बेटे की जिद्द पर एक अजनबी औरत को पत्नी बना लाया… और उस रात जो हुआ… इंसानियत रो पड़ी
दोस्तों, कहते हैं मां की गोद बच्चे की सबसे बड़ी दुनिया होती है। लेकिन अगर किसी मासूम से उसकी मां छिन जाए, तो उसका बचपन किस सन्नाटे में गुजरता है। यह सोचकर ही दिल कांप उठता है। आज की कहानी एक ऐसे पिता की है जो बेटे की जिद पूरी करने के लिए वहां तक पहुंच गया, जहां जाने का ख्याल भी किसी को डरा देता है। क्या सचमुच पैसों से मां खरीदी जा सकती है? या फिर किस्मत ने इस परिवार के लिए कुछ और ही लिखा था?
मुकेश का संघर्ष
शाम ढल चुकी थी। आसमान पर हल्की-हल्की धूप की आखिरी किरणें बिखरी थीं। मुकेश अपनी पुरानी साइकिल धकेलते हुए गली में दाखिल हुआ। माथे पर पसीना, आंखों में थकान और हाथों में झोला जिसमें कुछ सब्जियां और दो-तीन रोजमर्रा की चीजें थीं। दरवाजा खोलते ही एक नन्ही आवाज गूंजी, “पापा, पापा!”
चार साल का आयुष नंगे पांव दौड़ता हुआ आया और सीधे उसके सीने से लिपट गया। मुकेश ने थकान भरी मुस्कान दी। लेकिन अगले ही पल वह सन्न रह गया जब बेटे ने मासूमियत से कहा, “पापा, आप बाजार से मम्मी को क्यों नहीं ले आए? मुझे मम्मी चाहिए।” यह सुनते ही जैसे मुकेश के पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई। उसका गला रंध गया, आंखें नम हो गईं। उसने बेटे को कसकर सीने से लगाया और धीमी आवाज में बोला, “बेटा, मेरे पास पैसे नहीं हैं। बिना पैसों के मम्मी कैसे लाऊं?”
आयुष चुपचाप अंदर भागा। थोड़ी देर बाद वह अपनी छोटी सी गुल्लक लेकर लौटा। गुल्लक उसके नन्हे हाथों में कांप रही थी। आंखों से आंसू बह रहे थे। उसने गुल्लक पिता के हाथ पर रख दी और बोला, “पापा, पैसे तो मैंने जमा कर लिए हैं। अब आप मेरी मम्मी ले आओ। मुझे मम्मी की बहुत याद आती है।” यह सुनते ही मुकेश का दिल चीर गया। उसकी आंखों से भी आंसू छलक पड़े। वह सोचने लगा, “हे भगवान, इस मासूम को कैसे समझाऊं कि मां पैसों से नहीं आती।”
पिता की जिद
लेकिन बेटे की आंखों में उम्मीद की चमक देखकर वह चुप हो गया। कुछ देर बाद उसने आयुष के गाल पोंछे और बोला, “ठीक है बेटा। तुम इंतजार करो। मैं तुम्हारे लिए मम्मी लेकर आता हूं।” आयुष खुशी से झूम उठा। “सच पापा, आप अभी मम्मी लाओगे?” मुकेश ने सिर हिलाया और भारी मन से घर से बाहर निकल गया।
बाहर निकलते ही उसकी आंखों से आंसू बह निकले। गली के मोड़ पर रुक कर उसने आसमान की ओर देखा और मन ही मन कहा, “हे भगवान, मुझे इतनी ताकत देना कि मैं अपने बेटे का दिल न तोड़ूं। उसका बचपन मां के बिना उजड़ न जाए।” मुकेश यादों में खो गया। उसे मोहिनी की मुस्कान याद आई। वही मोहिनी, उसकी पत्नी। शादी के बाद दोनों ने मिलकर इस छोटे से घर को सजाया था। जब पहली बार मोहिनी ने बेटे आयुष को गोद में उठाया था, तो उसकी आंखों में जो चमक थी, वह आज भी मुकेश को याद थी।
