अदालत में बेटे ने पिता की ओर इशारा करके कहा – “ये वही हैं जिन्होंने मेरी माँ को धोखा दिया”… फिर….
जमशेदपुर की अदालत में एक परिवार की टूटन और उम्मीद की कहानी
जमशेदपुर की अदालत में उस दिन का माहौल कुछ अलग था। पूरा हॉल किसी तूफान के आने से पहले की शांति में डूबा हुआ था। जज महाराज सिंह अपनी कुर्सी पर गंभीरता से बैठे थे। वकील अपनी-अपनी फाइलें पलट रहे थे, और दर्शक दीर्घा में बैठे लोग धीमी आवाज में कानाफूसी कर रहे थे। तभी गवाही देने के लिए खड़ा हुआ अर्जुन अचानक अपने पिता राकेश की ओर कांपते हुए हाथ से इशारा करता है। उसकी आंखों में आंसू थे, आवाज गले में अटक रही थी। लेकिन साहस जुटाकर वह चीख कर कहता है, “यह वही हैं जिन्होंने मेरी मां मीरा को धोखा दिया। इनकी वजह से ही मैं और मेरी मां समाज में सिर उठाकर जी नहीं सकते।”
अर्जुन की बात सुनते ही पूरा अदालत कक्ष सन्नाटे में डूब जाता है। सभी की निगाहें राकेश पर टिक जाती हैं। मीरा पीछे बेंच पर बैठी आंचल से आंसू पोंछने लगती है। उसकी आंखों से साफ झलकता है कि उसने जीवन भर कितने दुख सहकर भी बेटे को संभाला और पाल पोसकर बड़ा किया। वह सोचती है कि आज उसका बेटा वही सच सबके सामने ला रहा है जिसे वह अब तक दबाकर जीती रही। राकेश, जो कभी जमशेदपुर की एक बड़ी फैक्ट्री में मशीन ऑपरेटर था, बाद में छोटा-मोटा व्यापार करने लगा। आज बेटे की गवाही सुनकर शर्म से सिर झुका लेता है। उसकी दूसरी पत्नी संध्या बगल की कुर्सी पर सहम जाती है। उसके चेहरे पर डर साफ झलकता है।
अर्जुन की आवाज और भी कांपने लगती है, लेकिन उसके शब्द अदालत में तलवार की तरह गूंजते हैं। “मेरी मां ने मुझे अकेले पाला, समाज के ताने सुने। यह शख्स मेरे पिता कहलाने लायक भी नहीं है। जब मैं छोटा था, सोचता था कि पिता किसी मजबूरी में हमें छोड़कर चले गए होंगे। लेकिन आज सच सबके सामने रखना ही होगा। इन्होंने हमें छोड़कर दूसरी औरत का दामन थाम लिया।”
जज भी अर्जुन की मासूमियत और उसके शब्दों की सच्चाई सुनकर गंभीर हो जाते हैं। कोर्ट में मौजूद लोग अपनी आंखों में आंसू रोक नहीं पाते। हर कोई सोचता है कि अगर एक बेटा अपने पिता के खिलाफ इस तरह खड़ा हो गया है तो जरूर उसके भीतर ऐसा दर्द है जिसे शब्दों में बयान करना आसान नहीं।
वकील गुप्ता, जो मीरा का केस लड़ रहे थे, तुरंत खड़े होकर अर्जुन से सवाल करते हैं, “अर्जुन, तुमने जो कहा, क्या तुम सबूत के साथ बता सकते हो कि तुम्हारे पिता ने तुम्हारी मां को धोखा दिया? तुम्हें वह दिन याद है जब यह सब हुआ?”
