अपमान का बदला: शंकर दयाल और रोहन की कहानी
सुबह का समय था। सभी दुकानें सज चुकी थीं। उसी समय शहर के सबसे बड़े बैंक, समृद्धि बैंक के दरवाजे की ओर एक बुजुर्ग व्यक्ति धीरे-धीरे कदमों से बढ़ रहे थे। उनका नाम था शंकर दयाल। जैसे ही वह दरवाजे के पास पहुंचे, वहां खड़े गार्ड ने उन्हें ऊपर से नीचे तक घूरा। उसकी नजरों में साफ-साफ लिखा था, “तुम यहां क्या करने आए हो?”
शंकर दयाल ने उसकी ओर ध्यान नहीं दिया और धीरे-धीरे कांच का दरवाजा धकेल कर अंदर चले गए। अंदर जाते ही कर्मचारियों और ग्राहकों ने उन्हें अजीब नजरों से देखने लगे। सब उन्हें ऐसे देख रहे थे जैसे वह गलत जगह पर आ गए हों। वह धीरे-धीरे चलकर काउंटर की तरफ बढ़े। एक काउंटर पर पूछताछ लिखी थी, जहां सुनीता नाम की एक 30 साल की महिला बैठी थी। सुनीता अपने काम से ज्यादा अपने फोन में व्यस्त थी।
अपमान का सामना
शंकर दयाल ने बहुत ही विनम्रता से कहा, “बेटी, मुझे बैंक से पैसे निकालने थे।” सुनीता ने उसे बेरुखी से देखा और कहा, “तो निकालो। मैं क्या करूं? जाओ उस काउंटर पर।”
“बेटी, चेक से निकालने हैं,” उन्होंने कहा। सुनीता ने एक नकली हंसी हंसते हुए कहा, “ओ हो, चेक से कितने निकालने हैं? ₹2,000? मुझे ₹1 लाख नकद निकालने हैं।” यह सुनते ही वह जोर से हंसने लगी। उसकी हंसी इतनी तेज थी कि आसपास के लोग भी देखने लगे।
“क्या कहा? ₹1 लाख? अरे चाचा, सुबह-सुबह मजाक करने आ गए क्या? तुम अपनी शक्ल देखी है आईने में? जिंदगी में कभी इतने पैसे एक साथ देखे भी हैं? भिखारी कहीं के, चलो निकलो यहां से।”
शंकर दयाल का चेहरा अपमान से लाल हो गया। उन्होंने कांपती आवाज में कहा, “बेटी, तुम ऐसी बातें क्यों कर रही हो? मेरा खाता इसी बैंक में है। तुम बस एक बार चेक तो देख लो।”
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हंगामा
सुनीता अब चिल्लाने लगी थी, “मुझे नहीं देखना कोई चेक। तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई इतने बड़े बैंक में घुसने की? यह बैंक तुम जैसे भिखारियों के लिए नहीं है। यहां शहर के बड़े-बड़े लोग आते हैं। तुम्हारी तो औकात भी नहीं है यहां खाता खोलने की।”
यह सुनकर शंकर दयाल जी हक्के बक्के रह गए। यह हंगामा सुनकर आसपास भीड़ जमा हो गई थी। तभी बैंक मैनेजर मिस्टर वर्मा अपनी कांच की केबिन से बाहर निकले। उन्होंने कड़क आवाज में पूछा, “क्या हो रहा है यहां?”
सुनीता ने चटकारे लेते हुए कहा, “सर, देखिए ना, यह कोई भिखारी है। सुबह-सुबह आ गया है और कह रहा है कि इसे ₹1 लाख कैश चाहिए।”
मिस्टर वर्मा गुस्से में शंकर दयाल जी की तरफ बढ़ा। “ए बुड्ढे, सुनाई नहीं दे रहा तुझे? जब वह कह रही है कि यहां से जाओ, तो जाता क्यों नहीं?”