विपत्ति का सामना
लेकिन एक मनहूस दिन सब बदल गया। मोहिनी ने एक शाम कहा था, “सीने में थोड़ा दर्द है लेकिन कल ठीक हो जाएगा।” मुकेश उसे डॉक्टर के पास ले जाना चाहता था, मगर उसने हंसकर टाल दिया। लेकिन वह कल कभी नहीं आया। अगली सुबह मोहिनी हमेशा के लिए आंखें मूंद चुकी थी। उस दिन चिता की आग में सिर्फ उसका जीवन साथी नहीं जला था, बल्कि उसके घर की खुशियां, उसका चैन और उसका भविष्य सब राख हो गए थे। तब से मुकेश अकेला बेटे को पाल रहा था।
पहले वह आयुष को बहला देता। “मम्मी बाहर गई है, जल्दी लौटेंगी।” पर जैसे-जैसे आयुष बड़ा हुआ, सवाल गहराते गए और अब यह जिद बन गई, “मम्मी बाजार से लाओ।” मुकेश के लिए यह पहाड़ बन गई थी।
पड़ोसी का सुझाव
मुकेश भारी मन से पड़ोसी विनय के घर पहुंचा। दरवाजा खटखटाया तो विनय बाहर आया। मुकेश की आंखें लाल थीं। आवाज भारी थी। “विनय, तूने बच्चों के सामने क्यों कहा था कि बाजार से पैसों से मम्मी ला सकते हैं? मेरा बेटा उस बात को सच मान बैठा है। आज उसने गुल्लक मेरे हाथ पर रख दी।”
विनय आवाक रह गया। उसने हाथ जोड़ दिए। “भाई, गलती हो गई। उस दिन मेरी पत्नी मायके जाने की बात कर रही थी। बच्चे ने पूछा तो मैंने मजाक में कह दिया कि नई मम्मी ले आएंगे। मुझे क्या पता था आयुष सुन लेगा और दिल पर ले लेगा।”
एक अनोखा प्रस्ताव
मुकेश दीवार से टिक गया। “अब मैं क्या करूं? हर आंसू मुझे तोड़ देता है। बच्चे को कैसे समझाऊं कि मां खरीदी नहीं जाती।” विनय कुछ पल चुप रहा। फिर झिझकते हुए बोला, “एक रास्ता है। अगर तू मना न करे।”
मुकेश ने हैरानी से उसकी ओर देखा। विनय ने धीरे से कहा, “मैं एक जगह जानता हूं जहां औरतें मजबूरी में पैसों के लिए आती हैं। गलत मत समझ। तुझे सिर्फ इतना करना है कि किसी से कहना, वो बच्चे को थोड़ी देर गोद में सुला दे। बस, ना उससे ज्यादा, ना कम।”
मुकेश ने तुरंत सिर हिलाया। “नहीं, यह सही नहीं है।” लेकिन अगले ही पल उसे आयुष की आंखें याद आई। गुल्लक थमाते हुए मासूम आवाज गूंजी, “पापा, पैसे तो मैंने जमा कर लिए हैं।” मुकेश की मजबूती टूट गई। उसने धीमे स्वर में कहा, “ठीक है, लेकिन सिर्फ बच्चे की खातिर, किसी की बेइज्जती नहीं होगी।”
सुनसान रास्ता
रात गहरा रही थी। दोनों ऑटों में बैठे उस इलाके की तरफ निकल पड़े जिसका नाम सुनते ही लोग असहज हो जाते हैं। सुनसान सड़कें, पीली-पीली लाइटें टिमटिमा रही थीं। मुकेश का दिल जोर-जोर से धड़क रहा था। उसके मन में सिर्फ एक ही वाक्य घूम रहा था, “मुझे अपने बच्चे का दिल नहीं तोड़ना है।”
विनय कई औरतों से बात करता रहा। लेकिन सबने दाम पूछे और काम सुनकर माथा सिकोड़ लिया। “इतने कम पैसों में बस गोद में सुलाना? हमें मजाक मत बनाओ!” कुछ ने सीधे मना कर दिया। थके हारे दोनों पास की चाय दुकान पर बैठ गए। मुकेश चुपचाप भाप उठती चाय को घूर रहा था। उसे हर धुएं में बेटे का चेहरा नजर आ रहा था।
