताएंगे।”
“लेकिन फिर… वह हादसा हो गया।” राजेश की आवाज भर आ गई – “तीन साल पहले आर्यन एक एक्सीडेंट में… उसकी बाइक एक ट्रक से टकरा गई। वह बच नहीं पाया। वो तुमसे मिलने आ रहा था, तुम्हारे जन्मदिन पर, तुम्हारे लिए तोहफे लेकर। लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। उसकी मौत के बाद हमने फैसला किया कि अब तुम्हें कभी सच नहीं बताएंगे। तुम हमारे बेटे हो और हमेशा रहोगे। लेकिन सोनाली ने वह खत लिखकर छोड़ दिया था, आर्यन के हेलमेट में। उसे पता था कि एक दिन तुम उस हेलमेट को पहनोगे और सच बाहर आ जाएगा।”
रोहन सुन बैठा था। उसके दिमाग में हजारों सवाल घूम रहे थे। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि जिन लोगों को वह माँ-बाप समझता था, वह उसके माँ-बाप नहीं हैं। और जिन्हें वह भाई समझता था, वह उसके पापा थे और वह भी अब इस दुनिया में नहीं।
माँ-पापा की यादें
रोहन ने धीरे से पूछा – “क्या आर्यन भैया… मेरा मतलब मेरे पापा, क्या वह मुझसे प्यार करते थे?”
कविता ने रोहन को गले लगा लिया – “बहुत प्यार करते थे बेटा। बहुत। वह तुम्हें देखते थे तो उनकी आँखों में खुशी की चमक आ जाती थी। वह तुम्हें गोद में लेकर घंटों बातें करते थे, तुम्हें सुलाते थे, तुम्हारे लिए खिलौने लाते थे और हर बार जब वह जाते थे तो रोते हुए जाते थे। कहते थे कि काश मैं तुम्हें अपने साथ रख पाता, लेकिन मैं खुद टूटा हुआ हूँ, मैं तुम्हें पाल नहीं पाऊंगा। इसलिए तुम्हें यहीं छोड़ जाता हूँ, जहाँ तुम सुरक्षित हो, प्यार मिलता है तुम्हें।”
रोहन की आँखों से आँसू बहने लगे। उसने कविता को कसकर पकड़ लिया – “माँ, मुझे माफ कर दो। मैंने तुमसे बुरा बोला। तुमने मुझे इतना प्यार दिया, मुझे पाला और मैं…”
कविता ने रोहन के बाल सहलाए – “कोई बात नहीं बेटा। तुम्हारा गुस्सा सही था। हमने तुमसे छिपाया, लेकिन समझना – हमने यह तुम्हारी भलाई के लिए किया था। हम नहीं चाहते थे कि तुम्हें यह दर्द सहना पड़े।”
राजेश ने रोहन के कंधे पर हाथ रखा – “बेटा, अब तुम क्या सोच रहे हो?”
