एक मां, एक बलिदान: सावित्री देवी की प्रेरणादायक कहानी

एक मां का दिल कितना मजबूत होता है? क्या वह अपने बेटे को देश के लिए हंसते-हंसते कुर्बान कर सकती है? यह कहानी है हिमाचल प्रदेश के एक छोटे-से गांव पालमपुर की सावित्री देवी की, जिन्होंने अपने इकलौते बेटे विक्रम को देश सेवा के लिए न केवल प्रेरित किया, बल्कि उसकी शहादत के बाद भी पूरे देश के सामने आदर्श और साहस की मिसाल कायम की।

1. पहाड़ों के बीच साहस की परवरिश

पालमपुर – कांगड़ा घाटी के धौलाधार की बर्फीली चोटियों की गोद में बसा एक सुंदर गांव, जहां हर घर से कोई न कोई फौजी होता था। इन फौजियों ने अपनी जान देश की सरहद पर दांव पर लगाई थी। सावित्री देवी का घर भी इनमें से एक था। सावित्री के पति खुद एक बहादुर सैनिक थे, जो पंद्रह साल पहले सीमा पर अपना बलिदान दे चुके थे। पति के चले जाने के बाद, सावित्री की पूरी दुनिया उसका बेटा विक्रम बन गया।

सावित्री ने छोटी-छोटी मजदूरी और खेतों में मेहनत कर विक्रम को पढ़ाया-लिखाया, बड़ा किया। उसकी आंखों में बचपन से ही अपने पिता की वर्दी पहनने का सपना पल रहा था। एक मां का दिल अपने बेटे को खोने से डरता था, फिर भी उसने अपने बेटे की इच्छाओं को तवज्जो दी।

2. बेटे की जिद और मां का त्याग

जब विक्रम जवान हुआ, उसमें देशभक्ति और फौजी बनने का जुनून कूट-कूटकर भरा था। एक रात उसने मां से कहा, “मां, अगर तू मुझे सेना में जाने से रोकेगी, तो मैं जी नहीं पाऊंगा। मैं भी बाबूजी की तरह देश के लिए कुछ करना चाहता हूं।” उस एक सवाल ने सावित्री के भीतर छिपी फौलादी मां को जगा दिया। उसने अपने आंसू पोंछ कर बेटे को सरहद पर भेजने का फैसला कर लिया।

अपनी पूरी जमा पूंजी, बचे-खुचे गहने बेचकर विक्रम को भर्ती की तैयारी के लिए शहर भेज दिया। आखिर वो दिन भी आ गया जब गांव में मिठाई बांटी गई – विक्रम भारतीय सेना में शामिल हो गया था। मां ने बेटे को खुशी-खुशी विदा किया, मगर रातों को अपने तकिए में आंसू बहाती रही।

3. फौजी बेटा, मिट्टी की सौगात

विक्रम ट्रेनिंग के लिए चला गया। मां के लिए उसका हर पत्र अमूल्य खजाना था। विक्रम लिखता, “मां, बहुत मेहनत है, मगर जब वर्दी पहनता हूं तो सब भूल जाता हूं।” कुछ ही साल में उसकी पोस्टिंग सियाचिन जैसे सबसे कठिन क्षेत्र में हो गई। मां का दिल हर वक्त धड़कता, मगर उसकी चिट्ठियों में जज्बात और देशभक्ति घटती नहीं थी।

इसी दौरान सावित्री ने विक्रम की शादी गांव की ही एक अनाथ लड़की प्रिया से कर दी। शादी के बस पंद्रह दिन बाद ही विक्रम ड्यूटी पर लौट गया — जाते वक्त अपनी गर्भवती पत्नी का हाथ थाम कर बोला, “अपने और मां का ख्याल रखना, जल्द लौटकर अपने बच्चे से मिलूंगा।”