अजनबी की मदद
तभी एक मध्यम उम्र का आदमी पास आया और धीरे से बोला, “भाई, क्यों परेशान हो? चेहरा इतना उदास क्यों है?” विनय टालना चाहता था लेकिन मुकेश का गला भर आया। उसने पूरी कहानी उस अजनबी को सुना दी। आदमी ने ध्यान से सुना और बोला, “एक नंबर देता हूं। सीमा नाम की औरत है। मजबूर है। पिता बीमार है। कभी-कभार पैसों के लिए काम करती है। लेकिन शरीफ ख्याल रखती है। बात प्यार से करना।”
मुकेश के हाथ कांप रहे थे। उसने नंबर मिलाया। उधर से थकी हुई महिला आवाज आई, “जी, कौन?” मुकेश ने हिम्मत जुटाकर कहा, “मेरा नाम मुकेश है। कोई गलत काम नहीं करवाना। बस मेरे छोटे बेटे को मां की गोद चाहिए। थोड़ी देर के लिए उसे सुला दीजिए। आर एस फाइट दूंगा और पूरी इज्जत के साथ आपको वापस छोड़ दूंगा।”
सीमा का निर्णय
कुछ सेकंड सन्नाटा रहा। फिर उधर से धीमी आवाज आई, “कहां आना होगा?” मुकेश की आंखों से आंसू छलक पड़े। “फला चौक। मैं ऑटो में हूं, वहीं से ले लूंगा।” वह फिर बोली, “एक शर्त है। मेरे साथ कोई बदसलूकी नहीं होगी। और अगर बच्चा रोएगा तो धैर्य रखोगे।” मुकेश ने गला भरकर कहा, “कसम से, सिर्फ बच्चे की खातिर बुला रहा हूं।”
ऑटो धुंधली सड़कों पर धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा था। रात का सन्नाटा बढ़ता जा रहा था और मुकेश का दिल ऐसे धड़क रहा था मानो हर धड़कन किसी गुनाह की गवाही दे रही हो। लेकिन उसके मन में बार-बार वही दृश्य घूम रहा था। बेटे की गुल्लक, भीगे हुए आंसू और मासूम आवाज, “पापा, पैसे तो मैंने जमा कर लिए हैं। अब आप मम्मी ला दीजिए।”
सीमा का संकोच
तय जगह पर पहुंचते ही मुकेश ने देखा। गली के कोने पर एक औरत खड़ी थी। साधारण सलवार कुर्ता पहने, चेहरा हल्का सा दुपट्टे से ढका हुआ। उसकी झिझक साफ झलक रही थी। जैसे ही ऑटो उसके पास रुका और उसने देखा कि अंदर दो आदमी बैठे हैं, वह तुरंत पीछे हट गई। उसकी आवाज में गुस्सा और डर दोनों थे, “नहीं, मैं नहीं आऊंगी। तुम लोग झूठ बोल रहे हो। मुझे धोखा मत देना।”
मुकेश ने तुरंत दोनों हाथ जोड़ दिए। उसकी आंखों से आंसू बहने लगे। “बहन, तुम्हारे साथ कुछ गलत नहीं होगा। मैं सिर्फ अपने बेटे की खातिर आया हूं। वो बच्चा मां-मां पुकार रहा है। उसने गुल्लक मेरे हाथ पर रख दी। मुझे बस चाहिए कि तुम थोड़ी देर उसे सीने से लगाकर सुला दो। बस इसके अलावा कुछ नहीं।”
सीमा का परिवर्तन
सीमा ने मुकेश की आंखों में गौर से देखा। वहां वासना या झूठ नहीं था। वहां एक टूटा हुआ पिता था। कुछ पल वह चुप रही। फिर धीमी आवाज में बोली, “ठीक है, चलो।” मुकेश ने चैन की सांस ली। धीरे-धीरे चल पड़ा। घर का दरवाजा खुला। जैसे ही सीमा अंदर दाखिल हुई, सामने से छोटा आयुष दौड़ता हुआ आया। उसकी आंखों में चमक थी।
