नीता और शिव की कहानी – सेंट स्टीफन कॉलेज, दिल्ली

दिल्ली के वसंत विहार में स्थित प्रतिष्ठित सेंट स्टीफन कॉलेज हमेशा रंग-बिरंगी गाड़ियों और अमीरी के प्रदर्शन से भरा रहता था। यहां हर दिन फैशन शो जैसा माहौल होता था। इसी चकाचौंध के बीच एक सुबह सफेद BMW से नीता अग्रवाल उतरी। नीता के पिता, राजेश अग्रवाल, दिल्ली के बड़े व्यापारी थे। उनकी कंपनी ‘अग्रवाल इंडस्ट्रीज’ पूरे उत्तर भारत में फैली थी। नीता की खूबसूरती और स्टाइल कॉलेज में चर्चा का विषय था। लड़कियां उसकी नकल करतीं, लड़के उसका ध्यान आकर्षित करने की कोशिश में लगे रहते।

उसी दिन कॉलेज के मुख्य द्वार से एक और छात्र दाखिल हुआ—शिवकुमार। सफेद कुर्ता, नीली जींस, पुराना बैग, लेकिन चेहरे पर अद्भुत शांति और आंखों में गहरी गंभीरता। पहली क्लास में जब प्रोफेसर ने ग्रुप प्रोजेक्ट के लिए टीम बनाने को कहा, संयोग से नीता और शिव एक ही टीम में आ गए।

नीता ने सहेली से कहा, “ऐसे लोग भी यहां पढ़ते हैं? लगता है अब गरीब बच्चों को भी दाखिला मिलने लगा।” शिव ने शांत स्वर में कहा, “प्रोजेक्ट की समय सीमा कम है, व्यर्थ की बातों में समय नष्ट नहीं करना चाहिए।” उसका संयमित उत्तर नीता को अजीब लगा। वह तो हमेशा देखती थी कि लोग उसकी बात पर झुक जाते हैं, लेकिन शिव बिल्कुल प्रभावित नहीं था। यहीं से नीता और शिव के बीच मूक लड़ाई शुरू हुई।

नीता ने ठान लिया कि वह इस साधारण शिव को उसकी औकात दिखाकर रहेगी। हर मौके पर वह शिव की सादगी पर ताने कसती। एक दिन लाइब्रेरी में जब शिव किताब पढ़ रहा था, नीता ने जोर से कहा, “अभी भी किताब से पढ़ाई करते हो? टेबलेट नहीं खरीद सकते?” पूरी लाइब्रेरी में उसकी आवाज गूंज गई। शिव ने किताब से आंखें नहीं हटाई, मुस्कराकर बोला, “ज्ञान प्राप्त करने का माध्यम महत्वपूर्ण नहीं, उसकी कीमत नहीं।” नीता कुछ पलों के लिए मौन हो गई।

अगले दिन कैंटीन में शिव के साधारण खाने को देखकर नीता बोली, “घर से टिफिन लाते हो? यहां तो इटालियन-चाइनीज का जमाना है।” शिव ने शांति से उत्तर दिया, “भूख शरीर की होती है, दिखावे की नहीं। मैं पेट भरने के लिए खाता हूं, Instagram पर फोटो डालने के लिए नहीं।” कुछ छात्रों ने सर हिलाया। नीता परेशान हो गई।

प्रोजेक्ट की बैठकों में नीता देखती कि शिव कितना स्थिर रहता है। उसकी बातें कम होतीं, लेकिन सटीक और बुद्धिमत्तापूर्ण। धीरे-धीरे उसे एहसास हुआ कि जिसे वह पिछड़ा समझती थी, उसकी सोच उससे कहीं स्पष्ट थी।

कुछ सप्ताह बाद कॉलेज में वार्षिक महोत्सव की तैयारियां शुरू हुईं। नीता मुख्य आकर्षण थी—डिजाइनर पोशाक, लाखों के गहने, परफेक्ट मेकअप। लेकिन उसका ध्यान बार-बार शिव की तरफ भटकता। शिव मंच के पीछे तकनीकी टीम के साथ काम कर रहा था—साउंड चेक, लाइट्स ठीक करना, सबको निर्देश देना। उसका चेहरा आत्मविश्वास से भरा था।

