धोती-कुर्ता पहने बाप बेटे को एयरपोर्ट पर मजाक बनाया – और फिर जो आगे हुआ

पहचान की उड़ान

भाग 1: एयरपोर्ट पर हंसी का माहौल

बेंगलुरु के मायस्ट्रो इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर सुबह की हलचल थी। हर तरफ यात्रियों की भीड़, चेक-इन काउंटर की लंबी कतारें, सुरक्षा कर्मियों की सख्ती, और यात्रियों के चेहरे पर सफर की उत्सुकता। इसी कतार में खड़े थे नीरव सांवले और उनका दस वर्षीय बेटा ईशान। दोनों ने सफेद धोती और हल्का क्रीम कुर्ता पहना था। भीड़ में उनकी सादगी और परंपरा अलग दिख रही थी, लेकिन अजीब नहीं—बस अलग।

ईशान की छोटी उंगलियां पापा की हथेली को कसकर पकड़े थीं। उसकी आंखों में घबराहट थी। उसने धीमे स्वर में पूछा, “पापा, सब हमें ही क्यों देख रहे हैं?”
नीरव मुस्कुराए, “क्योंकि जो भीड़ में भी खुद को नहीं खोते, वे अपनी पहचान से चमकते हैं बेटा।”

भीड़ में खड़े कुछ विदेशी युवक—लियम और कार्टर—जोर से हंस पड़े।
लियम बोला, “लुक एंशिएंट क्लोथ्स एट एन इंटरनेशनल एयरपोर्ट।”
कार्टर ने हंसते हुए कहा, “इज ही गोइंग टू मेडिटेट ऑन द प्लेन?”

आसपास खड़े कुछ भारतीय भी मुस्कुरा दिए। किसी ने धीरे से कहा, “आजकल कौन धोती पहनकर विदेश जाता है?”
किसी ने जोड़ दिया, “कम से कम बच्चे को तो मॉडर्न कपड़े पहना देते।”

ईशान की आंखों में पानी भर आया। उसने पापा की धोती की सिलाई पकड़ ली, जैसे खुद को छिपाने की कोशिश कर रहा हो। नीरव ने उसका सिर सहलाते हुए कहा, “ईशान, लोगों का मजाक उनकी सोच बताता है, तुम्हारी पहचान नहीं।”

भीड़ की फुसफुसाहट बढ़ती जा रही थी। लियम फिर बोला, “हे लिटिल बॉय, कैन यू इवन रन इन दैट क्लॉथ?”
कार्टर हंसकर बोला, “ही माइट फॉल डाउन ट्राइंग।”

कुछ लोगों ने अपने फोन कैमरे ऑन कर दिए, शायद वायरल वीडियो की उम्मीद में। ईशान का चेहरा और झुक गया, उसकी सांस तेज होने लगी। वह पापा की ओर देखकर बोला, “क्या मैं गलत लग रहा हूं पापा?”

नीरव घुटनों के बल उसके स्तर पर उतर आए, भीड़ के बीच उनकी शांति किसी दीपक की लौ जैसी थी। उन्होंने ईशान की ठुड्डी उठाई और कहा, “सही कपड़े वही हैं जिसमें दिल शर्माए नहीं, और तुम गर्व से खड़े हो तो तुम सही हो।”

ईशान ने कुछ साहस जुटाया, पर भीड़ का व्यवहार नहीं थमा। पीछे से दो महिलाएं फुसफुसाई, “इतना मॉडर्न एयरपोर्ट और धोती, ये लोग भी ना…”

ईशान की हिम्मत फिर हिल गई। उसकी उंगलियां कांपने लगीं। वह रोना नहीं चाहता था, लेकिन आवाजें उसके अंदर घुस रही थीं।

भाग 2: अचानक बदलता माहौल

तभी अचानक लियम ने आवाज लगाई, “हे मंक बॉय, शो अस हाउ यू वॉक इन दैट आउटफिट।”
उसके शब्दों ने माहौल में एक और ठहाका भर दिया।

लेकिन ठीक अगले ही क्षण, जैसे किसी अदृश्य हाथ ने सारी हंसी खींच ली। एकदम से सन्नाटा उतर आया। सामने से एयरपोर्ट स्टाफ तेजी से दौड़ता हुआ आ रहा था। किसी ने चिल्लाकर कहा, “इमरजेंसी! क्लियर द पाथ, मूव असाइड!”

