बेटे की जिद्द पर एक अजनबी औरत को पत्नी बना लाया… और उस रात जो हुआ… इंसानियत रो पड़ी
शाम का समय था। दफ़्तर से थका-हारा मुकेश जब घर लौटा तो चार साल का बेटा आयुष दरवाज़े पर दौड़कर आ गया। मासूम चेहरे पर चमक थी और होंठों से निकला, “पापा, आप बाज़ार से मम्मी ले आए? मुझे मम्मी से मिलना है।” उस क्षण मुकेश पत्थर का सा हो गया। गला भर आया, आँखें नम हो गईं। उसने बेटे को सीने से लगाया और काँपती आवाज़ में बोला, “बेटा, मेरे पास पैसे नहीं हैं… बिना पैसों के मैं तुम्हारे लिए मम्मी कैसे लाऊँ?”
बच्चे ने उदास आँखों से पिता को देखा। थोड़ी देर बाद वह चुपचाप भीतर चला गया और अपनी छोटी सी गुल्लक उठा लाया। काँपते हाथों में गुल्लक थी, आँखों में आँसू। उसने उसे पिता की हथेली पर रखते हुए कहा, “पापा, पैसे तो मैंने जमा कर लिए हैं। आप ले लो और मेरी मम्मी ला दो। मुझे उनकी बहुत याद आती है।”
उस मासूमियत ने मुकेश का कलेजा छलनी कर दिया। आँसू बह निकले। मन ही मन कहा, “हे भगवान, इस नासमझ को कैसे समझाऊँ कि माँ पैसों से नहीं आती।” मगर बेटे की जिद और उसकी भीगी पलकें देखकर वह खुद भी टूट गया। कुछ पल चुप रहने के बाद बेटे के गाल पोंछे और बोला, “ठीक है बेटा, तुम ज़रा इंतज़ार करो… मैं तुम्हारे लिए मम्मी लेकर आता हूँ।”
आयुष की आँखों में चमक आ गई, मासूम हँसी बिखर गई। “सच पापा? आप अभी मम्मी लाओगे?” मुकेश ने भारी मन से सिर हिलाया और काँपते क़दमों से घर से बाहर निकल गया। गली के कोने पर रुककर उसने आसमान की ओर देखा और मन ही मन कहा, “हे भगवान, मुझे ताक़त देना कि मैं अपने बेटे का दिल न तोड़ूँ।”
यादें उमड़ पड़ीं। मोहिनी की मुस्कान, शादी के बाद का छोटा-सा घर, पहली बार बेटे को गोद में लेने का उसका चेहरा… और फिर वह मनहूस सुबह जब मोहिनी हमेशा के लिए सो गई थी। सीने में दर्द की शिकायत को उसने हँसकर टाल दिया था, और अगली सुबह वह उठ ही न सकी। उस दिन मुकेश की दुनिया उजड़ गई। मोहिनी की चिता की आग में उसकी खुशियाँ भी राख हो गईं।
तब से वह अकेला बेटे को सँभाल रहा था। बार-बार बहलाता, “मम्मी बाहर गई है, लौट आएँगी।” लेकिन समय के साथ बच्चा बड़ा होने लगा, सवाल पूछने लगा, और अब यह ज़िद पहाड़ बन गई थी।
भारी मन से वह पड़ोसी विनय के पास पहुँचा। आँखें लाल थीं। बोला, “विनय, तूने क्यों कहा था कि बाज़ार से पैसों से मम्मी लाएँगे? मेरा बेटा उसे सच मान बैठा है। आज उसने गुल्लक मेरे हाथ पर रख दी।” विनय हक्का-बक्का रह गया। हाथ जोड़कर बोला, “भाई गलती हो गई। पत्नी मायके जाने की बात कर रही थी, बच्चे ने पूछा तो मज़ाक में कह दिया था। मुझे क्या पता था आयुष सुन लेगा।”
मुकेश दीवार से टिक गया। “अब क्या करूँ? उसके हर आँसू मुझे तोड़ देते हैं।” कुछ पल चुप रहने के बाद विनय झिझका और बोला, “एक रास्ता है… पर बुरा मत मानना। मैं ऐसी जगह जानता हूँ जहाँ मजबूरी में औरतें पैसों के लिए आती हैं। उनसे कह सकते हैं कि बस बच्चे को गोद में लेकर सुला दें। न उससे ज़्यादा, न कम।”
मुकेश ने झटके से सिर हिलाया, “नहीं, यह सही नहीं।” लेकिन अगले ही पल बेटे की भीगी आँखें और गुल्लक का दृश्य याद आया। उसकी मजबूती टूट गई। धीमे स्वर में बोला, “ठीक है… बस बच्चे की खातिर।”
रात गहराने लगी थी। दोनों ऑटो से उस इलाके की ओर बढ़े जहाँ जाने से लोग कतराते हैं। मुकेश का दिल धड़क रहा था। गली के कोने, पीली बत्तियाँ और सन्नाटा। विनय ने कुछ औरतों से बात की, पर सबने इंकार कर दिया। अंततः चाय की दुकान पर बैठ गए। मुकेश के चेहरे पर निराशा थी। तभी पास बैठा एक आदमी बोला, “भाई, अगर इरादा साफ है तो मैं एक नंबर देता हूँ। नाम है सीमा। मजबूर है, पर शरीफ़ है। कभी-कभार पैसों के लिए काम करती है। बात प्यार से करना।”
