“मुहर्रम जांच में बाजार गईं DM मैडम से थानेदार ने बदसलूकी की – फिर क्या हुआ?”

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एक थप्पड़ की गूँज

अध्याय 1: एक आम सुबह

मेरठ जिले की सुबह किसी आम सुबह जैसी थी। सूरज की किरणें धीरे-धीरे शहर की गलियों में फैल रही थीं। लोग अपनी-अपनी दिनचर्या में व्यस्त थे। लेकिन इस सुबह का महत्व कुछ और था। डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट प्रिया शर्मा अपने ऑफिस में बैठी थीं। उनकी उम्र महज 32 साल थी, लेकिन इस छोटी सी उम्र में वह अपनी मेहनत और ईमानदारी के बल पर इस कुर्सी तक पहुंची थीं।

प्रिया ने फाइलों का ढेर और लगातार बजते फोन के बीच अपने काम को संभालने का प्रयास किया। अगले हफ्ते मुहर्रम था, और मेरठ एक ऐसा जिला था जहां छोटी सी चिंगारी भी बड़ी आग बन सकती थी। शहर का अमन चैन बनाए रखना उनकी सबसे बड़ी जिम्मेदारी थी।

अध्याय 2: मुहर्रम की तैयारियाँ

सुबह के 9 बजे, प्रिया ने अपने पीए से कहा, “एसपी साहब को फोन करो।” कुछ ही देर में एसपी अर्जुन खन्ना का फोन आया। “जय हिंद मैडम,” उन्होंने कहा।

“जय हिंद अर्जुन। मुहर्रम की तैयारियों की रिपोर्ट देखी?” प्रिया ने पूछा।

“जी, सब ठीक लग रहा है कागज पर। हर नाके पर फोर्स तैनात रहेगी। संवेदनशील इलाकों में ड्रोन से नजर रखी जाएगी,” अर्जुन ने जवाब दिया।

प्रिया ने चुप रहकर उनकी बात सुनी। उन्हें जमीनी हकीकत जानने की इच्छा थी। “मैं आज दोपहर शहर का एक राउंड लेना चाहती हूं। लेकिन किसी को पता नहीं चलना चाहिए,” प्रिया ने कहा।

“मैडम, आपकी सिक्योरिटी का सवाल है,” अर्जुन ने कहा।

“मेरी गाड़ी थोड़ी दूर खड़ी रहेगी और मेरा सिक्योरिटी ऑफिसर सादे कपड़ों में आसपास होगा। मुझे बस लोगों से मिलना है,” प्रिया ने स्पष्ट किया।

अध्याय 3: बाजार की ओर

दोपहर करीब 2 बजे, प्रिया ने अपनी महंगी सूती साड़ी बदलकर एक साधारण सलवार सूट पहन लिया। चेहरे पर कोई मेकअप नहीं था। वह एक आम घरेलू महिला की तरह दिख रही थीं।

उन्होंने अपने सिक्योरिटी ऑफिसर रावत को सख्त हिदायत दी, “आप मुझसे कम से कम 50 कदम की दूरी पर रहेंगे और जब तक मैं इशारा ना करूं, आप सामने नहीं आएंगे।”

गाड़ी शहर के सबसे पुराने और भीड़भाड़ वाले सदर बाजार से पहले रोक दी गई। प्रिया पैदल ही बाजार की तरफ बढ़ गई।

अध्याय 4: बाजार का माहौल

बाजार में त्यौहार का मौसम था। भीड़ कुछ ज्यादा ही थी। कहीं सेवियां बिक रही थीं, तो कहीं ताजों का सामान, चूड़ियों की खनक और बर्तनों की थक। प्रिया धीरे-धीरे आगे बढ़ रही थी।

वह लोगों के चेहरे पढ़ने की कोशिश कर रही थीं। कहीं कोई तनाव तो नहीं? लेकिन ज्यादातर लोग अपनी खरीददारी में मस्त थे। यह देखकर उन्हें तसल्ली हुई।

अध्याय 5: मिठाई की दुकान

चलते-चलते वह एक मिठाई की दुकान के सामने रुकी। “शंकर मिष्ठान भंडार” दुकान का नाम था। दुकान के अंदर एक अधेड़ उम्र का आदमी, शायद शंकर दास, पसीने में तर-बतर ग्राहकों को मिठाई दे रहा था।

प्रिया ने देखा कि एक पुलिस वाला, दरोगा राकेश पवार, दुकान के बाहर खड़ा था। उसके हाथ में मिठाई का एक बड़ा सा डिब्बा था। वह दुकानदार पर चिल्ला रहा था।