अपमान की पराकाष्ठा
शंकर दयाल जी ने हाथ जोड़कर कहा, “साहब, मैं भिखारी नहीं हूं। मेरा पैसा है।” लेकिन वर्मा ने शंकर दयाल जी को जोर से सीने पर धक्का दे दिया। धक्का इतना जोरदार था कि 60 साल के शंकर दयाल जी अपना संतुलन खो बैठे और गिर पड़े। उनके पासबुक और चेक हाथ से छूट कर दूर जा गिरे।
बैंक में सन्नाटा छा गया। मिस्टर वर्मा ने गार्ड पर चिल्लाया, “देख क्या रहे हो? उठाओ इसे और बाहर फेंको।” गार्ड ने लपक कर शंकर दयाल जी की बाह पकड़ी और उन्हें घसीटते हुए बैंक के दरवाजे से बाहर कर दिया।
बेटे का समर्थन
बाहर धूल और गाड़ियों के शोर के बीच शंकर दयाल जी जमीन पर बैठे थे। आंखों में बेबसी के आंसू थे। उन्होंने अपनी जिंदगी में बहुत मेहनत और ईमानदारी से पैसा कमाया था। लेकिन आज उनके ही पैसों ने उन्हें भिखारी बना दिया था। घर पहुंचकर उन्होंने दरवाजा बंद किया और वहीं जमीन पर बैठ गए। वह बच्चों की तरह फूट-फूट कर रोने लगे।
काफी देर रोने के बाद उनका मन थोड़ा हल्का हुआ, लेकिन अपमान की आग अभी भी अंदर जल रही थी। उन्होंने सोचा कि क्या उन्हें अपने बेटे रोहन को यह सब बताना चाहिए? लेकिन फिर उन्होंने सोचा, अगर मैं चुप रह गया तो उन जैसे लोगों का हौसला और बढ़ेगा।
उन्होंने कांपते हाथों से अपना फोन उठाया और रोहन का नंबर मिलाया। उस समय रोहन दिल्ली में एक बहुत बड़ी इंटरनेशनल डील की मीटिंग में था। जैसे ही उसके पर्सनल फोन पर पिताजी का नाम चमका, उसने मीटिंग में बैठे लोगों से माफी मांगी।
रोहन का निर्णय
“पिताजी, सब ठीक है। आपने आज सुबह फोन नहीं किया। मैं चिंता कर रहा था।” दूसरी तरफ से शंकर दयाल जी की भारी और भीगी हुई आवाज आई। “हां बेटा, सब ठीक है।”
रोहन ने तुरंत समझ लिया कि कुछ गड़बड़ है। “पिताजी, आपकी आवाज ठीक नहीं लग रही। क्या हुआ?” शंकर दयाल जी ने रोते-रोते बैंक में हुई सारी घटना अपने बेटे को बता दी। जैसे-जैसे रोहन सुनता गया, उसके चेहरे का रंग बदलता गया।
“पिताजी, आप बस शांत हो जाइए। मैं अभी आ रहा हूं।” लेकिन शंकर दयाल जी ने कहा, “नहीं बेटा, तू अपनी मीटिंग कर। मैं ठीक हूं।”
“नहीं,” रोहन की आवाज में दृढ़ता थी। “कोई मीटिंग, कोई डील मेरे पिता के सम्मान से बड़ी नहीं है। मैं पहली फ्लाइट से वापस आ रहा हूं।”
अपमान का बदला
देर रात जब रोहन घर पहुंचा, तो उसने देखा कि उसके पिता सोफे पर ही बैठे-बैठे सो गए थे। रोहन ने धीरे से उनके कंधे पर हाथ रखा। “पिताजी, अब और नहीं। आप आराम कीजिए। कल हम एक साथ उस बैंक में जाएंगे।”
शंकर दयाल जी ने कहा, “नहीं बेटा, अब हमें वहां जाने की क्या जरूरत है? मैं उस बैंक में अब कभी कदम नहीं रखूंगा।”
रोहन ने कहा, “जाना होगा पिताजी। यह सिर्फ आपके अपमान की बात नहीं है। यह उस घमंड को तोड़ने की बात है।”
बैंक में वापसी