अर्जुन कुछ पल के लिए चुप हो जाता है। उसकी आंखें भर आती हैं। फिर वह कहता है, “हां, मुझे सब याद है। मैं छोटा था, लेकिन इतना बड़ा जरूर था कि समझ सकूं। पापा फैक्ट्री से देर रात घर लौटते थे और मां इंतजार करती रहती थी। एक दिन अचानक उन्होंने कहा कि अब वह बाहर कहीं और रहते हैं। उस दिन से मां रोती रही और मैं समझ ही नहीं पाया कि आखिर क्यों पापा हमें छोड़ गए। बाद में पता चला कि उन्होंने संध्या आंटी से शादी कर ली और उस दिन से हमारी दुनिया बिखर गई।”
यह सुनकर संध्या की आंखें झुक जाती हैं। दूसरी ओर राकेश माथे पर पसीना पोंछते हैं। उन्हें लगता है कि अब उनकी सच्चाई सबके सामने आ जाएगी। जज महाराज सिंह गहरी आवाज में कहते हैं, “यह अदालत किसी की भावनाओं का मजाक नहीं उड़ाती। यहां सच और सिर्फ सच बोला जाना चाहिए। अर्जुन, तुम आगे जो भी बताओगे, वह बहुत मायने रखेगा।”
अर्जुन और मजबूती से खड़ा हो जाता है। वह आंसू पोंछकर जज की आंखों में देखकर कहता है, “माननीय जज साहब, आज मैं सिर्फ अपनी मां के लिए नहीं बल्कि उन सभी औरतों के लिए खड़ा हूं जिन्हें उनके पति धोखा देकर छोड़ देते हैं। मैं सच सबके सामने लाकर ही रहूंगा।”
कोर्ट रूम में बैठे लोग ताली बजाने ही वाले थे, लेकिन जज के इशारे पर सब शांत हो गए। माहौल और भी गंभीर हो गया। सभी की निगाहें अर्जुन पर टिकी थीं कि आगे वह क्या कहेगा।
अर्जुन अपने हाथ में पकड़े हुए कुछ पुराने कागज और तस्वीरें अदालत के सामने रख देता है। सबकी नजरें उन दस्तावेजों पर टिक जाती हैं। अर्जुन गहरी सांस लेकर बोलता है, “यह है वह सबूत, जो बताते हैं कि मेरे पिता ने मेरी मां को छोड़ने से पहले ही दूसरी औरत के साथ रिश्ता बना लिया था। यह तस्वीरें उस दौर की हैं जब हमारी फैमिली टूट रही थी और मां रोज रो-रो कर सो जाती थी।”
तस्वीरें सामने आते ही कोर्ट रूम में हलचल मच जाती है। एक तस्वीर में राकेश और संध्या होटल की लॉबी में साथ खड़े हैं, दूसरी में दोनों किसी समारोह में हाथों में हाथ डाले नजर आ रहे हैं। अर्जुन का चेहरा गुस्से और दर्द से कांप रहा था। “माननीय न्यायाधीश, यह तस्वीरें सिर्फ कागज के टुकड़े नहीं हैं, यह मेरी मां की बर्बादी का इतिहास है। जब वह अपने पति पर भरोसा करके जी रही थी, तब वही पति उनके पीठ पीछे किसी और का सहारा ले रहा था।”
मीरा की आंखों से आंसुओं की धार बहने लगती है। वह अपने आंचल से चेहरा ढक लेती है ताकि कोई उसकी टूटी हालत को देख न सके। दर्शक दीर्घा में बैठी औरतें फुसफुसाती हैं, “यह तो हर घर की सच्चाई हो सकती है, लेकिन यहां बेटा खुद खड़ा होकर गवाही दे रहा है।”
राकेश खुद को संभालने की कोशिश करते हैं और गुस्से से खड़े होकर चिल्लाते हैं, “यह सब झूठ है! अर्जुन को मेरी संपत्ति चाहिए, इसलिए यह झूठा नाटक कर रहा है।” लेकिन जज तुरंत उन्हें शांत कराते हैं, “श्रीमान राकेश, अदालत में बिना सबूत के चिल्लाना आपकी मदद नहीं करेगा। आपके बेटे ने दस्तावेज और तस्वीरें पेश की हैं। अगर यह गलत है, तो आपके पास भी सबूत होने चाहिए।”