4. घर में उजाला, किस्मत का अंधियारा

महीने बीते। प्रिया ने सुंदर से बेटे को जन्म दिया – सूरज। सावित्री खुशी से झूम उठी, बेटे को फोन पर खबर दी। विक्रम भी बहुत खुश हुआ, बोला, “मां, अगली छुट्टी में खिलौने लाऊंगा।” लेकिन कुदरत को कुछ और मंजूर था।

एक दिन गांव में सेना की जीप आई। माजर और जवान उतरे। “माताजी, हमें आपसे एक बुरी खबर देनी है…” विक्रम सियाचिन में बर्फीले तूफान की चपेट में आ गया था। उसने पांच साथियों की जान बचाई, लेकिन खुद शहीद हो गया।

5. मां की पीड़ा, इतिहास की मिसाल

पूरा गांव गम में डूबा था। मगर सावित्री की आंख से एक आंसू तक नहीं गिरा। जब शहीद बेटे का तिरंगे में लिपटा शव आया, गांव वाले हैरान रह गए – सावित्री ने सफेद नहीं, अपनी शादी का लाल जोड़ा पहन रखा था। माथे पर बड़ी लाल बिंदी, हाथों में चूड़ियां – जैसे बेटे की बारात में जाने वाली शेरनी।

शव देखकर, न उसने विलाप किया, न चीख-चिल्लाई। बेटे के माथे पर सिंदूर लगाया—“यह शहादत का सिंदूर है, बेटा। सौभाग्य है ये।” ताबूत के चारों ओर फेरे लिए–“पहला फेरा देश की मिट्टी के नाम, दूसरा तिरंगे के, तीसरा वर्दी के, चौथा तेरी शहादत के नाम।”

उस दृश्‍य ने सिर्फ गांव नहीं, देश तक रुला दिया। सैन्य अफसर, पत्रकार, नेता—हर कोई उसके साहस के आगे झुक गया।

6. पोते सूरज को सौंप दिया देश को

फिर सावित्री ने छह महीने के पोते सूरज को गोद में लिया, बेटे के शव के पास ले गई। “ये तेरी निशानी है, बेटा। अब ये देश पालेगा। इसकी जिम्मेदारी मेरा देश उठाएगा।” पोते का नन्हा हाथ शव के माथे पर लगवाया—“ले, ये तेरा अंतिम सलाम है।”

सावित्री ने खुद अपने बेटे की अर्थी को कंधा दिया। गांव से शहीद की बारात निकली; हर कोई ‘वंदे मातरम’ के नारे लगा रहा था, आंखों में आंसू थे मगर चेहरे पर गर्व था।

7. देश की मां: प्रेरणा और आशीर्वाद

यह घटना अखबारों-टीवी के जरिए देशभर में पहुंची। सावित्री देवी की फोटो और कहानी हर जगह छा गई। प्रधानमंत्री, सेना प्रमुख सबने फोन कर सावित्री के साहस को सलाम किया। गांव में स्कूल-अस्पताल बने, सूरज की पढ़ाई का जिम्मा सरकार ने लिया।

मगर सावित्री ने अपने लिए कुछ नहीं मांगा। “मेरा बेटा लौट नहीं सकता, बस दुआ करूंगी कि हर मां में ऐसी हिम्मत हो, हर बेटा देश पर कुर्बान होकर भी अमर हो जाए।”

आज सावित्री देवी सिर्फ शहीद की मां नहीं, पूरे देश की मां हैं। उनका जज्बा, त्याग, और देशभक्ति हमेशा आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा देगा कि मातृत्व के आंसू भी इतिहास बदल सकते हैं।

जय हिंद!

अगर सावित्री देवी के साहस से आप भी प्रेरित हुए हों—तो यह कहानी हर भारतीय तक पहुंचाएं और वीर मां को अपनी श्रद्धांजलि दें। शहीद विक्रम सिंह अमर रहें। सावित्री देवी अमर रहें। भारत माता की जय।