सुबह का वक्त था। लखनऊ की गोमती नदी के किनारे वाली सड़क पर हल्की भीड़ थी। उसी सड़क के किनारे एक छोटी सी चाय की दुकान थी, जिसकी टीन की छत और लकड़ी की बेंचें थीं। चूल्हे पर केतली में चाय उबल रही थी और भाप उड़ रही थी। दुकान में खड़ी थी मीरा — साधारण साड़ी, माथे पर बिंदी, चेहरे पर थकान की लकीरें लेकिन आंखों में आत्मसम्मान और दृढ़ता।

मीरा के हाथ लगातार चल रहे थे — चाय बनाना, कुल्हड़ सजाना, ग्राहकों को चाय देना। उसकी उंगलियों में मेहनत का बोझ था, पर चेहरे पर आत्मसम्मान की चमक थी। तभी सड़क पर एक काली चमचमाती SUV रेड सिग्नल पर रुकी। गाड़ी के शीशे के पीछे बैठा था आदित्य — करोड़पति बिजनेसमैन, लाखों की गाड़ियों और करोड़ों के बिजनेस का मालिक। लेकिन उसकी आंखें गहरी सोच में डूबी थीं।

आदित्य ने बाहर देखा, उसकी नजर उस चाय की दुकान पर ठहर गई। जैसे ही उसकी नजर मीरा पर पड़ी, दिल जोर से धड़क उठा। होंठ कांप गए, और अनजाने में बुदबुदाया — “मीरा…” सिग्नल हरा हुआ, बाकी गाड़ियां आगे बढ़ गईं, लेकिन आदित्य ने ड्राइवर से कहा, “गाड़ी साइड में लगाओ।” ड्राइवर हैरान हुआ, पर आदित्य ने सिर्फ दो मिनट मांगे।

आदित्य गाड़ी से उतरा — महंगे सूट और चमकते जूते, पर चेहरा बेचैन। उसके कदम धीरे-धीरे उस दुकान की ओर बढ़े, जैसे बरसों का बोझ पैरों में बंध गया हो। मीरा ने सिर उठाया, सामने आदित्य को देखा। हाथ में पकड़ी चम्मच ठहर गई, आंखें फैल गईं, चेहरा शून्य हो गया। पंद्रह साल बाद वही चेहरा सामने था। आदित्य ने धीमे स्वर में कहा, “मीरा…” मीरा की पलकों ने झुकना चाहा, दिल कांप रहा था, पर आवाज संभालते हुए बोली, “चाय बना दूं?” उसकी आवाज में सादगी थी, लेकिन भीतर का दर्द साफ था।

मीरा ने केतली से चाय निकाली, कुल्हड़ में डालकर आदित्य के सामने रख दी। आदित्य ने कांपते हाथों से कुल्हड़ थामा। पहला घूंट गले से उतरा तो भूली-बिसरी यादें उमड़ पड़ीं — लखनऊ का डीएवी कॉलेज, मीरा का सफेद सलवार-कुर्ता, किताबें हाथ में, मासूमियत चेहरे पर। किताबें गिर गई थीं, सब आगे बढ़ गए थे, आदित्य ने किताबें उठाकर मीरा को दी थी — “यह आपकी है।” मीरा की आंखों में झिझक थी, पर हल्की मुस्कान भी। “थैंक यू।” उसी दिन से आदित्य के दिल में कुछ नया अंकुर फूट गया था।

धीरे-धीरे उनकी मुलाकातें बढ़ने लगीं — लाइब्रेरी, गलियारे, कैंटीन। एक बार मीरा मंच पर जाने से डर रही थी, डिबेट प्रतियोगिता में नाम लिखा गया था, पर आवाज कांपने लगी थी। लोग हंसने लगे, तभी आदित्य ने ताली बजाई — “तुम बोल सकती हो मीरा, मुझे पता है तुम सबसे अच्छी हो।” मीरा ने धीरे-धीरे बोलना शुरू किया, पूरी ऑडियंस खामोश हो गई, भाषण खत्म हुआ तो तालियों की गड़गड़ाहट गूंज उठी। मीरा ने मंच से उतरते ही आदित्य की ओर देखा, उसकी आंखों में गर्व था।

