रास्ते में मिला मोबाइल लौटने गया था अजनबी लड़का, विधवा महिला ने जो किया, इंसानियत रो पड़ी, फिर…
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एक खोया हुआ रिश्ता
भाग 1: एक सुनसान सड़क पर
कहते हैं कभी-कभी एक छोटी सी चीज जिंदगी की सबसे बड़ी कहानी बन जाती है। एक सुनसान सड़क पर मिला एक मोबाइल जो दिखने में तो बस एक चीज थी। लेकिन उसके अंदर छिपा था किसी का अतीत, किसी का दर्द और एक अधूरी दास्तान। शुरुआत तो बस एक गिरे हुए मोबाइल से हुई थी। पर आगे जो हुआ वह इंसानियत, इत्तेफाक और तकदीर तीनों पर यकीन दिला देगा। आखिर उस मोबाइल में क्या था?
उज्जैन की ठंडी सुबह सर्द हवा गेहूं की बालियों को धीरे-धीरे सहला रही थी। दूर तक पसरा आसमान गुलाबी था। जैसे रात ने अपनी आखिरी चादर मोड़ कर रख दी हो। अर्जुन ठाकुर हल्की ऊनी शॉल कंधे पर डाले संतरे के बगीचे से होकर खेत की मेड पर आ खड़ा हुआ। मिट्टी गीली थी। उंगलियां छूते ही एक जानी पहचानी गर्माहट मिली। वही जो उसे हर सुबह संभाल लेती है। पर दिल के भीतर खालीपन की खुरदरी दीवारें अब भी जस की तस थीं।
एक साल पहले तक इसी सुबह के रंग में उसकी पत्नी की हंसी घुलती थी। आज हंसी की जगह खामोशी थी और उसी खामोशी में वह जीना सीख रहा था। मेड से उतरते हुए उसकी नजर सड़क के किनारे किसी चीज पर अटक गई। टूटी स्क्रीन वाला एक स्मार्टफोन, धूल और ओस से भीगा हुआ। उसने झुककर उठाया। स्क्रीन में रोशनी झिलमिलाई। लॉक स्क्रीन पर एक मुस्कुराती महिला। माथे पर हल्की बिंदी। साथ में एक पुरुष और उनके बीच सात-आठ साल का बच्चा। तीनों की आंखों में ऐसी चमक, जैसे जिंदगी ने अभी-अभी कोई बड़ी खुशखबरी सुनाई हो।
अर्जुन अनायास ठिटक गया। उंगलियों में धड़कन उतर आई। अजनबियों की मुस्कान भी कभी-कभी अपने बरसों पुराने घावों को जगा देती है। उसने मोबाइल उठाकर जेब में रखा। मन में एक क्षण को लालच भी आया। वेद के लिए ठीक रहेगा। या बहन को दे दूं। वह महीनों से कह रही है। पर तुरंत ही अपनी ही सोच पर उसे झिझक हुई। मालिक मिलेगा तो लौटा दूंगा। उसने खुद से कहा। फिर भी मोबाइल बंद करके घर ले आया।
दो-चार दिन रुक जाता हूं। मन ने धीमे से बहाना बनाया। जो खोया है, वह शायद दूसरा खरीद ही लेगा। दिन गुजरते रहे। खेत, मवेशी, बाजार के छोटे हिसाब सब चलता रहा। रात को जब वेद पढ़ते-पढ़ते सो जाता, अर्जुन उस फोन की ओर देखता और फिर नजर चुरा लेता।
भाग 2: एक नया मोड़
15वें दिन उसने जैसे अपने ही दिल के दरवाजे पर दस्तक दी। बस आज देखता हूं किसका है। फोन चार्ज पर लगाया। स्क्रीन जगी, लॉक नहीं था। होम स्क्रीन खुलते ही तस्वीरों की एक लंबी नदी सामने आ गई। पहले कुछ फोटो किसी शादी का हल्का सा शोर। गुलाबी साड़ी में वही महिला कानों में छोटे मोती, वही बच्चा ताली बजाते हुए। अगली तस्वीर पुरुष की हंसी, परिवार के घेरे में और फिर अचानक एक फ्रेम अटक गया। सफेद चादर, फूल, भीड़ में सुबकती आवाजें। उसी पुरुष का निश्चल चेहरा अब मुस्कान नहीं थी।
अर्जुन की सांस अटक गई। उसने अगले वीडियो का प्ले बटन दबाया। कैमरे के दूसरी तरफ वही महिला, बिखरे बाल, नम आंखें, टूटी आवाज। “आदित्य, पापा को नमस्ते बोलो।” बच्चा सिसकते हुए कैमरे की तरफ हाथ जोड़ता है। “पापा जल्दी घर आओ।” अर्जुन की उंगलियां कापी। कमरे की हवा भारी हो गई। उस आवाज में उसे अपनी बिछड़ी पत्नी की परछाई दिखी।
वो रात याद आई जब भागती सांसों के साथ उसने पत्नी का हाथ थामा था। और सुबह होने से पहले ही शब्द सूख गए थे। स्क्रीन पर अचानक एक और वीडियो चला। दीवार पर कैलेंडर लाल घेरा “12 जनवरी 2024” आवाज फुसफुसाई, “आज एक साल हो गया मनीष। आदित्य रात भर रोया। तुम सुन रहे हो ना?”