रोहन ने आँखें पोंछीं, फिर धीरे से बोला – “मुझे अपने पापा और माँ के बारे में और जानना है। उनकी तस्वीरें देखनी हैं, उनकी यादें जाननी हैं। मैं उन्हें भले ही अपने माँ-बाप के रूप में नहीं जान पाया, लेकिन अब मैं उन्हें याद रखना चाहता हूँ।”
कविता मुस्कुराई – “जरूर बेटा। मैं तुम्हें सब दिखाऊंगी। सोनाली की डायरी भी है। उसमें उसने तुम्हारे लिए बहुत कुछ लिखा है। और आर्यन के कमरे में उसकी चीजें अभी भी रखी हैं। तुम देख सकते हो।”
कमरे में छुपा दूसरा राज
उस रात जब रोहन सो गया, तब कविता और राजेश फिर से परेशान हो गए। क्योंकि अभी एक और सच था, एक और राज था जो उस खत में नहीं लिखा था। एक ऐसा राज जो अगर रोहन को पता चल गया, तो सब कुछ बर्बाद हो जाएगा।
कविता ने धीरे से कहा – “अगर रोहन को वह बात पता चल गई, तो वह हमें कभी माफ नहीं करेगा।”
राजेश ने गहरी साँस ली – “हमें सावधान रहना होगा। वह कागज… वो दूसरा कागज कहीं उसे मिल ना जाए।”
सच का दूसरा चेहरा
अगले दिन रोहन उठा, उसका सिर अभी भी दर्द कर रहा था, लेकिन दिल में एक अजीब सी बेचैनी थी। वह सीधा उस कमरे में गया, जो कभी आर्यन का हुआ करता था। कविता ने कमरे की चाबी रोहन को दे दी थी। रोहन ने दरवाजा खोला। अंदर सब कुछ वैसे ही था जैसे तीन साल पहले था। आर्यन की तस्वीरें दीवार पर लगी थीं, उसकी किताबें शेल्फ में सजी थीं, उसके कपड़े अलमारी में रखे थे।
रोहन ने एक-एक तस्वीर को देखा, अपने पापा को देखा, उसकी मुस्कुराहट को देखा और रोने लगा। “काश मुझे पहले पता होता। काश मैं उन्हें पापा कहकर बुला पाता। काश…”
उसने अलमारी खोली, उसमें एक पुराना बैग रखा था। रोहन ने उसे निकाला। अंदर कुछ पुरानी चीजें थीं – आर्यन की घड़ी, उसका बटुआ, कुछ पत्र और एक डायरी। रोहन ने डायरी उठाई। उसके पहले पन्ने पर लिखा था – “सोनाली की डायरी। मेरे प्यार की यादें। मेरे बेटे रोहन के नाम।”
रोहन के हाथ काँपने लगे। उसने डायरी खोली। पहला पेज पढ़ा –
“मेरे प्यारे रोहन, जब तुम यह पढ़ रहेगे तो शायद मैं इस दुनिया में नहीं रहूँगी। लेकिन मेरा प्यार हमेशा तुम्हारे साथ रहेगा। मैं तुम्हें देखती हूँ तो लगता है कि भगवान ने मुझे सब कुछ दे दिया। तुम्हारी मुस्कुराहट में मुझे जीने की वजह मिलती है। तुम्हारी किलकारी में मुझे खुशी मिलती है। लेकिन मेरी सेहत दिन-ब-दिन बिगड़ती जा रही है। डॉक्टर कहते हैं कि मेरे पास ज्यादा वक्त नहीं। मैं डरती हूँ बेटा, नहीं मौत से, बल्कि तुम्हें छोड़कर जाने से। तुम्हें कौन पालेगा? तुम्हें कौन प्यार देगा? तुम्हारे पापा बहुत अच्छे इंसान हैं, लेकिन वह बहुत कमजोर हैं। वह टूट जाएंगे, मैं जानती हूँ। इसलिए मैंने कविता से बात की है, उसने वादा किया है कि वह तुम्हें अपना बेटा बना लेगी और मैं उस पर भरोसा करती हूँ। लेकिन बेटा, मैं चाहती हूँ कि तुम हमेशा खुश रहो, हमेशा मुस्कुराते रहो। और जब भी तुम्हें लगे कि मुझे याद करना चाहते हो, तो बस अपने दिल पर हाथ रखना। मैं वहीं रहूँगी। हमेशा। तुम्हारी माँ, सोनाली।”
रोहन की आँखों से आँसू बहने लगे। उसने पूरी डायरी पढ़ी। हर पन्ने पर सोनाली का प्यार झलकता था, हर शब्द में उसकी ममता थी। रोहन को लगा जैसे उसकी माँ उसके पास बैठी हो, उससे बातें कर रही हो।