लोग हड़बड़ा गए। स्ट्रेचर लाया जा रहा था, जिस पर एक बुजुर्ग विदेशी महिला बेहोश पड़ी थी। वही महिला जो कुछ देर से नीरव और ईशान को बड़ी कोमलता से देख रही थी, जैसे वह उन्हें समझ रही हो। स्ट्रेचर भीड़ में अटक गया। जगह कम थी। स्टाफ घबरा गया। किसी ने पुकारा, “वी नीड समवन ट्रेंड इन प्रेशर कॉल्मिंग टेक्निक्स। एनीवन?”

कोई आगे नहीं आया। वही लोग जो अभी हंस रहे थे, अब एक दूसरे को देख रहे थे।

नीरव आगे बढ़े। उन्होंने शांत स्वर में कहा, “मैं कोशिश कर सकता हूं। मैं कम्युनिटी मेडिकल एड वालंटियर रहा हूं। ट्रेडिशनल प्रेशर रेस्क्यू टेक्निक्स जानता हूं।”

स्टाफ ने अविश्वास से पूछा, “सर, आप?”
नीरव बोले, “समय कम है। मुझे प्रयास करने दीजिए।”

बिना देर किए वह स्ट्रेचर के पास घुटनों के बल बैठे और महिला की नसें टटोलीं। उनके हाथ तेज लेकिन बेहद सटीक थे। उन्होंने महिला के कंधे और हाथ की कुछ विशेष नसों पर प्रेशर दिया। फिर उसकी सांसों की गति संतुलित करने की कोशिश की।

भीड़ सांस रोक कर देख रही थी। लियम और कार्टर के चेहरे सख्त पड़ गए। उन्हें विश्वास नहीं हो रहा था। कुछ सेकंड बीते। महिला की उंगलियां हल्की हिली। स्टाफ चिल्लाया, “हर पल्स इज राइजिंग! शी इज़ रिस्पॉन्डिंग!”

पूरे एयरपोर्ट में राहत की लहर दौड़ गई। महिला ने धीरे से आंखें खोलीं। उसने पहली नजर नीरव और फिर ईशान पर डाली और कमजोर आवाज में बोली, “थैंक यू।”

ईशान की आंखें फैल गईं। दुनिया अचानक उलट चुकी थी। वही भीड़ जो उन पर हंस रही थी, अब उन्हें सम्मान की नजरों से देख रही थी। कुछ लोग शर्मिंदा थे। किसी ने फुसफुसाया, “यह तो लाइफ सेवर निकले।”
दूसरे ने कहा, “हम तो मजाक बना रहे थे और यह इंसान जान बचा रहा था।”

लियम और कार्टर के चेहरे झुक गए। अफसोस जैसे उनके पांवों से चिपक कर खड़ा हो गया हो। महिला को सुरक्षित ले जाया गया। नीरव उठे। ईशान उनकी ओर भागा और कसकर गले से लग गया। उसकी आंखों से आंसू बहे, शर्म के नहीं, गर्व के। उसने फुसफुसाकर कहा, “पापा, आप सच में हीरो हो।”

नीरव मुस्कुराए, “नहीं बेटा, हीरो वह होता है जो मजाक उड़ाकर किसी को गिराए नहीं, बल्कि जरूरत पड़ने पर किसी को उठाए।”

भीड़ अब चुप थी और इस चुप्पी में सम्मान था। अभी कुछ ही मिनट पहले तक जो भीड़ एक पिता और उसके छोटे बेटे का मजाक उड़ा रही थी, वही भीड़ अब उन्हें सम्मान की नजर से देख रही थी।

भाग 3: पहचान का सम्मान

नीरव सांवले ने जिस शांत, सटीक और अनुभवी तरीके से बेहोश विदेशी महिला की जान बचाई थी, उसने सारे माहौल की दिशा बदल दी थी। ईशान अपने पापा के हाथ को पकड़े खड़ा था और पहली बार उसे महसूस हो रहा था कि धोती-कुर्ता पहनकर खड़े होना शर्म की बात नहीं, गर्व की बात है।

लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं होने वाली थी। असली झटका तो अभी बाकी था।

