धर्मेंद्र की वसीहत का खुलासा: हेमा मालिनी स्तब्ध, देओल परिवार में गहरा भावनात्मक तूफ़ान

24 नवंबर की सुबह मुंबई की सड़कों पर असामान्य खामोशी पसरी हुई थी। हिंदी सिनेमा के दिग्गज अभिनेता और भारतीय फिल्म इतिहास के सबसे प्रतिष्ठित चेहरों में से एक, धर्मेंद्र देओल ने अपनी अंतिम सांसें ली थीं। उनका जाना सिर्फ़ उनके परिवार के लिए नहीं, बल्कि पूरे फिल्म उद्योग के लिए एक गहरा सदमा था। अंतिम संस्कार के बाद देओल परिवार शोक में डूबा हुआ था, लेकिन इसी बीच एक बड़ा खुलासा सामने आया — एक ऐसा सच जो उनके कमरे की अलमारी में बंद था और जो उनके निधन के बाद पूरे परिवार को अंदर तक हिला देने वाला था।

धर्मेंद्र के निजी कमरे की अलमारी से एक सीलबंद लिफ़ाफ़ा मिला, जिस पर साफ शब्दों में लिखा था: “मेरी वसीहत — मेरे जाने के बाद खोला जाए।” यह दस्तावेज़ उनके जाने के अगले दिन खोला गया। कमरे में मौजूद सनी देओल, बॉबी देओल, ईशा देओल और अहना देओल जैसे ही वसीहत पढ़ने बैठे, वातावरण में सन्नाटा और गहरा हो गया। किसी को उम्मीद नहीं थी कि धर्मेंद्र अपने अंतिम वर्षों में इतने बड़े निर्णय ले चुके थे, और न ही किसी ने सोचा था कि उनकी वसीहत केवल संपत्ति का बंटवारा नहीं बल्कि दशकों पुरानी पारिवारिक दूरी को खत्म करने की एक कोशिश होगी।

वसीहत में धर्मेंद्र ने अपनी कुल संपत्ति को दो बराबर हिस्सों में विभाजित करने का फैसला किया था। पहला हिस्सा सीधे तौर पर उनकी पहली पत्नी प्रकाश कौर और उनके चार बच्चों — सनी देओल, बॉबी देओल, अजीता और विजीता — के नाम किया गया था। ये उनके जीवन का वह अध्याय था जिसमें संघर्ष, प्रारंभिक लोकप्रियता और पारिवारिक जिम्मेदारियाँ शामिल थीं। दूसरा बड़ा खुलासा यह था कि धर्मेंद्र ने अपनी दूसरी पत्नी हेमा मालिनी और उनकी बेटियों ईशा देओल और अहना देओल को भी बराबर का हक दिया। यह निर्णय जितना अप्रत्याशित था, उतना ही भावनात्मक भी।

Dharmendra’s Will Revealed: Hema Malini Shocked by the Final Truth!

वसीहत के इस हिस्से को पढ़ते ही हेमा मालिनी की आंखें भर आईं। उन्होंने कभी न संपत्ति के लिए कोई उम्मीद जताई, न किसी विवाद में हिस्सा लिया, और न ही पहली पत्नी या उनके बच्चों के बारे में कोई सार्वजनिक टिप्पणी की। उनके करीबी बताते हैं कि उनके लिए धर्मेंद्र सिर्फ़ जीवनसाथी थे, संपत्ति नहीं। धर्मेंद्र ने भी इसे समझते हुए वसीहत में लिखा था कि हेमा ने उनसे कभी कुछ नहीं मांगा, और इसलिए जो कुछ वे उन्हें दे रहे हैं, वह दिल से दे रहे हैं। यह उनके संबंध की पारदर्शिता, सम्मान और गहराई का प्रमाण था।