वह हाफते हुए बोला, “पापा, क्या यही है मेरी मम्मी जिसे आप बाजार से लाए हो?” मुकेश का दिल धक से रह गया। वह कुछ बोल नहीं पाया। बस चुपचाप सिर हिला दिया। आयुष खुशी से उछल पड़ा। अगले ही पल उसने सीमा को कसकर गले लगा लिया और फूट-फूट कर रोते हुए बोला, “मम्मा, आपको पता है मैंने आपको कितना मिस किया। मैं रोज पापा से कहता था आपको लाने को।”
सीमा हिल गई। उसके दिल में जैसे किसी ने चिंगारी जला दी। उसके भीतर दबे एहसास फूट पड़े। उसने भी तुरंत बच्चे को अपनी बाहों में भर लिया। यह आलिंगन नकली नहीं था। यह उस मासूम की तड़प थी जिसने उसे सचमुच मां बना दिया था। मुकेश यह दृश्य देखकर चुपचाप कमरे से बाहर चला गया। उसकी आंखों से आंसू बहते रहे लेकिन होठों पर हल्की मुस्कान भी थी।
नई शुरुआत
उसने मन ही मन कहा, “धन्यवाद भगवान। आज मेरा बच्चा चैन की नींद सो पाएगा।” अपनी छोटी गुल्लक सीमा के सामने रख दी। “देखो मम्मा, मैंने आपके लिए पैसे बचाए हैं।” सीमा का कलेजा फट गया। उसकी आंखों से आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे। उसने बच्चे को चुप कराया। माथे को चूमा और धीरे-धीरे लोरी गुनगुनाने लगी। कुछ ही देर में आयुष उसकी गोद में ही मुस्कुराते हुए सो गया।
सीमा ने उसके सिर को तकिए पर रखा और बाहर आ गई। मुकेश वहीं खड़ा था। उसने सिर झुकाकर कहा, “आपका बहुत धन्यवाद। मेरा बेटा बहुत मासूम है।” उसके आंसू देखकर मेरा दिल भी कांप जाता है। सीमा ने कुछ नहीं कहा। बस आंखें पाछ लीं। मुकेश ने पैसे दिए और बोला, “चलो, मैं तुम्हें छोड़ देता हूं।”
सीमा का आंतरिक संघर्ष
वापसी के रास्ते में दोनों चुप थे लेकिन सीमा के मन में हलचल थी। जाते-जाते उसने धीमी आवाज में कहा, “अगर कभी दोबारा जरूरत पड़े तो बुला लेना क्योंकि उस बच्चे की मासूमियत ने मुझे अंदर तक छू लिया है।” मुकेश ने उसकी ओर देखा लेकिन कुछ बोला नहीं। सीमा अपने गली के मोड़ पर उतर गई।
उस रात सीमा को नींद नहीं आई। आंखें मूंदते ही बार-बार वही चेहरा सामने आ जाता। आयुष का चेहरा, उसकी मासूम आवाज। “मम्मा, आपको पता है मैंने कितना मिस किया।” वह करवटें बदलती रही। दिल कहता रहा, “यह बच्चा तो मेरा अपना लग रहा है।”
मासूमियत की जिद
कुछ दिन सामान्य बीते। मुकेश ने सोचा अब आयुष शायद भूल जाएगा। लेकिन मासूमियत इतनी आसानी से कहां हार मानती है। कुछ ही हफ्तों में फिर वही जिद शुरू हो गई। “पापा, मुझे फिर से मम्मी चाहिए। उस दिन जैसी मम्मी फिर लाओ।” मुकेश ने बहुत बहलाया लेकिन बेटे की आंखों से बहते आंसू देखकर उसकी मजबूरी टूट गई।
उसने कांपते हाथों से सीमा का नंबर मिलाया। उधर से थकी लेकिन परिचित आवाज आई, “जी?” मुकेश ने हिचकते हुए कहा, “आयुष फिर से मम्मी की जिद कर रहा है। अगर तुम्हें दिक्कत ना हो तो आज आ जाओ।” कुछ पल चुप रही। फिर सीमा बोली, “ठीक है, मैं आ जाऊंगी।”