स्टाफ ने नीरव से कहा, “सर, कृपया हमारे साथ चलिए। वी नीड योर स्टेटमेंट फॉर द इंसिडेंट रिपोर्ट।”
नीरव ने सिर हिलाया और ईशान के साथ आगे बढ़े। रास्ते में लोग रास्ता देते हुए खड़े थे। जहां कुछ समय पहले हंसी थी, वहां अब सम्मान का रास्ता था।

ईशान ने धीमे से पूछा, “पापा, सब हमें ऐसे क्यों देख रहे हैं?”
नीरव ने मुस्कुराकर कहा, “क्योंकि लोगों को अब समझ में आया है कि कपड़े इंसान को छोटा-बड़ा नहीं बनाते, कर्म बनाते हैं।”

पीछे से किसी ने पुकारा, “एक्सक्यूज मी।”
दोनों मुड़े। वही विदेशी महिला, जो अब व्हीलचेयर पर बैठी थी, धीरे-धीरे उनकी ओर आ रही थी। साथ में दो मेडिकल स्टाफ थे। उसने ईशान की ओर देखा और फिर नीरव के हाथ को पकड़ कर कहा, “यू सेव्ड माय लाइफ। आई विश आई कुड थैंक यू प्रॉपर्ली।”

नीरव ने विनम्रता से कहा, “मैंने सिर्फ कोशिश की। भगवान का आशीर्वाद था कि आप ठीक हैं।”

महिला ने मुस्कुराकर कहा, “माय नेम इज एलिन हार्टमैन और मैं यहां एक बहुत महत्वपूर्ण मेडिकल सम्मेलन के लिए आई थी। पर शायद आज सबसे बड़ी सीख मैंने आपसे पाई है।”

भीड़ ने सांस रोके यह दृश्य देखा। लियम और कार्टर कुछ दूरी पर खड़े थे। चेहरे पर पछतावा साफ झलक रहा था।

तभी एयरपोर्ट की घोषणा गूंजी, “अटेंशन पैसेंजर्स, फ्लाइट एमए 417 टू जुरिक विल बिगिन बोर्डिंग शॉर्टली।”
यह वही फ्लाइट थी जिसमें नीरव और ईशान यात्रा करने वाले थे। वे बोर्डिंग गेट की ओर बढ़े।

जैसे ही वे कुछ कदम चले, पीछे से लियम दौड़ता हुआ आया। उसका चेहरा गंभीर था। उसने हल्की झिंझक और शर्म के साथ कहा, “सर, मैं सचमुच क्षमा चाहता हूं। हम… हम बहुत बुरा बर्ताव किया।”
कार्टर भी पीछे आया और बोला, “हम नहीं जानते थे कि आप कौन हैं। हम नहीं जानते थे कि आपका मूल्य क्या है।”

नीरव ने शांत आवाज में कहा, “किसी की कीमत जानने के लिए उसका मजाक उड़ाना जरूरी नहीं होता। इंसान की इज्जत उसके कर्म से होती है और हर इंसान इज्जत के लायक होता है।”

लियम ने सिर झुका कर कहा, “वी अंडरस्टैंड दैट नाउ।”
ईशान ने पहली बार उन दोनों की आंखों में देखा—घृणा नहीं, बस हैरानी। क्योंकि वह अब समझ रहा था कि समझदार लोग वही हैं जो गलती मानना जानते हैं।

भाग 4: असली पहचान और समाज का आईना

ठीक उसी समय एक एयरपोर्ट अधिकारी तेजी से उनकी ओर आया। उसने नीरव से कहा, “सर, वी जस्ट चेक योर आइडेंटिटी डिटेल्स। हमें पता चला है कि आप वह नीरव सांवले हैं जिन्होंने पिछले साल हिमालय में तीन बच्चों को रेस्क्यू किया था।”

ईशान ने आश्चर्य से पापा की ओर देखा, “पापा, आपने बताया क्यों नहीं?”

नीरव ने हल्की मुस्कान दी, “किए गए अच्छे कामों का ढोल नहीं पीटते बेटा, बस उन्हें करते रहते हैं।”

अधिकारी ने श्रद्धा के साथ कहा, “सर, आपका नाम तो हमारे इंटरनल हीरो लिस्ट में है।”
पूरा माहौल एक नई दिशा में मुड़ रहा था।

पर अचानक उस भीड़ में से एक व्यक्ति गुस्से में आगे आया। वह भारतीय था, ब्रांडेड सूट में और अभी तक सारी घटना चुपचाप देख रहा था। उसने चिल्लाकर कहा, “तो क्या अगर यह आदमी किसी की जान बचा लेता है तो लोग धोती पहनकर एयरपोर्ट आ जाएंगे?”