नीता ने मंच के पीछे जाकर कहा, “साहब, मंच पर आने का साहस नहीं? बस पीछे छिपकर काम करना आता है?” शिव मुस्कुराकर बोला, “हर व्यक्ति का अपना मंच होता है। कोई तालियों के बीच खड़ा होता है, कोई उन तालियों के पीछे की मेहनत में।” उसका जवाब दिल के आर-पार चला गया।

महोत्सव का मुख्य आकर्षण था चैरिटी नीलामी। नीता को यकीन था कि उसके पिता सबसे महंगी पेंटिंग खरीदेंगे। जब बोली करोड़ों में पहुंची, अचानक आवाज आई—“10 करोड़!” पूरा हॉल सन्नाटे में डूब गया। जिसने बोली लगाई, वो धीरे-धीरे मंच की ओर बढ़ा—चेहरा सामने आया तो सब दंग रह गए, वो शिव था। माइक पर घोषणा हुई, “मिलिए शिवकुमार से, भारत की सबसे बड़ी IT कंपनी ‘शिव टेक सॉल्यूशंस’ के संस्थापक और CEO।” नीता के होश उड़ गए। वह शिव, जिसके कपड़े देखकर ताने कसती थी, वास्तव में अरबपति तकनीकी प्रतिभा था जिसने अपनी पहचान छुपाकर दाखिला लिया था।

पूरे कॉलेज में हलचल मच गई। लड़कियां उसके आसपास मंडराने लगीं, लड़के दोस्ती करने को आतुर हो गए। लेकिन नीता के हाथ से कुछ कीमती फिसल चुका था। अब हर कोने पर शिवकुमार का नाम गूंज रहा था। जिसे अनदेखा करते थे, अब उसी की भीड़ लगी थी। लेकिन नीता चुपचाप खुद से लड़ रही थी। हर ताना, हर मजाक अब उसके ज़हन में गूंज रहा था।

कई दिन बाद उसने हिम्मत जुटाकर लाइब्रेरी में शिव से कहा, “मुझे माफ कर दो। मैंने तुम्हें गलत समझा, बहुत नीचा दिखाने की कोशिश की।” शिव मुस्कुरा कर बोला, “तुमने मुझे समझने की कोशिश ही नहीं की, मैं नाराज हुआ ही नहीं। मैं जानता था, तुम जैसी दिखती हो वैसी नहीं हो।” नीता की आंखें भर आईं। पहली बार उसने खुद को हल्का महसूस किया।

इसके बाद सब कुछ बदल गया। नीता अब शिव के साथ बैठती, उसकी बातें सुनती। एक दिन हंसते हुए शिव ने कहा, “पहले वाली नीता होती तो मुझे आदेश दे रही होती।” नीता मुस्कुराई, “पहले वाली नीता को तुमने ठीक कर दिया। अब जो हूं, वो असली मैं हूं।”

कॉलेज में नया बदलाव आया था। नीता अब मेहनत और समझदारी की मिसाल बन चुकी थी। लेकिन उसका ध्यान बस शिव पर था। एक दिन बिजनेस इनोवेशन चैलेंज की घोषणा हुई। विजेता को ‘शिव टेक’ में इंटर्नशिप मिलना था। नीता का उद्देश्य साफ था—दिखाना कि वह सिर्फ अमीर बाप की बेटी नहीं। उसने दिन-रात मेहनत की। एक प्लेटफार्म बनाया जो ग्रामीण महिलाओं को शहरी ग्राहकों से जोड़ता था।

प्रेजेंटेशन के दिन नीता के चेहरे पर आत्मविश्वास था। “यह सिर्फ प्रतियोगिता नहीं, मेरा सपना है। जहां कारीगर महिलाओं के पास हुनर है, वहां बाजार भी हो।” तालियां गूंजी। शिव की आंखों में गर्व था। तभी अनुष्का मेहता ने आरोप लगाया, “यह आइडिया मेरा था, नीता ने कॉपी किया है।” नीता स्तब्ध रह गई। शिव खड़ा हुआ, सबूतों की जांच की और घोषणा की, “सच दिल से निकलता है। नीता का प्रोजेक्ट उसकी सोच है। विजेता—नीता अग्रवाल।”