सीमा की नई भूमिका
उस रात सीमा घर पहुंची। जैसे ही आयुष ने उसे देखा, दौड़ते हुए गले से लिपट गया। “मम्मा, अब आप मुझे छोड़कर मत जाना।” सीमा का दिल पिघल गया। उसने बच्चे को गोद में लिया, थपकियां दी और धीरे-धीरे उसे सुला दिया। लेकिन आज कुछ नया हुआ। बच्चे को सुलाते-सुलाते सीमा की भी आंख लग गई।
जब मुकेश कमरे में गया तो उसने देखा आयुष गहरी नींद में था और सीमा उसके पास बैठे-बैठे खुद भी सो गई थी। उस दृश्य ने मुकेश को अंदर तक छू लिया। उसके होठों पर अनजाने में हल्की मुस्कान आ गई। उसने सोचा, “कितनी सहजता से यह औरत मेरे बेटे के लिए मां बन गई है।”
एक नया अध्याय
सुबह के 4:00 बजे मुकेश ने सीमा को धीरे से जगाया। वह झेपते हुए बोली, “माफ करना। मैं सो गई थी।” मुकेश ने सिर्फ इतना कहा, “कोई बात नहीं, बच्चे को चैन की नींद मिली, मेरे लिए वही काफी है।” उसने पैसे दिए और सीमा को ऑटो से वापस छोड़ आया।
लेकिन उस रात के बाद सब कुछ बदल गया। समय बीतता गया। पहले तो यह एक बार की मजबूरी थी, लेकिन धीरे-धीरे यह सिलसिला बन गया। कभी 10 दिन बाद, कभी 15 दिन बाद, कभी 1 महीने बाद। जब भी आयुष की जिद बढ़ जाती, मुकेश फिर सीमा को बुला लेता। हर बार वही दृश्य दोहराया जाता। दरवाजा खुलते ही आयुष दौड़कर उसकी गोद में चला जाता। “मम्मा, आप आ गई!” और सीमा उसे अपने सीने से चिपका लेती।
सीमा का अपनापन
लेकिन अब फर्क यह था कि सीमा भी इस बच्चे के बिना बेचैन रहने लगी थी। पहले वह सिर्फ मजबूरी में आती थी। लेकिन अब उसमें एक अपनापन था। आयुष अब उसे मेहमान मम्मी नहीं मानता था। वह हर छोटी-बड़ी बात उसी से कहता। कभी खिलौने दिखाता, कभी अपनी ड्राइंग की कॉपी खोलकर बताता।
रात को जब मुकेश कहता, “बेटा सो जाओ,” तो आयुष मासूमियत से कहता, “नहीं पापा, मैं तभी सोऊंगा जब मम्मा लोरी सुनाएंगी।” सीमा उसे गोद में लेकर लोरी गुनगुनाती, उसके बालों में हाथ फेरती और कुछ ही देर में आयुष चैन से सो जाता। उसकी सांसे धीमी हो जातीं, चेहरे पर मासूम मुस्कान आ जाती।
प्यार का एहसास
मुकेश यह सब देखता तो उसकी आंखें भी भर आतीं। वह सोचता, “जिस कमी को मैं पैसों से पूरा करना चाहता था, उसे तो इस औरत ने अपने स्नेह से भर दिया।” सीमा पहले हर बार पैसे लेकर जाती थी। लेकिन अब कई बार वह पैसे लेने से भी मना कर देती। “मुकेश, यह बच्चा मुझे इतना अपना मान चुका है। अब इसके साथ रहना मेरे लिए बोझ नहीं, सुख है।”
मुकेश उसकी यह बात सुनकर चुप रह जाता। वह समझता था कि सीमा भी अपने हालात से टूटी हुई है। लेकिन जिस तरह से वह आयुष को अपनाती थी, वह सिर्फ मजबूरी नहीं हो सकती थी।
सीमा का भावनात्मक बदलाव
