इज्जत का असली मतलब: रोहन की कहानी
रोहन, एक दुबला-पतला 12 साल का लड़का था। उसकी गोद में 7 महीने की छोटी बहन सिमरन थी, जो भूख से रो रही थी। उनका कमरा तंग और छोटा था, जिसमें उसकी बहन की मासूम आवाज गूंज रही थी।
तभी दरवाजा खुला और उसके पिता संजय शर्मा अंदर आए। वह शहर के जाने-माने व्यापारी थे, लेकिन घर में बिल्कुल साधारण रहते थे। उन्होंने अलमारी से एक पुरानी कमीज और घिसा हुआ पायजामा निकाला और रोहन को देते हुए बोले,
“यह पहन लो, बेटा।”

रोहन ने हैरानी से कपड़े देखे, “पापा, ये तो बहुत पुराने हैं। स्कूल में पहनकर जाऊंगा तो सब मजाक उड़ाएंगे।”
संजय मुस्कुराए, लेकिन उनकी आंखों में गंभीरता थी।
“आज स्कूल नहीं जाना है। आज की क्लास कहीं और होगी। आज तुम्हें वह सीखना है जो कोई किताब नहीं सिखाती।”
उन्होंने अपना एटीएम कार्ड निकाला और रोहन को दिया, “बैंक जाओ, इससे ₹1000 निकालना। सिमरन के लिए दूध और घर के लिए राशन ले आना।”
रोहन चौंक गया, “पापा, आप खुद क्यों नहीं जा रहे? मैं तो अभी छोटा हूं।”
संजय ने गहरी सांस ली, “बेटा, तुम्हें यह देखना जरूरी है कि दुनिया तब तुम्हारे साथ कैसा बर्ताव करती है जब उसे यह नहीं पता होता कि तुम कौन हो। और यह भी सीखना है कि लोग गरीब के साथ कैसा भेदभाव रखते हैं। याद रखना, गुस्सा मत करना।”
रोहन उलझन में था, लेकिन सिर झुका कर मान गया।
कुछ देर बाद, रोहन ने वही पुराने कपड़े पहन लिए, पैरों में घिसी चप्पलें, कंधे पर छोटा सा थैला, जिसमें पानी की बोतल और दो खाली दूध की बोतलें थीं।
बैंक घर से 2 किलोमीटर दूर था। तेज धूप में रोहन अपनी बहन को लिए चल पड़ा। रास्ते में किसी ने उस पर ध्यान नहीं दिया।
बैंक पहुंचने पर, सिक्योरिटी गार्ड ने उसे रोक लिया, “अरे लड़के, कहां जा रहा है? यह बैंक है, अमीरों का खाता होता है। तू तो भिखारी जैसा लग रहा है।”
रोहन डर गया, लेकिन हिम्मत कर बोला, “मैं एटीएम से पैसे निकालने आया हूं।”
गार्ड ने कार्ड देखकर उसे अंदर जाने दिया।
अंदर की दुनिया अलग थी—महंगे कपड़े, चमचमाते जूते, परफ्यूम की खुशबू।
रोहन काउंटर पर गया और बोला, “दीदी, ₹1000 निकालने हैं।”
कैशियर ने तंज कसते हुए कहा, “यह बैंक है, मुफ्त राशन की दुकान नहीं। यह कार्ड तुम्हारे पास कहां से आया?”
रोहन बोला, “यह मेरे पापा का कार्ड है।”
कैशियर ने कार्ड उलट-पलट कर देखा और हंस पड़ी, “यह तो खिलौनों जैसा कार्ड है। इसमें पैसे कहां से आएंगे?”
