💔 पापा, आपने मुझे सड़कों पर क्यों छोड़ा?
(एक बेटी का सवाल जिसने इंसानियत को झकझोर दिया)
सुबह के सात बजे थे। महानगर की सड़कों पर हमेशा की तरह भीड़, गाड़ियों का शोर और भागती हुई ज़िंदगी थी। हॉर्न की आवाज़ें और ट्रैफिक का कोलाहल ऐसा लग रहा था मानो शहर सांस लेने के बजाय दौड़ रहा हो। इसी भागमभाग के बीच एक ग्यारह साल की छोटी सी लड़की नंगे पैर सड़क पर इधर-उधर दौड़ रही थी।
उसके फटे पुराने कपड़े, धूल से सना चेहरा और बिखरे बाल देखकर कोई भी कह देता कि यह बच्ची गरीबी का सबसे निर्मम चेहरा है। लेकिन उसकी आँखों में एक ऐसी चमक थी, जो उसकी उम्र की मासूमियत नहीं बल्कि जीवन के संघर्ष से उपजी दृढ़ता थी। उसके हाथ में एक पुराना चमड़े का डिब्बा और एक गंदा कपड़ा था। वह हर लाल बत्ती पर दौड़ती और कहती—
“साहब, जूते पॉलिश करवा लो… बस दस रुपये।”
कई लोग उसे देखकर दरवाज़े बंद कर लेते। कोई उसे धक्का देकर हटाता तो कोई ताने मारता—
“दूर हट जा, मेरी गाड़ी गंदी मत करना!”
वह हर अपमान को सहती, लेकिन चेहरे पर टूटी हुई मुस्कान रखती क्योंकि उसे पता था कि भूख के सामने शर्म की कोई कीमत नहीं होती।
उसी दिन एक काली चमचमाती सेडान गाड़ी आकर रुकी। उसके अंदर बैठे थे आलोक वर्मा—शहर के सबसे बड़े हीरा व्यापारी। महंगे सूट, सोने की घड़ी और चेहरे पर सफलता का कठोर आत्मविश्वास। रिया उनके पास पहुंची और बोली, “साहब, आपके जूते बहुत गंदे हैं। चमका दूं, सिर्फ दस रुपये।”
आलोक ने अपने फोन से नज़र उठाई और झुंझलाकर कहा, “नहीं, जाओ यहाँ से। मेरे पास टाइम नहीं है।”
रिया धीरे से बोली, “साहब, आज सुबह से कुछ खाया नहीं… बस पाँच रुपये दे देना।”
लेकिन सिग्नल हरा हो गया, गाड़ी आगे बढ़ गई और उसके साथ ही रिया की छोटी सी उम्मीद भी धूल में मिल गई।
अगले दिन वही चौराहा, वही गर्मी और वही भीड़। रिया फिर उसी जगह खड़ी थी। वह हर गाड़ी की ओर भागती पर हर तरफ से सिर्फ डांट और धक्के मिलते। किसी ने कहा, “कल तूने मेरी सीट गंदी कर दी थी, चली जा यहाँ से!” और एक आदमी ने गुस्से में उसे धक्का दे दिया। रिया सड़क के कीचड़ में गिर पड़ी। उसका डिब्बा दूर जा गिरा। उसकी हथेलियाँ छिल गईं।
लोग देख रहे थे, पर कोई आगे नहीं आया। और ठीक उसी पल वही काली गाड़ी फिर से उसी सिग्नल पर आकर रुकी। अंदर बैठे थे आलोक वर्मा। उन्होंने बाहर झाँका तो उनकी निगाह उस बच्ची पर पड़ी जो मिट्टी में सनी हुई उठने की कोशिश कर रही थी। उनके दिल में एक अजीब सी टीस उठी। उन्होंने खुद को समझाया—“ये तो रोज़ का नज़ारा है…” लेकिन आज उनके दिल की आवाज़ दिमाग से ज़्यादा तेज़ थी।
रिया उठी, अपने कपड़े झाड़े और उसी गाड़ी के पास आई। ज़मीन पर बैठकर उसने बिना कुछ कहे जूते पॉलिश करने शुरू कर दिए। आलोक उसकी ओर देखते रह गए। वह चेहरा, वह भूरी आँखें, वह नाक पर छोटा सा तिल—उनके भीतर कहीं कुछ टूटने लगा। उन्होंने धीमे स्वर में पूछा, “तुम्हारा नाम क्या है?”