धर्मेंद्र की दो शादियाँ हमेशा से एक संवेदनशील विषय रही हैं। एक तरफ प्रकाश कौर के साथ उनका पुराना पारिवारिक जीवन था, वहीं दूसरी तरफ हेमा मालिनी के साथ उनकी प्रेम यात्रा, जो भारतीय मीडिया का लंबे समय तक केंद्र रही। दोनों परिवारों के बीच लगभग 40 वर्षों से दूरी थी। न कोई मिलन, न त्योहार साझा, और न ही कभी एक साथ बैठकर सामान्य बातचीत। दो दुनियाएँ, जो कभी एक मंच पर नहीं आईं। लेकिन अपनी वसीहत के माध्यम से धर्मेंद्र ने यह स्पष्ट संदेश दिया कि उनके बाद परिवार को एक होना चाहिए। उन्होंने लिखा: “मेरे जाने के बाद दोनों परिवार एक रहें, कभी मत लड़ना।” यह वसीहत केवल कानूनी दस्तावेज़ नहीं, बल्कि एक पिता और पति की अंतिम इच्छा थी — एक ऐसी इच्छा, जिसमें उनके जीवन की सबसे बड़ी अधूरी कहानी छिपी थी।

वसीहत पढ़ते समय सनी देओल की स्थिति सबसे अधिक जटिल थी। अपने पिता के बेहद करीब रहने वाले सनी के लिए यह निर्णय भावनात्मक रूप से भारी था। वे अपनी मां प्रकाश कौर के दर्द को भी समझते थे, और पिता की अंतिम इच्छा का सम्मान भी करना चाहते थे। धर्मेंद्र और हेमा मालिनी की शादी के बाद सनी और बॉबी ने दूरी बना ली थी, और यह दूरी वर्षों तक कायम रही। लेकिन अब पिता के आखिरी शब्दों ने सनी के सामने एक नई जिम्मेदारी रख दी थी — परिवार को जोड़ने की जिम्मेदारी। वे चुप थे, पर अंदरूनी संघर्ष स्पष्ट था। एक ओर माँ की भावनाएँ थीं, दूसरी ओर पिता की अंतिम इच्छा।

प्रकाश कौर के लिए यह क्षण सबसे कठिन हो सकता था। धर्मेंद्र की वसीहत में हेमा मालिनी और उनकी बेटियों को बराबर हिस्सा देना एक भावनात्मक सदमा भी बन सकता था, क्योंकि यह सिर्फ़ संपत्ति नहीं, बल्कि पिछले 40 साल के अनुभवों का पुनरावलोकन था। यही कारण है कि परिवार उनकी भावनाओं का ध्यान रखते हुए सावधानी से कदम बढ़ा रहा है।

धर्मेंद्र के अंतिम संस्कार में हेमा मालिनी की उपस्थिति भी बेहद भावुक थी। लोगों ने बताया कि उनका चेहरा पूरी तरह भीग चुका था, और वे शायद ही किसी से बात कर पा रही थीं। उनके लिए धर्मेंद्र सिर्फ़ पति नहीं, बल्कि जीवन की एक यात्रा का आधार थे। ईशा और अहना ने उन्हें सहारा दिया और वसीहत पढ़ने के बाद दोनों ने अपनी मां को कसकर गले लगाया। उनका कहना था कि उनके पिता ने जीवन के अंतिम पलों तक सभी का सम्मान और बराबरी से ध्यान रखा।

अब बड़ा सवाल यह है कि क्या धर्मेंद्र की अंतिम इच्छा के बाद देओल परिवार एक हो पाएगा? क्या दोनों परिवारों के बीच की दूरी खत्म होगी या केवल सम्मान का संतुलन ही कायम रहेगा? क्या सनी देओल अपने पिता की इच्छा पूरी करने के लिए भावनात्मक दूरी को पाट पाएंगे? यह समय ही बताएगा, लेकिन इतना निश्चित है कि धर्मेंद्र ने अपने आखिरी दस्तावेज़ में परिवार को जोड़ने की हर संभव कोशिश की।

धर्मेंद्र की वसीहत केवल संपत्ति का विभाजन नहीं थी। यह उनके व्यक्तित्व की गहराई, उनके सोचने के तरीके और उनके दिल की विशालता का प्रमाण है। उन्होंने अपने जीवन की सबसे संवेदनशील समस्या — दो परिवारों का विभाजन — को हल करने का प्रयास किया। उन्होंने न्याय भी किया, भावनात्मकता भी दिखाई और एकता का संदेश भी छोड़ा। यही वजह है कि उनके जाने के बाद भी वे लाखों दिलों में जीवित हैं।