कहानी: इमारत की नहीं, इज्जत की पहचान

होटल के बड़े से छत्र वाले प्रवेश द्वार तक पहुंचे तो सुरक्षा गार्ड ने उन्हें एक बेरुखी से देखा। “यह कोई धर्मशाला नहीं है,” सुनते ही बुजुर्ग बोले- “बस बारिश रुकने तक अंदर बैठना चाहता हूं बेटा।” गार्ड ने तिरस्कार से देख, धक्का देकर उन्हें हटा दिया। उनका बैग गिर पड़ा, कागज और फोन बाहर सड़क पर बिखर गए, भीग गए। आसपास के लोगों ने या तो नजरें फेर ली, या मुस्कुराकर तमाशा देखना शुरू कर दिया। रिसेप्शन पर बैठे स्टाफ ने भी हल्की मुस्कान के साथ सिर हिला लिया, मानो यह रोज का तमाशा हो।

बुजुर्ग चुपचाप अपना सामान समेटकर होटल से कुछ दूरी पर खड़े हो गए, फिर फोन निकाला और किसी को कॉल करके बोले, “हां, मैं पहुंच गया हूं। समय आ गया है।” उनकी आंखों में अब कोई इंतजार की चमक थी। तभी होटल के बाहर अचानक कई काली लग्जरी गाड़ियां आकर रुक गईं। पुलिस अधिकारी, होटल प्रबंधन, मैनेजर, सब घबराए से भागे चले आए। गार्ड की शक्ल अब सफेद पड़ गई, हाथ-पैर कांपने लगे।

जैसे ही मैनेजर ने बुजुर्ग को देखा, उसके होश उड़ गए। “सर, आपने बताया क्यों नहीं कि आप आ रहे हैं?” अब गार्ड भी संज्ञा-शून्य सा खड़ा था। बुजुर्ग ने दूर खड़े गार्ड को देखा, “क्यों बताता? आज मैं आम आदमी बनकर देखना चाहता था कि यहां हर इंसान के साथ कैसा व्यवहार होता है।”

इसी बीच उनके पर्सनल असिस्टेंट ने मैनेजर को एक फाइल थमाई, उस पर लिखा था- “बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स चेयरमैन की इंस्पेक्शन रिपोर्ट”। अब मैनेजर और स्टाफ को समझ आ गया कि यह कोई मामूली आदमी नहीं, बल्कि होटल चेन का मालिक है।

प्रबंधक घबराकर माफी मांगता है, लेकिन बुजुर्ग मुस्कुराते हुए कहते हैं, “गलती तो इंसान से होती है, लेकिन उसे सुधारा न जाए तो वह चरित्र बन जाती है। आज एक आदमी के लिए दरवाजा बंद हुआ, कल शायद किसी और के लिए हो। जितने बड़े दरवाजे हों, इज्जत उतनी ही बड़ी होनी चाहिए।”

उन्होंने तुरंत होटल चेन के सभी स्टाफ के लिए मानव-सम्मान प्रशिक्षण अनिवार्य कर दिया, और कहा- “इमारतें बदल जाती हैं, पर सोच नहीं। इसे बदलो।”

भीड़ में से किसी ने कहा, “यह दिल से बोल रहे हैं, वरना बड़े लोग तो गाड़ियों में बैठकर निकल जाते हैं।” जिस गार्ड ने उन्हें रोका था— उसने शर्मिंदगी से सिर झुका लिया।

बुजुर्ग शांत स्वर में बोले, “राजेश, तुम्हें निकालना आसान है पर तुम्हें गलती सुधारने का मौका देना ज्यादा जरूरी। असली नौकरी तनख्वाह से नहीं, इज्जत से मिलती है।”

बुजुर्ग होटल के अंदर गए, भारी संगमरमर की फर्श, महंगे झूमर, सब कुछ वैसा ही था जैसा पांच सितारा होटल में होता है। रिसेप्शन पर खड़ी वही लड़की, जो कुछ देर पहले उनकी ओर संदेह से देख रही थी, अब घबराकर हाथ जोड़ रही थी।

बुजुर्ग ने उससे पूछा, “अगर किसी के पास पहचान पत्र न हो लेकिन उसके नाम बुकिंग हो, तो क्या उसे रूम दोगी?” रिसेप्शन की लड़की हड़बड़ा गई। वह मौन हो गई। बुजुर्ग बोले, “मैं नीतियां नहीं, इंसानियत पूछ रहा हूं।”

फिर, अपने जीवन का संघर्ष सुनाते हुए उन्होंने कहा- “पचास साल पहले मुझे होटल के दरवाजे से सिर्फ इसलिए बाहर निकाल दिया गया क्योंकि मेरे कपड़े गीले थे। तभी सोच लिया कि अगर खुद कभी मालिक बना, तो यह न होने दूंगा। आज देखा कि वक्त बदला, सोच नहीं।”

इतने में स्टाफ दौड़ते हुए आया- सर, घटना की वीडियो बन गई है और सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है। बुजुर्ग बोले, “तो अच्छा है। यह बात सिर्फ इस होटल तक सीमित नहीं रहेगी। आज से हर स्टाफ के लिए मानव-सम्मान प्रशिक्षण अनिवार्य होगा, जो इसमें नाकाम रहा, उसके लिए जगह नहीं।”

राजेश गार्ड अब भी सिर झुकाए खड़ा था। बुजुर्ग ने कहा, “राजेश, तुम्हें बदलना है, साबित करना है कि बदलाव मुमकिन है।”

फिर बुजुर्ग बाहर आए, भीड़ और मीडिया खड़ी थी। उन्होंने कहा, “मेरा नाम राजेंद्र प्रसाद मेहता है। इस होटल चेन के 32 होटलों का मालिक हूं, पर आज मालिक बनकर नहीं, आम आदमी बनकर आया हूं, यह देखने कि होटल केवल इमारत है या इंसानियत भी है।”

फिर बोले, “मेरे पिता मजदूर थे, मैं प्लेटें धोकर बड़ा हुआ, एक दिन मुझे गीले कपड़ों के कारण निकाल दिया गया। इमारतें महंगी, इंसानियत सस्ती नहीं होनी चाहिए। आज यहां हर स्टाफ को सिखाया जाएगा कि ग्राहक पैसे से नहीं, इज्जत से आता है। कोई गरीब आए तो उसे तौलिया और चाय जरूर दो।”

भीड़ में तालियों की गूंज गूंज उठी, और गार्ड राजेश ने आकर कहा- “सर, मैं बदल जाऊंगा।”

कहानी का संदेश साफ था— इमारतें, नाम, दौलत— सब बाद में हैं, असली पहचान है हमारे भीतर की इंसानियत और दूसरों को दी गई इज्जत। बदलना जरूरी है, क्योंकि इज्जत बांटने से कोई गरीब नहीं होता।

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