रिया मुस्कुराई, “रिया… मां कहती थी यह नाम राजाओं जैसा है।”
आलोक के दिल की धड़कन तेज़ हो गई। रिया—यही नाम तो उन्होंने अपनी बेटी का रखा था, जो सात साल पहले एक भीषण सड़क दुर्घटना में उनसे हमेशा के लिए बिछड़ गई थी। सिग्नल हरा हो गया लेकिन इस बार उनके लिए समय ठहर गया था।
उस रात आलोक अपने महल जैसे घर में बैठे थे। टेबल पर बेटी की पुरानी तस्वीर रखी थी। वही आंखें, वही मुस्कान, वही नाक पर छोटा तिल। उनके हाथ कांप रहे थे। उन्हें लगा शायद आज वर्षों बाद किस्मत ने उन्हें उनकी रिया लौटा दी है।
अगली सुबह आलोक फिर उसी चौराहे पर पहुंचे। लेकिन इस बार किसी व्यापारिक मीटिंग के लिए नहीं, अपनी आत्मा का खोया हुआ टुकड़ा खोजने के लिए। उन्होंने गाड़ी रोकी और रिया को आवाज़ दी—“रिया इधर आओ।”
रिया दौड़ती हुई आई—“जी साहब?”
आलोक उस छोटी बच्ची के सामने घुटनों पर बैठ गए। उस करोड़पति आदमी ने पहली बार अपनी अकड़ छोड़ दी थी। आंखों से आंसू बह निकले। उन्होंने पूछा, “रिया बेटा, तुम्हारा पूरा नाम क्या है? तुम्हारी मां कहां है?”
रिया ने जमीन की ओर देखा और धीमी आवाज़ में बोली, “मां अब नहीं है। पापा को हमने सात साल पहले एक कार एक्सीडेंट में खो दिया था। हम दोनों बच गए थे, लेकिन कुछ ही दिन बाद मां भी चली गईं। मेरा नाम रिया वर्मा है।”
आलोक का दिल फट गया। रिया वर्मा—उनकी बेटी का नाम भी यही था। उन्होंने कांपते हाथों से रिया के छोटे हाथ थामे और रोते हुए कहा, “बेटा, क्या तुम्हें याद है, तुम्हारे पापा तुम्हें ‘छोटी राजकुमारी’ कहते थे? हर रात कहानी सुनाते थे?”
रिया ने खाली निगाहों से देखा—“नहीं साहब, मुझे कुछ याद नहीं। डॉक्टर कहते थे हादसे के बाद मैं सब भूल गई थी… बस मां की आवाज़ याद है।”
आलोक की आवाज़ भर्रा गई, “रिया… मैं हूँ तुम्हारा पापा।”
रिया एक कदम पीछे हटी। उसकी आँखों में अविश्वास और गुस्सा था।
“नहीं! आप मेरे पापा नहीं हो सकते। मेरे पापा गरीब थे, आप तो अमीर हैं। अगर आप मेरे पापा होते तो मुझे इन सड़कों पर क्यों छोड़ दिया? क्यों?”