अगली सुबह रोहन ने साधारण कपड़े पहने। उन्होंने अपने ड्राइवर को छुट्टी दे दी और एक ऑटो रिक्शा रोका। बैंक में आज भी वही माहौल था। जैसे ही वे अंदर घुसे, सब ने उन्हें घूरना शुरू कर दिया।
रोहन और शंकर दयाल जी ने उसी काउंटर पर जाकर कहा, “हमें पैसे निकालने हैं।” सुनीता ने नजर उठाकर देखा और कहा, “ओ तो तुम फिर आ गए। आज अपने बेटे को भी ले आए हो शिकायत करने।”
रोहन ने कहा, “मैडम, हम पैसे निकालने आए हैं। यह मेरे पिताजी का चेक है।”
सुनीता ने चेक को देखा और फिर से हंस पड़ी। “₹1 लाख कहां से लाओगे? पहले अपने खाते में ₹10 तो जमा करवा लो।”
सच्चाई का सामना
रोहन ने कहा, “मैडम, आप बस एक बार कंप्यूटर में अकाउंट नंबर डालकर बैलेंस चेक कर लीजिए।” लेकिन सुनीता ने चेक फेंकते हुए कहा, “मेरे पास फालतू टाइम नहीं है तुम जैसे लोगों के लिए।”
रोहन ने कहा, “ठीक है, हम मैनेजर साहब से मिल लेते हैं।”
जब रोहन ने मैनेजर के केबिन का दरवाजा खोला, तो वर्मा ने चिल्लाकर कहा, “तमीज नहीं है क्या? बिना पूछे अंदर कैसे आ गए?”
रोहन ने कहा, “आपकी यही बातें मुझे यहां खींच लाई हैं।” उसने अपने फोन से एक नंबर डायल किया।
सबक सिखाना
कुछ ही मिनटों में बैंक में कुछ लोग आए। रोहन ने कहा, “मैं चाहता हूं कि आप यह ट्रांजैक्शन पूरा करें। यह मेरे पिता का चेक है।”
वर्मा ने कहा, “जब इसके खाते में पैसे ही नहीं हैं तो मैं ट्रांजैक्शन कैसे कर दूं?”
रोहन ने कहा, “मजाक तो कल आप लोगों ने मेरे पिता के साथ किया था।”
उसने सीसीटीवी फुटेज दिखाया, जिसमें सब कुछ साफ-साफ दिख रहा था।
वर्मा कांपती आवाज में बोला, “सर, आप मजाक कर रहे हैं।”
रोहन ने कहा, “मजाक तो कल आपने किया था।”
वर्मा ने शंकर दयाल जी के पैरों में गिरकर माफी मांगी। लेकिन रोहन ने कहा, “आपको इसलिए निकाला जा रहा है क्योंकि आप उस कुर्सी के लायक नहीं हैं।”
गर्व का पल
शंकर दयाल जी ने रोहन की तरफ देखा और कहा, “हमने यह बैंक लोगों की मदद के लिए बनाया था। किसी का अपमान करने के लिए नहीं।”
बैंक से बाहर निकलते समय पूरा स्टाफ और ग्राहक सिर झुकाए सम्मान में खड़े थे। शंकर दयाल जी ने एक गहरी सांस ली। आज उनके आंस# अपमान का प्रतिशोध: शंकर दयाल और रोहन की कहानी
सुबह का समय था, और शहर की सभी दुकानें सज चुकी थीं। उसी समय समृद्धि बैंक के दरवाजे की ओर एक बुजुर्ग व्यक्ति, शंकर दयाल, धीरे-धीरे कदम बढ़ा रहे थे। जैसे ही वे दरवाजे के पास पहुंचे, वहां खड़े गार्ड ने उन्हें ऊपर से नीचे तक घूरा। उसकी नजरों में स्पष्ट था, “तुम यहां क्या करने आए हो?” लेकिन शंकर दयाल ने उसकी बातों पर ध्यान नहीं दिया और कांच का दरवाजा धकेलकर अंदर चले गए।
बैंक का अपमान
