एक भिखारी ने सबके सामने एक फ्लाइट अटेंडेंट के साथ बलात्कार किया | सबक अमोज वक़िया

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आसमान की ओर: फैजान की कहानी

दिल्ली की एक अर्ध-अंधेरी गली में, एक छोटे से कमरे में फैजान नाम का युवक रहता था। उसकी उम्र करीब पच्चीस साल थी, शरीर दुबला-पतला, लंबे बाल, साधारण कपड़े और घिसे हुए जूते। मोहल्ले वाले उसे अक्सर निकम्मा, आवारा या लावारिस समझते। लेकिन उसके भीतर एक आग थी, एक सपना—कुछ बड़ा करने का।

फैजान का बचपन संघर्षों में बीता। पिता मजदूर थे, एक हादसे में गुजर गए। मां ने मेहनत-मजदूरी कर उसे पढ़ाया, मगर गरीबी इतनी गहरी थी कि दसवीं के बाद पढ़ाई छोड़नी पड़ी। वह कभी किताबें बेचता, कभी टैक्सी में हेल्पर बनता, कभी एयरपोर्ट के पास सामान उठाता। यहीं से उसे हवाई जहाज और उड़ान की दुनिया से लगाव हो गया।

एयरपोर्ट पर ही उसने पहली बार सुमन को देखा—एक फ्लाइट अटेंडेंट, आत्मविश्वास से भरी, खूबसूरत और सबकी नजरों का केंद्र। फैजान दूर से उसे देखता, दिल में एक अनकही चाहत पलती, मगर खुद को उसके लायक नहीं समझता। वह जानता था, उसकी दुनिया बहुत छोटी है और सुमन आसमान की ऊँचाइयों पर उड़ती है।

एक दिन फैजान ने हिम्मत की। जेब से अपनी मां की पुरानी अंगूठी निकाली, भीड़ के बीच सुमन के सामने घुटनों के बल बैठ गया और बोला, “मेरा दिल सच्चा है, क्या तुम मेरी बीवी बनोगी?” हॉल में सन्नाटा छा गया, फिर सुमन तंज भरी मुस्कान के साथ बोली, “तुम्हारे हालात देखे हैं? ख्वाब देखना छोड़ दो।” साथी हँसने लगे, मोबाइल कैमरे चलने लगे। फैजान का चेहरा शर्म और आँसुओं से भीग गया। वह चुपचाप वहां से निकल गया, मगर उस दिन की जिल्लत ने उसके भीतर एक नई आग जला दी।

उस रात फैजान ने खुद से वादा किया—अब वह मेहनत करेगा, खुद को साबित करेगा। अगले दिन से उसकी आदतें बदल गईं। वह मोहल्ले की लाइब्रेरी में बिजनेस और प्रबंधन की किताबें पढ़ने लगा। छोटे-मोटे काम करते हुए उसने ऑनलाइन बिजनेस शुरू किया—मोबाइल कवर और घड़ियाँ बेचना। शुरुआत में मुनाफा कम था, मगर उसका हौसला बुलंद था। धीरे-धीरे कारोबार बढ़ा, वह होलसेल मार्केट से सामान लाने लगा। घाटा, धोखा, मुश्किलें—सब आईं, मगर उसने हार नहीं मानी।

एक दिन उसे दिल्ली के एक होटल में बिजनेस सेमिनार में जाने का मौका मिला। वहाँ एक वक्ता ने कहा, “अगर दुनिया आपको नाकाम समझती है, तो उन्हें अपनी मेहनत से गलत साबित करो।” यह बात फैजान के दिल में घर कर गई। उसने अपनी डायरी में लिखा—”एक दिन लोग मुझे इज्जत से जानेंगे।”

