किशन और आराध्या: उम्मीद की कहानी

दिल्ली के एक आलीशान बंगले में करोड़पति अर्जुन मेहता अपनी आठ साल की बेटी आराध्या के साथ रहते थे। कभी यह घर हंसी से गूंजता था, लेकिन एक हादसे ने सब बदल दिया। सड़क दुर्घटना में अर्जुन ने अपनी पत्नी को खो दिया, और उसी हादसे में आराध्या इतनी घायल हो गई कि वह व्हीलचेयर पर आ गई। उसकी मासूम हंसी, दौड़ती-भागती जिंदगी अचानक थम गई। डॉक्टरों, दवाइयों, विदेशों के इलाज—सब कुछ आज़मा लिया गया, लेकिन आराध्या की मुस्कान लौटकर नहीं आई।

दूसरी ओर, दिल्ली की सड़कों पर किशन नाम का एक अनाथ लड़का अपनी किस्मत से लड़ रहा था। उसके पास ना घर था, ना परिवार, ना भरपेट खाना। कभी पुल के नीचे, कभी सुनसान दुकानों में रात बिताता, लेकिन उसकी आंखों में जीने की चमक थी। उसका एक ही सहारा था—उसका नाच। जब भी वह नाचता, अपने सारे दर्द भूल जाता।

एक तपती दोपहर, आराध्या को उसकी आया बगीचे में ले आई। वह चुपचाप व्हीलचेयर पर बैठी थी, आंखें कहीं दूर टिकी थीं। तभी झाड़ियों के पीछे से किशन अंदर आया। वह दुबला-पतला, नंगे पांव, धूल-मिट्टी से सना हुआ था। उसने बिना कुछ कहे, शरारती अंदाज में नाचना शुरू किया—कभी गिरने का नाटक करता, कभी मजेदार चेहरे बनाता। आराध्या पहले तो चौंकी, फिर उसके होंठों पर महीनों बाद मुस्कान लौट आई। वह ताली बजाने लगी, हंसने लगी। किशन को लगा जैसे उसने भूख पर जीत हासिल कर ली हो।

यह सब अर्जुन मेहता ने बालकनी से देख लिया। बेटी की हंसी सुनकर उनकी आंखें भर आईं। करोड़ों रुपये खर्च करने के बाद भी जो ना कर सके, वह इस नंगे पांव बच्चे ने कर दिखाया था। अगले दिन आराध्या ने फिर बगीचे में जाने की जिद की। किशन भी लौट आया। दोनों की दोस्ती धीरे-धीरे गहरी होती गई। किशन रोज शाम को आता, मजाकिया एक्टिंग करता, आराध्या हंसती, ताली बजाती। उसका आत्मविश्वास लौटने लगा—वह व्हीलचेयर खुद घुमाने लगी, हाथ उठाने लगी, और एक दिन खड़े होने की कोशिश भी करने लगी।

एक शाम, किशन के मजाकिया डांस से प्रेरित होकर आराध्या ने अपनी पूरी ताकत लगाकर खुद को व्हीलचेयर से थोड़ा ऊपर उठाया। अर्जुन की आंखों से आंसू बहने लगे। उनकी बेटी ने महीनों बाद खुद से खड़े होने की कोशिश की थी। किशन खुशी से चिल्लाया—”तुमने कर दिखाया!”

अब किशन, आराध्या का सबसे अच्छा दोस्त बन गया। बंगले में सन्नाटा नहीं, हंसी और उम्मीद की गूंज थी। अर्जुन ने किशन को घर में अपनाने का फैसला किया। बोले—”अब तुम सिर्फ मेहमान नहीं, मेरे बेटे जैसे हो। तुम्हें पढ़ाई करनी होगी और यही तुम्हारा घर है।” आराध्या ने किशन का हाथ पकड़ लिया—”अब तुम मेरे भाई हो।”

धीरे-धीरे यह खबर पूरे शहर में फैल गई। लोग बातें करने लगे—”एक करोड़पति ने सड़क के लड़के को अपना लिया”, लेकिन अर्जुन को फर्क नहीं पड़ा। उन्होंने कहा—”अगर एक सड़क का बच्चा मेरी बेटी को जिंदगी लौटा सकता है, तो वही मेरा परिवार है।” अब वह बंगला सिर्फ एक महल नहीं, बल्कि एक सच्चा घर बन गया।

किशन और आराध्या की कहानी हमें सिखाती है—कभी-कभी भगवान मदद वहीं से भेजता है, जहां से हम सबसे कम उम्मीद रखते हैं। सच्ची खुशी, सच्चा प्यार और उम्मीद, दौलत और शोहरत से कहीं बड़ी होती है।

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मिलते हैं अगली कहानी में।
जय हिंद!