बैंक के अंदर जाते ही सभी कर्मचारियों और ग्राहकों ने उन्हें अजीब नजरों से देखा। ऐसा लग रहा था जैसे कोई गलत जगह पर आ गया हो। शंकर दयाल धीरे-धीरे काउंटर की तरफ बढ़े, जहां सुनीता नाम की एक महिला बैठी थी। सुनीता अपने फोन में व्यस्त थी और उसने शंकर दयाल को बेरुखी से जवाब दिया।
“बेटी, मुझे बैंक से पैसे निकालने थे,” उन्होंने विनम्रता से कहा। सुनीता ने उन्हें घूरते हुए कहा, “तो निकालो। मैं क्या करूं? जाओ उस काउंटर पर।” जब शंकर दयाल ने चेक से ₹1 लाख निकालने की बात कही, तो सुनीता जोर-जोर से हंसने लगी।
“क्या कहा? ₹1 लाख? तुम अपनी शक्ल देखी है आईने में?” उसने अपमानित करते हुए कहा। “तुम्हारी औकात नहीं है यहां खाता खोलने की। चलो निकलो यहां से।”
अपमान का मंजर
शंकर दयाल का चेहरा अपमान से लाल हो गया। उन्होंने कांपती आवाज में कहा, “बेटी, तुम ऐसी बातें क्यों कर रही हो? मेरा खाता इसी बैंक में है।” लेकिन सुनीता अब चिल्लाने लगी, “यह बैंक तुम जैसे भिखारियों के लिए नहीं है।”
इस हंगामे ने आसपास भीड़ जमा कर दी। तभी बैंक मैनेजर मिस्टर वर्मा बाहर आए। उन्होंने शंकर दयाल को धक्का देकर बाहर फेंकने का आदेश दिया। शंकर दयाल जी को जमीन पर गिरा दिया गया, और उनकी पासबुक और चेक हाथ से छूटकर दूर जा गिरे।
अपमान का असर
बैंक के बाहर शंकर दयाल जी जमीन पर बैठे थे, आंखों में बेबसी के आंसू थे। उन्होंने अपनी जिंदगी में मेहनत और ईमानदारी से पैसा कमाया था, लेकिन आज उनके ही पैसों ने उन्हें भिखारी बना दिया था। घर पहुंचकर उन्होंने दरवाजा बंद किया और वहीं बैठकर फूट-फूटकर रोने लगे।
काफी देर रोने के बाद, उन्होंने सोचा कि क्या उन्हें अपने बेटे रोहन को यह सब बताना चाहिए। वह अपने बेटे को परेशान नहीं करना चाहते थे, लेकिन फिर उन्होंने सोचा कि अगर वह चुप रहे तो ऐसे लोगों का हौसला और बढ़ेगा।
रोहन का समर्थन
उन्होंने कांपते हाथों से अपना फोन उठाया और रोहन का नंबर मिलाया। उस समय रोहन एक बड़ी इंटरनेशनल डील की मीटिंग में था। जैसे ही उसके फोन पर पिताजी का नाम चमका, उसने मीटिंग में बैठे लोगों से माफी मांगी और फोन उठाया।
“हां पिताजी, सब ठीक है?” रोहन ने पूछा। दूसरी तरफ शंकर दयाल जी की भारी आवाज आई, “हां बेटा, सब ठीक है।” लेकिन रोहन तुरंत समझ गया कि कुछ गड़बड़ है।
“पिताजी, आपकी आवाज ठीक नहीं लग रही। क्या हुआ?” शंकर दयाल जी ने रोते-रोते बैंक में हुई सारी घटना बताई। जैसे-जैसे रोहन सुनता गया, उसके चेहरे का रंग बदलता गया।
“पिताजी, आप बस शांत हो जाइए। मैं अभी आ रहा हूं,” रोहन ने कहा।
प्रतिशोध की योजना
रोहन ने मीटिंग छोड़ दी और तुरंत एयरपोर्ट के लिए निकल गया। उसने मन ही मन फैसला कर लिया कि वह उन लोगों को सजा देगा। जब रोहन घर पहुंचा, तो उसने देखा कि उसके पिता सोफे पर बैठे-बैठे सो गए थे।
“पिताजी, अब और नहीं। हम कल इस बैंक में जाएंगे,” रोहन ने कहा। शंकर दयाल जी ने कहा, “अब हमें वहां जाने की क्या जरूरत है?” लेकिन रोहन ने कहा, “यह सिर्फ आपके अपमान की बात नहीं है। यह उस घमंड को तोड़ने की बात है।”