अर्जुन ने फोन की गैलरी बंद कर दी। एक साथ अपराध बोध और अपनापन भर आया। मैंने इसे इतने दिन बंद क्यों रखा? उसने माथे पर हाथ फेरा जैसे खुद को डांटना चाहता हो। कॉल और लॉक खोला। 2530 मिस कॉल्स एक ही नंबर। बार-बार उसके भीतर का आदमी चेत गया। यह फोन किसी जेवर से ज्यादा कीमती है। किसी की यादों का घर है।
उसने सांस संभाली और वही नंबर डायल कर दिया। दूसरी ही घंटी में एक कांपती आवाज उभरी। “भैया, मेरा फोन आपके पास है क्या? प्लीज दे दीजिए। मेरा बच्चा खाना नहीं खाता। उसमें पापा की वीडियो देखे बिना रोने लगता है।”
अर्जुन के शब्द आंसुओं में घुल गए। उसने कुछ क्षण आंखें बंद किए रखी। फिर बहुत धीमे बोला, “हां बहन, फोन मेरे पास है। कल सुबह उज्जैन से देवास रोड आ रहा हूं। आप जहां कहेंगी, वही दे दूंगा।”
दूसरी तरफ हल्की सी हिचकी। फिर आभार की थरथराती फुसफुसाहट। “भगवान आपका भला करें।”
भाग 3: एक नई यात्रा की शुरुआत
कॉल करते ही वह कुर्सी पर बैठ गया। मन ने धीरे से पूछा, क्या सिर्फ लौटा देना काफी होगा? अर्जुन ने वेद की तरफ देखा। बच्चा निश्चिंत होकर सो रहा था। किताब अब भी सीने पर खुली पड़ी थी। उसने किताब हटाकर कंबल ठीक किया। बालों पर हाथ फेरा। इस बच्चे के पास मैं हूं। उसने मन ही मन कहा। पर उस बच्चे आदित्य के पास कौन है?
रात गहरी हुई। झोपड़ी की छत पर ओस की हल्की टनटन सुनाई दे रही थी। अर्जुन उठा पेपरों का पुराना लिफाफा निकाला। उसमें थोड़ी बचत रखी थी। उसे नया फोन भी देना होगा। उसके भीतर से एक आवाज आई। उसकी यादें सुरक्षित रहे और बच्चे की हंसी भी।
सुबह की हल्की धुंध में जब शहर अभी जाग नहीं रहा था। अर्जुन ने अपनी पुरानी बाइक स्टार्ट की। वे दरवाजे पर खड़ा बोला, “बाबा, आप जल्दी आ जाना।” अर्जुन मुस्कुराया, “ज़रूर। और हां, दूध गर्म कर लेना। ठंड है।”
सड़क खाली थी। हवा चुभती हुई। उज्जैन की सीमाएं पीछे छूटती गईं। देवास रोड की झलक आगे फैलती गई। हर मोड़ पर उसे उस बच्चे का चेहरा दिखता। आंखों में उम्मीद और खोए हुए पिता की परछाई। अर्जुन के कानों में वही आवाज गूंजती। “मनीष, वापस आओ।” उसने बाइक थोड़ी तेज कर दी। जैसे किसी अनदेखे वादे को निभाने की जल्दबाजी हो। मन में एक दृढ़ता उगाई। आज सिर्फ एक फोन नहीं लौटेगा। किसी घर की रोशनी वापस पहुंचेगी।
भाग 4: एक नया रिश्ता
देवास रोड के किनारे सूरज अपनी हल्की किरणें बिखेर रहा था। धूल में भी चमक थी। जैसे हर चीज बस थोड़ी उम्मीद तलाश रही हो। अर्जुन की बाइक धीरे-धीरे चल रही थी। उसके मन में बेचैनी और राहत दोनों का संगम था। उसने पीछे बांधा छोटा सा डिब्बा बार-बार देखा। उसमें नया फोन रखा था।
किसी के दर्द को मिटाने के लिए अगर कुछ छोटा सा किया जा सके तो शायद यही असली पूजा है। उसने मन ही मन कहा। करीब 35 कि.मी. के बाद वो एक तंग गली में पहुंचा। दीवारों पर उखड़ा हुआ रंग, छोटे-छोटे मकान और बच्चों की खिलखिलाहट। लेकिन कहीं ना कहीं उस माहौल में एक थकान थी।
सामने एक टूटा हुआ नीला दरवाजा दिखाई दिया। दरवाजे के पास बैठा एक छोटा लड़का मिट्टी से कुछ बना रहा था। वह वही बच्चा था जिसे अर्जुन ने तस्वीरों में देखा था। वही मासूम चेहरा लेकिन अब मुस्कान की जगह खालीपन था।