राकेश धीरे-धीरे कुर्सी पर बैठ जाते हैं। उनका अहंकार टूट जाता है। वहीं अर्जुन पूरे आत्मविश्वास से आगे बढ़कर कहता है, “पापा, अगर मैं संपत्ति चाहता तो आपकी चुप्पी का सौदा कर लेता, लेकिन मैंने ऐसा नहीं किया। मैं यहां आपकी गलतियों का सच सामने रखने आया हूं। क्योंकि मेरी मां ने जिंदगी भर चुप रहकर सहा है। अब और नहीं।”
कोर्ट रूम में हर कोई इस टकराव को देखकर सांसे थाम लेता है। ऐसा लग रहा था जैसे बाप-बेटे की यह लड़ाई सिर्फ परिवार की नहीं बल्कि न्याय और अन्याय की जंग बन चुकी है।
मीरा अब तक पूरी तरह चुप बैठी थी। उनके चेहरे पर आंसू थे लेकिन होठों से कोई शब्द नहीं निकल रहे थे। मगर जैसे ही अर्जुन ने अपने पिता के खिलाफ ठोस आवाज उठाई, वैसे ही मीरा का दिल भी टूटने की आखिरी हद तक पहुंच गया। उन्होंने कांपते हाथों से अपना आंचल हटाया और खड़ी होकर बोलीं, “माननीय न्यायाधीश, मैं अब और चुप नहीं रह सकती। यह सच है कि राकेश ने मुझे धोखा दिया। जब मैं अपने बेटे को पालने और घर संभालने में लगी थी, तब यह बाहर किसी और औरत के साथ हंसते-बोलते थे। मुझे हर बार लगा कि शायद वक्त बदलेगा, शायद राकेश अपनी गलती समझेंगे। लेकिन हर बार मैं टूटी। हर बार मैंने अकेले आंसू बहाए।”
मीरा की आवाज में ऐसा दर्द था कि पूरा कोर्ट रूम सहम गया। औरतों की आंखें भर आईं और कुछ पुरुष भी अपनी नजरें झुका लेने लगे। मीरा ने आगे कहा, “मैंने कभी अदालत का दरवाजा नहीं खटखटाया क्योंकि मुझे लगा कि शायद बेटे की खातिर यह रिश्ता बचा रह जाए। लेकिन आज मेरा बेटा ही यहां खड़ा होकर मेरे लिए इंसाफ मांग रहा है। यह मेरे लिए गर्व की बात भी है और दुख की भी कि जिस बेटे को बाप का सहारा मिलना चाहिए था, वह खुद अपनी मां का सहारा बन गया।”
इतना कहकर मीरा रुकी और राकेश की तरफ देखा। उनकी आंखों में शिकायत और आंसू दोनों थे। “राकेश, अगर मैं चाहती तो बहुत पहले तुम्हें छोड़कर चली जाती। लेकिन मैंने रिश्ते को निभाने की कोशिश की। मैं सब सहती रही क्योंकि मुझे लगा कि तुम बदल जाओगे। लेकिन तुमने कभी मेरी आंखों में बहते आंसुओं को देखा ही नहीं। आज यही आंसू सबके सामने मेरी गवाही बन गए हैं।”
मीरा की बातों से माहौल और भी भारी हो गया। न्यायाधीश भी कुछ देर तक चुप हो गए। कोर्ट रूम में सन्नाटा पसर गया। अर्जुन धीरे-धीरे मां की ओर बढ़ा और उनका हाथ पकड़ लिया। उस स्पर्श से मीरा के टूटे दिल को जैसे एक सहारा मिल गया। राकेश अपनी कुर्सी पर बैठा सब देख रहा था। उसके चेहरे पर पछतावा तो नहीं, लेकिन बेबसी साफ नजर आ रही थी। उसके पास अब कोई जवाब नहीं था।
कोर्ट रूम में जैसे ही मीरा की आवाज थमी, सबकी निगाहें राकेश की ओर मुड़ गईं। लेकिन वह अपनी सीट पर झुका हुआ माथे पर हाथ रखे चुपचाप बैठा था। ऐसा लग रहा था मानो उसके पास शब्द ही नहीं बचे हों। उसके चेहरे पर पछतावे और हार का मिश्रण था जिसे देखकर वहां मौजूद हर शख्स समझ सकता था कि सच्चाई कितनी कड़वी है।