भीड़ चौंक गई। उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि इतनी बड़ी घटना के बाद भी कोई ऐसी बात कर सकता है। आदमी ने ईशान की ओर इशारा करते हुए कहा, “कल को मेरा बेटा भी ऐसे ही कपड़े पहन कर आएगा। यह कोई फैशन है?”

ईशान का चेहरा फिर से मुरझाया। यह सुनकर नीरव ने अपनी पीठ सीधी की। पहली बार उनका स्वर गहरा और दृढ़ हुआ। उन्होंने कहा, “कपड़े संस्कार दिखाते हैं। संस्कार शर्म नहीं देते और जहां तक आपके बच्चे की बात है, उसे क्या पहनना चाहिए यह आप तय करें, पर दूसरों की पहचान का अपमान करके नहीं।”

आदमी चिढ़कर बोला, “इससे एयरपोर्ट की इमेज खराब होती है।”

नीरव ने उसकी आंखों में देखते हुए कहा, “एयरपोर्ट की इमेज कपड़ों से नहीं, लोगों के व्यवहार से खराब होती है और आज कुछ लोगों का व्यवहार बहुत छोटे स्तर का था।”

भीड़ में हलचल हुई। कई लोग सिर हिलाने लगे। उस आदमी का चेहरा उतर गया। उसने बिना एक शब्द बोले मुड़कर चलना ही ठीक समझा।

ईशान ने यह सब देखा और पहली बार उसे महसूस हुआ कि उसका पिता सिर्फ शांत नहीं, बेहद मजबूत भी है।

भाग 5: उड़ान की नई दिशा

बोर्डिंग शुरू हो चुकी थी। गेट पर पहुंचकर स्टाफ ने सम्मान के साथ कहा, “सर, प्लीज बोर्ड फर्स्ट।”
नीरव ने विनम्रता से मना किया, “हम भी बाकी सभी की तरह लाइन में खड़े रहेंगे। हर जगह शॉर्टकट जरूरी नहीं होता।”

ईशान ने उनका हाथ पकड़ा और कहा, “पापा, आज मुझे समझ आया कि कपड़े नहीं, इंसान मायने रखता है।”
नीरव ने मुस्कुराया, “याद रखना बेटा, भीड़ की हंसी से कभी डरना नहीं चाहिए। भीड़ गलत हो सकती है, दिल नहीं।”

जैसे ही वे विमान में चढ़ने वाले थे, पीछे से किसी ने पुकारा, “मिस्टर नीरव!”
वे मुड़े, व्हीलचेयर पर बैठी एलिन हार्टमैन फिर आई थी। उसने ईशान का हाथ पकड़ा और कहा, “यू शुड बी प्राउड ऑन योर फादर एंड ऑफ योर कल्चर।”

ईशान की आंखें भर आईं, पर अब यह आंसू दुख के नहीं, सम्मान के थे। विमान का दरवाजा खुला और पिता-बेटा अंदर चले गए। विमान में चढ़ते समय ईशान बार-बार पीछे मुड़कर देख रहा था। एयरपोर्ट की वह भीड़, जिसने कुछ समय पहले उन पर हंसी उड़ाई थी, अब उन्हें सम्मान से विदा कर रही थी।

नीरव की आंखों में एक अजीब सी शांति थी। मानो उन्हें पता हो कि यह कहानी यहीं खत्म नहीं होने वाली।

भाग 6: आसमान में उड़ान और नई चुनौती

सीट पर बैठकर ईशान ने पूछा, “पापा, क्या हम अब सामान्य हो गए हैं?”
नीरव ने मुस्कुराया, “जीवन कभी भी इतना आसान नहीं होता बेटा, जो एक घटना बदल दे। असली बदलाव तब आता है जब लोग उसे दिल से समझें।”

विमान ने उड़ान भरी। कुछ समय बाद यात्रियों को खाना परोसा जाने लगा। ईशान बाहर बादलों को देख रहा था। तभी एक अटेंडेंट उनके पास आई और बोली, “सर, हमारे कप्तान आपको बुला रहे हैं।”