लाइन में खड़े लोगों ने मजाक उड़ाया, “अरे बच्चे को ₹2 दे दो, टॉफी खरीद लेगा।”
सिमरन का रोना और तेज हो गया।
रोहन ने कार्ड वापस लेना चाहा, लेकिन कैशियर ने हाथ पीछे खींच लिया, “यहां नाटक नहीं चलेगा।”
तभी ब्रांच मैनेजर मनोज कुमार बाहर आए।
कैशियर ने शिकायत की, “सर, यह बच्चा पैसे निकालना चाहता है। कपड़े मैले हैं, शक्ल भीख मांगने वालों जैसी है।”
मैनेजर ने रोहन को घूरा, “जानते हो, यह जुर्म है। यह कार्ड तुम्हारा नहीं है। सिक्योरिटी, इसे बाहर निकालो।”
गार्ड ने थोड़ी हमदर्दी दिखाते हुए रोहन को बाहर कर दिया।
बैंक के बाहर रोहन दरवाजे के पास जमीन पर बैठ गया, सिमरन उसकी छाती से लगी रो रही थी।
उसने एटीएम कार्ड को मुट्ठी में कस लिया।
पापा की बात याद आई—गुस्सा मत करना।
पर दिल में तूफान था।
कुछ लोग उसे भिखारी समझकर सिक्के देने लगे, लेकिन रोहन ने मना कर दिया।
तभी एक चमचमाती काली गाड़ी बैंक के सामने रुकी।
एक आदमी, काले सूट में, महंगी घड़ी पहने, बैंक की ओर बढ़ा।
जैसे ही उसने रोहन को देखा, वह रुक गया।
वह आदमी घुटनों के बल बैठ गया, “बेटा, सब ठीक है ना?”
रोहन ने रोते हुए कहा, “पापा, मैंने कुछ नहीं किया। बस पैसे निकालना चाहता था।”

वह आदमी उसके पिता संजय शर्मा थे।
उन्होंने बेटे को उठाया और बिना कुछ कहे बैंक के अंदर चले गए।
अंदर पूरा माहौल बदल गया।
संजय सीधे काउंटर तक पहुंचे, “मेरे बेटे को किसने बाहर निकाला?”
मैनेजर घबराया, “सर, हमें नहीं पता था यह आपका बेटा है।”
संजय ने मोबाइल पर अपना अकाउंट दिखाया—बैलेंस 12,200 करोड़।
सभी कर्मचारी स्तब्ध रह गए।
संजय ने कहा, “कपड़ों से इंसान की इज्जत तय करने वाले, आज मैं तुम्हें असली फैसला दिखाने आया हूं।
मेरे बेटे को तुमने सिर्फ उसके मैले कपड़े और रोती बहन देखकर झूठा ठहरा दिया।
असल में तुमने अपनी सोच का असली चेहरा दिखाया है—तंगदिली और घमंड।
आज मैं अपने सारे फंड्स इस ब्रांच से निकाल रहा हूं।”
मैनेजर घबराया, “सर, इतनी बड़ी रकम के लिए हमें हेड ऑफिस से इजाजत लेनी होगी।”
संजय बोले, “मेरे पास वक्त है, मगर तुम्हारे पास अपनी इज्जत बचाने का नहीं।”
उन्होंने हेड ऑफिस को कॉल किया, “एक घंटे के अंदर पूरी रकम यहां कैश में चाहिए। बाकी मेरे प्राइवेट अकाउंट में ट्रांसफर।”
बैंक का माहौल बदल गया।
स्टाफ के चेहरे पर डर था।
ग्राहकों की नजरें झुकी थीं।
लाइन में खड़े एक युवक ने पूरा दृश्य रिकॉर्ड कर लिया और सोशल मीडिया पर डाल दिया।
वीडियो वायरल हो गया।
न्यूज़ चैनल्स पर हेडलाइन आई—”बच्चे को भिखारी समझकर निकाला, पिता ने 12,200 करोड़ का अकाउंट बंद कर दिया।”
शहर के बड़े क्लाइंट्स ने भी अपने अकाउंट बंद करने की अर्जी दे दी।
बैंकिंग सेक्टर में भूचाल आ गया।
हर जगह चर्चा थी—इज्जत पैसों से नहीं, इंसानियत से मिलती है।
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