दबंग IPS अफसर को घसीट ले गई UP पुलिस, भयंकर गुस्से में जज! सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला
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उत्तर प्रदेश में दबंग IPS अधिकारी की गिरफ्तारी और सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला: प्रशासन, राजनीति और न्यायिक व्यवस्था पर उठे सवाल
उत्तर प्रदेश की राजनीति और प्रशासन में हाल ही में एक ऐसी घटना घटी जिसने पूरे देश का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया। पूर्व आईपीएस अधिकारी अमिताभ ठाकुर की नाटकीय गिरफ्तारी, बुलडोजर एक्शन पर न्यायपालिका की सख्त टिप्पणी और सुप्रीम कोर्ट के ताजा फैसले ने न केवल प्रशासनिक कार्यशैली बल्कि न्यायिक निष्पक्षता पर भी गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। आइए विस्तार से जानते हैं इस पूरे घटनाक्रम को, इसके पीछे की राजनीति, पुलिस की कार्यशैली, जनता की प्रतिक्रिया और न्यायपालिका की भूमिका।

अमिताभ ठाकुर: एक दबंग अधिकारी, जो सिस्टम से टकराया
अमिताभ ठाकुर उत्तर प्रदेश के उन गिने-चुने आईपीएस अधिकारियों में से हैं जिन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान भ्रष्टाचार, अवैध कब्जों और प्रशासनिक अनियमितताओं के खिलाफ लगातार संघर्ष किया। वे आजाद अधिकार सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी हैं और सोशल मीडिया पर अपनी बेबाक राय के लिए जाने जाते हैं। उनका प्रशासनिक करियर कई विवादों से घिरा रहा, लेकिन वे हमेशा जनता के पक्ष में और पारदर्शिता के समर्थन में खड़े रहे।
हाल ही में उनकी गिरफ्तारी ने यूपी की कानून व्यवस्था और पुलिस की कार्यशैली पर कई सवाल खड़े कर दिए। पुलिस का दावा है कि देवरिया में उनके खिलाफ एक मामला दर्ज है और कई बार नोटिस भेजे जाने के बावजूद उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया। इसी कारण उन्हें शाहजहांपुर में ट्रेन से दिल्ली जाते समय गिरफ्तार किया गया। गिरफ्तारी का तरीका इतना नाटकीय था कि लोग हैरान रह गए। सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो में देखा जा सकता है कि पुलिस ने उन्हें चप्पल भी नहीं पहनने दी, घसीटते हुए ले गई और उनकी आवाज दबाने की कोशिश की गई।
गिरफ्तारी के तरीके पर सवाल
अमिताभ ठाकुर की गिरफ्तारी जिस अंदाज में हुई, उसने यूपी पुलिस की कार्यशैली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए। आमतौर पर ऐसे अपराधियों की गिरफ्तारी भी इतनी कठोरता से नहीं होती, जितनी एक पूर्व आईपीएस अधिकारी के साथ की गई। समर्थकों का कहना है कि यह गिरफ्तारी भ्रष्टाचार और अवैध कब्जों के खिलाफ आवाज उठाने की सजा है। वे लगातार सरकार से सवाल पूछ रहे थे, सिस्टम पर चोट कर रहे थे और इसी वजह से सरकार की आंखों में चुभ गए। समर्थकों का यह भी दावा है कि गिरफ्तारी अवैध तरीके से हुई है और उनके साथ कोई अनहोनी हो सकती है।
पुलिस की ओर से जारी प्रेस नोट में कई बातें अस्पष्ट हैं। मामला 1999 का है, लेकिन शिकायत सितंबर 2025 में क्यों की गई? तत्काल एफआईआर कैसे दर्ज हो गई? शिकायतकर्ता कौन है और उसका मामले से क्या संबंध है? सिविल प्रकृति के मामले में गंभीर धाराएं कैसे जोड़ दी गईं? जांच में सहयोग न करने का आरोप किस आधार पर लगाया गया? इन तमाम सवालों के जवाब पुलिस की ओर से नहीं दिए गए, जिससे पुलिस खुद ही सवालों के घेरे में आ गई।
जनता और सोशल मीडिया की प्रतिक्रिया
अमिताभ ठाकुर की गिरफ्तारी के बाद सोशल मीडिया पर विरोध की लहर दौड़ गई। लोग पूछ रहे हैं, “क्या अब कोई सरकार की आलोचना नहीं कर सकता? अगर पूर्व आईपीएस अधिकारी के साथ ऐसा हो सकता है तो आम जनता की क्या मजाल कि सरकार के खिलाफ कुछ बोल दे?” सोशल मीडिया पर उन्हें योद्धा बताया जा रहा है, जो भ्रष्टाचार के खिलाफ पारदर्शिता के पक्ष में संघर्ष कर रहे थे। कई लोग आशंका जता रहे हैं कि उनके साथ कोई अनहोनी हो सकती है। यह सवाल भी उठ रहा है कि अगर आवाज उठाने वालों के खिलाफ इस तरह की कार्रवाई होगी तो भविष्य में कौन आवाज उठाएगा?