लोग धीरे-धीरे आपस में कानफूसी करने लगे। “देखा, एक औरत ने कितनी बरसों तक सहा और आज उसका बेटा ही उसकी ढाल बन गया। पुरुष जब परिवार की जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ते हैं तो यही हाल होता है।” कुछ लोग मीरा और अर्जुन की हिम्मत की तारीफ कर रहे थे, तो कुछ अपने बीते हुए किस्सों से तुलना करने लगे।
अदालत के भीतर बैठे बुजुर्गों की आंखें भर आई थीं। उन्होंने अपनी बेटियों और बहुओं की तकलीफों को याद किया और सोचा कि अगर उनकी भी बेटियां इस तरह की हिम्मत दिखा पातीं तो शायद उनका जीवन भी बदल जाता।
राकेश की चुप्पी ने माहौल और भी भारी कर दिया। वह कभी मीरा की ओर देखता, कभी अर्जुन की ओर, लेकिन नजरें झुकाकर तुरंत वापस हटा लेता। उसके दिल में तूफान मचा हुआ था। “क्या वाकई मैंने इतना बड़ा गुनाह किया है कि आज मेरा ही बेटा मुझे अदालत में कटघरे में खड़ा कर रहा है? क्या मैं एक अच्छा पति या पिता बन भी पाया था?” लेकिन उसके मन की बातें उसके होठों तक नहीं पहुंच रही थीं। वह सिर्फ बैठा रह गया, मौन टूटा हुआ और समाज की नजरों में अपराधी बनकर।
जैसे ही कोर्ट रूम में सब कुछ शांत हुआ, न्यायाधीश ने अपनी ऐनक उतारी और धीरे-धीरे मेज पर रखते हुए राकेश की ओर गहरी नजर डाली। उनकी आंखों में सख्ती भी थी और कहीं ना कहीं दुख की झलक भी। वे कई वर्षों से अदालत की कुर्सी पर बैठते आ रहे थे और अनगिनत पारिवारिक मामलों को सुन चुके थे। लेकिन आज का मामला उनके दिल को भीतर तक झकझोर रहा था।
न्यायाधीश ने धीमे स्वर में कहा, “राकेश, आज तुम्हारे खिलाफ बोलने वाला कोई गैर नहीं बल्कि तुम्हारा ही बेटा है। यह कोई सामान्य मुकदमा नहीं है। यह समाज के लिए आईना है। तुम्हारे कर्मों का असर सिर्फ तुम्हारी पत्नी पर ही नहीं बल्कि तुम्हारे बेटे की आत्मा तक पर पड़ा है। जब एक बच्चा अपने पिता के खिलाफ खड़ा हो जाए तो समझ लो कि गलती छोटी नहीं, बहुत गहरी है।”
पूरा माहौल और भी भावुक हो गया। अर्जुन की आंखें लाल हो गईं। वह अपनी मां मीरा का हाथ कसकर पकड़ने लगा। वहीं मीरा की आंखों से आंसुओं की धार बह रही थी। लेकिन उन आंसुओं में अब दर्द के साथ-साथ राहत भी झलक रही थी।
न्यायाधीश ने आगे कहा, “यह अदालत सिर्फ कागजी फैसले सुनाने के लिए नहीं है, बल्कि सच को उजागर करने और टूटे हुए रिश्तों की सच्चाई को सामने रखने के लिए है। राकेश, तुम्हारी चुप्पी बहुत कुछ कह रही है। लेकिन अब समय आ गया है कि तुम्हें अपने किए का सामना करना ही होगा। अदालत जल्द ही इस मामले में फैसला सुनाएगी। लेकिन उससे पहले मैं यह साफ कर देना चाहता हूं कि यह फैसला केवल कानून का नहीं बल्कि इंसानियत और परिवार की गरिमा का भी होगा।”
इन शब्दों ने अदालत में बैठे हर इंसान के दिल को हिला दिया। लोगों को महसूस हुआ कि यह मामला केवल एक घर का नहीं बल्कि पूरे समाज के उन हालातों का प्रतीक है जहां रिश्तों में विश्वास टूट जाता है और बच्चे तक अपने माता-पिता को कटघरे में खड़ा करने पर मजबूर हो जाते हैं।
जैसे ही सातवां दिन आया, कोर्ट रूम में एक अनोखी गंभीरता छा गई थी। हर चेहरा तनाव और उम्मीद के मिश्रण से भरा हुआ था। अर्जुन, जो अब 12 साल का हो चुका था, अपनी मां मीरा के हाथ को कसकर पकड़ते हुए न्यायाधीश की ओर देखता है। उसकी आंखों में डर भी था और साहस भी। क्योंकि उसे पता था कि आज उसे अपने पिता के सामने खड़ा होकर सच बोलना ही होगा।
