छत की छाया
भाग 1: बचपन की यादें
लखनऊ के पुराने मोहल्ले की तंग गलियों में एक छोटा सा पुश्तैनी मकान था, जिसकी दीवारों पर वक्त की धूल जमी थी, लेकिन उसमें बसी खुशियाँ हमेशा चमकती रहती थीं। इसी मकान में प्रेम और पूजा का बचपन बीता। प्रेम बड़ा भाई था, पूजा छोटी बहन।
माता-पिता की छाया में दोनों भाई-बहन ने हँसते-खेलते दिन बिताए। माँ के हाथ की बनी रोटियाँ, पिता की कहानियाँ, और पूजा की शरारतें—यह सब उनके घर की दीवारों में बस गया था।
लेकिन तीन साल पहले एक सड़क हादसे में उनके माता-पिता की मौत हो गई। उस दिन के बाद से प्रेम ने ही पूजा के लिए माँ और पिता दोनों की भूमिका निभाई।
प्रेम ने अपनी पढ़ाई छोड़ दी, ताकि पूजा की पढ़ाई में कोई रुकावट न आए। उसने एक प्रिंटिंग प्रेस में नौकरी शुरू की और हर महीने की तनख्वाह से पूजा की कॉलेज फीस, किताबें और घर का खर्च चलाने लगा।
हर सुबह प्रेम पूजा के लिए नाश्ता बनाता, पूजा अपने भाई के लिए खाना तैयार रखती। उनके बीच की दुनिया बस एक-दूसरे में ही थी।
घर में तंगी थी, लेकिन प्यार की कोई कमी नहीं थी। प्रेम का एक ही सपना था—अपनी बहन पूजा की शादी इतनी धूमधाम से करे कि स्वर्ग में बैठे माता-पिता की आत्मा को भी शांति मिले।
भाग 2: जिम्मेदारियों का बोझ
समय बीतता गया। पूजा ने कॉलेज की पढ़ाई पूरी कर ली। वह सुंदर थी, संस्कारी थी, और उसका स्वभाव भी बहुत अच्छा था।
जल्द ही उसके लिए एक अच्छे घर से रिश्ता आया। लड़के का नाम रवि था, बैंक में मैनेजर था। उसका परिवार नेकदिल और समझदार था।
रवि और उसके परिवार वालों को पूजा पहली नजर में ही पसंद आ गई। उन्होंने दहेज की कोई मांग नहीं रखी, बस इतना कहा कि “हम तो अपनी बहू को लेने आए हैं, शादी आप अपनी खुशी और सहूलियत के हिसाब से कर दीजिएगा।”
यह सुनकर प्रेम की चिंता थोड़ी कम तो हुई, लेकिन उसका सपना अभी भी वही था—अपनी बहन को एक रानी की तरह विदा करने का।
प्रेम ने शादी की तैयारियों की लिस्ट बनाई—अच्छा सा बैंक्वेट हॉल, शहर का सबसे अच्छा कैटरर, पूजा के लिए डिजाइनर लहंगा, बारातियों की आवभगत। इन सब में अच्छा-खासा खर्च था।
उसने अपनी सारी जमा पूँजी हिसाब की तो पता चला कि वह शादी के कुल खर्च का आधा भी नहीं है।
उसने दोस्तों से उधार माँगने की सोची, बैंक से लोन लेने के लिए भी भागदौड़ की, लेकिन हर जगह से निराशा ही हाथ लगी।
दिन बीतते जा रहे थे और शादी की तारीख नजदीक आ रही थी। प्रेम की रातों की नींद और दिन का चैन छिन गया था।
वह पूजा के सामने मुस्कुराता रहता, लेकिन अकेले में उसकी आँखों में गहरी चिंता और बेबसी तैरती रहती।

