मजबूर माँ-बेटी ने बस थोड़ी-सी मदद मांगी थी, ठेलेवाले ने जो किया… इंसानियत हिल गई | फिर जो हुआ

समोसे वाला: इंसानियत की कहानी

जीवन में वही लोग मजबूत बनते हैं जो अंदर से दृढ़ होते हैं। बिहार के गया जिले के एक चौराहे पर, एक साधारण सा ठेला खड़ा था, जिस पर समोसे तले जा रहे थे। ठेले के पीछे एक 33 वर्षीय युवक, रवि, खड़ा था। उसकी आंखों में एक अजीब सी गरिमा थी, जैसे जिंदगी ने उसे बहुत कुछ सिखाया हो।

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एक दिन, एक 5 साल की बच्ची, धूल से सनी और भूखी, रवि के पास आई और बोली, “भैया, एक समोसा मिल जाएगा?” रवि ने बिना कुछ कहे, एक गर्म समोसा उसे दे दिया। तभी पीछे से एक महिला की आवाज आई, “रुको बेटा, समोसा मत लो। हम मांगने वाले नहीं हैं।” वह महिला, सुनीता, 28 साल की थी, और उसकी आंखों में मजबूरी की झलक थी।

रवि ने कहा, “यह भीख नहीं है। यह इंसानियत है। बैठिए और खाइए।” सुनीता ने आंसू भरी आंखों से देखा और अपनी बेटी के साथ बेंच पर बैठ गई। रवि ने और समोसे उन्हें दिए, और बच्ची की मुस्कान ने सबका दिल जीत लिया।

सुनीता ने बताया कि उसके पति की बीमारी से मौत हो गई थी, और अब वह अपनी बेटी के साथ यहां आई थी, लेकिन खाने को भी कुछ नहीं था। रवि ने सुनीता को अपने छोटे से तंबू में रहने की पेशकश की। सुनीता ने पहले तो मना किया, लेकिन रवि ने कहा, “तुम बोझ नहीं हो। भूख और मजबूरी बोझ हैं।”

कुछ दिनों बाद, सुनीता ने रवि से पूछा, “क्या मैं काम कर सकती हूं?” रवि ने उसे जलेबी बनाने का मौका दिया। धीरे-धीरे, उनकी दुकान पर जलेबी भी बिकने लगी। मोहल्ले में सुनीता की जलेबियों की चर्चा होने लगी। वह अब किसी बोझ की तरह नहीं, बल्कि एक जरूरी इंसान बन गई थी।

एक दिन, अनवी, सुनीता की बेटी, ने रवि से पूछा, “क्या आप मेरी मम्मी से शादी करोगे?” रवि ने मुस्कुराते हुए कहा, “ये तो बड़ा सवाल है!” अनवी ने कहा, “क्योंकि आप मम्मी को खुश रखते हो।” यह सुनकर रवि ने सुनीता को शादी के लिए प्रपोज किया। सुनीता ने खुशी-खुशी हां कर दी।

कुछ समय बाद, एक साधारण सी शादी हुई। अब मोहल्ले में सुनीता और रवि की दुकान चलने लगी, जहां जलेबी और समोसे नहीं, बल्कि इज्जत और प्यार बिकने लगे। अनवी अब स्कूल भी जाने लगी। जब कोई उससे पूछता, “तुम्हारे पापा कौन हैं?” तो वह मुस्कुराकर कहती, “जो मेरी मम्मी को हंसाते हैं।”

इस कहानी से हमें यह सिखने को मिलता है कि इंसानियत कभी खत्म नहीं होती। कभी-कभी हमें गिराया जाता है ताकि हम किसी ऐसे व्यक्ति का हाथ थाम सकें जो हमें समझता हो।

आपका विचार

अगर आप रवि की जगह होते, तो क्या आप सुनीता और अनवी को अपनाते? क्या आज के समाज में इंसानियत को रिश्तों से ऊपर रखा जा सकता है? अपने विचार कमेंट में जरूर साझा करें।

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