अर्जुन ने धीमी और स्पष्ट आवाज में कहा, “जज साहब, मैं केवल सच बोल रहा हूं। मेरे पिता राकेश ने मेरी मां के साथ जो किया वह गलत था। उन्होंने केवल उसे ही नहीं बल्कि पूरे परिवार को धोखा दिया। मैं जानता हूं कि मैं छोटा हूं। लेकिन सच में बोलने का हक मुझे भी है। मेरी मां ने हमेशा हमें बड़ा प्यार दिया। लेकिन पापा ने हमारे भरोसे के साथ खिलवाड़ किया।”
उसकी यह बात सुनकर मीरा की आंखों में आंसू भर आए। लेकिन इस बार यह आंसू दर्द के नहीं बल्कि गर्व और राहत के थे। कोर्ट रूम में मौजूद सभी लोग सन्न रह गए। राकेश की आंखों में झिझक और पछतावा साफ दिखाई देने लगा।
न्यायाधीश ने गंभीर स्वर में कहा, “अर्जुन, तुम्हारी बात ने इस अदालत की नींव को हिला दिया है। बच्चे की मासूमियत और उसकी ईमानदारी कभी झूठ को नहीं बर्दाश्त कर सकती। आज तुम्हारे बोलने से केवल एक पिता का अतीत उजागर नहीं हुआ, बल्कि पूरे समाज को यह संदेश मिला कि बच्चों के सामने कभी भी झूठ और अन्याय नहीं चल सकते।”
कोर्ट रूम में मौन पसरा हुआ था। हर किसी के गले में दर्द की गांठ थी और सब महसूस कर रहे थे कि आज एक छोटे बच्चे की बहादुरी ने पूरे परिवार की सच्चाई सामने ला दी है।
जैसे ही आठवां दिन आया, राकेश की आंखों में पछतावे की गहरी लकीरें दिखाई देने लगीं। वह खड़ा रहा लेकिन उसके कदम जमीन पर भारी पड़ रहे थे। अदालत में सबकी निगाहें उस पर टिक गई थीं। अर्जुन की मासूम पर साहसिक अपील और मीरा के आत्मसम्मान ने राकेश के दिल में हर उस दर्द को जगाने लगा जिसे उसने कभी महसूस करने से इंकार किया था।
राकेश ने धीरे-धीरे सिर झुकाया और कांपते हुए कहा, “मैं समझ गया हूं कि मैंने गलत किया। मीरा, अर्जुन, मैंने जो किया उसके लिए मैं सच में पछताता हूं। मैं अपने फैसले और व्यवहार से तुम्हारे दिलों को ठेस पहुंचाई और इसके लिए मुझे माफी चाहिए।”
मीरा ने गहरी सांस ली और अर्जुन को देखा, जो उसकी छोटी उंगली कसकर पकड़ रहा था। कोर्ट रूम में मौजूद सभी लोग इस भावनात्मक दृश्य से भावुक हो गए। अर्जुन ने पिता की ओर देखते हुए कहा, “पापा, मैं चाहता हूं कि आप सच में बदल जाएं और अगर आप सही रास्ते पर लौटेंगे तो मैं फिर से आपको अपना पिता मान सकता हूं।”
राकेश की आंखों में आंसू थे। उसने धीरे-धीरे मीरा और अर्जुन को गले लगाया। कोर्ट रूम में मौन और भारी भावनाओं का आलोक फैल गया। वहां मौजूद हर कोई यह महसूस कर रहा था कि सिर्फ अदालत का फैसला ही नहीं, बल्कि एक बच्चे की हिम्मत और एक मां की धैर्यपूर्ण बहादुरी ने परिवार में प्यार और भरोसे की नई शुरुआत कर दी थी।
यही वह पल था जब रिश्तों की टूटन को सुधारने की उम्मीद जागी और यह कहानी सिर्फ एक परिवार की नहीं बल्कि हर उस इंसान की मिसाल बन गई जो चाहकर भी अपने परिवार और बच्चों की भावनाओं को अनसुना कर देता है।
समाप्त
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