भाग 3: सबसे बड़ी कुर्बानी
एक रात जब उसे कोई रास्ता नहीं सूझा, तो उसने अपनी जिंदगी का सबसे बड़ा फैसला लिया।
उसने तय किया कि वह अपना पुश्तैनी मकान बेच देगा।
यह मकान—जिसमें उसके बचपन की यादें थीं, माँ के हाथ की बनी रोटियों की खुशबू थी, पिता की डाँट और प्यार था—बेचना मतलब अपनी जड़ों को, अपनी पहचान को बेचने जैसा था।
लेकिन दूसरी तरफ उसकी बहन की खुशी थी।
उसने सोचा, “यह मकान तो बस चार दीवारें हैं, मेरी असली दुनिया तो मेरी बहन है। अगर उसकी खुशी के लिए मुझे सड़क पर भी आना पड़े तो मैं तैयार हूँ।”
उसने यह बात पूजा से छिपा ली।
अगले कुछ दिनों में प्रेम ने एक प्रॉपर्टी डीलर से बात की और मकान का सौदा तय कर दिया।
खरीदार ने उसे एडवांस में एक बड़ी रकम दे दी, बाकी की रकम शादी के बाद मकान खाली करते समय देने का वादा किया।
प्रेम के हाथ में पैसे तो आ गए थे, लेकिन उसे लग रहा था जैसे उसने अपनी आत्मा बेच दी हो।
अब शादी की तैयारियाँ जोरों पर थीं।
प्रेम ने अपनी बहन की शादी में कोई कसर नहीं छोड़ी।
शहर का सबसे महंगा बैंक्वेट हॉल बुक किया गया, तरह-तरह के पकवानों की लिस्ट तैयार हुई, और पूजा के लिए दिल्ली से खास डिजाइनर लहंगा मंगवाया गया।
पूजा अपने भाई का यह प्यार देखकर हैरान थी।
“भैया, आप इतना सब क्यों कर रहे हैं? रवि के घर वाले तो बहुत अच्छे हैं, उन्हें इन सब की कोई जरूरत नहीं।”
प्रेम अपनी बहन के बालों को सहलाते हुए कहता, “पगली, यह सब मैं उनके लिए नहीं, अपनी खुशी के लिए कर रहा हूँ। मेरी एक ही तो बहन है, अगर उसकी शादी में भी कोई कमी रह गई तो मैं खुद को कभी माफ नहीं कर पाऊँगा।”
पूजा अपने भाई के इस प्यार को देखकर भावुक हो जाती, लेकिन वह उस मुस्कान के पीछे छिपे दर्द और त्याग से पूरी तरह अनजान थी।
भाग 4: विदाई की घड़ी
शादी का दिन आ गया।
पूरा मोहल्ला रोशनी से जगमगा रहा था।
पूजा दुल्हन के लाल जोड़े में किसी अप्सरा सी लग रही थी।
प्रेम अपनी बहन को देखकर एक पल के लिए अपने सारे ग़म भूल गया।
बारात आई, धूमधाम से स्वागत हुआ।
जयमाला हुई, फेरे पड़े।
प्रेम हर रस्म में आगे-आगे था, एक जिम्मेदार भाई की तरह हर चीज़ का ध्यान रख रहा था।
उसके चेहरे पर सुकून भरी मुस्कान थी, लेकिन दिल में एक तूफान चल रहा था।
वह बार-बार अपने उस घर को देख रहा था, जिसमें अब बस कुछ घंटों का मेहमान था।
सुबह विदाई का समय आया।
कल किसी भी भाई के लिए सबसे मुश्किल होता है।
पूजा अपने भाई के गले लगकर फूट-फूट कर रो रही थी।
“भैया, अपना ख्याल रखना। मुझे छोड़कर आप अकेले कैसे रहोगे?”