लेकिन तभी डायरी के आखिरी पन्नों के बीच में एक और कागज गिरा। रोहन ने उसे उठाया। यह कागज अलग था, पुराना और पीला। उस पर भी कुछ लिखा था, लेकिन यह लिखावट सोनाली की नहीं थी। यह किसी और की थी।
रोहन ने पढ़ना शुरू किया। जैसे-जैसे वह पढ़ता गया, उसकी आँखें फैलती गईं, दिल तेजी से धड़कने लगा, हाथ काँपने लगे।
“आर्यन, मुझे माफ कर देना भाई। मैंने तुम्हारे साथ धोखा किया है। सोनाली की मौत वो एक्सीडेंट नहीं था। वो… वो मेरी गलती थी। उस रात जब सोनाली की तबीयत बिगड़ी, मैं घबरा गया था। मैंने एंबुलेंस बुलाई, लेकिन रास्ते में मैंने उसे गलत दवाई दे दी। वो दवाई जो डॉक्टर ने मना की थी। मुझे नहीं पता था, मैं समझा कि यह उसके दिल के लिए है। लेकिन वह दवाई उसके लिए जहर थी और दस मिनट में उसने दम तोड़ दिया। मैंने किसी को नहीं बताया। मैं डर गया। मैं सोचता रहा कि अगर बता दिया, तो सब मुझे दोषी ठहराएंगे। तुम मुझसे नफरत करोगे। इसलिए मैंने चुप रहना ही ठीक समझा। लेकिन यह गुनाह मुझे अंदर से खाए जा रहा है। मैं रात को सो नहीं पाता। सोनाली का चेहरा याद आता है, उसकी आखिरी साँसे याद आती हैं। मैं खुद को माफ नहीं कर पा रहा। लेकिन मैं तुमसे यह नहीं कह सकता। इसलिए यह लिखकर छोड़ रहा हूँ। माफ करना भाई। मैंने तुम्हारी सोनाली को तुमसे छीन लिया। तुम्हारा भाई राजेश।”
रोहन की दुनिया हिल गई। उसके हाथ से वह कागज छूट गया। उसके दिमाग में एक ही बात घूम रही थी – “पापा ने मेरी माँ को मारा। नहीं… गलती से मारा, लेकिन छिपाया, सबसे छिपाया।”
टकराव और बिखराव
रोहन नीचे भागा, कविता रसोई में खाना बना रही थी, राजेश अखबार पढ़ रहे थे। रोहन ने जाकर राजेश के सामने वह कागज फेंक दिया – “यह क्या है? यह क्या है पापा?”
राजेश ने कागज उठाया, पढ़ा और उसका चेहरा सफेद हो गया – “रोहन बेटा, यह… यह कहाँ मिला तुम्हें?”
रोहन चिल्लाया – “जवाब दो! क्या लिखा है इसमें? क्या तुमने? क्या तुमने सच में मेरी माँ को…?”
कविता दौड़ कर आई – “क्या हुआ? क्यों चिल्ला रहे हो?”
रोहन ने उसकी तरफ देखा – “तुम्हें भी पता था? तुम्हें भी पता था कि पापा ने क्या किया और तुमने भी छिपाया? तुम दोनों ने मिलकर छिपाया?”
कविता ने कागज पढ़ा, उसकी आँखों में आँसू आ गए – “रोहन बेटा, यह… यह गलतफहमी है।”
राजेश ने सिर झुका लिया – “नहीं कविता, अब और झूठ नहीं। अब सच बोलना होगा।” उसने रोहन की तरफ देखा – “हाँ बेटा, मैंने गलती की थी। मैंने सोनाली को गलत दवाई दे दी थी। लेकिन वह जानबूझकर नहीं था। मैं घबरा गया था, अंधेरे में दवाई की शीशियाँ दिख नहीं रही थीं। मैंने जल्दबाजी में गलत शीशी उठा ली। और जब तक मुझे एहसास हुआ, सोनाली जा चुकी थी। मैं टूट गया था, खुद को माफ नहीं कर पा रहा था। लेकिन मैं डर गया, लगा कि अगर आर्यन को पता चला, तो वह मुझे मार डालेगा और तुम्हें मुझसे छीन लेगा। इसलिए मैंने चुप रहना ही ठीक समझा।”
रोहन के मुँह से चीख निकली – “तुमने मेरी माँ को मार डाला और फिर चुप रह गए। तुमने मेरे पापा से झूठ बोला, उनको धोखा दिया और अब मुझसे भी। तुम लोग… तुम लोग बहुत बुरे हो।”
कविता रोने लगी – “नहीं बेटा, हम तुम्हें प्यार करते हैं। हमने जो भी किया…”
रोहन ने हाथ उठाकर रोका – “बस, अब एक शब्द भी नहीं। मुझे तुम्हारे प्यार की जरूरत नहीं, मुझे तुम्हारी जरूरत नहीं। मैं यहाँ से जा रहा हूँ।”
राजेश उठ खड़ा हुआ – “कहाँ जाओगे? तुम बच्चे हो अभी, कहाँ जाओगे?”