अब उनकी बातें किताबों से सपनों तक पहुंच गई थीं। गोमती किनारे बैठना उनकी आदत थी। मीरा अक्सर पूछती — “आदित्य, तुम्हारे सपने क्या हैं?” आदित्य आसमान की ओर देखता — “सपने बड़े हैं, लेकिन अगर तुम साथ हो तो हर सपना पूरा कर लूंगा।” मीरा मुस्कुरा देती, उसकी आंखों की चमक बहुत कुछ कह जाती थी। दोस्ती मोहब्बत में बदल गई थी, पर दोनों ने कभी इजहार नहीं किया। वे सिर्फ आंखों से बातें करते, मुस्कानों से एहसास जताते।

लेकिन जिंदगी हमेशा एक सी नहीं रहती। आदित्य का परिवार गरीब था, पिता ने पढ़ाई छोड़कर कमाने को कहा। आदित्य का दिल टूट गया, हालात के आगे वह बेबस था। एक शाम गोमती किनारे आदित्य ने मीरा से कहा — “अगर कभी मैं दूर चला जाऊं तो याद रखना, लौटकर जरूर आऊंगा।” मीरा की आंखें भर आईं, उसने पहली बार आदित्य का हाथ थाम कर कहा — “कभी मत कहना कि हमारी राहें अलग हो सकती हैं। मैं इंतजार करूंगी चाहे जितना वक्त लगे।”

किस्मत ने बेरहम मोड़ लिया। कुछ महीनों बाद मीरा की शादी गांव में कर दी गई। आदित्य दूसरे शहर चला गया था। जिम्मेदारियों ने रिश्तों की जगह ले ली थी। समय बीता, पंद्रह साल गुजर गए। अब आदित्य की चाय खत्म हो चुकी थी, उसकी आंखों में नमी थी। सामने वही मीरा थी, पर अब कॉलेज की लड़की नहीं, सड़क किनारे चाय बेचती मजबूत औरत।

तभी दुकान के भीतर से मासूम आवाज आई — “मां!” आदित्य का दिल धक से रह गया। दुकान के भीतर 8-9 साल का बच्चा खड़ा था, पुराने कपड़े, पीठ पर किताबों का बैग, आंखों में मासूम चमक। बच्चा दौड़कर मीरा के पास आया — “मां, स्कूल देर हो रही है। चलो ना।” आदित्य ने कांपती आवाज में पूछा — “मीरा, यह तुम्हारा बेटा है?” मीरा ने बेटे के सिर पर हाथ फेरा — “हां, यही मेरी दुनिया है।”

आदित्य ने पूछा — “तुम्हें यह सब अकेले क्यों झेलना पड़ा?” मीरा ने गहरी सांस ली — “शादी हुई थी, लेकिन पति शराबी था। घर में मारपीट, अपमान ही मिला। बहुत सहा सिर्फ बच्चे के लिए। जब लगा उसकी मासूमियत भी डूब जाएगी, तो सब छोड़कर शहर चली आई। दूसरी शादी का सहारा ले सकती थी, लेकिन नहीं चाहती थी कि बच्चा सौतेलेपन की चोट खाए। इसलिए इस चूल्हे को अपनी इज्जत बना लिया।”

आदित्य का गला भर आया — “मीरा, तुमने यह सब अकेले झेला और मैं कहीं और दुनिया जीतने में लगा रहा।” मीरा ने उसकी ओर देखा — “जिंदगी हमारी चाहतों के हिसाब से नहीं चलती। मैंने जो रास्ता चुना वो सिर्फ अपने बेटे के लिए था। मुझे किसी से हमदर्दी नहीं चाहिए, बस इतना चाहती हूं कि मेरा बच्चा पढ़े-लिखे और कभी किसी के सामने हाथ न फैलाए।”