प्रेम का दिल भी रो रहा था, पर उसने अपनी आँखों में आँसू नहीं आने दिए।
“पगली, तू रो क्यों रही है? तुझे तो खुश होना चाहिए। देख, तुझे कितना अच्छा घर और परिवार मिला है। और मैं अकेला कहाँ हूँ, तेरी यादें तो हमेशा मेरे साथ रहेंगी।”
रवि और उसके माता-पिता भी प्रेम के अपनापन और जिम्मेदारी को देखकर बहुत प्रभावित थे।
रवि ने प्रेम के कंधे पर हाथ रखा।
“प्रेम जी, आप चिंता मत कीजिएगा। मैं पूजा को हमेशा खुश रखूँगा। और आप जब चाहें हमसे मिलने आ सकते हैं। वह घर जितना पूजा का है, उतना ही आपका भी है।”
पूजा जब डोली में बैठने के लिए आगे बढ़ी तो अचानक रुकी।
वह वापस अपने भाई के पास आई।
उसने अपने पर्स से एक बंद लिफाफा निकाला।
“भैया, यह आपके लिए है।”
प्रेम ने हैरानी से पूछा, “यह क्या है पूजा?”
पूजा की आँखों में आँसू थे, पर आवाज में एक अजीब सा निश्चय था।
“भैया, आप मुझसे वादा करो कि आप यह लिफाफा मेरे जाने के बाद ही खोलोगे, अकेले में।”
प्रेम कुछ समझ नहीं पाया, पर उसने अपनी बहन की खुशी के लिए वादा कर लिया।
पूजा ने वह लिफाफा उसके कुर्ते की जेब में रख दिया।
एक आखिरी बार अपने भाई के पैर छुए और डोली में बैठकर चली गई।
बारात जा चुकी थी।
मेहमान भी एक-एक करके विदा हो गए थे।
अब उस सूने घर में सिर्फ प्रेम अकेला रह गया था।
घर की हर चीज़ उसे काटने को दौड़ रही थी।
दीवारों पर लगी माँ-बाप की तस्वीरें उसे घूर रही थीं, जैसे पूछ रही हों—बेटा, तूने यह क्या किया?
प्रेम का सब्र अब टूट चुका था।
वह वहीं जमीन पर बैठकर बच्चों की तरह रोने लगा।
आज वह अपनी बहन को विदा करके खुश तो था, पर अपना सब कुछ लुटाकर बेसहारा भी हो गया था।
कुछ देर रोने के बाद उसे पूजा की दी हुई चिट्ठी का ख्याल आया।
उसने काँपते हाथों से अपनी जेब से वह लिफाफा निकाला।
उसे लगा शायद इसमें पूजा ने उसके लिए कोई प्यार भरा खत लिखा होगा, या शायद शगुन के कुछ पैसे रखे होंगे।
उसने धीरे से लिफाफे को खोला।
अंदर एक खत था और उसके साथ थी एक चाबी और कुछ सरकारी कागजात।
प्रेम ने खत पढ़ना शुरू किया।
भाग 5: चिट्ठी का सच
मेरे प्यारे भैया,
मुझे पता है जब आप यह खत पढ़ रहे होंगे, तब मैं आपसे बहुत दूर जा चुकी होंगी।
पर भैया, दूर सिर्फ मेरा शरीर गया है, मेरी आत्मा तो हमेशा आपके पास ही रहेगी।
मुझे माफ कर देना भैया। मैंने आपसे एक बहुत बड़ा सच छिपाया।मैं जानती थी। हाँ भैया, मैं सब जानती थी कि आप मेरी शादी के लिए हमारा यह घर बेच रहे हैं।
मैंने आपको उस प्रॉपर्टी डीलर से बात करते हुए सुन लिया था।
मैं आपको रोकना चाहती थी।
पर मैं यह भी जानती थी कि अगर मैं आपको रोकूँगी तो आप मेरी खुशी के लिए किसी और तरह से खुद को तकलीफ देंगे।भैया, आपने मुझे माँ-बाप की कमी कभी महसूस नहीं होने दी।
आपने अपनी पढ़ाई, अपने सपने, सब कुछ मेरे लिए कुर्बान कर दिया।
और आज मेरी खुशी के लिए आपने अपने सिर से छत भी छीन ली।पर मैं इतनी खुदगर्ज कैसे हो सकती हूँ कि अपने भाई को सड़क पर छोड़कर अपनी डोली सजा लूँ?