यह सवाल आलोक के दिल में तीर की तरह धँस गया। उन्होंने टूटे हुए स्वर में कहा, “बेटा, मुझे लगा तू नहीं रही। मैंने सब खो दिया था… पर मैं तुझसे कभी दूर नहीं था।”
आलोक ने उसे गले लगा लिया। एक टूटा हुआ पिता अपनी खोई हुई बेटी को सीने से लगाकर रोने लगा। सड़क पर खड़ी भीड़ जो हमेशा बेदिल रहती थी, आज हर कोई रो रहा था।
रिया सुबकते हुए बोली, “पापा, मुझे यहाँ से ले चलो। मुझे डर लगता है, भूख लगती है।”
आलोक ने उसके आंसू पोंछे और कहा, “चल मेरी राजकुमारी, अब कोई तुझे सड़क पर नहीं छोड़ेगा।”
लेकिन उसी क्षण एक ट्रक ने सिग्नल तोड़कर उनकी तरफ रफ्तार से बढ़ना शुरू किया। आलोक ने बिना सोचे रिया को जोर से धक्का दिया। रिया दूर जाकर गिरी, लेकिन ट्रक ने आलोक को टक्कर मार दी।
सड़क पर अफरातफरी मच गई। रिया चिल्लाई, “पापा!” और दौड़कर उनके पास आई। आलोक खून में लथपथ पड़े थे, लेकिन होंठों पर मुस्कान थी। उन्होंने कांपते हुए कहा, “बेटा… अब डरना मत… पापा ने तुझे बचा लिया…” और उनकी सांसें हमेशा के लिए थम गईं।
किस्मत ने पिता-पुत्री को मिलाया जरूर, लेकिन एक पल में फिर जुदा कर दिया। पर इस बार जुदाई में शिकायत नहीं थी, बल्कि एक पिता के प्रेम का अमर वादा था।
साल बीत गए। वही चौराहा, वही शोरगुल, लेकिन अब दृश्य बदल चुका था।
वहीं एक बड़ा बोर्ड लगा था—“सड़क से सुकून तक” — रिया आलोक वर्मा ट्रस्ट।
अब वह छोटी सी रिया, जो कभी जूते पॉलिश करती थी, अब उन बच्चों को किताबें बाँट रही थी जो कभी सड़क पर उसकी तरह भूखे भटकते थे। लोग उसे पहचानते और कहते—“अरे, यह तो वही लड़की है जो सिग्नल पर जूते चमकाती थी!”
रिया मुस्कुराती और कहती—“हाँ, मैं वही हूँ। लेकिन अब मैं उन्हें वही मौका देती हूँ जो मेरे पापा ने अपनी जान देकर मुझे दिया।”
शाम को वह आसमान की ओर देखती, जहाँ सूरज डूब रहा होता और बादलों के पीछे से हल्की सुनहरी किरणें निकलतीं। वह आंखें बंद कर कहती—
“पापा, आप चले गए, लेकिन आपका प्यार ज़िंदा है। अब कोई बच्चा सड़क पर नहीं रोएगा।”
कभी-कभी रिश्ते इतनी देर से मिलते हैं कि ज़िंदगी उन्हें जीने का समय नहीं देती।
लेकिन सच्चा प्यार, चाहे देर से आए, हमेशा इंसानियत की नई सुबह लेकर आता है।
News
In the middle of a snowstorm, a homeless woman gave birth on the sidewalk. When her cries faded into the cold night, ten roaring engines appeared from the dark horizon…
In the middle of a snowstorm, a homeless woman gave birth on the sidewalk. When her cries faded into the…
प्रियंका सिंह – न्याय की बेटी
प्रियंका सिंह – न्याय की बेटी सुबह की ठंडी हवा में जब शहर की गलियां धीरे-धीरे जाग रही थीं, बाजार…
मीरा की वापसी – स्वाभिमान की कहानी
मीरा की वापसी – स्वाभिमान की कहानी रात के सन्नाटे में जब हवाएं चीख रही थीं और आसमान से बरसती…
कप्तान आरुषि सिंह – न्याय की लौ
कप्तान आरुषि सिंह – न्याय की लौ रामगढ़ जिला, जो कभी कानून और व्यवस्था के लिए प्रसिद्ध था, अब डर…
They Humiliated My Wife at Our Son’s Wedding — But Twenty Years in the Marines Taught Me That Revenge Doesn’t Always Mean Violence… Sometimes It Means Standing Tall With Grace
They Humiliated My Wife at Our Son’s Wedding — But Twenty Years in the Marines Taught Me That Revenge Doesn’t…
My Mother-in-Law Came to “Help” — Then My Husband Moved Into Her Room
My Mother-in-Law Came to “Help” — Then My Husband Moved Into Her Room Introduction She arrived with two suitcases and…
End of content
No more pages to load