बच्चा मासूमियत से आदित्य की ओर देख रहा था — “क्या नाम है तुम्हारा?” — “आरव।” — “मैं बड़ा होकर डॉक्टर बनूंगा ताकि मम्मी को कभी तकलीफ न हो।” आदित्य की आंखों से आंसू छलक पड़े — “मीरा, आज मुझे लग रहा है कि असली दौलत तुम्हारे पास है। यह बेटा, जिसकी आंखों में सपने हैं और दिल में मां का भरोसा।”

कुछ देर का सन्नाटा रहा। सड़क पर शोर था, पर उस चाय की दुकान पर हर पल अधूरी दास्तान सा भारी था। आदित्य ने कहा — “मीरा, तुम्हें अकेले यह सब और नहीं सहना चाहिए। अगर तुम इजाजत दो तो मैं तुम्हारे और आरव के लिए…” उसकी आवाज कांप रही थी। मीरा की आंखों में डर और शंका थी, पर आदित्य की आंखों में सच्चाई थी।

“मीरा, बरसों से मैं दौलत और शोहरत कमाता रहा, पर आज एहसास हो रहा है कि असली जिंदगी खो दी। अगर तुम इजाजत दो तो मैं तुम्हारे और आरव के लिए सब कुछ बदल सकता हूं। तुम अकेली क्यों लड़ो? मैं हूं ना तुम्हारे साथ।” मीरा का दिल एक पल को धक से रह गया। बरसों पहले की आवाज आज फिर सामने थी।

मीरा ने खुद को संभाला — “आदित्य, तुम्हारे शब्द मीठे हैं, पर जिंदगी इतनी आसान नहीं है। मैं सिर्फ अपने लिए नहीं, बेटे के लिए जी रही हूं। अगर समाज ने सवाल उठाए, अगर उसने पूछा कि मम्मी ने दोबारा क्यों शादी की? क्या तुम यकीन कर सकते हो कि वह सौतेलेपन की छाया से बच पाएगा?”

“पर मैं तो उसका बाप बनना चाहता हूं। दिल से अपनाना चाहता हूं। क्या यह सौतेलापन होगा?” मीरा की आंखों से आंसू गिर पड़े — “तुम्हारी नियत पर शक नहीं, पर दुनिया की नियत पर है। लोग ताने देंगे, कहेंगे मां ने करोड़पति से शादी कर ली आराम पाने के लिए। मैं अपने बेटे की नजरों में कभी गिरना नहीं चाहती।”

आदित्य ने आगे बढ़कर कहा — “मीरा, क्या सचमुच तुम्हें लगता है कि मैं सिर्फ सहारा देना चाहता हूं? मैं तुम्हें वापस पाना चाहता हूं। दौलत, शोहरत सब पा लिया, लेकिन रात को अकेला होता हूं तो खालीपन खा जाता है। आज तुम्हें और तुम्हारे बेटे को देखकर लगा मेरी अधूरी दुनिया पूरी हो सकती है।”

मीरा ने आंसू पोंछे — “दिल तो मान जाता है, पर दिमाग नहीं। समाज की चोटें खाई हैं, रिश्तों की गालियां सुनी हैं। मैं बेटे को दोबारा उसी दलदल में नहीं झोंक सकती। अपने आंसू पी लूंगी, पर बच्चे की हां पर कोई दाग नहीं लगने दूंगी।”

कुछ पल दोनों खामोश रहे। सड़क का शोर, भीड़ सब फीका पड़ गया। आरव मां का आंचल पकड़े मासूमियत से देख रहा था। “मम्मी, स्कूल जाना है ना?” मीरा ने उसके बालों को सहलाया, आदित्य की ओर देखा — “तुम्हारी बातें मीठी हैं आदित्य, पर मेरा सच बहुत कड़वा है। शायद इस जन्म में हमारी मोहब्बत सिर्फ यादों में ही पूरी होगी।”