रोहन ने उसकी तरफ गुस्से से देखा – “जहाँ भी जाऊँगा, लेकिन तुम्हारे साथ नहीं रहूँगा। तुमने मेरी माँ को मारा, मैं तुम्हें कभी माफ नहीं करूँगा।”
वह सीधा अपने कमरे में गया, अपना बैग उठाया, कुछ कपड़े भरे, सोनाली की डायरी रख ली और आर्यन का वह हेलमेट भी साथ ले लिया। फिर घर से बाहर निकल गया। कविता और राजेश उसे रोकने दौड़े, लेकिन रोहन ने पलट कर नहीं देखा। वह बस भागता रहा, आँसू पोंछता रहा और दिल में एक ही सवाल था – “क्यों? क्यों ऐसा हुआ मेरे साथ?”
अकेलापन और तलाश
तीन दिन बीत गए, रोहन का कोई पता नहीं चला। पुलिस में रिपोर्ट दर्ज हुई, पूरे इलाके में खोज शुरू हुई। कविता रोती रहती, राजेश खुद को कोसता रहता। अंशुल और विवेक भी रोहन को ढूंढने निकले, लेकिन कोई सुराग नहीं मिला।
चौथे दिन एक फोन आया, एक अनजान नंबर से। राजेश ने फोन उठाया – “हेलो?”
दूसरी तरफ से एक आदमी की आवाज आई – “आप राजेश वर्मा बोल रहे हैं?”
“हाँ, कौन?”
“मैं रायपुर से बोल रहा हूँ। यहाँ रेलवे स्टेशन पर एक लड़का मिला है, 14 साल का। उसके पास एक डायरी है, जिसमें आपका नंबर लिखा है। उसका नाम रोहन है।”
राजेश का दिल धड़क उठा – “हाँ, हाँ, वो मेरा बेटा है। वह ठीक तो है?”
“हाँ, वह ठीक है, लेकिन बहुत कमजोर है। भूखा-प्यासा है, लगता है कई दिनों से कुछ नहीं खाया। आप जल्दी आ जाइए।”
राजेश और कविता तुरंत रायपुर के लिए निकल पड़े। पाँच घंटे की यात्रा के बाद वह रेलवे स्टेशन पहुँचे। वहाँ एक छोटे से कमरे में रोहन बैठा था, सिर झुकाए, आँखें बंद किए।
राजेश ने धीरे से उसका नाम पुकारा – “रोहन…”
रोहन ने आँखें खोली, देखा और फिर से आँखें बंद कर ली। कविता दौड़कर उसके पास गई, उसे गले लगा लिया – “तू कहाँ था बेटा? तू कहाँ चला गया था? हम कितना डर गए थे?”
रोहन चुप रहा, फिर धीरे से बोला – “मैं असली पापा को ढूंढने आया था। मुझे लगा शायद पुणे में उनके दोस्त मिल जाएँगे, शायद उनकी कुछ यादें मिल जाएँगी। लेकिन मुझे कुछ नहीं मिला, बस यह एहसास मिला कि मैं अकेला हूँ। बिल्कुल अकेला।”
कविता रोने लगी – “तू अकेला नहीं है बेटा, हम हैं ना, हम तेरे साथ हैं।”
रोहन ने उसकी तरफ देखा – “तुमने झूठ बोला, तुमने मुझे धोखा दिया।”
कविता ने रोहन का हाथ पकड़ा – “हाँ, हमने झूठ बोला, हमने गलती की, लेकिन हमने तुम्हें प्यार भी तो किया। 14 साल, 14 साल हमने तुम्हें अपने बेटे की तरह पाला। क्या वह प्यार झूठा था? क्या वह रातें झूठी थीं जब मैं तुम्हें जगकर दूध पिलाती थी? क्या वह दिन झूठे थे जब राजेश तुम्हारे लिए खिलौने लाते थे? क्या सब कुछ झूठ था?”
