कश्मीर में भारी हिमस्खलन में फंसे विदेशी पर्यटक को सेना के जवानों ने बचाया फिर जो हुआ जानकार दंग रह

बर्फ की चादर में दफन इंसानियत — गुलमर्ग की एक अनसुनी कहानी
जनवरी का महीना था। कश्मीर अपनी खूबसूरती के चरम पर था। गुलमर्ग की वादियों में बर्फ की मोटी, मुलायम चादर बिछी थी। देवदार के पेड़ों पर रुई जैसे फाहे जमे थे और सूरज की पहली किरणें बर्फ को हीरों सा चमका रही थीं। इसी धरती के स्वर्ग को देखने अमेरिका के कैलिफोर्निया से पाँच दोस्त आए — डेविड, सारा, उनकी बेटी, मार्क, एमली और डेनियल। वे सभी एक परिवार की तरह थे, हर किसी के दिल में रोमांच और प्रकृति से जुड़ने की ललक थी।
पहले कुछ दिन उन्होंने गुलमर्ग की आम ढलानों पर स्कीइंग की, स्थानीय बाजारों में घूमे, कश्मीरी कहवा का स्वाद चखा, और लोगों की मेहमाननवाज़ी का अनुभव लिया। मार्क अपने कैमरे से हर पल को कैद कर रहा था। सारा और डेविड अपनी शादी की 20वीं सालगिरह मना रहे थे। एमली, डॉक्टर होने के बावजूद, इन पहाड़ों की शांति में खो जाना चाहती थी। डेनियल, दो बच्चों का पिता, यहाँ अपनी रोज़मर्रा की भागदौड़ से दूर खुद को तलाशने आया था।
उनका सफर रोमांचक था, लेकिन जल्द ही एक बड़ा तूफान आने वाला था। डेविड और मार्क ने बैक-कंट्री स्कीइंग का फैसला किया — उन अनछुए दुर्गम पहाड़ी ढलानों पर जहाँ कोई मशीन से बनी पिच नहीं होती। स्थानीय गाइड बशीर ने उन्हें चेताया, “साहब, मौसम का कोई भरोसा नहीं। हिमस्खलन का खतरा हमेशा बना रहता है।” लेकिन रोमांच ने चेतावनियों पर भारी पड़ गया। सारा और एमली डर गईं, पर साथियों का उत्साह देख मान गईं। डेनियल ने मजाक में कहा, “अगर मौत आनी है तो जन्नत से बेहतर जगह कौन सी होगी?” उसे नहीं पता था, उसकी बात कितनी सच होने वाली है।
अगली सुबह वे छह लोग अफारवत चोटी की ओर निकल पड़े। मौसम साफ था, आसमान नीला, बर्फ सफेद। उन्होंने मुख्य ट्रैक से हटकर एक सुनसान घाटी की ओर स्कीइंग शुरू की। सब हँस रहे थे, खेल रहे थे। अचानक, एक गहरी गड़गड़ाहट गूँजी। पहाड़ की चोटी से बर्फ की विशाल नदी उनकी ओर बढ़ रही थी — हिमस्खलन! बशीर चीखा, “भागो!” पर कोई रास्ता नहीं था। बर्फ की दीवार उनकी ओर सैकड़ों किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से आई। सब कुछ एक पल में बर्फीले तूफान में दफन हो गया। घाटी, जो कुछ देर पहले जन्नत थी, अब सफेद कब्रगाह बन चुकी थी।
गुलमर्ग में भारतीय सेना की हाई अल्टीट्यूड वारफेयर स्कूल की पोस्ट पर मेजर हनीफ कुरैशी अपनी दूरबीन से घाटी की ओर देख रहे थे। अचानक वायरलेस पर सूचना आई — अफारवत की घाटी में हिमस्खलन, कुछ ट्रैकर्स के फँसे होने की आशंका। मेजर हनीफ ने अपनी क्विक रिएक्शन टीम को तैयार किया। मौसम खराब था, हेलीकॉप्टर भेजना नामुमकिन। बचाव सिर्फ पैदल ही संभव था। 15 जांबाज सिपाही, पर्वतारोहण और बचाव कार्यों के विशेषज्ञ, बर्फीले नरक की ओर निकल पड़े।
हर पल बर्फ के नीचे दबी जिंदगियों की उम्मीद कम हो रही थी। बर्फ के नीचे बचने के लिए कुछ ही मिनट होते हैं, उसके बाद हाइपोथर्मिया और ऑक्सीजन की कमी से मौत निश्चित। मेजर हनीफ और उनकी टीम तूफान से लड़ते हुए कमर तक धँसी बर्फ में रास्ता बनाते हुए उस घाटी की ओर बढ़ रहे थे। 3 घंटे की कठिन चढ़ाई के बाद वे वहाँ पहुँचे। चारों तरफ तबाही थी। बचाव दल के कुत्ते बर्फ को सूँघ रहे थे। एक कुत्ते ने एक जगह पर भौंकना शुरू किया। खोदाई हुई। 10 फीट नीचे एमली मिली — बेहोशी की हालत में, चेहरा नीला, साँसे धीमी। मेडिकल टीम ने उसे बचाया।
कुछ ही देर बाद मार्क मिला — उसकी टांग जख्मी थी, पर वो जिंदा था। फिर डेविड और सारा एक दूसरे से लिपटे हुए मिले — ठंड से काँप रहे थे, पर जिंदा थे। बशीर भी मिल गया, उसकी नब्ज़ कमजोर थी। अब सिर्फ डेनियल बचा था। सुबह के 4 बजे, 30 फीट नीचे, डेनियल मिला — टूटे हुए देवदार के पेड़ के नीचे दबा हुआ। उसका शरीर अकड़ चुका था। मेजर हनीफ ने उसकी नब्ज़ टटोली — सब खामोश। डेनियल को नहीं बचाया जा सका।