“आदित्य,” अर्जुन ने धीरे से पुकारा। बच्चे ने चौंक कर ऊपर देखा। फिर अंदर भागा। “मम्मी, कोई अंकल आए हैं।” दरवाजे से माधवी निकली। एक सादी साड़ी, बाल हल्के बिखरे, चेहरे पर थकान लेकिन आंखों में संजीवनी सी गहराई। उसे देखते ही अर्जुन की सांस थम गई। कुछ पल को वो बोल ही नहीं पाया।
वो वही चेहरा था जो अब तक तस्वीरों और वीडियो में आंसुओं में भीगा हुआ दिखता था। अब सामने खड़ी थी। असली, जिंदा, टूटी हुई लेकिन गरिमा से भरी। “आप अर्जुन भैया?” उसने धीमे से पूछा। अर्जुन ने सिर हिलाया और फोन उसकी तरफ बढ़ाया। “आपका मोबाइल।”
माधवी की आंखें नम हो गईं। उसने दोनों हाथों से फोन पकड़ा जैसे किसी अपने की राखी पकड़ रही हो। कुछ पल तक वो कुछ नहीं बोली। बस फोन को सीने से लगा लिया। फिर कांपती आवाज में बोली, “भैया, मुझे लगा था अब यह कभी नहीं मिलेगा। मेरे पति के आखिरी वीडियो, मेरे बेटे की तस्वीरें सब इसमें हैं। मैंने हर दिन भगवान से यही दुआ की थी कि किसी अच्छे इंसान को मिले।”
अर्जुन ने बस इतना कहा, “आपका फोन सही सलामत है। मैंने कुछ नहीं छेड़ा।” इतना कहकर वो मुड़ा ही था कि आदित्य उसके पास आ गया। उसकी आंखों में मासूम उत्साह था। “अंकल, यह मेरा फोन है ना? अब पापा की आवाज सुन सकता हूं।”
अर्जुन ने मुस्कुराते हुए सिर हिलाया। “हां बेटा, अब रो सुनना।” माधवी ने दोनों को गले से लगा लिया। उसके आंसू अब दुख के नहीं थे। यह राहत के आंसू थे। नई सुबह के संकेत थे।
भाग 5: एक नई उम्मीद
थाने से निकलते वक्त इंस्पेक्टर ने अर्जुन से कहा, “तुमने सही किया। समाज तुम्हें शायद ना समझे। लेकिन इतिहास ऐसे लोगों को याद रखता है।” उस दिन से अर्जुन और माधवी एक ही छत के नीचे रहने लगे। दोनों खेत संभालते, बच्चों को स्कूल भेजते और शाम को साथ बैठकर पुराने किस्से सुनते।
धीरे-धीरे गांव की बातें भी बंद हो गईं। एक साल बाद अर्जुन ने गांव में एक छोटा स्कूल शुरू किया। माधवी ग्राम शिक्षा दीवार पर लिखा था। “जिस बच्चे को मुस्कुराना सिखाओ वही तुम्हारा भगवान बन जाता है।” बच्चे आते, खेलते, हंसते और हर दिन उस मिट्टी में नई जिंदगी की खुशबू घुलती।
शाम को जब सूरज ढलता, अर्जुन और माधवी खेत की मेड पर बैठते। हवा में संतरे की महक घुली होती। अर्जुन ने धीरे से कहा, “कभी-कभी खोई चीजें हमें वह दिल लौटा जाती हैं जो किस्मत छीन ले गई थी।”
माधवी मुस्कुराई। उसकी आंखों में सूरज की परछाई थी। “हां अर्जुन, शायद भगवान ने हमें इसलिए मिलाया ताकि हम दोनों किसी और की उम्मीद बन सकें।”
भाग 6: एक नया अध्याय
और उस साझ में जब दोनों बच्चे हंसते हुए खेल रहे थे। अर्जुन ने आसमान की तरफ देखा। जैसे किसी अदृश्य आत्मा को धन्यवाद दे रहा हो। अब जिंदगी ना विधवा थी ना अधूरी, वह पूरी थी। प्रेम, सम्मान और इंसानियत से भरी हुई।
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फिर मिलेंगे एक नई भावनात्मक कहानी के साथ। तब तक खुश रहिए, स्वस्थ रहिए और अपने मां-बाप को समय दीजिए। जय हिंद!
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