वक्त बीतता गया। फैजान अब सुबह जल्दी उठता, मेहनत करता, कारोबार के तरीके सीखता, शाम को अपनी सफलताओं-असफलताओं को लिखता। उसकी शख्सियत बदल गई थी। बाल संवरे रहते, कपड़े साफ रहते। असली बदलाव उसके दिल और दिमाग में था। उसने एविशन का अध्ययन शुरू किया—अब उसका सपना था खुद की एयरलाइन शुरू करना।

शुरुआत में सबने मजाक उड़ाया—”तुम्हारे जैसे फकीर के नाम पर जहाज उड़ेंगे?” मगर फैजान मुस्कुराकर कहता, “आज फकीर हूं, कल कारोबारी बनूँगा।” उसने छोटी मंडी में दुकान ली, सफर का सामान बेचना शुरू किया। दो साल में दुकान मुनाफा देने लगी। एक बिजनेस कॉन्फ्रेंस में उसकी मुलाकात वसीम से हुई, जिसने उसके ख्वाब पर यकीन किया और पूंजी लगाई। दोनों ने मिलकर “फाल्कन एयर” नाम की एयरलाइन का सपना देखा।

तीन साल की मेहनत, रिसर्च, नाकामी, संघर्ष और टीम वर्क के बाद फाल्कन एयर की पहली उड़ान दिल्ली एयरपोर्ट से भरी गई। फैजान की आँखों में आँसू थे—आज वही लड़का, जिसे कभी सबने ठुकराया, अपनी मेहनत से आसमान को छू रहा था।

फाल्कन एयर ने कम दाम, बेहतरीन सेवा और ईमानदार अमले की वजह से जल्द ही पहचान बना ली। एक दिन भर्ती के लिए फ्लाइट अटेंडेंट्स की सूची आई, उसमें सुमन का नाम देखकर फैजान चौंक गया। पहले तो उसने सोचा, उसे नौकरी ना दे, फिर सोचा—इज्जत का बदला इज्जत से ही देना चाहिए। उसने सुमन को चुना।

कंपनी की ब्रीफिंग मीटिंग में जब फैजान CEO के तौर पर सामने आया, सुमन हैरान रह गई। मीटिंग के बाद वह रोती हुई उसके पास आई—”मुझे माफ कर दो, मैंने तुम्हें जलील किया।” फैजान ने मुस्कुराकर कहा, “तुम्हारी बातों ने मुझे मजबूत बनाया। लेकिन याद रखो, किसी को उसके हालात से मत परखो।”

सुमन के लिए यह पछतावे का लम्हा था। उसने खुद को माफ नहीं किया, मगर फैजान ने कभी दिल में कोई रंजिश नहीं रखी। फाल्कन एयर की कामयाबी बढ़ती गई। मीडिया में फैजान की मिसालें दी जाने लगीं—”गरीबी से आसमान तक।”

एक दिन कंपनी की अंतरराष्ट्रीय उड़ान का उद्घाटन था। सुमन भी अमले में थी। समारोह के बाद सुमन ने फैजान से कहा, “मैं जानती हूँ, मैं तुम्हारे काबिल नहीं थी। मगर मुझे गर्व है कि तुम आज यहाँ हो।” फैजान ने नम्रता से जवाब दिया, “तुम्हारी वजह से मैंने खुद को पहचाना। जिंदगी में कभी किसी को छोटा मत समझो।”

समय के साथ फाल्कन एयर एशिया और यूरोप तक फैल गई। फैजान ने हजारों लोगों को रोजगार दिया, युवाओं को प्रेरित किया—”मेहनत और ख्वाबों से नामुमकिन भी मुमकिन हो सकता है।” सुमन अब भी कंपनी में थी, मगर जानती थी कि उसका रिश्ता सिर्फ पछतावे और सीख का है।

फैजान की कहानी ने यह साबित कर दिया कि इंसान को कभी उसके कपड़े, हालात या गरीबी से मत परखो। आज जो कमजोर दिखता है, कल वही सबसे मजबूत बन सकता है। और जो आज गुरूर में है, कल पछतावे में डूब सकता है।

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