उस शाम गार्डन में नीता ने कहा, “शिव, तुमने मेरी सोच बदल दी। मैं तुमसे प्रेम करती हूं।” शिव ने उसका हाथ थाम लिया, “मैं भी तुमसे उतना ही प्रेम करता हूं।” लेकिन खुशी के इस पल में तूफान आने वाला था।

घर पहुंचकर नीता ने देखा—पिता राजेश अग्रवाल गुस्से में थे। साथ में व्यापारी सुरेश गुप्ता बैठे थे। “यह क्या सुन रहा हूं? तू किसी गरीब लड़के के चक्कर में फंस गई?” पिता गरजे। “पापा, शिव अच्छा इंसान है।” “अच्छा इंसान?” राजेश हंसे, “उसकी औकात क्या है हमारे सामने? हमारे पास हजारों करोड़ की संपत्ति है।” सुरेश बोले, “आपकी बेटी का रिश्ता मेरे बेटे आदित्य से हो जाए, वह अमेरिका से डिग्री लेकर आया है।” “मैं आदित्य से शादी नहीं करूंगी, सिर्फ शिव से प्रेम करती हूं।” राजेश का चेहरा कठोर हो गया। “अगर तूने शिव से मिलना-जुलना बंद नहीं किया तो मैं उसे खत्म कर दूंगा। तीन दिन का समय है।”

उस रात नीता की आंखों में नींद नहीं आई। अगले दिन उसने शिव को सब बताया। “मैं तुम्हारे पिता से मिलूंगा।” शिव ने कहा। “नहीं, आप पापा को नहीं जानते।” “प्रेम के लिए हर खतरा उठाना पड़ता है।”

शाम को शिव ‘अग्रवाल हाउस’ पहुंचा। राजेश ने घृणा से देखा, “तो तुम हो शिवकुमार?” “अंकल जी, मैं नीता से सच्चा प्रेम करता हूं।” “तेरी पूरी कंपनी भी मेरी बेटी के एक साल के खर्च के बराबर नहीं।” “पैसा सब कुछ नहीं होता।” “बकवास! मेरी बेटी से दूर रह।” “मैं नीता से दूर नहीं रह सकता।”

अगले दिन से शिव की कंपनी पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा—टैक्स की जांच, लाइसेंस की समस्याएं, बैंक लोन में अड़चनें। शिव समझ गया यह राजेश अग्रवाल की करतूत है। लेकिन वह हार नहीं माना। दिन-रात मेहनत करके अपनी कंपनी बचाने की कोशिश करता रहा। जब नीता को पता चला तो वो टूट गई। उसके प्रेम के कारण शिव को तकलीफ हो रही थी। स्थिति और बिगड़ी जब मुख्य ग्राहकों ने कॉन्ट्रैक्ट रद्द कर दिए। कंपनी संकट में थी।

एक दिन नीता ने कठिन निर्णय लिया। पिता के पास जाकर बोली, “मैं आदित्य से शादी करने को तैयार हूं, बस शिव को परेशान करना बंद कर दीजिए।” राजेश के चेहरे पर जीत की मुस्कान आ गई। “यही तो चाहता था।”

अगले दिन जब नीता ने शिव को बताया तो वह शांत रहा। “अगर यही तुम्हारा निर्णय है तो मान लूंगा। लेकिन याद रखना, सच्चा प्रेम कभी नहीं मरता।” नीता का गला भर आया।