नीरव आश्चर्य में बोले, “मुझे? क्यों?”
वह मुस्कुरा कर बोली, “कप्तान ने आपका आज का कार्य सुना है और शायद आप समझेंगे जब अंदर आएंगे।”

ईशान उत्साहित हुआ, “मैं भी आऊं पापा?”
नीरव ने उसकी पीठ थपथपाकर कहा, “चलो साथ चलते हैं।”

दोनों कॉकपिट की ओर चले। जैसे ही दरवाजा खुला सामने बैठे कप्तान ने उनसे खड़े होकर हाथ मिलाया, “मिस्टर नीरव, हमने एयरपोर्ट से अपडेट सुना। आपकी वजह से एक जान बची। आपको सलाम है।”

नीरव ने आदर से सिर झुकाया। पर इससे ज्यादा चौंकाने वाली बात कॉकपिट के पीछे की सीट पर बैठी थी—एलिन हार्टमैन। वह हल्की मुस्कान के साथ बोली, “मैंने अधिकारियों से बात करके अपनी सीट यहां शिफ्ट करवाई। मैं आप दोनों से कुछ कहना चाहती थी।”

ईशान हैरान था, “आप फिर यहां कैसे?”

एलिन बोली, “कुछ लोग यात्रा प्लेन्स से करते हैं और कुछ लोग दिल से। आज मैं दिल के रास्ते चलना चाहती थी।”

नीरव ने विनम्रता से कहा, “आप ठीक हैं, यही बहुत है।”

एलिन ने गहरी सांस ली, “मिस्टर नीरव, क्या आपको पता है कि मैं कौन हूं?”

नीरव ने सिर हिलाया, “नहीं।”

वह बोली, “मैं अंतरराष्ट्रीय मेडिकल नीति परिषद की सदस्य हूं और मैं भारत एक विशेष प्रस्ताव के लिए आई थी। एक ग्लोबल वालंटियर प्रोग्राम बनाने के लिए।”

ईशान को कुछ समझ नहीं आया, पर नीरव की आंखें गहरी हो गईं।

एलिन ने आगे कहा, “दुनिया में प्राकृतिक आपदाओं, पहाड़ी क्षेत्रों और दूरदराज इलाकों में ट्रेंड वालंटियर्स की जरूरत है। और आज मैंने जो देखा, उससे मुझे यह समझ आया कि इस प्रोग्राम को कोई लीड करे तो वह आप जैसे इंसान हो।”

कॉकपिट में खामोशी फैल गई। नीरव चौंक कर बोले, “मैं… लेकिन मैं तो सिर्फ…”

एलिन ने बात काटते हुए कहा, “आप सिर्फ कुछ नहीं, आपके पास ज्ञान है, विनम्रता है, साहस है और सबसे जरूरी मानवता है।”

ईशान पापा को गौर से देख रहा था। उसे पहली बार एहसास हो रहा था कि उसके पिता की गहराई कितना विशाल संसार छुपाए हुए थी।

नीरव हल्की आवाज में बोले, “लेकिन मैं नौकरी करता हूं, परिवार है…”

एलिन ने मुस्कुराकर कहा, “वालंटियर लीडरशिप फुल टाइम नौकरी नहीं है। मिस्टर नीरव, यह एक सम्मान है। दुनिया को ऐसे लोगों की जरूरत है जो सेवा को पहचान से ऊपर रखते हों।”

ईशान फुसफुसाया, “पापा, आप करेंगे?”

नीरव ने उसके सिर पर हाथ रखा, “अगर मैं दुनिया के बच्चों को सुरक्षित कर सकता हूं तो हां बेटा।”

एलिन की आंखें चमक उठी।

भाग 7: विमान में नई परीक्षा

जैसे ही वे अपनी सीट पर लौटने वाले थे, अचानक विमान में तेज झटका लगा। यात्रियों की चीखें उठीं। अटेंडेंट तेजी से दौड़ती हुई आई, “सर, टर्बुलेंस बढ़ रहा है। सभी यात्रियों को सीट बेल्ट बांधने का निर्देश दिया गया है।”

विमान हिल रहा था। ईशान डरकर पापा से लिपट गया। नीरव ने शांत स्वर में कहा, “डरो मत बेटा, मैं हूं ना।”