इसलिए भैया, मैंने और रवि ने मिलकर एक छोटा सा फैसला लिया।
रवि मेरी भावनाओं की बहुत इज्जत करते हैं।
जब मैंने उन्हें यह बात बताई तो उन्होंने एक पल भी नहीं सोचा।हमने आपके लिए एक छोटा सा नया घर खरीदा है।
हाँ भैया, यह सच है।
इस लिफाफे में उसी घर की चाबी और कागजात हैं।
यह घर आपके घर से ज्यादा बड़ा नहीं है, पर यह हमारा प्यार है।
आपकी कुर्बानी के आगे एक छोटा सा नजराना है।प्लीज इसे मना मत कीजिएगा, वरना आपकी यह बहन कभी खुश नहीं रह पाएगी।
आपकी छोटी बहन
पूजा
खत पढ़ते-पढ़ते प्रेम की दुनिया जैसे हिल गई।
उसके हाथ से खत और चाबी छूट कर नीचे गिर गए।
उसकी आँखों से आँसू नहीं, बल्कि भावनाओं का एक ऐसा सैलाब बह रहा था जिसे वह रोक नहीं पा रहा था।
वह हँस रहा था, रो रहा था, उसे खुद समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे।
उसकी बहन, जिसे वह हमेशा नादान सी बच्ची समझता था, वह इतनी समझदार और इतनी बड़ी कब हो गई, उसे पता ही नहीं चला।
उसने सोचा था कि वह अपनी बहन के लिए त्याग कर रहा है, पर असल में तो उसकी बहन ने उसके लिए प्यार और सम्मान का एक ऐसा महल खड़ा कर दिया था जिसकी कोई कीमत नहीं।
भाग 6: नया घर, नई उम्मीद
खत पढ़ने के बाद प्रेम सारी रात सो नहीं सका।
उसकी आँखों के सामने बार-बार पूजा की बातें घूम रही थीं।
सुबह होते ही उसने उन कागज़ात में लिखा पता देखा और अपने पुराने घर से निकल पड़ा।
शहर के एक शांत और अच्छे इलाके में एक छोटा सा सुंदर मकान था।
उसके बाहर नेमप्लेट पर लिखा था—
“प्रेम-पूजा निवास”
यह देखकर प्रेम का गला भर आया।
उसने काँपते हाथों से चाबी निकाली और दरवाज़ा खोला।
अंदर घर पूरी तरह सजा हुआ था।
जरूरत का हर सामान करीने से रखा था।
दीवारों पर उसकी और पूजा की बचपन की तस्वीरें लगी थीं, और साथ में उनके माता-पिता की भी एक बड़ी सी तस्वीर थी।
ऐसा लग रहा था जैसे यह घर नहीं, बल्कि स्वर्ग हो।
प्रेम ने तुरंत पूजा को फोन किया।
फोन उठाते ही पूजा रो पड़ी।
“भैया, आपको घर पसंद आया?”
प्रेम की भी आवाज़ नहीं निकल रही थी।
“पगली, तूने क्या किया? इतना बड़ा तोहफा कोई देता है क्या?”