बुलडोजर एक्शन पर न्यायपालिका की सख्त टिप्पणी
इन घटनाओं के बीच बुलडोजर एक्शन को लेकर एक जज का वीडियो वायरल हुआ है, जिसमें उन्होंने प्रशासन के बुलडोजर एक्शन पर सख्त टिप्पणी की है। जज साहब ने पूछा, “क्या यहां भी बुलडोजर चलने लगा? ऐसा कौन पावरफुल आदमी है जो आप बुलडोजर लेकर तोड़ दिए इसका?” उन्होंने प्रशासन से पूछा कि बिना नोटिस, बिना कानूनी प्रक्रिया के किसी का घर कैसे तोड़ दिया गया। उन्होंने कहा, “तमाशा बना दिया कि किसी का घर बुलडोजर से तोड़ देंगे। अगर समस्या है तो थाना जाइए, पैसा दीजिए और घर तुड़वा दीजिए, कोर्ट को बंद कर दीजिए।”
जज साहब की इस टिप्पणी ने न्यायपालिका में निष्पक्षता और जनता के अधिकारों की रक्षा के सवाल को फिर से चर्चा में ला दिया। लोग कह रहे हैं कि ऐसे जज देश को चाहिए, जो सरकार की परवाह किए बिना जनता के हक में फैसला सुनाए। सोशल मीडिया पर मांग उठ रही है कि ऐसे जज को सीजीआई बनाया जाए।
सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला और निष्पक्षता पर सवाल
सुप्रीम कोर्ट ने बीएलओस (Booth Level Officers) को धमकी देने वाले अधिकारियों के खिलाफ सख्त आदेश जारी किया है। कोर्ट ने कहा है कि एसआईआर के दौरान बीएलओस को मिलने वाली धमकियां बर्दाश्त नहीं की जाएंगी। कोर्ट ने चुनाव आयोग से सहयोग की कमी, बाधाओं और धमकियों के मामलों में तुरंत नोटिस लाने को कहा है। पश्चिम बंगाल समेत कई राज्यों में बीएलओस को धमकियां मिल रही थीं, जिस पर कोर्ट ने चिंता जाहिर की।
हालांकि, इसी तरह की घटनाएं गौतम बुद्ध नगर में भी सामने आई थीं, जब मुख्य चुनाव आयुक्त की बेटी मेधा जी ने बीएलओस को धमकी दी थी। तब कोर्ट ने कोई आदेश जारी नहीं किया था। लोग कह रहे हैं कि सुप्रीम कोर्ट निष्पक्ष नहीं रहा और फैसले एकतरफा हो रहे हैं। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट पर सवाल नहीं उठाने चाहिए, लेकिन जब आदेश बायस हो तो जनता सवाल उठाती है।
राजनीति, प्रशासन और न्यायपालिका: तीनों पर सवाल
इस पूरे घटनाक्रम ने राजनीति, प्रशासन और न्यायपालिका—तीनों की कार्यशैली पर सवाल खड़े कर दिए हैं। एक ओर जहां सरकार पर विपक्षी नेताओं और अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई का आरोप है, वहीं पुलिस की कार्यशैली भी सवालों के घेरे में है। न्यायपालिका की निष्पक्षता भी चर्चा में है। क्या सचमुच लोकतंत्र में सरकार की आलोचना करना अपराध हो गया है? क्या पुलिस का रवैया केवल विरोधियों के लिए कठोर है? क्या न्यायपालिका हर मामले में निष्पक्ष है?
निष्कर्ष
अमिताभ ठाकुर की गिरफ्तारी, बुलडोजर एक्शन पर न्यायपालिका की टिप्पणी और सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने देश में लोकतंत्र, नागरिक अधिकारों, प्रशासनिक पारदर्शिता और न्यायिक निष्पक्षता को लेकर नई बहस छेड़ दी है। जनता चाहती है कि प्रशासन और न्यायपालिका दोनों निष्पक्ष रहें, कानून का पालन हो, और किसी भी नागरिक की आवाज दबाई न जाए। लोकतंत्र की यही खूबसूरती है कि हर सवाल का जवाब मिलना चाहिए, हर नागरिक को सुरक्षा और सम्मान मिलना चाहिए।
आपका क्या कहना है इस पूरे घटनाक्रम पर? क्या आपको लगता है कि प्रशासन और न्यायपालिका निष्पक्ष हैं? अपनी राय जरूर साझा करें।
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