राजेश घुटनों पर बैठ गया – “माफ कर दे बेटा। मुझसे गलती हो गई। मैंने तेरी माँ को बचाने की कोशिश की थी, लेकिन गलत दवाई दे दी। मैं जिंदगी भर इसका पछतावा करता रहूँगा। लेकिन तू… तू मेरा बेटा है, मेरी जान है। तू ऐसे मुझे छोड़कर चला गया, मैं मर गया था बेटा। बिल्कुल मर गया था।”
रोहन की आँखों से आँसू बहने लगे, फिर धीरे से बोला – “मैं भी मर गया था, जब मुझे सच पता चला। लेकिन इन तीन दिनों में… इन तीन दिनों में मुझे एहसास हुआ कि तुम लोगों ने जो प्यार दिया, वह असली था। गलती तो इंसान से होती है और तुमने जानबूझकर नहीं किया। तुम मेरे लिए माँ-बाप ही हो। भले ही खून का रिश्ता ना हो, लेकिन प्यार का रिश्ता तो है और वह किसी रिश्ते से बड़ा है।”
कविता फूट-फूट कर रोने लगी। उसने रोहन को कसकर गले लगा लिया। राजेश भी रोने लगा। तीनों वहीं बैठे रोते रहे और उस रोने में दर्द नहीं, राहत थी।
नई शुरुआत
वापसी की यात्रा में रोहन ने पूछा – “क्या आर्यन भैया को कभी पता चला तुम्हारी गलती के बारे में?”
राजेश ने सिर हिलाया – “नहीं, मैंने उसे कभी नहीं बताया। शायद इसीलिए वह हादसा हुआ, मेरे गुनाह की सजा।”
रोहन ने उसका हाथ पकड़ा – “नहीं पापा, यह किस्मत थी। और अब हम आगे बढ़ेंगे, साथ एक परिवार की तरह।”
आज रोहन 19 साल का है। क्रिकेट अभी भी खेलता है, वही हेलमेट पहनता है। लेकिन अब उसमें कोई राज नहीं, बस यादें हैं – अपने असली माँ-बाप की और अपने उन माँ-बाप की भी जिन्होंने उसे पाला, प्यार दिया और आज भी देते हैं।
क्योंकि रिश्ते खून से नहीं, प्यार से बनते हैं।
समापन
यह कहानी हमें सिखाती है कि परिवार सिर्फ खून का नहीं होता, प्यार और अपनापन ही असली रिश्ता है।
गलतियाँ इंसान से होती हैं, लेकिन सच्चा प्यार और माफी ही रिश्तों को मजबूत बनाते हैं।
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मिलते हैं एक नई कहानी में।
जय हिंद। वंदे मातरम।
(यह कहानी आपके लिए विशेष रूप से विस्तार से लिखी गई है, ताकि हर भाव, हर मोड़, हर दर्द और हर प्यार को महसूस किया जा सके।)
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शहर का करोड़पति लड़का जब गाँव के गरीब लड़की की कर्ज चुकाने पहुंचा, फिर जो हुआ… नीम की छांव: दोस्ती,…
एक IPS मैडम गुप्त मिशन के लिए पागल बनकर वृंदावन पहुंची, फिर एक दबंग उन्हें अपने साथ ले जाने लगा!
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Shaadi Mein Hua Dhoka | Patli Ladki Ke Badle Aayi Moti Ladki, Dekh Ke Dulha Hua Pareshan
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₹10,000 का कर्ज़ चुकाने करोड़पति अपने बचपन के दोस्त के पास पहुँचा… आगे जो हुआ…
₹10,000 का कर्ज़ चुकाने करोड़पति अपने बचपन के दोस्त के पास पहुँचा… आगे जो हुआ… “कर्ज की कीमत: दोस्ती, संघर्ष…
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