कुछ मिनट बाद स्थिति थोड़ी सामान्य हुई। लेकिन तभी एक और खबर आई, “वी नीड अ डॉक्टर इमीडिएटली इन द कैबिन। किसी यात्री को सांस लेने में दिक्कत हो रही है।”

अटेंडेंट ने घबराकर कहा, “सर, क्या आप मदद कर सकते हैं?”
नीरव तुरंत उठे, ईशान भी पीछे चलने लगा।

एक मध्यवय के यात्री को तेज सांसे चल रही थीं। छाती पकड़ कर बैठे थे। लोग घबरा रहे थे। किसी के पास समाधान नहीं था।

नीरव नीचे झुके। उन्होंने आदमी के गले के पास ध्यान से देखा, फिर सीट एंगल ठीक करवाया। उनकी उंगलियां तेजी से सही नसों और प्रेशर पॉइंट्स को ढूंढने लगीं। कुछ ही क्षणों में आदमी के सांस लेने का उतार-चढ़ाव कम होने लगा। वह कमजोर आवाज में बोला, “थैंक यू… थैंक यू…”

ईशान ने पापा की ओर देखा। विमान की रोशनी में उनका शांत चेहरा किसी दीपक की लौ जैसा लग रहा था—स्थिर, दृढ़, अडिग।

एलिन भी पास खड़ी थी। वह बोली, “मिस्टर नीरव, दुनिया को ऐसे ही लोग चाहिए।”

टर्बुलेंस खत्म हुई। विमान सुरक्षित उतरा। जैसे ही गेट खुला, बाहर मीडिया खड़ी थी। सोशल मीडिया पर एयरपोर्ट की घटना पहले ही वायरल हो चुकी थी और अब विमान में की गई उनकी मदद भी।

भाग 8: सम्मान की उड़ान

कैमरों की चमक के बीच एक पत्रकार बोला, “सर, क्या यह सच है कि आपको ग्लोबल वालंटियर लीडरशिप की पेशकश की गई है?”

नीरव शांत स्वर में बोले, “मैं कोई हीरो नहीं हूं। मैं बस वही करता हूं जो हर इंसान को करना चाहिए—जो सही है।”

ईशान उनके पास खड़ा था, सिर ऊंचा करके। जिसे कुछ घंटे पहले अपनी धोती पर शर्म आ रही थी, आज वही धोती गर्व का पहरावा बन गई थी।

लियम और कार्टर भी विमान से उतरे। उनकी आंखों में इस बार सम्मान था। कार्टर आगे बढ़ा, “सर, आज हमने विनम्रता सीखी। थैंक यू।”

नीरव ने मुस्कुराकर कहा, “गलती करना गलत नहीं, गलती पर अड़े रहना गलत है।”

इसी बीच एलिन आगे आई। उन्होंने कहा, “मिस्टर नीरव, दुनिया आपकी प्रतीक्षा कर रही है और मुझे लगता है भारत को भी गर्व होगा अगर आप यह जिम्मेदारी स्वीकार करेंगे।”

नीरव ने ईशान का हाथ पकड़ा। दोनों ने एक दूसरे की ओर देखा। ईशान ने मुस्कुराकर कहा, “पापा, जाओ, दुनिया को आपकी जरूरत है और मुझे आप पर गर्व है।”

कुछ ही सेकंड में नीरव का निर्णय दृढ़ हो गया। वह बोले, “मैं तैयार हूं।”

भीड़ तालियों से गूंज उठी। कोई अब उनकी धोती नहीं देख रहा था। अब हर कोई उनके चरित्र को देख रहा था।

नीरव ने अपने हाथ ईशान के कंधे पर रखे और कहा, “याद रखना बेटा, लोगों की हंसी कुछ पलों की होती है, लेकिन इंसान के कर्म उसकी पूरी उम्र की पहचान बनाते हैं।”

उस दिन बेंगलुरु से उड़ान भरने वाला सिर्फ एक विमान नहीं था। उड़ान भर रहा था एक पिता का सम्मान, एक बेटे का आत्मविश्वास और एक ऐसी कहानी जो दुनिया को यह याद दिलाने वाली थी कि कपड़े नहीं, इंसान महान होता है। और कभी-कभी सबसे साधारण लोग ही दुनिया का सबसे बड़ा बदलाव बन जाते हैं।