कहानी: गुमनाम वारिस

रजन मल्होत्रा, एक 82 वर्षीय अरबपति, अपने जीवन के अंतिम पड़ाव पर खड़े थे। उनकी हवेली में आज एक ऐतिहासिक दिन था—वसीयतनामे पर हस्ताक्षर होने वाले थे। सारी संपत्ति उनकी बेटी पर्वती के पति, विक्रम द्वारा संचालित एनजीओ को दान की जानी थी। परिवार, वकील, पत्रकार और समाजसेवी सब मौजूद थे। रजन के कांपते हाथों में कलम थी, लेकिन तभी एक धीमी आवाज ने सबका ध्यान अपनी ओर खींच लिया।

वह आवाज लक्ष्मी की थी, जो सालों से मल्होत्रा हवेली में सफाई का काम करती थी। उसने कहा, “यह वसीयतनामा आपके असली बेटे को इतिहास से मिटा देगा।” सभी चौंक गए। पर्वती ने उसे चुप कराने की कोशिश की, लेकिन लक्ष्मी ने अपनी जेब से एक पुराना रुमाल और सोने की चैन निकाली—मल्होत्रा परिवार का प्रतीक। उसने बताया कि 1979 में रजन और नौकरानी पुष्पा का बेटा हुआ था, जिसे सबने मृत समझ लिया था। लेकिन वह जिंदा है, वाराणसी में भीख मांगता है।

रजन की दुनिया हिल गई। लक्ष्मी ने एक जन्म प्रमाण पत्र और पुष्पा की डायरी दी, जिसमें सब सच लिखा था। रजन ने फैसला किया कि वह वाराणसी जाएगा, अपने बेटे को खोजेगा। लक्ष्मी उनके साथ गई। ट्रेन में उन्हें एक अनजान संदेश मिला—”आप देर कर रहे हैं, मल्होत्रा साहब।” किसी ने उनका पीछा किया। वाराणसी पहुंचकर वे आश्रम गए, जहां अरुण पुष्पराज नामक युवक रहता था। लेकिन वह गायब था। पता चला, वह दिल्ली गया है—विक्रम की एनजीओ में स्वयंसेवक के रूप में।

दिल्ली में अरुण ने अपनी पहचान छिपाकर काम शुरू किया। हवेली में उसकी मुलाकात पर्वती और विक्रम से हुई। पर्वती को शक हुआ, विक्रम डर गया। अरुण ने हवेली में बच्चों की दुर्दशा देखी, एनजीओ की असलियत जानी—बच्चों की तस्करी, फर्जी कंपनियां, रिश्वत। उसने सबूत इकट्ठा किए।

पर्वती को सच पता चला—अरुण उसका भाई है। दोनों ने मिलकर विक्रम की साजिश उजागर करने का फैसला किया। रजन वापस लौटे, बेटे से मिले। भावनाओं से भरा मिलन हुआ। रजन ने वसीयतनामा बदलने का फैसला किया, अरुण को वारिस घोषित किया। उसी समय विक्रम ने रजन को मानसिक रूप से अयोग्य साबित करने की कोशिश की। मीडिया में अफवाहें फैल गईं। अरुण पर चोरी का आरोप लगा, पुलिस बुला ली गई।

रजन ने सबको कोलकाता के काली मंदिर बुलाया। वहां उन्होंने सार्वजनिक रूप से घोषणा की—अरुण उनका असली बेटा और वारिस है। लक्ष्मी और मंदिर के पुजारी ने पुष्पा की कहानी और अरुण की पहचान की पुष्टि की। विक्रम ने पागलपन का प्रमाण पत्र दिखाया, लेकिन डीएनए टेस्ट, जन्म प्रमाण पत्र और मंदिर की पोथी ने सच्चाई साबित कर दी।

वसीयतनामे पर हस्ताक्षर हो गए। अरुण ने कहा, “मैं संपत्ति नहीं, अपनी पहचान चाहता हूं।” विक्रम गिरफ्तार हुआ, एनजीओ घोटाले का पर्दाफाश हुआ। अरुण ने संपत्ति का एक हिस्सा बच्चों की शिक्षा और कल्याण के लिए ट्रस्ट में डाल दिया। पर्वती ने विक्रम से तलाक लिया और भाई के साथ नया जीवन शुरू किया। रजन ने पुष्पा की डायरी अरुण को दी। परिवार फिर से जुड़ गया।

कुछ महीनों बाद रजन peacefully दुनिया छोड़ गए। अरुण ने अपने माता-पिता की राख गंगा में बहाई। वाराणसी में आश्रम नया बन गया, बच्चों को शिक्षा मिली। अरुण ने अपनी मां के नाम पर स्कूल खोला। विक्रम जेल में था, लेकिन उसकी धमकी का अरुण पर कोई असर नहीं हुआ। अरुण ने सीखा—सच्चाई ही सबसे बड़ी ताकत है, और असली धन रिश्तों में है।

आपके जीवन में भी कोई ऐसी सच्चाई है जिसका सामना करना मुश्किल है? याद रखिए, सच्चाई देर से ही सही, सामने आकर सब कुछ बदल देती है।

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