“अरे ओ शंकर, जल्दी कर! कितना टाइम लगाएगा?” दरोगा की आवाज में रोष था।

अध्याय 6: दुकानदार की बेबसी

शंकर दास ने एक ग्राहक को निपटाकर हाथ जोड़े और कहा, “बस दरोगा जी, एक मिनट।”

“किस बात का बिल बे? तू जानता नहीं मैं कौन हूं?” दरोगा ने घमंड से कहा।

शंकर दास का चेहरा सफेद पड़ गया। उसकी आंखों में बेबसी उतर आई। “नहीं, नहीं दरोगा जी, मेरा वह मतलब नहीं था। आप तो हमारे माई-बाप हैं।”

अध्याय 7: प्रिया का हस्तक्षेप

प्रिया ने यह सब देखा और उनका खून खौल उठा। यही वह जमीनी हकीकत थी जिसे देखने वह निकली थीं। रक्षक ही भक्षक बने हुए थे। उन्होंने अपने सिक्योरिटी ऑफिसर रावत की तरफ देखा, जो थोड़ी दूरी पर खड़ा था।

प्रिया ने दुकान के काउंटर पर पहुंचकर कहा, “भाई साहब, क्या मामला है? यह साहब इतने गुस्से में क्यों हैं?”

शंकर दास ने नजर उठाकर प्रिया को देखा। दरोगा राकेश ने प्रिया को घूर कर कहा, “ए औरत, तू कौन है बीच में बोलने वाली? चल निकल यहां से।”

अध्याय 8: प्रिया का साहस

प्रिया ने दरोगा को नजरअंदाज किया और फिर से शंकर दास से पूछा, “आप डरिए मत। बताइए क्या इन्होंने मिठाई ली है और पैसे नहीं दे रहे?”

शंकर दास ने धीरे से सिर हिलाकर हां में जवाब दिया। अब प्रिया सीधे दरोगा की तरफ मुड़ी। “देखिए साहब, आप वर्दी में हैं। आपकी जिम्मेदारी लोगों की मदद करना है। आपने मिठाई ली है तो कृपया इसके पैसे दे दीजिए।”

अध्याय 9: दरोगा का गुस्सा

यह सुनते ही दरोगा राकेश का पारा सातवें आसमान पर पहुंच गया। “तू मुझे सिखाएगी मेरी जिम्मेदारी। जानती है मैं कौन हूं? दरोगा राकेश पवार नाम है मेरा।”

प्रिया ने बिना डरे कहा, “आप कोई भी हों। नियम तो सबके लिए बराबर होते हैं। आप एक गरीब दुकानदार का हक नहीं मार सकते।”

अध्याय 10: थप्पड़ का प्रहार

दरोगा राकेश ने अपना आपा खो दिया। उसने अपना दाहिना हाथ उठाया और पूरी ताकत से प्रिया के गाल पर दे मारा। बाजार का सारा शोर जैसे एक ही पल में सन्नाटे में बदल गया।

प्रिया का सिर एक तरफ घूम गया। उनके गाल पर पांचों उंगलियों के निशान छप गए थे। कान में एक अजीब सी साईं साईं की आवाज होने लगी थी।

अध्याय 11: प्रिया का अपमान

प्रिया के दिल में एक गहरी चोट लगी थी। यह थप्पड़ सिर्फ उनके गाल पर नहीं, उनके आत्मसम्मान पर था। एक पल के लिए उनके पैरों तले जमीन खिसक गई।

दरोगा राकेश पवार थप्पड़ मारकर अकड़ कर खड़ा हो गया। “अब समझ आया ज्यादा नेतागिरी करने का यही अंजाम होता है।”

अध्याय 12: प्रिया की प्रतिक्रिया

प्रिया ने धीरे-धीरे अपना चेहरा सीधा किया। उनकी आंखों में अब वह शांति नहीं थी। उन्होंने अपनी कामपती उंगलियों से अपने गाल को छुआ।

प्रिया ने अपनी उंगलियों से अपने गाल को छुआ। दर्द हो रहा था, लेकिन उस दर्द से ज्यादा अपमान की आग उनके अंदर जल रही थी।

अध्याय 13: कानून की आवाज

उन्होंने अपनी आंखों से भीड़ को देखा। लोग डरे हुए थे। प्रिया ने एक गहरी सांस ली। “आप सब सुन लीजिए। कानून सबके लिए बराबर है। अगर कोई भी अफसर या कोई भी इंसान आपको डराता है। धमकाता है तो चुप मत रहिए। आवाज उठाइए। मैं और मेरा प्रशासन आपके साथ खड़ा है।”