एक रात आयुष उसके सीने से चिपक कर सो रहा था। सीमा उसके बालों पर हाथ फेरते हुए अचानक भावुक हो गई। उसकी आंखें भर आईं। धीमी आवाज में उसने कहा, “मुकेश, मैं जानती हूं मैं कौन हूं और कैसी जिंदगी जी रही हूं। लेकिन सच कहूं, इस मासूम से अलग नहीं रह पाती। इसकी मासूम हंसी मुझे जिंदा रखती है।”
वह आगे कुछ कहना चाहती थी, मगर उसकी आवाज टूट गई। मुकेश ने उसकी आंखों में देखा। फिर उसके शब्द पूरे कर दिए, “तो क्यों ना हम इस रिश्ते को सच में नाम दें। मेरा बेटा हमेशा मां की छांव में रहेगा और तुम्हें भी एक घर मिलेगा।”
सीमा का चेहरा लाल हो गया। आंखें नीचे झुक गईं। “लेकिन मैं इस लायक नहीं हूं।” मुकेश ने तुरंत जवाब दिया, “लायक वही है जो दिल से अपनाए और तुमने मेरे बेटे को अपने बेटे से भी ज्यादा अपनाया है।”
नई शुरुआत की ओर
सीमा की आंखों से आंसू बह निकले। उसने कुछ नहीं कहा। बस चुपचाप आयुष को और कसकर सीने से लगा लिया। अब मुकेश के घर का माहौल धीरे-धीरे बदलने लगा। पहले जहां सन्नाटा छाया रहता था, अब वहां बच्चे की खिलखिलाहट गूंजती थी।
आयुष अब पहले से ज्यादा खुश रहता। वह हर समय सीमा के पीछे-पीछे घूमता। “मम्मा, आप कहां जा रही हो? मम्मा, मुझे यह कहानी सुनाओ। मम्मा, मैं आपके साथ सोऊंगा।” मुकेश दूर खड़ा होकर यह सब देखता और मन ही मन संतुष्ट होता। उसके बेटे की आंखों से आंसू गायब हो चुके थे। अब उसकी आंखों में सिर्फ चमक थी।
हालांकि मुकेश जानता था कि समाज उसकी इस कदम को आसानी से स्वीकार नहीं करेगा। पड़ोसियों की बातें, ताने, तिरछी निगाहें सबका सामना करना पड़ेगा। लेकिन जब वह बेटे के चेहरे पर मुस्कान देखता तो बाकी सब नगण्य लगने लगता।
समाज की चुनौती
वह सोचता, “रिश्ते हमेशा खून से नहीं बनते। कई बार अपनाने से भी रिश्ते जन्म लेते हैं।” धीरे-धीरे 6 महीने गुजर गए। इस बीच सीमा और आयुष का रिश्ता इतना गहरा हो गया कि अब बच्चा उसे सच्ची मां मानने लगा था। और मुकेश के दिल में यह एहसास पक्का हो गया था कि यही औरत उसके बेटे की जिंदगी का खालीपन भर सकती है।
एक शाम जब आयुष आंगन में खेल रहा था, मुकेश ने सीमा से कहा, “अब और इंतजार नहीं। मैं चाहता हूं कि तुम इस घर की बहू और मेरे बेटे की मां बनकर हमेशा यहीं रहो।” सीमा की आंखें भर आईं। उसने धीमी आवाज में कहा, “अगर तुम्हें यकीन है तो मैं तैयार हूं।”
एक नई शुरुआत
दिन धीरे-धीरे बदल रहे थे। वह घर जो कभी सन्नाटे से भरा था, अब हंसी और खिलखिलाहट से गूंजने लगा था। मुकेश के चेहरे पर भी पहले जैसी थकान और उदासी नहीं दिखती थी क्योंकि उसके बेटे ने अपनी मां पाली थी। भले ही खून से नहीं, लेकिन दिल से।
एक सुबह मुकेश ने साफ शब्दों में सीमा से कहा, “अब और देर मत करो। मुझे तुम्हें अपने जीवन का हिस्सा बनाना है और मेरे बेटे को हमेशा की मां।” सीमा की आंखें भर आईं। उसने सिर झुका लिया। फिर धीमे स्वर में बोली, “अगर तुम्हें सच में यकीन है तो मैं तैयार हूं।”