आदित्य की आंखें भीग गईं, शब्द गले में अटक गए। दिल पर भारी बोझ उतर आया। कुछ देर चुप रहा, पर आंखों में ज़िद थी। “अगर इस जन्म में भी हमारी मोहब्बत अधूरी रही, तो यह दुनिया जीते जी हमें मार देगी। तुम कहती हो समाज ताने देगा, तो मैं समाज के सामने तुम्हारा और आरव का हाथ थामना चाहता हूं।”

मीरा चौंक गई — “यह इतना आसान नहीं है।” आदित्य ने उसका हाथ पकड़ लिया — “आसान नहीं है, लेकिन अगर डरते रहे तो कभी जी ही नहीं पाएंगे। तुम्हारी आंखों में वह सपना देखता हूं जिसे अधूरा छोड़कर सालों तक भटकता रहा। आज किस्मत ने फिर मिलाया है, तो मैं पीछे नहीं हटूंगा।”

भीड़ में कुछ लोग देख रहे थे, कोई फुसफुसा रहा था, कोई मुस्कुरा रहा था। मीरा का चेहरा शर्म और डर से लाल हो गया — “लोग क्या सोचेंगे?” आदित्य ने दृढ़ता से कहा — “लोग कल भी बोलते थे, आज भी बोलेंगे, कल भी बोलेंगे। लेकिन हमारी जिंदगी उनकी सोच से नहीं चलेगी। मैं चाहता हूं कि आरव कल जब बड़ा हो तो गर्व से कह सके — यह मेरे पापा हैं। और तुम कह सको — हां, यह मेरे पति हैं।”

मीरा की आंखें भर आईं, बरसों की कसमें, डर और समाज की परवाह एक ही पल में टूटने लगी। उसने कांपते होठों से कहा — “अगर तुम सच में इतना साहस रखते हो, तो मैं भी पीछे नहीं हटूंगी। पर याद रखना, यह सिर्फ मोहब्बत की नहीं, इज्जत की लड़ाई भी होगी।” आदित्य ने हल्की मुस्कान दी — “मैं वादा करता हूं मीरा, अब कोई जुदाई नहीं होगी।”

मीरा ने हिचकिचाकर उसका हाथ थाम लिया। आरव मासूमियत से दोनों को देख रहा था, उसकी आंखों में खुशी की चमक थी। सड़क किनारे उस छोटी सी चाय की दुकान पर लोग ताली बजाने लगे — “सच में यह मोहब्बत की जीत है।” बरसों से बिछड़े दो दिल फिर मिल गए थे। और इस बार सिर्फ अपने लिए नहीं, बल्कि उस मासूम के लिए भी जिसकी आंखों में अब पूरा परिवार होने की चमक थी।

कभी-कभी जिंदगी हमें दूसरा मौका देती है। हिम्मत वही कर पाते हैं जो समाज की परवाह से ऊपर उठकर सच्चाई को अपनाते हैं। मीरा और आदित्य ने साबित कर दिया कि मोहब्बत सिर्फ इजहार नहीं, बल्कि संघर्ष, सम्मान और जिम्मेदारी निभाने का नाम भी है।

दोस्तों, आपके हिसाब से क्या मीरा का फैसला सही था? क्या किसी औरत को सिर्फ समाज के डर से अपना सुख छोड़ देना चाहिए? या उसे भी हक है कि वह अपनी जिंदगी नए सिरे से शुरू करे? अगर आपको यह कहानी पसंद आई हो तो लाइक करें, चैनल सब्सक्राइब करें और कमेंट में बताएं — क्या आप मानते हैं कि असली मोहब्बत कभी अधूरी नहीं रहनी चाहिए?

मिलते हैं अगली कहानी में।
जय हिंद, जय भारत।