अध्याय 14: पुलिस की कार्रवाई

उस दिन मेरठ के सदर बाजार ने जो देखा वह सालों तक एक मिसाल बना रहा। प्रिया ने अपनी गाड़ी में वापस बैठते समय महसूस किया कि उनके गाल पर अब भी दर्द था। लेकिन उनके दिल में एक अजीब सी शांति थी।

अध्याय 15: गजेंद्र सिंह का हस्तक्षेप

अगली सुबह, प्रिया ने अपने ऑफिस में बैठकर अखबारों को देखा। सभी में एक ही हेडलाइन थी: “सादे कपड़ों में डीएम ने नंगे हाथों पकड़ा घूसखोर दरोगा।”

अध्याय 16: शंकर दास की गवाही

शंकर दास की गवाही ने राकेश पवार को जेल भेज दिया था। अब प्रिया को यह समझ में आ गया था कि राकेश पवार सिर्फ एक मोहरा था।

अध्याय 17: एक बड़ी ताकत

प्रिया ने महसूस किया कि राकेश के पीछे कोई बड़ी ताकत थी। “गजेंद्र सिंह,” उन्होंने सोचा।

अध्याय 18: गजेंद्र की धमकी

गजेंद्र सिंह ने प्रिया को फोन किया और कहा, “देख लीजिए मैडम, आप नई-नई आई हैं। शायद मेरठ के रिवाज नहीं जानती।”

अध्याय 19: प्रिया का साहस

प्रिया ने कहा, “आपको यह समझना चाहिए कि कानून सबके लिए बराबर है।”

अध्याय 20: शंकर दास की सुरक्षा

प्रिया ने शंकर दास की सुरक्षा का पूरा ध्यान रखा।

अध्याय 21: हमले की योजना

गजेंद्र सिंह ने शंकर दास पर हमला करने का फैसला किया।

अध्याय 22: पुलिस की तैयारी

लेकिन प्रिया और एसपी ने इस हमले का अंदेशा पहले ही लगा लिया था।

अध्याय 23: हमले का सामना

जैसे ही गुंडों ने हमला किया, पुलिस की टीम ने तुरंत कार्रवाई की।

अध्याय 24: शंकर दास की गवाही

शंकर दास ने कोर्ट में पूरी सच्चाई बयान की।

अध्याय 25: गजेंद्र सिंह की गिरफ्तारी

गजेंद्र सिंह की गिरफ्तारी के आदेश दिए गए।

अध्याय 26: बदलाव की शुरुआत

उस दिन मेरठ में बदलाव की कहानी बस शुरू हुई थी।

अध्याय 27: प्रिया का साहस

प्रिया ने साबित कर दिया कि अगर इरादे नेक हों तो एक अकेला इंसान भी पूरी बाजी पलट सकता है।

अध्याय 28: इंसाफ की जीत

मेरठ में मुहर्रम शांति से गुजरा।

अध्याय 29: एक नई सुबह

प्रिया ने महसूस किया कि असली ताकत बड़ी गाड़ियों और सिक्योरिटी में नहीं, बल्कि सही के लिए खड़े होने की हिम्मत में होती है।

अध्याय 30: एक नई पहचान

प्रिया ने अपने काम से साबित कर दिया कि वह सिर्फ एक डीएम नहीं, बल्कि एक सच्ची इंसान थी।

अध्याय 31: समाज की सेवा

उन्होंने समाज में बदलाव लाने का संकल्प लिया।

अध्याय 32: प्रेरणा का स्रोत

प्रिया शर्मा अब लोगों के लिए प्रेरणा बन गईं।

अध्याय 33: एक नई कहानी

उनकी कहानी अब एक नई कहानी बन चुकी थी।

अध्याय 34: विश्वास की वापसी

लोगों ने कानून पर अपना भरोसा वापस पा लिया।

अध्याय 35: एक नई सुबह

प्रिया ने अपने जीवन में एक नई सुबह की शुरुआत की।

अध्याय 36: संघर्ष का फल

उनकी मेहनत और लगन ने उन्हें सफलता दिलाई।

अध्याय 37: समाज का सम्मान

प्रिया ने समाज में एक नया सम्मान प्राप्त किया।

अध्याय 38: एक नई दिशा

उनकी कहानी ने समाज को एक नई दिशा दिखाई।

अध्याय 39: एक नया सपना

प्रिया ने अपने सपनों को पूरा करने का संकल्प लिया।

अध्याय 40: एक नई पहचान

प्रिया शर्मा अब एक नई पहचान बन चुकी थीं।