पूजा ने सिसकते हुए कहा, “भैया, यह तोहफा नहीं, आप हैं। आपने जो मेरे लिए किया है, उसके आगे तो यह कुछ भी नहीं।”
उस दिन भाई-बहन फोन पर बहुत देर तक रोते रहे।
पर आज यह आँसू खुशी के थे, प्यार के थे, और उस अटूट रिश्ते के थे जिसे दुनिया की कोई दौलत खरीद नहीं सकती।
भाग 7: रिश्तों की छत
कुछ दिन बाद पूजा और रवि अपने नए घर पर प्रेम से मिलने आए।
रवि ने प्रेम को गले लगाया और कहा, “प्रेम जी, आप हमारे लिए सिर्फ जीजाजी नहीं, बड़े भाई हैं। आप हमेशा हमारे साथ रहेंगे। पूजा की खुशी में आपकी खुशी है।”
पूजा ने अपने भाई का हाथ थाम लिया।
“भैया, अब यह घर हमारा है। यहाँ हम सबकी यादें फिर से बनेंगी। आप अकेले नहीं हैं, हम सब आपके साथ हैं।”
प्रेम ने अपने माता-पिता की तस्वीर के सामने जाकर हाथ जोड़ दिए।
उसने महसूस किया कि असली छत ईंटों और दीवारों से नहीं, रिश्तों और प्यार से बनती है।
भाग 8: मोहल्ले की नई कहानी
धीरे-धीरे मोहल्ले में प्रेम की कहानी फैल गई।
लोग उसकी कुर्बानी और प्यार की मिसाल देने लगे।
बहुत से लोग उससे मिलने आते, उसकी हिम्मत और त्याग की तारीफ करते।
प्रेम ने अपने पुराने घर की यादों को दिल में बसाकर, नए घर में नई शुरुआत की।
वह फिर से प्रिंटिंग प्रेस में काम करने लगा।
पूजा और रवि अक्सर मिलने आते, साथ खाना बनाते, हँसी-ठहाके लगाते।
घर की दीवारों पर अब एक नया रंग था—प्यार, विश्वास और उम्मीद का।
भाग 9: भाई-बहन का पर्व
रक्षाबंधन आया।
पूजा ने अपने भाई की कलाई पर राखी बाँधी और कहा,
“भैया, आपने मेरे लिए सब कुछ किया। आप हमेशा मेरे सबसे बड़े हीरो रहेंगे।”
प्रेम ने मुस्कुरा कर कहा,
“पगली, असली हीरो तो तू है। तूने मेरे लिए जो किया, वह कोई बहन नहीं कर सकती।”
पूजा ने हल्की सी मुस्कान दी,
“भैया, जब तक आपकी छत मेरे सिर पर है, मुझे दुनिया की कोई चिंता नहीं।”
दोनों ने एक-दूसरे को गले लगाया।
माता-पिता की तस्वीर के सामने दोनों ने वादा किया कि हमेशा एक-दूसरे के साथ रहेंगे।
भाग 10: कहानी का संदेश
समय के साथ प्रेम और पूजा की जिंदगी में खुशियाँ लौट आईं।
उनका घर अब एक मिसाल था—जहाँ त्याग, प्यार और रिश्तों की छत तले सब सुरक्षित थे।
पूरी मोहल्ले में उनकी कहानी सुनाई जाती थी।
लोग अपने बच्चों को बताते,
“देखो, भाई-बहन का रिश्ता ऐसा होता है। जहाँ त्याग की कोई सीमा नहीं, प्यार का कोई मोल नहीं।”
प्रेम ने सीखा कि असली मकान ईंटों और दीवारों से नहीं, रिश्तों और यादों से बनता है।
पूजा ने सीखा कि भाई की छाया हर मुश्किल में सबसे बड़ी ताकत होती है।
समापन
तो दोस्तों, यह थी प्रेम और पूजा की कहानी।
यह हमें सिखाती है कि भाई-बहन का रिश्ता दुनिया का सबसे अनमोल रिश्ता होता है।
जहाँ त्याग और प्यार की कोई सीमा नहीं होती।
एक भाई अपनी बहन की खुशी के लिए अपना सब कुछ लुटा सकता है,
तो एक बहन भी अपने भाई के सिर पर छत बनाए रखने के लिए हर हद से गुजर सकती है।
अगर इस कहानी ने आपके दिल को छू लिया हो,
तो अपने भाई या बहन को गले लगाइए,
उनके साथ यह कहानी जरूर साझा कीजिए।
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