सादगी से शादी
कुछ ही दिनों बाद पास के एक मंदिर में सादगी से शादी हुई। अन कोई बड़ा शोर-शराबा, ना कोई दिखावा। सिर्फ कुछ गिने-चुने लोग। मंदिर की घंटियों की गूंज और भगवान के सामने दो टूटे हुए दिलों का मिलन। सीमा का बूढ़ा पिता भी वहां मौजूद था। उसकी आंखों में आंसू थे, लेकिन चेहरे पर संतोष की झलक भी।
वह बोला, “बेटी, अगर यह रिश्ता तुझे इज्जत और सुकून दे रहा है, तो मैं राजी हूं।” मुकेश ने हाथ जोड़कर आशीर्वाद लिया। उस क्षण दोनों की जिंदगी में एक नया अध्याय शुरू हो गया।
खुशियों की वापसी
जब मुकेश और सीमा घर लौटे तो आयुष दौड़ता हुआ आया। उसकी आंखों में मासूम चमक थी। “पापा, अब मम्मा हमेशा हमारे पास रहेंगी ना?” मुकेश ने बेटे को गले लगाकर जवाब दिया, “हां बेटा, अब कभी जुदाई नहीं होगी।” आयुष खुशी से कूद पड़ा। उसने सीमा की गोद में सिर छिपा लिया और बोला, “मम्मा, अब आप मुझे कभी मत छोड़ना।”
सीमा ने उसके माथे पर किस किया और कहा, “नहीं बेटा, अब मैं हमेशा तुम्हारी मम्मा रहूंगी।” उस दिन उस छोटे से घर में सचमुच नया जन्म हुआ। खालीपन भर गया। सन्नाटा टूटा और खुशियों की गूंज वापस लौट आई।
नई दिनचर्या
अब दिनचर्या बदल चुकी थी। सुबह सीमा आंगन में तुलसी को जल चढ़ाती, चाय बनाती और आयुष को तैयार करती। आयुष अब हर जगह गर्व से कहता, “यह मेरी मम्मा है।” मुकेश दूर से यह सब देखता और मन ही मन भगवान का धन्यवाद करता।
वह सोचता, “जिस औरत को मजबूरी ने मेरे जीवन में लाया था, वही मेरे बेटे की असली मां बन गई।” गांव मोहल्ले में बातें होती थीं, “देखो मुकेश ने किसे अपनी पत्नी बना लिया। कैसी औरत है।” लेकिन मुकेश ने किसी की परवाह नहीं की। उसके लिए सबसे बड़ा सच यह था कि उसका बेटा खुश था और सीमा ने साबित कर दिया था कि मां का रिश्ता पैसों से नहीं खरीदा जा सकता।
निष्कर्ष
मां वही होती है जो दिल से अपनाएं। दोस्तों, इस कहानी से हमें यही समझ मिलती है। बच्चे के लिए मां की ममता सबसे बड़ी दौलत होती है। वह ना तो पैसों से खरीदी जा सकती है और ना ही किसी झूठ से पूरी की जा सकती है। रिश्ते हमेशा खून से नहीं बनते बल्कि दिल से निभाने से बनते हैं। मुकेश और सीमा ने यह साबित कर दिया कि अपनाने से भी रिश्ते उतने ही मजबूत हो सकते हैं जितने जन्म से बने रिश्ते होते हैं।
अब सवाल आपसे: क्या आपको लगता है कि मुकेश का यह फैसला सही था? क्या उसने सीमा को अपनाकर अपने बेटे के लिए सही किया? अपनी राय हमें कमेंट में जरूर बताइए और अगर यह भावुक कहानी आपके दिल को छू गई हो तो वीडियो को लाइक कीजिए, शेयर कीजिए और चैनल को सब्सक्राइब करना मत भूलिए।
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