भारतीय सेना के जवानों ने पाँच जिंदगियाँ बचाई, पर एक जिंदगी ना बचा पाने का ग़म उनके चेहरों पर था। डेनियल के शव को तिरंगे में लपेटा गया — यह एक इंसान के लिए सम्मान था, एक मेहमान के लिए जो उनकी धरती पर आया था और अब कभी वापस नहीं लौटेगा।
चारों अमेरिकी पर्यटक और गाइड बशीर बेस कैंप में थे। डेनियल के जाने का ग़म सब पर भारी था। सारा और एमली फूट-फूट कर रो रही थीं। डेविड पत्थर की मूरत बनकर बैठा था। मार्क अपनी टूटी टांग के दर्द से ज्यादा अपने दोस्त को खोने के दर्द से कराह रहा था। मेजर हनीफ कुरैशी आए — “मुझे अफसोस है, हमने पूरी कोशिश की।” डेविड की आँखों में आभार था। “आपने जो किया, हम उसे कभी नहीं भूल सकते।”
अगले कुछ दिन भारी थे। डेनियल के परिवार को खबर दी गई, उसके शव को अमेरिका भेजने की व्यवस्था हुई। सेना के जवान उन चारों का परिवार की तरह ख्याल रख रहे थे। नायक रोहन घंटों सारा के पास बैठता, कहानियाँ सुनाता। मेजर हनीफ चुपचाप डेविड के साथ समय बिताते — कभी-कभी खामोशी शब्दों से ज्यादा मरहम होती है।
चारों ने देखा — ये सिपाही कठोर और अनुशासित दिखते हैं, पर उनके दिलों में कितनी इंसानियत और प्यार है। वे -30° तापमान में देश की सीमाओं की रक्षा करते हैं, फिर भी चेहरे पर शिकन नहीं। वे अपनी रोटी का आधा हिस्सा भूखे बच्चे को दे देते हैं, बीमार कुत्ते की देखभाल करते हैं। भारतीय सेना और भारत के लिए उनके दिलों में सम्मान पैदा हुआ — ऐसा सम्मान जो कोई किताब या फिल्म नहीं दे सकती।
वापसी का दिन आया। डेनियल का शव पहले ही भेजा जा चुका था। चारों दोस्त अब बेहतर थे, पर दिलों पर घाव हरा था। जाने से पहले वे मेजर हनीफ और पूरी बचाव टीम से मिलने बेस कैंप गए। माहौल भावुक था। सारा ने रोहन को गले लगा लिया, एमली ने टीम को धन्यवाद दिया, मार्क ने मेजर हनीफ से हाथ मिलाया — “आप असली हीरो हैं।” डेविड आगे बढ़ा, आँखों में आँसू, पर आवाज में दृढ़ता। “हम सिर्फ धन्यवाद कहकर या पैसे दान करके इस एहसान को उतारना नहीं चाहते। हम कुछ ऐसा करना चाहते हैं जो हमेशा के लिए डेनियल की याद और आपकी सेवा के जज़्बे को जिंदा रखे।”
डेविड ने बताया — उन्होंने अमेरिका में अपने संपर्कों से बात की है। डेनियल के परिवार के साथ मिलकर एक फाउंडेशन बनाने का फैसला किया है — “डेनियल मेमोरियल रेस्क्यू फाउंडेशन”। इसके तहत गुलमर्ग में सेना की मदद के लिए एक विश्वस्तरीय “एवरेच रेस्क्यू एंड रिसर्च सेंटर” बनेगा। शुरुआती $1 मिलियन डॉलर की फंडिंग तैयार है। इस सेंटर में आधुनिक बचाव तकनीकें, मेडिकल सुविधाएँ होंगी। यह सेना के जवानों, स्थानीय गाइडों और युवाओं को आपदा प्रबंधन व बचाव कार्यों की ट्रेनिंग देगा। “हम चाहते हैं कि जो हमारे दोस्त के साथ हुआ, वह किसी और के साथ ना हो।”
मेजर हनीफ कुरैशी की आँखें भर आईं — “आज तुमने साबित कर दिया कि इंसानियत का रिश्ता किसी देश या सरहद का मोहताज नहीं होता।”
दो साल बाद गुलमर्ग में एक अभूतपूर्व परिवर्तन आया। भारतीय सेना और डेनियल मेमोरियल रेस्क्यू फाउंडेशन के संयुक्त प्रयासों से अफ पर्वत की तलहटी में एक शानदार बचाव केंद्र बन गया। उद्घाटन के लिए डेविड, सारा, मार्क और एमली फिर कश्मीर आए — इस बार पर्यटक नहीं, परिवार के सदस्य बनकर। बाहर बोर्ड पर लिखा था — “डेनियल फ्रेंडशिप रेस्क्यू सेंटर”। यह सिर्फ इमारत नहीं, त्रासदी से जन्मी आशा का प्रतीक था।
आज भी जब गुलमर्ग में बर्फ गिरती है, स्थानीय लोग उस कहानी को याद करते हैं — कैसे एक बर्फीले तूफान ने एक जान ले ली, पर हजारों जानों को बचाने का स्थायी जरिया दे गया।
यह कहानी हमें सिखाती है कि इंसानियत और सेवा का भाव किसी भी सीमा, किसी भी राष्ट्रीयता से ऊपर होता है। एक छोटी मदद, एक नेक इरादा दुनिया में कितना बड़ा सकारात्मक बदलाव ला सकता है — यही इसकी सच्ची प्रेरणा है।
आपका धन्यवाद।
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