बैंक में वापसी
अगली सुबह रोहन ने साधारण कपड़े पहने और अपने पिता का हाथ पकड़कर बैंक की तरफ चल दिए। बैंक में वही माहौल था। जैसे ही वे अंदर गए, सबने उन्हें घूरना शुरू कर दिया। रोहन ने सुनीता से कहा, “हमें पैसे निकालने हैं।”
सुनीता ने उन्हें पहचानने से इंकार कर दिया, लेकिन रोहन ने कहा, “आप बस एक बार कंप्यूटर में अकाउंट नंबर डालकर बैलेंस चेक कर लीजिए।”
जब सुनीता ने चेक फेंकते हुए कहा कि उसके पास फालतू टाइम नहीं है, तो रोहन ने कहा, “ठीक है, हम मैनेजर साहब से ही मिल लेते हैं।”
सच्चाई का खुलासा
रोहन सीधे मिस्टर वर्मा के केबिन में गया और कहा, “आप मिस्टर वर्मा हैं?” वर्मा ने चिल्लाते हुए कहा, “तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मेरे केबिन में घुसने की?”
रोहन ने अपने जेब से ₹1 लाख का चेक निकाला और कहा, “यह मेरे पिता का चेक है।” वर्मा ने चेक को बिना देखे ही किनारे फेंक दिया।
लेकिन रोहन ने कहा, “आपकी यही बातें मुझे यहां खींच लाई हैं।” उसने अपने फोन पर कॉल किया और कुछ ही मिनटों में बैंक के बाहर एक टीम आई।
प्रतिशोध की कार्रवाई
रोहन ने वर्मा को बताया कि वह इस बैंक का मेजॉरिटी शेयर होल्डर और मालिक है। यह सुनकर वर्मा के पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई। रोहन ने CCTV फुटेज दिखाते हुए कहा कि यह सब अब हेड ऑफिस और न्यूज़ चैनलों तक पहुंच जाएगा।
वर्मा कांपते हुए माफी मांगने लगा, लेकिन रोहन ने कहा, “तुम्हें माफी किस बात के लिए चाहिए? क्या तुमने मेरे पिता को पहचानने में गलती की या उस अपमान के लिए जो तुम हर गरीब और साधारण दिखने वाले इंसान के साथ करते हो?”
सम्मान की वापसी
रोहन ने सुनीता को बुलाया और कहा, “आप तो चेहरे पढ़कर औकात बता देती हैं। बताइए आज मेरे चेहरे पर आपको क्या दिख रहा है?” सुनीता चुप हो गई।
रोहन ने कहा, “आप दोनों को सिर्फ इसलिए नहीं निकाला जा रहा कि आपने मेरे पिता का अपमान किया। आपको इसलिए निकाला जा रहा है क्योंकि आप उस कुर्सी के लायक नहीं हैं।”
बैंक के स्टाफ और ग्राहकों ने यह सब देखा और सबक लिया। रोहन ने अपने पिता के पास जाकर कहा, “हम इस बैंक को लोगों की मदद के लिए बनाए थे, किसी का अपमान करने के लिए नहीं।”
अंत की ओर
शंकर दयाल जी ने गर्व से अपने बेटे को देखा। आज उनके आंसू अपमान के नहीं, बल्कि गर्व के थे। उन्होंने अपने बेटे का हाथ पकड़ा और बैंक से बाहर निकल गए। बाहर आकर सभी ने सिर झुकाए सम्मान में खड़े होकर उन्हें देखा।
इस घटना ने न केवल शंकर दयाल जी का सम्मान वापस दिलाया, बल्कि पूरी व्यवस्था को एक जरूरी सबक भी सिखाया।
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