एक सप्ताह बाद नीता और आदित्य की सगाई का भव्य आयोजन था। नीता सुंदर लहंगे में सजी थी, लेकिन आंखों में खुशी नहीं थी। आदित्य अच्छा लड़का था, लेकिन नीता का दिल शिव के पास था। सगाई की रस्में शुरू होने वाली थीं कि अचानक मुख्य दरवाजे से कोई आया। सभी की नजरें मुड़ी—यह शिव था, शानदार सूट में। राजेश गुस्से से भड़के, “इसकी हिम्मत कैसे हुई?” शिव बेखौफ आगे बढ़ा। माइक पर पहुंचकर बोला, “मुझे कुछ कहना है।” शिव ने जेब से कागज निकाले, “मैं राजेश अग्रवाल जी को कुछ दिखाना चाहता हूं। यह फोर्ब्स की रिपोर्ट है—भारत के सबसे अमीर लोगों की सूची। राजेश का चेहरा पीला पड़ गया। इसमें 47वें नंबर पर राजेश अग्रवाल है और तीसरे नंबर पर शिवकुमार। मेरी संपत्ति उनसे 15 गुना अधिक है।”

पूरे हॉल में हलचल मच गई। राजेश हैरान थे। “यह कैसे संभव है?” शिव मुस्कुराया, “मैंने सिर्फ शिव टेक नहीं बनाई, पिछले 5 सालों में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई कंपनियां खरीदी हैं। अमेरिका, यूरोप, जापान में मेरे ऑफिस हैं। आपकी दी गई परेशानियां सिर्फ मेरी एक छोटी शाखा को प्रभावित कर सकीं।”

राजेश की बोलती बंद हो गई। “लेकिन पैसा मायने नहीं रखता। मैं सिर्फ यह कहने आया हूं कि नीता से सच्चा प्रेम करता हूं। अगर वह खुश है तो उसकी खुशी के लिए दूर भी जा सकता हूं।” नीता अब बर्दाश्त नहीं कर सकी। उसने सगाई की अंगूठी उतारी और आदित्य के हाथ में रख दी। “माफ करना, लेकिन मैं तुमसे शादी नहीं कर सकती। मेरा दिल किसी और के पास है।” वो भागकर शिव के गले लग गई। “मैं तुम्हें छोड़कर नहीं जा सकती, चाहे पूरी दुनिया विरोध करे।”

पूरा हॉल तालियों से गूंज उठा। कई लोगों की आंखें भर आईं। आदित्य ने कहा, “अंकल जी, सच्चे प्रेम के आगे सब छोटा है। मैं नीता की खुशी चाहता हूं।” राजेश कुछ देर चुप रहे, फिर धीरे से बोले, “शायद मैं गलत था। मैंने सिर्फ पैसे को देखा, इंसानियत को नहीं।”

वे शिव के पास आए, “बेटा, क्या तुम मुझे माफ कर सकते हो?” शिव ने उनके पैर छुए, “अंकल जी, आप मेरे होने वाले पिता हैं। मैं आपका सम्मान करता हूं।” राजेश की आंखें भर आईं। उन्होंने शिव को गले लगाया।

छह महीने बाद वसंत के मौसम में नीता और शिव की शादी हुई। एक साल बाद उन्होंने मिलकर चैरिटी फाउंडेशन शुरू किया, जो गरीब बच्चों की शिक्षा के लिए काम करता है। नीता का ऐप भी सफल हो गया और हजारों ग्रामीण महिलाओं की जिंदगी बदल गई।

आज जब नीता बालकनी में सूर्यास्त देखती है, शिव पास आकर कहता है, “क्या सोच रही हो?” “यही कि कभी मैं कितनी घमंडी थी। तुमने सिखाया कि असली खुशी सच्चाई में है।” शिव उसका हाथ थामता है, “हमने एक-दूसरे से सीखा है, यही तो प्रेम है।” दूर से उनके बेटे आर्यन की आवाज आती है, जो दादी से कहानी सुनने की जिद कर रहा है। राजेश अब अपना समय परिवार और सामाजिक कार्यों में बिताते हैं।

नीता और शिव की प्रेम कहानी आज भी दिल्ली में मशहूर है—कैसे घमंडी लड़की का दिल बदला, कैसे सच्चे प्रेम ने बाधाओं को पार किया। कॉलेज के बच्चे आज भी उनकी मिसाल देते हैं। वह बेंच जहां नी