मुकेश ने काँपते हाथों से नंबर मिलाया। उधर से थकी-सी महिला आवाज़ आई। उसने कहा, “गलत मत समझना, मुझे कोई गलत काम नहीं चाहिए। बस मेरे बेटे को माँ की गोद चाहिए। थोड़ी देर के लिए उसे सुला देना। पाँच सौ रुपये दूँगा और वापस छोड़ दूँगा।” कुछ पल सन्नाटा रहा, फिर उधर से आवाज़ आई, “कहाँ आना होगा?” शर्त भी रखी, “मेरे साथ कोई बदसलूकी नहीं होगी।” मुकेश ने कसम खाई, “सिर्फ बच्चे की खातिर बुला रहा हूँ।”
तय जगह पर सीमा खड़ी थी। सादा सलवार-कुर्ता, चेहरा हल्का ढका। ऑटो में दो आदमी देखकर पहले झिझकी, फिर मुकेश के folded हाथों और टूटे चेहरे को देखकर मान गई। घर पहुँचते ही आयुष दौड़कर आया। आँखों में चमक, होंठों पर सवाल, “पापा, यही है मम्मी जिसे आप पैसे से लाए हो?” मुकेश ने सिर झुका लिया।
आयुष खुशी से उछल पड़ा और सीमा को कसकर गले लगा लिया। “मम्मा, आपको पता है मैंने आपको कितना मिस किया है।” सीमा हिल गई। उसके दिल में चिंगारी जल उठी। उसने भी बच्चे को बाँहों में भर लिया। वह आलिंगन नकली नहीं था। यह उस मासूम की तड़प थी जिसने सीमा को माँ बना दिया।
आयुष उसकी गोद में मुस्कुराते हुए सो गया। सीमा ने माथा चूमा, लोरी दी और आँसू बहाती रही। बाहर निकलकर बोली, “आपका बेटा बहुत मासूम है। उसके आँसू देखकर मेरा दिल काँप गया।” मुकेश ने पैसे दिए और उसे छोड़ आया। जाते-जाते सीमा ने धीमे स्वर में कहा, “अगर कभी दोबारा ज़रूरत पड़े तो बुला लेना। उस बच्चे की मासूमियत ने मुझे अंदर तक छू लिया है।”
कुछ दिन सब सामान्य रहा। फिर आयुष ने ज़िद की, “पापा, मुझे वही मम्मी चाहिए।” मजबूर होकर मुकेश ने सीमा को दोबारा बुलाया। आयुष दौड़कर उसके गले से लिपट गया, “मम्मा, अब आप मुझे छोड़कर मत जाना।” सीमा का दिल पिघल गया। बच्चे को गोद में लेकर थपकियाँ दीं और वह भी उसके साथ सो गई।
अब यह सिलसिला चलता रहा। हर दस-पंद्रह दिन पर सीमा आती। कभी-कभी पैसे भी ठुकरा देती। कहती, “मुकेश, यह बच्चा मुझे अपना मान चुका है। अब इसके साथ रहना बोझ नहीं, सुख है।” छह महीने में आयुष ने उसे सच्ची माँ मान लिया। वह उसी से खेलता, उसी से कहानियाँ सुनता और उसी की गोद में चैन से सोता।
एक रात आयुष सो गया तो सीमा बालों पर हाथ फेरते हुए बोली, “मुकेश, मैं जानती हूँ मैं कौन हूँ, कैसी ज़िंदगी जी रही हूँ। लेकिन इस मासूम से अलग नहीं रह पाती। इसकी हँसी मुझे जिंदा रखती है।” मुकेश ने उसकी आँखों में देखा और कहा, “तो क्यों न हम शादी कर लें? मेरा बेटा हमेशा माँ की छाँव में रहेगा और तुम्हें भी एक घर मिलेगा।”
सीमा चौंकी, फिर सिर झुका लिया। “मैं इस लायक नहीं।” मुकेश ने जवाब दिया, “लायक वही है जो दिल से अपनाए। और तुमने मेरे बेटे को अपने बेटे से भी ज़्यादा अपनाया है।” कुछ दिनों बाद दोनों ने मंदिर में सादगी से शादी कर ली। सीमा अब घर की बहू और आयुष की माँ थी।
उस दिन आयुष ने खुशी से कहा, “पापा, अब मम्मा हमेशा हमारे पास रहेंगी ना?” मुकेश ने गले लगाकर कहा, “हाँ बेटा, अब कभी जुदाई नहीं होगी।” सीमा ने आँसू भरी आँखों से आयुष को सीने से लगाया, “नहीं बेटा, अब मैं हमेशा तुम्हारी मम्मा रहूँगी।”
उस छोटे से घर में जो खालीपन था, वह भर गया। अब वहाँ फिर से हँसी-खुशी गूंजने लगी।
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